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तिब्बत तिब्बती जनता का है , न कि 14वें दलाई लामा का
2012-03-28 17:29:00

28 मार्च को चीन के दस लाखों तिब्बती भूदासों का मुक्ति दिवस है । मार्च 1959 में तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक सामंती भूदास व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है । तब से लेकर आज तक के 53 सालों में तिब्बत में जमीन आसमान का भारी परिवर्तन हो चुका है और आर्थिक व सामाजिक विकास में उल्लेखनीय उपलब्धियां भी प्राप्त हुई हैं ।  

मार्च 1959 में चीन लोग गणराज्य की राष्ट्रीय जन प्रतिनिधि सभा की स्थायी कमेटी के तत्काल उपाध्यक्ष व तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की संयोजन कमेटी के प्रधान सदस्य 14वें दलाई लामा ने तिब्बत में स्वायत्त प्रदेश की स्थापना और जातीय क्षेत्रीय स्वशासन प्रणाली लागू करने के वचन को तोड़ दिया और स्वेच्छा से चीन के राजकीय नेता का दायित्व त्याग दिय़ा , फिर अमरीकी केंद्रीय सूचना ब्यूरो में प्रशिक्षित जासूसों के अनुरक्षण में चीन से भारत के लिये रवाना हुए ।

तिब्बत का सामाजिक विकास दलाई लामा के निकलने से स्थगित नहीं हुआ । दसवें पनचन अर्दनी तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की संयोजन कमेटी के कार्यवाहक प्रधान सदस्य बने । 28 जून 1959 को पनचन अर्दनी की सदारत में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की संयोजन कमेटी का दूसरा पूर्णाधिवेशन आयोजित हुआ और समूचे तिब्बत प्रदेश में जनवादी सुधार के बारे में प्रस्ताव पारित हुआ । 1959 से 1961 तक के दो साल में तिब्बत में ऐतिहासिक महत्व वाले सामाजिक प्रणाली का मूल सुधार हुआ । 1959 से पहले तिब्बती जन संख्या का पांच प्रतिशत भूदान मालिकों , जिन का सरगना दलाई लामा है , के पास तिब्बत की सारी भूमि और चरागाह आदि संपत्तियां थीं , साथ ही तिब्बती जन संख्या का 95 प्रतिशन भूदास और गुलाम उन के शिकंजे में भी थे । इसी प्रकार के परिवर्तन के जरिये दस लाखों भूदास दलाई लामा जैसे भूदास मालिकों के गुलामों से शारीरिक स्वतंत्रता व राजनीतिक अधिकार प्राप्त नागरिक बन गये हैं , इतिहास पर प्रथम बार उन्होंने अपनी जमीन व चरागार प्राप्त किया है और पहली बार तिब्बत के विभिन्न स्तरीय स्थानीय शासनों का चयन कर लिया है । इसी परिवर्तन से तिब्बत की राजनीतिक व धार्मिक सामंती भूदास व्यवस्था भी हमेशा के लिये जड़ से काटी गयी है , तिब्बती सामाजिक राजनीति धर्म से पूरी तरह अलग हो पायी है , धर्म सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्रों से हटकर आध्यात्मिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में वापस लौट गया है ।

सितम्बर 1965 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना हुई । जन प्रतिनिधि सभा को मूल प्रणाली के आधार पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में बहुदलीय सहयोग , राजनीतिक सलाहकार प्रणाली और जातीय क्षेत्रीय स्वशासन प्रणाली को मूल व्यवस्था बनाने वाली राजनीतिक व्यवस्था तिब्बत में पूर्ण रुप से लागू हो गयी है । इस राजनीतिक व्यवस्था का केंद्रीय विषय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का नेतृत्व , जनता देश का मालिक और कानूनी तौर पर देश का शासन ही है , जिस से तमाम अधिकार जनता के पास होने का मूल सिद्धांत अभिव्यक्त हो गया है ।

53 साल बीत गये हैं , तिब्बत में जो सभी बदलाव आये हैं , वे अंत में व्यक्तियों में हुए परिवर्तनों पर नजर आते हैं । 2011 में समूचे स्वायत्त प्रदेश का कुल उत्पदान मूल्य 60 अरब 58 करोड़ तीस लाख य्वान तक पहुंच गया , आम वित्तीय आय पांच अरब 47 करोड़ य्वान हो गयी , जो क्रमशः 1959 से 93.9 गुना और 48.5 गुना बढ़ गया ।

जन जीवन कार्य में भी चौतरफा प्रगति हुई है । तिब्बती जनसंख्या 1959 की 12 लाख 28 हजार से बढ़कर 2011 की 30 लाख तीस हजार तक हो गयी है , जिस में तिब्बती जन संख्या 90.48 प्रतिशत बनती है , औसत प्रत्याशित जीवनीय आयु 1959 की 35.5 से बढ़कर 67 हो गयी है । साथ ही शिक्षा और सामाजिक गारंटी में भी भारी प्रगति हुई है । यहां पर सभी जातियां बराबर होती हैं , किसी भी जाति के साथ भेदभाव व अत्याचार करने की मनाही है , और जातीय एकता को भंग करने और जातीय विभाजन करने की कार्यवाही भी मना है । हरेक व्यक्ति संविधान व कानूनों में निश्चित अधिकारों का हकदार है और संवैधानिक व कानूनी दायित्व भी निभाता है ।

इस के साथ ही 14 वें दलाई लामा ने भूदान व्यवस्था की रक्षा करने वाले भिक्षुओं और भूदास मालिकों के साथ भारत फरार होने के बाद राजनीतिक व धार्मिक निर्वासित सरकार की स्थापना की है , स्वाधीन तिब्बत का उद्देश्य लिये राजनीतिक आंदोलन को बढावा देने और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से समर्थन प्राप्त करने की नाकाम कोशिश की , फौजी खलल , हिंसक और अहिंसक गतिविधियों और आत्मदाह के माध्यम से देश और तिब्बत की भीतरी स्थिरता को भंग कर दिया , अब वे तीस लाख तिब्बती जनता और 60 लाख तिब्बती जातीय लोगों तथा एक अरब 30 करोड़ समूची चीनी जनता के साथ दुश्मनी रखने वाले रास्ते पर फिर भी कायम हुए हैं ।

19 जनवरी 2009 को तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की जन प्रतिनिधि सभा ने हर वर्ष के 28 मार्च को दस लाख तिब्बती भूदासों का मुक्ति दिवस घोषित कर दिया है , ताकि लोग तिब्बत के इतिहास पर हुई राजनीतिक व धार्मिक सामंती भूदास प्रणाली न भूले और 50 साल पहले तिब्बत में हुए ऐतिहासिक सामाजिक परिवर्तन याद रखें , साथ ही दुनिया को बताना है कि तिब्बत का मालिक तिब्बती जनता ही है , न कि 14 वें दलाई लामा का ।

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