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जाशी वांगत्वे और उनके तिब्बती रेस्तरां व संग्रहालय
2011-12-01 16:51:22

तिब्बत के दूसरे बड़े शहर शिकाज़े में एक तिब्बती शैली वाला रेस्तरां है, जहां शिकाज़े की यात्रा करने वाले पर्यटक जरूर जाते हैं। यहां एक अस्सी लाख युआन मूल्य का लघु तिब्बती सांस्कृतिक अवशेष संग्रहालय है, जिससे इसके मालिक का तिब्बती संस्कृति के प्रति गहरा प्यार जाहिर होता है।

रेस्तरां का नाम है"वुरडो", तिब्बती भाषा में इसका अर्थ है"चरवाहे का रसोई घर"। पहली मंजिल में तो रेस्तरां है, दूसरी मंजिल में है कई सौ वर्गमीटर में फैला तिब्बती सांस्कृतिक अवशेष संग्रहालय। रेस्तरां के मालिक 38 वर्षीय जाशी वांगत्वे एक भिक्षु थे, और जाशलुम्बु मठ में दसवें पंचन लामा की सेवा करते थे। बाद में उन्होंने मठ से निकलकर यह रेस्तरां खोला। हमारे संवाददाता उनसे मिलने के लिए रेस्तरां गए, लेकिन वे बहुत देर तक नहीं आए। बताया गया कि नज़दीक के एक ज़िले में भूस्खलन हुआ है, रास्ता सुधारने में मदद देने के लिए गए हैं। तिब्बती लड़की चोमा समेत रेस्तरां की कई महिला वेटरों ने हमारा सत्कार किया और हमसे बातचीत की।

संवाददाता:हर रोज आपके रेस्तरां में कैसा बिज़नेस होता है?आप लोगों को थकान नहीं लगती?

चोमा:हमारे यहां अच्छा बिज़नेस होता है, लेकिन हमें थकान नहीं लगती। क्योंकि हम तिब्बती पकवान चानबा खाकर पली-बढ़ी हैं।

संवाददाता:क्या चानबान खाने वाले लोगों को थकान नहीं लगती?

चोमा:ऐसा नहीं कहा जा सकता। क्या आप लोग चानबा नहीं खाते?

संवाददाता:क्या चानबा खाने के बाद लोग बहुत शक्तिशाली हो जाते हैं?

चोमा:जी हां। चानबा हमारा परम्परागत तिब्बती पकवान है। यह बहुत स्वादिष्ट ही नहीं, पौष्टिक भी है। इसे खाकर लोग ताकतवर होते हैं।

चान बा तिब्बती लोगों को बहुत अच्छा लगता है। यह जौ के आटे से बनाया जाता है, जिसे घी के साथ खाया जा सकता है और केक बनाकर भी । इस रेस्तरां की कई वेटर चान बा बहुत पसंद करती हैं। हमें आश्चर्य होता है कि इस तिब्बती पकवान की मान्यता इतनी व्यापक है।

रेस्तरां में तिब्बती संस्कृति के तत्व ज्यादा हैं, हर कोने में तिब्बती शैली वाले रसोई घर के साधन, तिब्बती भाषा वाले मशहूर वाक्य व शब्द देखे जा सकते हैं। चोमा और दूसरी तिब्बती वेटरों ने कहा कि रेस्तरां के मालिक बहुत अच्छे व्यक्ति हैं और कभी कभार अपरिचित व्यक्तियों की सहायता भी करते हैं।

उन लड़कियों के साथ बातचीत करते समय रेस्तरां के मालिक जाशी वांगत्वे भी वापस लौटे। और वे हमें दूसरी मंजिल स्थित लघु तिब्बती सांस्कृतिक अवशेष संग्रहालय में ले गए। इसकी स्थापना की वजह बताते हुए उन्होंने कहा:

"वर्ष 1986 में मैं जाशलुम्बु मठ में एक भिक्षु बना और वर्ष 1993 में वहां से निकला। इस संग्रालय में हमारे शिकाजे क्षेत्र के लोक सांस्कृतिक अवशेष सुरक्षित हैं। मैं और मेरी पत्नी गत् 90 के दशक से ही ये चीज़ें सुरक्षित करने लगे। दसवें पंचन लामा ने हमें बताया था कि तिब्बती संस्कृति का संरक्षण करना व इसका विकास करना बहुत महत्वपूर्ण है।"

