ब्रिक्स देशों की चौथी शिखर वार्ता इस माह की 28 से 29 तारीख तक भारत की राजधानी नयी दिल्ली में होगी । वैश्विक संचालन , खासकर भूमंडलीय आर्थिक संचालन इस शिखर वार्ता के महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है । मौजूदा शिखर वार्ता ऐसी पृष्ठभूमि में हो रही है , जबकि ब्राजिल , रुस , भारत , चीन और दक्षिण अफ्रीका समेत इन पांच ब्रिक्स देशों की आर्थिक वृद्धि गति धीमी पड़ी है और यूरोपीय ऋण संकट की फैलाव प्रवृति नजर आयी है , वैश्विक आर्थिक वृद्धि में ब्रिक्स देशों की भूमिका एक ध्यानाकर्षक केंद्र बन गयी है ।
2008 में विश्व वित्तीय संकट अमरीका से सारी दुनिया में विस्तृत हो गया है , फिर 2009 के अंत में ग्रीस में उत्पन्न यूरोपीय सोवरन ऋण संकट अभी भी जारी रहा है । हालांकि बाजार की आम राय है कि यूरोपीय ऋण संकट का कठिन दौर लद हो चूका है , लेकिन लोकमत का मानना है कि यूरोपीय ऋण संकट में बिगाड़ आने का खतरा हर वक्त पर हो सकता है , कारण यह है कि सहायता की प्राप्ति के बाद ग्रीस की स्थिति में बदलाव आया है , पर पुर्तगाल के आर्थिक ह्रास लगातार बिगड़ रहा है और स्पेन में ऊंची बेरोजगारी दर बनी रही है , जिस से बाजार यूरोपीय ऋण संकट में फिर बिगाड़ आने पर बेहद चिन्ति है ।
पिछले चार सालों में ब्रिक्स देशों ने विश्व आर्थिक वृद्धि बढाने में अहम भूमिका निभायी है । लेकिन वर्तमान में ब्रिक्स देश आर्थिक वृद्धि गति धीमी पड़ने का सामना कर रहे हैं , चीन 2012 की जी डी पी की वृद्धि दर 8 प्रतिशत से 7.5 प्रतिशत तक कम करेगा , जबकि भारत अपनी 2011 वार्षिक आर्थिक वृद्धि दर 8.4 प्रतिशत से 6.9 प्रतिशत तक घटा देगा । चीनी राष्ट्रीय विकास व सुधार आयोग की विद्या कमेटी के महा सचिव चांग य्येन शंग ने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में ब्रिक्स देशों को विश्व आर्थिक वृद्धि के इंजन की खुशी में मस्त होने के बजाये विश्व आर्थिक नेता बनने के लिये सुझ बुझ दिमाग रखना चाहिये ।
ब्रिक्स देशों के नेता हो या उद्यमी क्यों न हो , उन्हें सुझ बुझ दिमांग रखरने की जरुरत है । ब्रिक्स देशों का आर्थिक ढांचा बहुत कमजोर है , चीन और भारत आर्थिक वृद्धि के लिये श्रम शक्तियों पर आश्रित हैं , ब्राजिल और रुस तो इसी संदर्भ में ऊर्जा व संसाधनों पर ज्यादा निर्भर हैं , दक्षिण अफ्रीका के आर्थिक विकास में ज्यादा समस्याएं भी खड़ी हुई हैं । ब्रिक्स देशों को ऊंची आय वाले देशों की गिनती में आने के लिये आर्थिक वृद्धि बदलने के बजाये व्यवस्था के सुधार , ढांचे के समायोजन , कानूनी प्रणाली और नियम की स्थापना पर आधारित होना आवश्यक है ।
चीनी राष्ट्रीय विकास व सुधार आयोग की विद्या कमेटी के महा सचिव चांग य्येन शंग ने यूरोपीय ऋण संकट की चर्चा करते हुए कहा कि यूरोप यूरोपीय ऋण संकट का समाधान करने में सक्षम है , जबकि ब्रिक्स देशों की भूमिका तो ज्यादा प्रेरणादायक मात्र ही है ।
वर्तमान यूरोपीय सोवरन ऋण संकट का केंद्रित मुद्दा यह है कि वे किस तरह अपने एकीकरण को गहराई में ले जाएं और आगे बढने में राजनीतिक मतैक्य प्राप्त करें । यूरोपीय सवाल सर्वप्रथम यूरोपीय वासियों का मामला है , अंतर्राष्ट्रीय सहायता विश्वास का सवाल ही है । इसलिये ऐसी हालत में तथाकथित ब्रिक्स देशों की सहायता का भूमंडलीय निवेशकों को विश्वास दिलाने का महत्व है ।
रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा शिखर वार्ता में चीनी विकास बैंक ब्राजिल , रुस , भारत व दक्षिण अफ्रीका के बैंकों के साथ समझदारी मेमोरंडम संपन्न करेगा और इन देशों को रनमिनपी का कर्ज बढा देगा , यह रनमिनपी के अंतर्राष्ट्रीकरण को बढावा देने में अहम भूमिका निभायेगा ।
भारत के जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के पूर्वी एशियाई अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर श्रीकांत कोंदापली का मानना है कि इधर सालों में ब्रिक्स देशों की आर्थिक शक्तियों के तेज विकास के चलते अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक , वित्तीय और राजनीतिक क्षेत्रों में उन की प्रभावशाली शक्तियां भी दिन ब दिन बढ़ती गयी हैं , इसलिये भूमंडलीय राजनीतिक और अतर्राष्ट्रीय आर्थिक सवाल स्वभावतः मौजूदा नयी दिल्ली शिखर वार्ता का ध्यानाकर्षक महत्वपूर्ण मुद्दा बनेगा ।
ब्राजिल , रुस , भारत , चीन और दक्षिण अफ्रीका समेत ये नवोदित देशों को ब्रिक्स देश माने जाते हैं । मौजूदा शिखर वार्ता में ब्रिक्स देशों के नेता मुख्यतः विश्वव्यापी मुद्दों के अलावा संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांतों को बनाये रखने पर विचार विमर्श भी करेंगे । साथ ही इन देशों के नेता विश्व आर्थिक विकास को बाधित करने वाले वित्तीय संकट सवाल पर सलाह मशविरा कर देंगे । अंत में वे मध्य पूर्व और लिबिया की परिस्थितियों के विकास , ईरानी न्यूक्लीयर समस्या के समाधान आयाम व सीरियाई सवाल जैसे मामलों पर विचार विमर्श भी कर देंगे ।
प्रोफेसर श्रीकांत का विचार है कि ब्रिक्स देशों के नेताओं की नियमित वार्ता विश्व राजनीतिक व आर्थिक लोकतांत्रीकरण व बहुध्रुवीकरण , विश्व आर्थिक पुनरुत्थान और ब्रिक्स देशों के भीतरी आर्थिक व राजनीतिक सहयोग को बढावा देने के लिये लाभदायक है ।
श्रीकांत ने कहा कि ब्रिक्स देशों में चीन सब से बड़ा आर्थिक समुदाय है , वर्तमान में चीन विश्व के बहुत ज्यादा देशों का प्रमुख व्यापार साझेदार बन चुका है । लेकिन चीन को अन्य ब्रिक्स देशों के साथ सहयोग बढाने की जरुरत पड़ती है ।
वर्तमान चीनी जी डी पी करीब 60 खरब अमरीकी डालर तक पहुंच गयी है , वह विश्व का दूसरा बड़ा आर्थिक समुदाय बन गया है । यदि घरेलू सकल राष्ट्रीय उत्पाद की दृष्टि से देखा जाये , तो यह आंकड़ा एक बहुत बड़ी उपलब्धि है , पर मेरा मानना है कि भविष्य में चीन को आर्थिक व व्यापारिक क्षेत्रों के सुधार में और अधिक खोज करना चाहिये ।
श्रीकांत ने कहा कि ब्रिक्स देशों के आर्थिक विकास को अभी तक पश्चिमी देशों की अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक व वित्तीय प्रणालियों पर निर्भर रहना पड़ता है , उन का प्रमुख व्यापार साझेदार पश्चिमी साथी भी हैं , जबकि ब्रिक्स देशों के भीतरी व्यापारों और आवाजाहियों की सख्त कमी है । आइंदे ब्रिक्स देश संभावतः अपनी व्यापारिक व वित्तीय प्रणाली स्थापित करेंगे , जिस से पश्चिमी वित्तीय प्रणाली पर अपनी निर्भरता कम होगी और स्वतंत्र विश्व आर्थिक व व्यापारिक केंद्र बन जायेगा ।