इस साल चीन की विश्व व्यापार संगठन में भागीदारी की दसवीं वर्षगांठ है। संगठन में भाग लेने के बाद पिछले दस सालों में चीन की अर्थव्यवस्था और विश्व अर्थव्यवस्था के समावेश की गति काफी तेज हो गयी है, जिस से चीनी कारोबारों को विदेश में निवेश करने के लिए बड़ी प्रेरणा मिली और विश्व अर्थव्यवस्था के विकास में चीनी अर्थव्यवस्था का बड़ा योगदान हुआ है।
चीनी वाणिज्य मंत्रालय के ताजा आंकड़ों से जाहिर है कि इन दस सालों में चीनी कारोबारों ने विदेश में पूंजी लगाने के साथ साथ वहां के स्थानीय उद्यम खरीदना भी शुरू किया। वर्ष 2010 के अंत तक चीन ने सारी दुनिया के 178 देशों और क्षेत्रों में 16 हजार उद्यमों में प्रत्यक्ष निवेश किया, जिन की कुल रकम 68 अरब 81 करोड़ अमेरिकी डालर तक पहुंची, जो विश्व में पांचवें स्थान पर है, जब 2001 में यह रकम केवल 6 अरब 92 करोड़ डालर थी। लेकिन इधर के सालों में विश्व में आए आर्थिक संकट से चीनी कारोबारों के लिए भी मुश्किलें पैदा हुई हैं, साथ ही इस स्थिति से चीनी कारोबारों के लिए मौका भी उत्पन्न हुआ है।
विश्व वित्तीय संकट से विश्व अर्थव्यवस्था को भारी झटका पहुंचा है, और विकसित देशों में आर्थिक मंदी आयी है, इस हालत ने चीनी कारोबारों को विदेश में उद्यमों को खरीदने के लिए मौका दिया है, और चीन में निरंतर बढ़ती हुई आर्थिक वृद्धि और औद्योगिक ढांचे के पुनर्गठन के चलते चीनी कारोबारों को विदेशी उद्यमों का विलय करने की शक्ति भी मिली है। पेइचिंग नार्मल विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र व संसाधन प्रबंध अनुसंधान संस्थान के प्रोफेसर हान चिंग ने कहाः
कुछ दूरदर्शी चीनी कारोबारों ने विश्व आर्थिक मंदी का मौका उठाकर विदेश में निवेश करने का तरीका अख्तियार कर लिया, उन्होंने कुछ अन्तरराष्ट्रीय ब्रांडेड उत्पादों के व्यापार, अनुसंधान व बिक्री के अधिकार खरीदे और अपने कारोबारों का विस्तार किया। जैसाकि चीनी कारोबार चीलि, टीसीएल और हाईसेन आदि कंपनियों तथा कुछ चीनी पेट्रोलियम समूहों ने विदेशों में सहयोग के रूप में कुछ उद्यमों का विलय किया है, जिससे चीनी कारोबारों की तकीनीकी अनुसंधान शक्ति को उन्नति मिली है, इसके अलावा विदेशी उद्यमों के साथ सहयोग से चीनी कारोबारों को मशहूर ब्रांड बनाने तथा ब्रांडेड उत्पादों के व्यापार को बढ़ाने के अच्छे अनुभव भी हासिल हुए हैं।
डबल्युटीओ में भाग लेने के बाद पिछले दस सालों में चीन का बाजार भी विकसित हुआ है, जो पहले के बेचने वाले बाजार से अब खरीदने वाला बाजार बन गया है। चीन सरकार ने भी चीनी कारोबारों को विदेश में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित किया। खास कर चीनी बैंकिंग व्यवसाय ने विदेशों में पूंजी जुटाने के काम में सक्रियता दिखायी। इस पर एशिया विकास बैंक के वरिष्ठ अर्थशास्त्री शि ज्वांगचेन ने कहाः
चीन सरकार के समर्थन में चीनी बैंकों ने पिछले दस सालों में विदेशी मुद्रा बाजार का विकास करने में तेजी लायी है और विदेशी मुद्रा बाजार में अपने पैकेजों की संख्या बढ़ायी है। चीनी बैंकिंग व्यवसाय ने विदेशी मुद्रा बाजार का विस्तार करने के लिए उदार नीति बनायी और अपने बैंकों के भीतर प्रबंध व्यवस्था का सुधार कर चीनी कारोबारों को विदेशी मुद्रा मुहैया करने में समर्थन बढ़ाय़ा है।
विश्व आर्थिक मंदी की वर्तमान स्थिति में पड़ने पर भी चीनी कारोबारों ने दस सालों तक अपने अथक प्रयासों के जरिए अपनी शक्ति काफी बढ़ायी है और विदेशों में निवेश बढ़ाने की क्षमता तैयार कर ली है। फिर भी उन के लिए बहुत सी चुनौतियां मौजूद हैं. जो समाधान के लिए बाकी है। इस के बारे में प्रोफेसर हान चिंग ने कहा कि चीनी कारोबारों के लिए विदेशों में निवेश के क्षेत्र में पांच मुख्य चुनौतियां हैः
विकसित देशों में चीनी कारोबारों को अकसर राजनीतिक भेदभाव और कुछ गुटों से बहिष्कार का सामना करना पड़ता है। इस का सब से बड़ा उदारहण मामला है 2005 में चीनी पेट्रोल समूह के द्वारा अमेरिकी युनिक कंपनी को खरीदने तथा 2009 में चीनी कंपनी के द्वारा औस्ट्रेलिया के रिऑ टिनटो ग्रुप में शेयर खरीदने के बारे में है, दोनों मामला राजनीतिक हस्ताक्षेप के कारण विफल हुए हैं।
दूसरी चुनौति है कि चीनी कारोबारों को विदेशों में वहां की स्थानीय कानून कायदे, बाजार व साझेदार के बारे में कम जानकारी ।
तीसरी चुनौति है कि विदेशी बाजारों में चीनी कारोबारों को अकसर स्थानीय बाजार संरक्षणवाद का सामना करना पड़ता है।
इन के अलावा चीनी कारोबारों के सामने पूंजी जुटाने तथा निवेश के लिए कम क्षेत्रों की समस्याएं भी मौजूद हैं।
विशेषज्ञों की राय है कि इन सभी चुनौतियों के समाधान के लिए चीन सरकार को विदेशों में निवेश के बारे में कानून बनाना, अच्छी सेवा व्यवस्था कायम करना तथा उदार नीति व पूंजीगत समर्थन देना चाहिए, ताकि चीनी कारोबारों को अन्तरराष्ट्रीकरण के दौरान अच्छे मौका मिले तथा अपनी अच्छी छवि बनाये।