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ब्रिक्स देशों के शिखर सम्मेलन का सकारात्मक महत्व
2012-03-26 17:28:21

 ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन इस माह की 28 से 29 तारीख तक भारत की राजधानी नयी दिल्ली में बुलाया जायेगा । पता चला है कि चीन , भारत , रुस , ब्राजिल और दक्षिण अफ्रीका समेत इन पांच ब्रिक्स देशों के नेता मौजूदा शिखर सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सैद्धांतिक सवालों को समान रुप से मजबूत बनाने और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था और वित्तीय संकट में एक दूसरे के रुखों को समन्वित करने समेत सिलसिलेवार भूमंडलीय मामलों पर मुख्य रुप से विचार विमर्श कर देंगे , इस के अलावा वे मध्य पूर्व की परिस्थिति के विकास आदि सवालों पर परामर्श भी करेंगे ।

इधर सालों में वैश्विक आर्थिक व राजनीतीत मामलों में दिन ब दिन क्रियाशील भारत के लिये ब्रिक्स देशों का मौजूदा शिखर सम्मेलन अपनी प्रभावशाली शक्तियों , अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपने भाषण अधिकार व राजनीतिक स्थान को उन्नत करने का मौका बन जायेगा । इधर दिनों में नयी दिल्ली के अनुसंधान विशेषज्ञों और मीडियाओं ने क्रमशः अपना अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन नियमित रुप से आयोजित करने का तंत्र वैश्विक राजनीतिक व आर्थिक लोकतांत्रिकरण व बहुध्रुवीकरण को बढावा देने के लिये लाभप्रद है , साथ ही ब्रिक्स देशों के भीतरी आर्थिक व राजनीतिक सहयोग के लिये मददगार भी सिद्ध होगा ।

कुछ भारतीय विद्वानों का मानना है कि ब्रिक्स देश नवोदित आर्थिक समुदायों की गिनती में आते हैं , अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक क्षेत्रों में उन के बहुत ज्यादा रुख समान हैं , विश्व व्यापार और जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वार्ताओं में ब्रिक देशों ने आश्चर्यजनक सहमतियां जतायीं । साथ ही विश्व राजनीतिक व आर्थिक परिस्थितियों में आये बदलाव के मद्देनजर ब्रिक्स देशों ने आपसी सहयोग को सुदृढ़ बनाने के महत्व को और अच्छी तरह समझ लिया है ।

कुछ भारतीय मीडियाओं का मानना है कि ब्रिक्स देश पश्चिम के नेतत्व में जी आठ व जी बीस तंत्रों से अलग होकर प्रकाश में आये हैं , यह खुद ही एक सकारात्मक रुझान ही है , ब्रिक्स देशों का शिखर सम्मेलन तंत्र अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों के संतुलन को बदलने और अंतर्राष्ट्रीय भाषण अधिकार पर पश्चिमी नियंत्रण की रोकथाम करने के लिये लाभदायक ही नहीं , ब्रिक्स देशों के अंतर्राष्ट्रीय स्थान की उन्नति के लिये हितकर भी है । भारतीय मीडिया ने यह रिपोर्ट भी दी है कि विश्व के नवोदित आर्थिक समुदायों का प्रतिनिधि होने के नाते ब्रिक्स देशों की प्रभावशाली शक्तियां दिन ब दिन मजबूत होती जा रही हैं । 2010 के बाद ब्रिक्स देशों ने भूमंडलीय आर्थिक वृद्धि में 50 प्रतिशत से अधिक योगदान दिया है ।

प्रस्ताविक ब्रिक्स बैंक की चर्चा में कुछ भारतीय़ विद्वानों ने बताया कि वर्तमान में ब्रिक्स देशों का विदेश व्यापार मुख्यतः पश्चिमी देशों के साथ हो रहा है , उन के लिये पूंजी आपरेशन और व्यापार निपटान में पश्चिमी वित्तीय व्यवस्था पर निर्भर रहना जरुरी है । इसलिये ब्रिक्स देशों के लिये अपनी स्वतंत्र वित्तीय प्रणाली की स्थाना करना आवश्यक है ।