दसवें पंचन लामा अर्डिनी चोक्यि ग्याल्त्सन तिब्बती बौद्ध धर्म के एक महान नेता थे, जिन्होंने देश की एकता में अहम योगदान दिया। उनके असाधारण जीवन ने लोगों का समादर हासिल किया। उनके एक परम शिष्य के रूप में जाशी वांगत्वे दसवें पंचन लामा को अपने मानसिक जगत का सारा भाग मानते थे। लेकिन भिक्षु बनने के चौथे साल में पंचन लामा का देहांत हो गया। इसके बाद के चार सालों में मानसिक जगत में महत्वपूर्ण चीज़ खोने के बाद जाशी वांगत्वे काफी दुखी थे। और अंत में वे मठ से इहलौकिक बने। इसकी चर्चा में जाशी वांगत्वे ने कहा:

"वर्ष 1993 में मैं जाशलुम्बु मठ से इहलौकिक बना, कई महीनों तक मुझे कोई काम नहीं मिला। इसके बाद मैंने तिंगरे कांउटी जाकर एक होटल में वेटर का काम किया और फिर रसोई का काम सीखा। मुझे संयोग से एक समुद्री शंख का जीवाश्म मिला। उसे खोल कर देखा कि बाहर व भीतर का डिज़ाइन एकदम बराबर है। उसी समय मुझे एहसास हुआ कि तिब्बत बहुत रहस्यमय है, इसे साफ़-साफ़ पता करना आसान नहीं है। यहां एक असाधारण स्थल है।"

संयोगवश प्राप्त हुए समुद्री शंख जीवाश्म से जाशी वांगत्वे की तिब्बती संस्कृति के संरक्षण वाली जागरूकता जाग उठी। उनके संग्रहालय में संरक्षित हरेक सांस्कृतिक धरोहर से उनके कलात्मक चीज़ों के संग्रहण का पदचिह्न देखा जा सकता है। लेकिन इन सालों में तिब्बती संस्कृति के संरक्षण के मोर्चे में सिर्फ़ जाशी वांगत्वे नहीं रहे, संग्रहालय में हमने एक विशेष प्रदर्शनी हॉल का दौरा भी किया, जहां जाशलुम्बु मठ और पाईच्यु मठ समेत तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों की मिट्टी मूर्तियों का समूह प्रदर्शित हो रहा है। इसकी चर्चा में जाशी वांगत्वे ने जानकारी देते हुए कहा:

"इस हॉल में प्रदर्शित सभी मूर्तियां हमारे रेस्तरां की स्थापना से लेकर अब तक सहायतार्थ अनाथ बच्चों की रचनाएं हैं। उन अनाथ बच्चों में से एक मिट्टी मूर्ति बनाना पसंद करता है। ये उसकी रचनाएं हैं। देखिए यह है पोटाला महल, जिसके पीछे जाशलुम्बु मठ है। यह है सागा मठ और यह दस हज़ार बुद्ध मठ, जिसे च्यांगची क्षेत्र में पाईच्यु मठ भी कहा जाता है। अब वह अनाथ बच्चा अपने दोस्तों व शिक्षकों के साथ नाछ्यु प्रिफैक्चर में नए स्थापित मठों के लिए बुद्ध मूर्तियां बनाने गया है।"

गरीब परिवार के बच्चों को तिब्बती परम्परागत मिट्टी मूर्ति कला सीखने के लिए सहायता देना जाशी वांगत्वे के विभिन्न कार्यों में से एक है। लंबे समय से इस रेस्तरां के मालिक के रूप में वे संग्रहालय के एक गाईड भी हैं और यहां आने वाले हरेक पर्यटक को उनकी नज़र में तिब्बती संस्कृति समझाते हैं। संग्रहालय में सुरक्षित चीज़ों की कीमत पूछे जाने पर जाशी वांत्वे ने हमें अस्सी लाख युआन बतायी। लेकिन यहां प्रदर्शित सूत्र किताबों, मिट्टी के बर्तनों और मिट्टी की मूर्तियों का जाशी वांगत्वे के दिल में अद्वितीय मूल्य है। इसकी चर्चा में उन्होंने कहा:

"मानसिक दृष्टि से देखा जाए, तो अस्सी लाख युआन वाला हमारा संग्रहालय बहुत मूल्यवान है। क्योंकि मुझे चिंता है कि ये चीज़ें विदेशों में पहुंचाकर हमारी तिब्बती संस्कृति धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगी। साथ ही मैं चिंतित हूँ कि हमारी अगली पीढ़ी के लोग इन्हें नहीं जानेंगे, जिससे हमारी तिब्बती संस्कृति नष्ट हो जाएगी। वर्तमान में हमारे देश में अच्छी सांस्कृतिक नीति लागू की जा रही है। मैं अपने रेस्तरां व संग्रहालय का पैमाना और विस्तृत करूंगा। वास्तव में देखने में इस रेस्तरां व संग्रहालय का मालिक हूँ, लेकिन मुझे लगता है कि यहां सुरक्षित सभी चीज़ें मेरी ही नहीं है, वे तिब्बती जनता की भी हैं। इस तरह मेरे पास इनकी सुरक्षा करने का दायित्व भी है।"

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