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भारत व श्रीलंका परमाणु सुरक्षा विवाद के समाधान में संयमी
2012-04-12 16:44:12

 श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री रानावाका ने हाल ही में कहा कि क्योंकि दक्षिण भारत स्थित तमिल नाडू में एक परमाणु बिजली घर का पुनर्निर्माण किया जा रहा है , इसलिये उन्हें चिन्ता है कि कहीं भविष्य में इस परमाणु बिजली घर में जापान के फुकुजिमा में हुए परमाणु विकिरण जैसी दुर्घटना उत्पन्न न हो , श्रीलंका भारत के इस परमाणु बिजली घर के निर्माण का विरोध करता है और इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को पेश करेगा । रानावाका के इस रुख से तुरंत ही दोनों देशों के लोकमतों में परमाणु सुरक्षा सवाल पर बहस हुई । इस के मद्देनजर दोनों देशों की सरकारों ने इसी मामले के समाधान में संयमशील तौर तरीका अपनाया ।

श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री रानावाका ने 8 अप्रैल को मीडिया से कहा कि क्योंकि भारत दक्षिण भारत के तमिल लाडू में जिस कुडान्कुलाम परमाणु बिजली घर का पुनर्निर्माण कर रहा है , वह श्रीलंका की प्रादेशिक भूमि से बहुत नजदीक है , दोनों स्थलों के बीच का सीधा फासला केवल 20 किलोमीटर से कम है , उन्हें चिन्ता है कि यदि वहां पर जापानी फुकुजिमा की परमाणु दुर्घटना जैसी नौबत आये , तो श्रीलंका को भारी मुसीबत में फंसना पड़ेगा । इसलिये वे इस मामले के पंच निर्णय के लिये अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को पेश करेंगे , ताकि आगामी सितम्बर में अतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की परिषद के सम्मेलन में एक युक्तिसंगत समाधान प्रस्ताव की खोज की जा सके ।

रानावाका के उक्त बयान से तुरंत ही भारतीय मीडिया में धूम मची । भारतीय लोकमत का मानना है कि श्रीलंका ने स्पष्टतः इसी बात पर भारत का बदला लेने के लिये यह रवैया अपनाया है कि गत माह के अंत में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत ने श्रीलंका के विरोध में वोट दिया है । कुछ भारतीय राजनीतिक सूत्रों का यह विचार भी है कि परमाणु बिजली घर का निर्माण भारत का अंदरुनी मामला है , वे भारत के अंदरुनी मामलात में किसी दूसरे देश के दखल के खिलाफ हैं । भारतीय द्राविदा प्रगतिशील संघ के अध्यक्ष करुणानिधि ने कहा कि कुडांकुलाम परमाणु बिजली घर कोई नयी परियोजना नहीं है , उस की शुरुआत को काफी लम्बा समय हो गया है , श्रीलंका ने ऐसे समय पर प्रतिरोध पेश किया है , यह भारत के लिये अस्वीकार्य है ।

इस घटना के विस्तार के चलते भारत सरकार और भारतीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के संबंधित जिम्मेदार व्यक्तियों ने शीघ्र ही यह कहा है कि भारत श्रीलंका की चिन्ता को समझता है और इसी सवाल पर श्रीलंका के साथ विचार विमर्श करने को तैयार है , साथ ही परमाणु बिजली घर के सुरक्षा सवाल का स्पष्टीकरण भी कर दिया ।

भारत का सुझाव है कि इसी मामले का समाधान परमाणु नुकसान के बारे में औपचारिक रुप से प्रभावी होने वाली अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा परमाणु एजेंसी की पूरक मुआवजा संधि के ढांचे में किया जाये । भारत ने वर्तमान में इसी संधि पर हस्ताक्षर किये हैं । यदि कुडांकुलाम परमाणु बिजली घर में जापानी फुकुजिमा परमाणु दुर्घटना जैसी मुसीवत आयेगी , तो श्रीलंका को इसी संधि की संबंधित धाराओं के अनुसार तदनुरुप मुआवजा मिलेगा ।

इस के बाद भारत स्थित श्रीलंकाई उच्चायुक्त प्रसाद ने दस अप्रैल को मीडिया से कहा कि इस मामले का खूब प्रचार प्रसार करना उचित नहीं है , दोनों देशों ने वर्तमान में इसी मामले को लेकर रचनात्मक व मैत्रीपूर्ण वार्तालाप किया है , संबंधित तकनीकी सवालों पर विचार विमर्श भी किया जा रहा है । श्रीलंका के ऊर्जा मंत्री नारावाका ने भी यह कहा कि उन्होंने दोनों देशों की परमाणु सुरक्षा दुर्घटना के मुकाबले समझौते के बारे में जो प्रस्ताव पेश किया है , भारत ने उस की सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की है ।

साथ ही भारत ने इसी बात का स्पष्टीकरण भी कर दिया है कि गत माह में भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के गृह युद्ध में मानवाधिकार सवाल पर वीटो किया है । भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने खुद श्रीलंका सरकार के नाम भेजे संदेश में संबंधित सवालों को लेकर भारत के रुख पर प्रकाश डाला और कहा कि भारत मानवाधिकार सवाल पर श्रीलंका के साथ सहयोग जारी ऱखेगा , ताकि श्रीलंका की शंकाएं दूर हो जाये ।

विश्लेषकों का कहना है कि परमाणु बिजली घर से पैदा विवाद के समाधान पर दोनों देशों का रवैया सकारात्मक है , मौजदा परमाणु सुरक्षा विवाद के समाधान के तौर तरीके से जाहिर है कि दोनों देश नहीं चाहते हैं कि परमाणु सुरक्षा सवाल से दोनों देशों के संबंध पर कुप्रभाव पड़ जाये , यहीं नहीं , दोनों देशों ने संबंधित मतभेदों के शीघ्र ही समाधान के लिये विविधतापूर्ण सकारात्मक कदम भी उठा दिये हैं । इसलिये परमाणु सुरक्षा सवाल पर दोनों पक्षों के बीच उत्पन्न विवाद दोनों देशों के संबंध के विकास को बाधित नहीं होगा ।

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