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अफगान लोया जिरगा द्वारा अमरीका के साथ रणनीतिक साझेदार संबंध की स्थापना पारित
2011-11-21 17:03:32

दोस्तो , स्थानीय समय के अनुसार 19 नवम्बर को चार दिवसीय अफगान लोया जिरगा समाप्त हुआ , सम्मेलन में अमरीका के साथ रणनीतिक साझेदार संबंध की स्थापना समेत प्रस्ताव पारित हुए । पर विश्लेशकों का मानना है कि यदि अमरीका व अफगानिस्तान इसी मामले पर तात्विक प्रगति प्राप्त करना चाहते हैं , तो काफी लम्बे समय की जरूरत पड़ेगी । साथ ही इस प्रस्ताव में तालिबान के साथ राजनीतिक शांति वार्ता की बहाली पर प्राप्त तात्विक परिणाम के बारे बाह्य दुनिया आम तौर पर रुढिवादी रवैया अपनाये हुए है ।

अफगान संविधान के अनुसार लोया जिरगा अफगान जनता की अभिलाषा की सर्वोपरि अभिव्यक्ति है , यह जिरगा संसद के ऊपरी व निचले दोनों सदनों के सांसदों , विभिन्न प्रांतीय संसदों के अध्यक्षों और कबिलाई मुखियाओं से गठित है , यह जिरगा आम तौर पर राजकीय प्रभुसत्ता और कानून के अनुमोदन से संबंधित मामलों पर आयोजित किया जाता है । 2002 से लेकर आज तक अफगानिस्तान में कुल मिलाकर चार बार आयोजित किया जा चुका है , पहले सम्मेलनों की तुलना में मौजूदा सम्मेलन में दो निम्न प्रमुख भिन्नताएं नजर आयी हैं । सर्वप्रथम मौजूदा सम्मेलन के प्रस्ताव निर्णयात्मक महत्व के बजाये संदर्भ की भूमिका निभाते हैं । आम तौर पर लोया जिरगा में पारित प्रस्ताव सर्वोपरि कानूनी महत्व रखते हैं ,सरकार को संबंधित प्रस्तावों का कड़ाई से पालन करना होगा । पर मौजूदा जिरगा के आयोजन से पहले विभिन्न पक्षों द्वारा संपन्न समझौते के अनुसार जिरगा के प्रस्ताव सरकार द्वारा अंतिम नीति के निर्धारण व कार्यांवयन के लिये रचनात्मक हैं , कोई अनिवार्य नहीं है । दूसरी तरफ विभिन्न अफगान दलों के बीच मौजूदा जिरगा की वैधता पर विवाद मौजूद हैं । कुछ सांसदों का कहना है कि मौजूदा जिरगा सरासर कर्जाई सरकार के नियंत्रण में है , सम्मेलन के हिस्सेदार अमरीका अफगान रणनीतिक साझेदार समझौते से जुड़ी धाराओं के बारे में कुछ भी नहीं जानते , इसलिये प्रस्ताव का कोई तात्विक महत्व नहीं है । पता चला है कि सौ से ज्यादा सांसदों ने मौजूदा जिरगा में भाग लेने से इनकार कर दिया है ।

जिरगा में पारित प्रस्ताव हालांकि अमरीका अफगान रणनीतिक साझेदार संबंध की स्थापना पर सहमत है , लेकिन फिर भी यह मांग पेश की गयी है कि अमरीका अफगान रणनीतिक साझेदार संबंध प्रभुसत्ता की आपसी सम्मान के आधार पर सथापित किया जाये और अफगानिस्तान में तैनात अमरीकी सेना रात्रि हमला बंद करने , अफगानिस्तान में हवालात संस्थानों की स्थापना करने और कैदियों के बंदोबस्त को अफगानिस्तान को सौंपने आदि शर्तों को स्वीकार करे । विश्लेषकों का विचार है कि लोया जिरगा के प्रस्ताव कर्जाई सरकार और अमरीका के बीच वार्ता को कानूनी आधार व प्रभावी बना लेते हैं । साथ ही उन्होंने यह भी जताया कि हालांकि समझौते के ढांचे को लेकर अमरीका व अफगानिस्तान दोनों पक्षों के बीच सहमति संपन्न हुई है , पर बहुत ज्यादा तफसील मामलों पर दोनों पक्षों के बीच मतभेद फिर भी मौजूद हैं , इसलिये अंतिम समझौते के हस्ताक्षर के लिये काफी लम्बी प्रक्रिया का इंतजार करना जरूरी है ।

मौजूदा जिरगा का दूसरा मुद्दा है तालिबान के साथ राजनीतिक शांति वार्ता की बहाली , यह मुद्दा विवादास्पद भी है । बहुत से हिस्सेदार , खासकर पूर्व उत्तर संघ के सदस्य और गैर पाकटूनखवा के प्रतिनिधि तालिबान की शांति वार्ता की सदिच्छा पर शंकित हैं । उन का मानना है कि फौजी प्रहार तालिबान को वार्ता मेज के पास वापस बुला लेने का एकमात्र तरीका ही है । जिरगा का अंतिम निर्णय उच्च स्तरीय अफगान शांति कमेटी के गठन और शांति वार्ता तंत्र को अधिक समन्वित करेगा । विश्लेषण का विचार है कि पाकटूनखवा और गैर पाकटूनखवा के बीच इस मामले से उत्पन्न अंतरविरोध का मूल समाधान नामुमकिन है । इस के अलावा बाह्य दुनिया शांति वार्ता से कितनी बड़ी तात्विक प्रगति की प्राप्ति पर भी संदेहपूर्ण रवैया अपनाए हुए है ।

कुछ अफगान लोग जिरगा के प्रस्तावों का समर्थक हैं , उन की राय है कि अमरीका अफगान रणनीतिक साझेदार संबंध समझौते का हस्ताक्षर अफगानिस्तान के लिये हितकर है । एक काबुल वासी ने संवदादाता से कहा कि अफगानिस्तान पिछले तीस सालों में युद्धाग्नि से ग्रस्त रहा है , अब शांति व स्थिरता की जरूरत है , अमरीका के साथ इसी प्रकार वाले समझौते का हस्ताक्षर इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये मददगार सिद्ध होगा । जबकि और अधिक लोगों का मानना है कि यह अमरीका की अफगानिस्तान में अपनी फौजी मौजूदगी को कानूनीकरण बनाने की साजिश है , साथ ही उन्हें यह चिन्ता है कि कहीं इस समझौते के हस्ताक्षर से नयी क्षेत्रीय अस्थिर तत्व पैदा न हो । स्थानीय समय के अनुसार 20 नवम्बर को जिरगा की अभी अभी समाप्ति पर हजारों अफगान लोगों ने पूर्व नांगहर प्रांत की राजधानी में जिरगा के प्रस्तावों के प्रतिरोध में प्रदर्शन निकाला और अमरीकी सेना से अफगानिस्तान से हटने की मांग की ।

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