भारत सरकार ने 2012 वित्त वर्ष में इसरो को कुल बजट के रूप में 44 अरब 32 करोड़ रूपए दिए है, जिसमें से एक अरब 25 करोड़ को मंगल सर्वेक्षण की योजना में डाला जाएगा। इसरो की योजना के अनुसार भारत नवम्बर 2013 से पहले मंगल का परिक्रमा करने वाला अंतरिक्ष यान छोड़ेगा। विश्लेषज्ञों का कहना है कि इससे अंतरिक्ष सर्वेक्षण में भारत की महत्वाकांक्षा व्यक्त हुई है।
भारत सरकार ने हाल में वित्त वर्ष 2012 की वित्तीय बजट जारी की, जिसमें अंतरिक्ष अनुसंधान को देने वाली बजट ध्यानाकर्षक है। सावर्जनिक रूप से प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक इसरो को इस वित्त वर्ष में प्राप्त धनराशि में 28 अरब 83 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई जो एक नया रिकार्ड है। इस भारी बजट में मंगल सर्वेक्षण योजना के लिए एक अरब 25 करोड़ रूपए शामिल है।
भारतीय अंतरिक्ष रिसर्च संगठन इसरो के अधिकारी ने कहा कि सरकार के बड़े निवेश से प्रेरित होकर मंगल सर्वेक्षण योजना की गति और तेज होगी। पूर्व य़ोजना के अनुसार मंगल सर्वेक्षण के लिए अंतरिक्ष यान छोड़ने का जो काम 2016 से 2018 के बीच होगा, अब वह नवम्बर 2013 से पहले किया जाएगा। इसरो अपने निर्मित पॉलर सेटलाइट वाहक राकेट से 25 किलो वैज्ञानिक अनुसंधान के काम में आने वाले सर्वेक्षण यंत्र को मंगल का सर्वेक्षण करने वाली कक्षा में स्थापित करेगा, इस यंत्र का काम मंगल के वायुमंडल का सर्वे करना है। मंगल सर्वेक्षण की यह योजना भारत के चंद्रयान एक के बाद एक दूसरी अहम अंतरिक्ष अनुसंधान योजना है।
मंगल सर्वेक्षण योजना के अलावा भारत की अन्य सभी अंतरिक्ष अनुसंधान योजनाओं की बजट में भी वृद्धि की गयी है, उस की दक्षिण एशियाई उपग्रह नेवगेशन प्रणाली को 170 करोड़ रुपए मिले, समानव अंतरिक्ष यात्रा की बजट में 60 करोड़ का इजाफा हुआ और चंद्रयान दो की बजट में 820 करोड़ रुपए की बढोत्तरी हुई है।
इधर के सालों में अंतरिक्ष सर्वेक्षण क्षेत्र में भारत सरकार के बढ़ते हुए निवेश के कारण पर जानकार सूत्रों ने कहा कि इस के दो मुख्य कारण है, एक है, भारत सरकार के विचार में अंतरिक्ष सर्वेक्षण आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान कार्य की एक अहम कड़ी है, इस में निवेश बढ़ाने के परिणामस्वरूप देश के संबंधित वैज्ञानिक कामों को प्रेरणा मिलेगी। दूसरा, इस से भारत के सैनिक विज्ञान तकनीकों को तेज प्रगति मिलेगी और अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की भावी होड़ के लिए मजहबूत आधार तैयार होगा।
भारत यह मानता है कि वर्तमान दुनिया में विमानन् और अंतरिक्ष क्षेत्र में प्राप्त होने वाली उपलब्धियां देश की वैज्ञानिक तकनीकी शक्ति तथा सकल राष्ट्रीय शक्ति का द्योतक है। विश्व का बड़ा देश बनने की महात्वाकांक्षा में भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में पीछे नहीं रहना चाहता। इधर के सालों में तेज आर्थिक वृद्धि से भारत को विमानन् व अंतरिक्ष योजना पूरी करने के लिए आवश्यक भौतिक आधार मिला है, इसलिए उसने ऐसी महत्वाकांक्षी योजना बनायी है।
भारत मानता है कि विमानन् व अंतरिक्ष क्षेत्र में जो उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं, उससे देश के निवासियों को बड़ा प्रोत्साहन मिल जाएगा और देश की एकजुटता और अधिक बढ़ेगी। चंद्रयान एक के सफल प्रक्षेपण से पूरा भारत उत्साहित हो उठा और अत्यन्त गौरवान्तित हो गया। वर्तमान में भारत के सामने देश में अनेक सामाजिक समस्याएं दिख रही हैं, इस महान योजना से देश के विभिन्न वर्ग व तबक एकता के सूत्र में बंध जा सकेंगे।
लेकिन अंतरिक्ष योजना में सरकार ने जो इतनी भारी पूंजी लगायी है, उसे समर्थन के अलावा विरोध का भी सामना करना पड़ा है। कहा जाता है कि बहुत से लोग और मीडिया सरकार की इस योजना के समर्थक हैं और उन का मानना है कि यह भारत की निरंतर बढ़ती जा रही सकल शक्ति दिखाने का सब से अच्छा तरीका है। जबकि विरोधियों का कहना है कि विमानन् व अंतरिक्ष क्षेत्र की तुलना में भारत की धरती पर ऐसे बहुत से खास जरूरी काम मौजूद हैं, जिनमें धनराशि का निवेश किया जाना चाहिए, जैसाकि जन जीवन, ढांचागत निर्माण, शिक्षा और चिकित्सा आदि समस्य़ाएं, जिन के समाधान में निवेश बढ़ाना अंतरिक्ष में पैसा छोड़ने से कहीं अधिक आवश्यक है।
इन दोनों मतों के अलावा भारत में ऐसा मत रखने वाले भी मिले हैं जो ठंडे दिमाग से काम लेते हैं। उन का कहना है कि मानवयुक्त अंतरिक्ष यात्रा, चंद्र पर चढ़ना तथा मंगल के सर्वेक्षण की योजनाओं को भारी पूंजी की जरूरत है और तकनीकें भी कठिन हैं एवं निकट भविष्यत् वस्तुगत लाभ भी नहीं मिलेगा। इसलिए भारत को रणनीतिक दृष्टिकोण से सामाजिक लाभ, तकनीकी समस्या तथा वाणिज्य मुनाफे आदि मुद्दों पर विचार करना चाहिए और अपने देश की वास्तविक स्थिति के अनुरूप अंतरिक्ष योजना बनाना चाहिए, पहले व्यवाहारिक लाभ मिलने वाली योजना पर अमल करना चाहिए और इसके बाद पर्याप्त सफलताएं संचित होने के बाद समानव अंतिरिक्ष यात्रा और चंद्र पर आरोहण की योजना को काम में लाना चाहिए।