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तिब्बत में लोपा जातीय टाऊनशिप के त्से चाओ गांव का दौरा
2011-11-14 12:42:41

यह चाइना रेडियो इंटरनेशनल है, श्रोता दोस्तो, श्याओ थांग की नमस्कार। सीआरआई देशी विदेशी पत्रकारों की तिब्बत-यात्रा वृत्तांत के संदर्भ में एक रिपोर्ट सुनने के लिए आप का स्वागत। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को तिब्बत के लोपा जातीय टाऊनशिप के चाय चाओ गांव के दौरे पर ले चलते हैं ।

त्से चाओ गांव से मीलिन कांऊटी शहर तक जाने के लिये पक्की सड़क निर्मित हुई , कार से दसेक मिनट में ही इस शांतिमय गांव से कांऊटी शहर पहुंच सकता है। त्से चाओ गांव में लोपा अल्पसंख्यक जाति बसी हुई है, गत सदी के 80 वाले दशक में यह जाति पहाड़ी क्षेत्र से खुले मैदान में स्थानांतरित हुई, तब से लेकर अब तक पूरे गांववासियों की संख्या करीब एक गुना बढ़ कर 166 हो गयी है ।

शायद आप को मालूम नहीं हुआ होगा कि लोपा जाति चीनी अल्पसंख्यक जातियों में सब से कम जनस्ख्या वाली जातियों में से एक है, वह हिमालय पर्वत की दक्षिण तलहटी में केंद्रिय रुप से रहती है , पूरे चीन में इस जाति की कुल संख्या तीन हजार एक सौ से ज्यादा है , जिस का चौथाई भाग मीलीन कांऊटी में बिखरा हुआ है । मीलिन कांऊटी में चीनी जड़ी बुटियों की भरमार होती है , चाय चाओ गांववासी इस का फायदा उठाकर खुशहाल होने लगे हैं । गावं के प्रधान तावा ने इस का परिचय देते हुए कहा:

"पहले हम पहाड़ पर रहते थे, हमारा जीवन शिकार पर निर्भर था, भर पेट खाने को नहीं मिलता । अब गांववासी मुख्यतः बेशकीमती जड़ी बुटी , लकड़ी व पशुपालन और सरकारी समर्थन पर आश्रित हैं , जिस से हर परिवार की सालाना आय दस हजार य्वान से अधिक है , प्रति व्यक्ति की औसत आय कोई चार हजार से ज्यादा है, जीवन में बड़ा सुधार हुआ है।"

तावा को गांव प्रधान बने हुए बीसेक साल हो गये हैं, वे बहुत ज्यादा मामलों का साक्षी हैं , खासकर 2006 में किसानों व चरवाहों के लिये आरामदेह निवास परियोजना के निर्माण से पूरे गांव में बड़ा निखार आया है । उस समय सरकार ने हरेक परिवार के लिये पक्के मकान , सीमेंट सड़क व नाली बनवाने में कुल 50 लाख य्वान की धन राशि जुटाई , साथ ही हरेक ग्रामीण परिवार में नल के पानी व मैथन गैस की सप्लाई की जाती है ।

आज चाय चाव गांव का हरेक परिवार सौ से ज्यादा वर्गमीटर विशाल मकान में रहता है । यह मकान लोपा जातीय परम्परागत काष्ठ वास्तु शैली से निर्मित हुआ है , मकान की गोलाकार छत बैगनी रंग की है , मकान के रोशनीदार कमरे जातीय विशेष बनावटों से सुसज्जित हुए हैं , देखने में बहुत खूब सूरत और आरामदेह है । गांववासी अब अपने रहन सहन पर बहुत संतुष्ट हैं और अपने घर को साफसुथरा व सजधज करना पसंद करते हैं , मकानों के आगे पीछे फूल पौधे भी उगे हुए हैं ।

अपने आप को सौ वर्ष वाले बुजुर्ग या श्या ने कहा:

"पहाड़ से खुले मैदान में स्थानांतरित करने में मुझे बड़ी खुशी हुई है , यहां पर रहने की आदी हो गयी हूं, बड़ा अच्छा लगता है।"

बुजुर्ग याश्या इस त्से चाव गीत गाने और कपड़े बुनाने में बहुत निपुर्ण हैं, वे लोपा जातीय महत्वपूर्ण परम्पराओं का ग्रहण करने की उत्तराधिकारी जानी जाती हैं ।

जब यहां के दौरे पर पर्यटकों का स्वागत करने और त्यौहार की खुशियां मनाने का समारोह होता है, तो बुजुर्ग याश्या अवश्य ही खूब सजधज कर मंच पर प्रस्तुति करती हैं और अपने पूर्वजों की दृढ़ निडर भावना का गुणगान करने वाले गीत गाती हैं । लोपा जाति में अपनी कोई लिपी नहीं है , सभी परम्परागत संस्कृतियों का प्रचार प्रसार मौखिक तौर पर किया जाता है , बुजुर्ग याश्या इसी तरह अपनी श्रेष्ठ जातीय परम्पराओं के ग्रहण के लिये युवाओं को सीखाने में क्रियाशील हैं , जिस से ये विशेष जातीय परम्पराएं आज के बाल बच्चों में भी खूब प्रचलित हैं ।

