ब्रिक्स देशों का नया शिखर सम्मेलन 29 मार्च को भारत की राजधानी नई दिल्ली में होगा, जिसमें चीन, रूस, भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के नेतागण उपस्थित होंगे। ब्रिक्स के नाम से इन पांच देशों के अन्तरराष्ट्रीय मंच पर आने के बाद अब तक पांचों देशों में सहयोग लगातार बढ़ता जा रहा है और उन पर विश्व में अधिकाधिक ध्यान दिया जा रहा है। अखिर में ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग का भविष्य कैसा होगा और उन के बीच होड़ का कैसा समाधान होगा।
ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के आयोजन की पूर्ववेला में चीनी समाज विज्ञान अकादमी के शौधकर्ता श्री सुंग होंग ने कहा, अमेरिकी कंपनी गोल्डमन सचेस ने 2003 में यह अनुमान लगाया था कि भविष्य में अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक मंच में भारी परिवर्तन आएगा, उस समय विश्व में अमेरिका के अलावा भारत, जापान, चीन, ब्राजील और रूस बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में सामने आएंगे। वर्ष 2008 में आए अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय संकट के दौरान ब्रिक्स देशों की आर्थिक स्थिति ध्यानाकर्षक बनी और उन के बीच सहयोग भी तेज हो गया। श्री सुंग होंग ने कहाः
वित्तीय संकट के दौरान ब्रिक्स देशों का स्थान बढ़कर मजबूत हो गया। उन का प्रभाव भी दिन ब दिन बढ़ता गया। वित्तीय संकट से यह जाहिर हुआ है कि वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक पद्धति देशों में आने वाली समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ है। जैसाकि ब्रिक्स देशों का स्थान उन्नत तो हुआ है, लेकिन अन्तरराष्ट्रीय समुदाय में उन के बोलने का अधिकार और हित नहीं माना गया। ऐसी हालत को बदलने के लिए ब्रिक्स देशों ने 2009 में रूस में अपना शिखर सम्मेलन बुलाया, फिर क्रमशः ब्राजील, चीन में शिखर सम्मेलन हुए और अब भारत में हो रहा है, इसतरह उन के बीच सहयोग का एक पुख्ता मंच कायम हो गया है।
श्री सुंग होंन के विचार में ब्रिक्स देश बड़े बड़े विकासशील देश हैं और उनमें आर्थिक विकास तेज है और पैमाना अधिक है। लेकिन उन पर बाहरी वातावरण का असर आसानी से पड़ सकता है। साथ ही उन में बाहरी वातावरण को बदलने की मांग भी बहुत तीव्र है। वित्तीय संकट के चलते ब्रिक्स देशों में सहयोग की गति तेज हो गयी और संकट के बाद उनके सामने विभिन्न चुनौतियां भी मौजूद हैं, इन चुनौतियों से निपटने के लिए उन में सहयोग का आधार और मजबूत हुआ है।
वित्तीय संकट खत्म होने के साथ साथ ब्रिक्स देशों में हद से ज्यादा आर्थिक वृद्धि का आसार दिखा, इस के प्रकट रूप में ऊंची मुद्रास्फीति हुई, मुद्रा विनिमय दर बड़े उतार चढाव में आयी और बाहरी स्थिति से प्रभावित होकर आर्थिक वृद्धि की गति भी नीची आयी। यह सब ब्रिक्स देशों के सामने पड़ी समस्याएं हैं। दीर्घकालीन दृष्टि से देखा जाए, तो उन के सामने विकास के लिए नयी चुनौति उभरेगी, वे सभी विकासशील देश हैं, इसलिए उनमें तेज आर्थिक वृद्धि बनाए रखने का काम बहुत भारी है। दूसरी ओर, ब्रिक्स देश चाहते हैं कि अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक वातावरण स्थिर बना रहे, विश्वव्यापी प्रशासन अच्छा हो और विकास के लिए विकासशील देशों की मांग ज्यादा से ज्यादा पूरी हो सके।
पिछले साल, ब्रिक्स देशों के नेताओं की चीन के सानया शहर में मुलाकात हुई, इस के बारे में श्री सुंग होंग ने कहा कि सानया शिखर सम्मेलन से ब्रिक्स देशों में समन्वय बढ़ा है और सहयोग के लिए नया आयाम खुला है। श्री सुंग होंग ने कहाः
मसलन् कृषि, स्वास्थ्य और आर्थिक व व्यापारिक अनुसंधान के क्षेत्रों में नया सहयोग हो सकेगा और इन क्षेत्रों में सहयोग में नयी प्रगति भी हुई है। सानया शिखर सम्मेलन में ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग पर अधिक ध्यान दिया गया है और एक आर्थिक समूह के रूप में पांचों देशों में एक दूसरे से सीखने, सुविधा प्रदान करने तथा समान चुनौतियों का सामना करने में सहयोग बढ़ गया है।
श्री सुंग होंग मानते हैं कि निस्संदेह, ब्रिक्स देशों के बीच होड़ भी मौजूद है, फिर भी उन के बीच सहयोग नहीं बदलेगा और एक समूह के रूप में वे लगातार विकसित होते रहेंगे।
श्री सुंग को विश्वास है कि भविष्य में और कुछ देश ब्रिक्स देशों के समूह में भाग ले सकेंगे, इसके कारण इन देशों के संगठन में परिवर्तन आएगा, लेकिन विकास व अन्तरराष्ट्रीय आर्थिक व राजनीतिक व्यवस्था के सुधार के लिए विकासशील देशों की मांग नहीं बदलेगी, इसलिए इस प्रकार का आर्थिक समुदाय भी नहीं खत्म हो सकेगी।