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चीन मानवाधिकार के नाम पर दूसरे देश में हस्ताक्षेप का विरोध करता है
2012-03-02 17:11:05

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की 19वीं बैठक में पहली मार्च को सीरिया में मानवाधिकार की स्थिति के बारे में एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसमें सीरिया सरकार की निन्दा की गयी है कि उस ने मानवाधिकार का उल्लंघन किया है। लेकिन प्रस्ताव में सीरिया के विपक्ष से कोई मांग नहीं की गयी और राजनीतिक तौर पर सीरिया सवाल का समाधान करने का कोई इरादा भी नहीं जताया गया। इसलिए प्रस्ताव के विरोध में रूस, चीन और क्यूबा ने मत डाले।

अखिरकार, चीन ने क्यों संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के इस प्रस्तान का किया। इस का कारण यह कहा गया है कि चीन मानवाधिकार परिषद की बैठक में देशों के खिलाफ मानवाधिकार के प्रस्ताव बनाने का हमेशा विरोध करता है, चीन केवल सीरिया के खिलाफ ऐसे प्रस्ताव बनाने का विरोध ही नहीं करता है, बल्कि अन्य देशों के खिलाफ ऐसा प्रस्ताव बनाने का भी विरोध करता है। चीन पहले ऐसा ही कर चुका था। चीन का हमेशा का यह रूख रहा है कि विभिन्न देशों के मानवाधिकार सवाल का रचनात्मक वार्ता के रूप में समाधान किया जाना चाहिए, नकि परस्पर मुकाबले से। यदि मानवाधिकार परिषद प्रस्ताव के रूप में मानवाधिकार सवाल का समाधान करती है, तो असल में इससे सिर्फ परस्पर मुकाबला बढ़ जाएगा और मानवाधिकार सवाल का राजनीतिकरण होगा। पश्चिम देश मानवाधिकार परिषद में देशों के मानवाधिकार सवाल पर प्रस्ताव पेश करना पसंद करते हैं, उन का मकसद मानवाधिकार सवाल के नाम पर उन के अप्रिय देशों के अन्दरूनी मामलों में दखल करना है।

इस के अलावा, सीरिया के बारे में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के इस प्रस्ताव में ऐसे बहुत से विषय शामिल हैं जिन्हें पहले चीन ने सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महा सभा में या तो वीटो कर दिया है या विरोध किया। इसके अलावा प्रस्ताव में गैर कानूनी सीरियाई मित्र नामक सम्मेलन में प्रस्तुत ज्ञापन में शामिल विषय भी है, जिन पर चीन कभी सहमत नहीं है।

प्रस्ताव में सीरिया के विरोधी पक्ष से कोई भी मांग भी नहीं की गयी है, यह भी असंतुलित मसला है। क्योंकि सीरिया का आंतरिक मुठभेड़ अनेक कारणों से उत्पन्न हुए है, सीरिया की विरोधी शक्तियों से हिंसा कभी नहीं रूकी और आम लोगों के मानवाधिकार की भी रक्षा नहीं हो पाती है।

सीरिया संकट के बारे में चीन सरकार का यह रूख रहा है कि राजनीतिक तौर पर इस का शांतिपूर्ण समाधान हो। चीन बाहरी हस्ताक्षेप व सैनिक दखल का विरोध करता है और सीरिया के विभिन्न पक्षों से उम्मीद करती है कि वे हिंसा को बन्द करेंगे, आम लोगों की रक्षा करेंगे, संबंधिक पक्ष वार्ता शुरू करें और इस के आधार पर विभिन्न शक्तियों की भागीदारी वाली राष्ट्रीय एकता सरकार का गठन किया जाए और देश के सुधार मसौदे को अमल में लाया जाए।

व्यापक दृष्टि से सीरिया संकट पर चिंतन किया जाए और मानवाधिकार परिषद में यह प्रस्ताव पारित होने के पीछे गर्भित कारण का विश्लेषण किया जाए, तो इस में मावनाधिकार सवाल पर पश्चिम की पाखंडता देखने को मिलती है। वर्तमान विश्व स्थिति पर नियंत्रण पश्चिम के हाथ में है, बल राजनीति के मामले जगह जगह दिखते हैं। खास कर शीतयुद्ध के बाद अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश हमेशा अपने अप्रिय देशों में मौजूद सत्ता को हटाना चाहते हैं, उन का उद्देश्य सारी दुनिया में उन का नेतृत्व स्थान और प्रभाव क्षेत्र बनाए रखना है, और इसमें उन का भौगोलिक राजनीतिक हित मौजूद है।

अपने मकसद से प्रेरित होकर पश्चिम देश सर्वप्रथम अपने नापसंद देशों को राक्षसी बनाने की कोशिश करते हैं, इसके आधार पर पश्चिम की शक्तिशाली प्रचार मशीनों के माध्यम से लोगों को इस पर विश्वास करवाते हैं कि ये देश तानाशाही और निरंकुश है। फिर तो वे मानवाधिकार, लोकतंत्र व मानवता के नाम पर इन देशों के अन्दरूनी मामलों में दखल करते हैं और वहां की सत्ता बदलने की भरसक कोशिश करते हैं । उन की ऐसी हरकत के लिए जो ढेर सारे उदाहरण सर्वविदित है, सीरिया भी अब इस में शामिल किया गया।

वास्तव में सीरिया में संविधान संशोधन पर देशव्यापी मतदान हुआ है, जिस में विरोधी पक्ष की मांगें भी अभिव्यक्त हुई हैं, सुधार के विषय वर्तमान के किसी भी अरब देश से कहीं ज्यादा है, फिर भी पश्चिम उसे जो नहीं मानते तो नहीं मानते. उन का मकसद बशर की सत्ता हटा देना है। अमेरिका सीरिया में लोकतंत्र का सच्चा समर्थन नहीं करता है और आम लोगों की रक्षा करना भी चाहता, वह चाहता है कि एक पक्ष को समर्थन देकर दूसरे का खात्मा करवाए, लेकिन उस की इस कार्यवाही से केवल आम लोगों की हतास्ती बढ़ जा सकती है।

एक शब्द में कहा जाए, तो पश्चिम ने मानवाधिकार परिषद में जो प्रस्ताव पेश किया है, वह सीरिया में बशर की सत्ता हटाने के लिए एक सुनियोजित साजिश है जो मानवता, लोकतंत्र, मानवाधिकार की आड़ में अपना राजनीतिक उल्लू बनाने की एक कोशिश है।

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