अप्रैल 2011 में पांच ब्रिक्स देशों के नेताओं ने चीन के हाईनान प्रांत के सान या शहर में वार्ता की और वार्ता की समाप्ति पर जारी वक्तव्य में ब्रिक्स देशों के बैंकों के बीच वित्तीय सहयोग मजबूत बनाने का वचन दिया है । ब्रिक्स बैंक का मकसद ब्रिक्स देशों की वित्तीय शक्तियों को समन्वित करना और विकासमान देशों की निर्माण परियोजनाओं के लिये पूंजी जुटाना है । यदि मौजूदा शिखर सम्मेलन में इसी मामले पर प्रगति होगी , तो ब्रिक्स देश वित्तीय क्षेत्र में पश्चिम के बराबर ठोस आधार प्राप्त कर लेंगे , यह उन के बीच व्यापार सहयोग की मजबूती की दिशा की ओर बढने का सब से तात्विक कदम होगा । जब ब्रिक्स देश अंदरुनी व्यापार में अपने मौद्रिक निपटान को मूर्त रुप देंगे , तो पश्चिमी देशों की विनिमय दरों में उतार चढाव से बच सकेगा , साथ ही व्यापार साझेदारों की हिस्सेदारी के चलते ब्रिक्स देश नवोदित समुदाय मात्र ही नहीं होंगे ।

लेकिन कुछ भारतीय विद्वानों का यह विचार भी है कि तथाकथित ब्रिक्स देश गोल्डमैन सैक्स अंतर्राष्ट्रीय पूंजी प्रबंधन विभाग के प्रधान जिम ओनिल द्वारा अंग्रेजी अक्षरों बी आर आई सी के अनुसार प्रस्तुत एक धारणा है , संयोग की बात है कि उक्त अंग्रेजी शब्द जिन देशों का प्रतिनिधित्व करते हैं , वे सब नवोदित देशों की गिनती में आते हैं । पर इन ब्रिक्स देशों के बीच ज्यादा समानताएं मौजूद नहीं हैं , उन की कुल आर्थिक मात्राएं , व्यक्तिगत जी डी पी और आर्थिक विकास नीतियां और श्रेष्ठताएं भिन्न भिन्न हैं । इस के अलावा इन देशों के बीच ऐतिहासिक विकास रास्तों , विचारधाराओं , नीतिगत धारणाओं और राजनीतिक व्यवस्थाओं में काफी बड़ा अंतर मौजूद है , कुछ देशों के बीच तीव्र ढांचागत अंतरविऱोध फिर भी बने हुए हैं । ऐसी हालत में अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक मामलों में ब्रिक्स देशों के बीच उत्पन्न सहमति या संयुक्त सामूहिक कार्यवाही सरासर वास्तविक नहीं है ।

भारती नेहरु विश्वविद्यालय के पूर्वी एशियाई अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर श्रीकंथ   ने हमारे संवाददाता के साथ बातचीत में कहा कि ब्रिक देशों का सहयोग तंत्र अभी अभी प्रकाश में आयी एक नयी वस्तु है , उन के बीच सहयोग का अनुभव जुटाने और सहयोग तंत्र को संपूर्ण बनाने की बड़ी गुंजाइश भी है । इस के अलावा ब्रिक्स देशों के भीतर मौजूद कुछ मतभेदों और अंतरविरोधों का समाधान वार्ता के जरिये किया जाना चाहिये । पर सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि ब्रिक्स देशों के लिये यह जरूरी है कि आपसी सहयोग के इरादे को मजबूत बनाया जाये , वित्तीय नीतियों और व्यापार निपटान जैसे क्षेत्रों में ठोस प्रगति की जाये , जब ब्रिक्स तंत्र एक मंच के बजाये ठोस सहयोग संगठन का रुपधारण करे , तभी ब्रिक देश सच्चे मायने में पारस्परिक सहयोग साकार बना लेंगे और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपहार्य शक्ति बन पायेंगे ।

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