अफगानिस्तान में तैनात एक अमरीकी सैनिक ने 11 मार्च को दक्षिण अफगानिस्तान के एक गांव में 16 बेगुनाह नागरिकों को गोलियों से मार डाला है , जिन में नौ बाल बच्चे व तीन महिलाएं भी शामिल हैं , इस के अलावा अन्य पांच लोग भी घायल हुए हैं । इस वारदात से अफगानिस्तान में जबरदस्त प्रतिरोध भड़क उठा है और अमरीकी सेना द्वारा कुरान को जलाये जाने से प्रभावित अफगान अमरीकी संबंध फिर एक बार धूमिल हो गया । विश्लेषकों का मानना है कि अफगानिस्तान व अमरीका दोनों देश अभूतपूर्व विश्वास संकट में फंस पड़े हैं और दोनों देशों के संबंध की संभावनाएं आशाप्रद नहीं हैं ।
घटना घटित होने के दिन अफगान राष्ट्रपति करजाई ने अपने वक्तव्य में सब से जबरदस्त प्रतिरोध व्यक्त किया और निन्दा करते हुए इसे षड़यंत्रकारी हरकत भी कहा । अफगान राष्ट्रपति करजाई ने कहा कि दुराश्य लिये आम नागरिकों की हत्या करने की हरकत आतंकवादी कार्यवाही के बराबर है और अक्षम्य है । उन्होंने एक सरकारी प्रतिनिधि मंडल को स्थिति का जायज़ा लेने के लिये घटना गांव में भेज दिया । जबकि अफगान तालिबान ने इस बात का बेजा फायदा उठाकर इस गोलोबारी घटना को नरसंहार और अमरीकी सैनिकों को क्रुर जंगली आदमी कहकर मनमाने ढंग से अमरीका विरोधी भावना को उत्तेजित कर दिया , साथ ही यह दावा भी किया है कि वे शिकारों के परिजनों के लिये बदला लेने में सभी कार्यवाहियां कर देंगे ।
अमरीका ने तो इसी घटना को शांत बनाने की हरचंद कोशिश की । राष्ट्रपति ओबामा ने इस घटना को शोचनीय व आश्चर्यजनक कहा , साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह घटना अमरीकी सेना के व्यवहार का प्रतिनिधित्व नहीं करती है और अफगान जनता के प्रति अमरीका के सम्मान को न मिटा सकती । ओबामा ने राष्ट्रपति करजाई के नाम संदेश में शीघ्र ही घटना की असलियत का पता लगाने का वचन भी दिया । अफगानिस्तान में तैनात गठबंधन सेना के कमांडर व अमरीकी नौ सेना के मेरिन ट्रुप्स के एडमिरल जोन एलेन ने कहा कि अमरीका अफगानिस्तान के साथ गोलीबारी घटना की पूर्ण रुप से जांच पड़ताल करेगा और यह आश्वासन भी दिया है कि किसी भी व्यक्ति , जिस के द्वारा गैरकानूनी कार्यवाही किये जाने का पता लगाया गया है , को पूरी जिम्मेदारी उठानी ही होगी । अमरीकी पेटागन राष्ट्रीय सुरक्षा कमेटी के प्रवक्ता ने कहा कि अमरीका सरकार घटना प्रगति पर कड़ी नजर रखे हुए है , हत्यारे को अवश्य ही कानूनी सजा मिलनी ही होगी । वर्तमान में अमरीका सरकार ने अमरीकी नागरिकों को सुरक्षा पूर्व चेतावनी देते हुए यह मांग की है कि पूर्व व दक्षिण अफगान प्रांतों में अमरीका विरोधी भावना और प्रतिरोध के जोखिम की रोकथाम की जाये ।
विश्लेषकों ने कहा कि गोलीबारी घटना नाजुक अफगान अमरीकी संबंध के लिये घाव पर नमक छिड़कने के बराबर है । गत तीन माहों में ताबड़तोड़ उत्पन्न गम्भीर घटनाओं से अफगान अमरीकी संबंध को तनाव के कगार पर पहुंचा दिया है । गत जनवरी में मीडिया ने अमरीकी सेना द्वारा मृतों के प्रति बूरा व्यवहार किये जाने की पोल खोली है , फरवरी में अमरीकी सेना द्वारा कुरान को जलाये जाने से समूचे अफगानिस्तान में बड़े पैमाने वाला दंगा भसाद हुआ और अनेक लोग घायल हुए , जिस से अफगानिस्तान में तैनात अमरीकी सेना अभूतपूर्व विश्वस संकट में फंस पड़ी और सेना की वापसी के बाद दोनों देशों का उच्च स्तरीय सहयोग दुविधा में भी पड़ा । हाल ही में अफगानिस्तान व अमरीका आगामी 2014 में सेना की वापसी के बाद एक दीर्घकालिक रणनीतिक सहयोग समझौते के बारे में कठिन वार्ता करने में लगे हुए हैं । प्रस्तावित समझौते में अफगानिस्तान में अमरीकी सेना की संवेदनशील तैनाती सवाल जिस में सूनचाओं का समान उपभोग और हवाई प्रहार शक्तियों का विन्यास आदि मामले शामिल हैं , ताकि अफगानिस्तान में अमरीकी सेना की दीर्घकालिक फौजी मौजूदगी को बनाये रखा जा सके ।
इस के साथ ही अमरीका के भीतर अफगान रणनीति पर नये सिरे से विचार विमर्श और आत्म आलोचना करना शुरु किया गया है । अमरीकी प्रसारण निगम और वाशिंगटन पोस्ट की जांच पड़तास से पता चला है कि 60 प्रतिशत अमरीकियों का मानना है कि अफगान युद्ध कोई लायक नहीं है , जबकि 54 प्रतिशत अमरीकियों की उम्मीद है कि यथाशीघ्र ही वहां से अमरीकी सेना को वापस बुलाया जायेगा । लेकिन राष्ट्रपति ओबामा ने 12 मार्च को कहा अमरीकी सैनिक द्वारा अफगानिस्तान में आम नागरिकों को बंदूक से मार डाले जाने से अमरीका की अफगान रणनीति नहीं बदल सकती, इस घटना से निर्धारित समय से अफगानिस्तान से अमरीकी सेना की वापसी और अफगान सुरक्षा बलों को प्रतिरक्षा दायित्व सौंप देने का महत्व व्यक्त हो गया है । उन्होंने कहा कि अमरीकी सेना को जिम्मेदाराना तरीके से अफगानिस्तान से वापसी को सुनिश्चित करना चाहिये , ताकि आखिरकार मजबूर होकर अफगानिस्तान में फिर वापसी से बचा जाये ।
इस गोलीबारी घटना से लोगों की निगाहें नाटो और अन्य देशों की सेना वापसी योजना पर टिकी हुई हैं । जर्मनी अफगानिस्तान में तैनात गठबंधन सेना का तीसरा बड़ा देश है , वर्तमान में करीब चार हजार नौ सौ सैनिक अफगानिस्तान में तैनात हुए हैं , योजनानुसार आगामी 2014 के अंत से पहले सभी सैनिक पूरी तरह हट जाएंगे । पर जर्मन प्रधान मंत्री मर्कल ने इस घटना के दूसरे दिन कहा कि मौजूदा स्थिति के मद्देनजर 2013 से 2014 तक जर्मन सेना समय पर हट जाएंगे या नहीं , तत्कालीन स्थिति पर निर्भर रहेगा , पर जर्मनी इस दिशा की ओर कोशिश करेगा । मर्कल के इस बयान से जर्मन सेना की वापसी पर शका पैदा हो गयी है ।