"मैं आम दिनों में बाल बच्चों को गीत सीखाती हूं , अब वे गाने में कुशल हो गये हैं ।"

लोपा जातीय महिलाओं के लिये बुनावट पर महारत हासिल करना अत्यावश्यक है , इसी गांव में कपड़े बुनाने की परम्परा आज तक भी बनी हुई है , इसलिये अब यहां पर गांवासी जो पोषाक पहनते हैं , उन्हें बनाने के सभी कपड़े अपने घर की गृहिणियों ने खुद बुना दिये हैं । 2008 में यह विशेष बुनावट चीनी राष्ट्रीय अभौतिक सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल हो गयी है ।

27 वर्षिय यातार एक बहुत होशियार महिला है , उस ने अपनी नानी से जातीय पोषाक बुनाने का कौशल सीख लिया है , उस की नानी बुजुर्ग याश्या की अच्छी शिष्षा है। अब यातार की बेटी भी यह बुनावट सीखना चाहती है।

"मैं ने गत वर्ष यह बुनावट सीखना शुरु किया , शुरु में बहुत कठिन लगता था , अब मेरे लिये इतना कठिन नहीं है । मेरी नौ साल की वेटी भी मुझ से सीखना चाहती है , पर वह काफी छोटी है , कमजोर है , बड़ी होने पर उसे सीख दूंगी ।"

नानई टाऊनशिप के प्रधान माया के विचार में अपनी जातीय परम्पराएं और संस्कृति आज तक भी अचछी तरह सुरक्षित हुई हैं, उस की देन प्रेम व सरकार के समर्थन को जाती है ।

"गत सदी के 80 वाले दशक में हमारी जातीय संस्कृति लुप्त होने के कगार पर थी , इसे ध्यान में रखकर सरकार ने जातीय परम्परागत संस्कृतियों के संरक्षण को काफी महत्व दिया है और बुजुर्गों को इन जातीत परम्पराओं को युवा लोगों को सीखने में प्रोत्साहन भी दिया है । सांस्कृतिक विरासतों का ग्रहण इसी तरह पीढी दर पीढी किया जाता है , अब स्थानीय बाल बच्चे भी इसे सीखने में रुचि लेते हैं।"

इधर सालों में चीन सरकार ने अपनी अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों के संरक्षण को अधिक महत्व दिया है , जिस से लोपा जातीय संस्कृति के विकास को मौका मिल गया है। गत वर्ष त्से चाव गांव की युवतियां अपने शानदार जातीय पोषाकों से खूब सजधज कर शांगहाई विश्व मेले में उपस्थित हुईं, जिस से बड़ी तादाद में दर्शकों ने उन के साथ फोटो खिंचवाने में होड़ सी लगा दी है । लोपा जातीय रंगीले पोषाकों को छोड़कर अपने पूर्वजों के बारे में किम्वतंती राष्ट्रीय अभौतिक सांस्कृतिक विरासत सूची में भी शामिल हो गयी है ।

स्थानीय जातीय सांस्कृतिक अनुसंधानकर्ता के अनुसार मिलीन कांऊटी में लोपा सांस्कृतिक संग्रहित बचाव दल कायम हो गया है , यह दल मुख्यतः लोपा जाति के बुजुर्ग लोक कलाकारों से इंटरव्यू , मिलीन के लोपा जितीय पोषाकों , लोपा जातीय चाकू नृत्य समेत 15 मुद्दों की सामग्री के संग्रह का काम संभालता है । साथ ही इस जाति के पास लिपि न होने पर भी पर्वतीय जाति नामक अपनी रचना भी प्रकाशित हो गयी है , इस रचना में व्यवस्थित रुप से लोपा जाति के इतिहास , रीति रिवाज , शिष्टाचार और आधुनिक जीवन का वर्णन किया गया है । त्सेचाव गांव में पर्यटक तिब्बत में प्रथम गांव स्तरीय लोक रिवाज व संस्कृति प्रदर्शनी यानी मिलीन कांऊटी की लोपा लोक रिवाज व संस्कृति प्रदर्शनी देख सकते हैं , इस प्रदर्शनी में विभिन्न क्षेत्रों में संग्रहित लोपा जाति के उत्पादन औजार , रोजमर्रे वाली वस्तुओं समेत 120 से ज्यादा चीजें प्रदर्शित हैं ।

अभौतिक सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में कार्यरत मिलीन कांऊटी के संस्कृति व रेडियो ब्यूरो के उप प्रधान पाइमाकात्सो ने कहा:

"हम ने बुनावट का विरासत में ग्रहण करने के लिये एक बुनाई केंद्र स्थापित किया है और कई सुयोग्य व्यक्तियों को प्रशिक्षित भी किया है । वयस्क लोग परम्परागत दस्तकारी सीखने में भी रुचि लेते हैं , कृषि के अवकाश के समय हम उन्हें लोक कलात्मक कौशल सीखाने में संगठित किया। मेरा विचार है कि अब अभौतिक सांस्कृतिक विरासत का संग्रहण व संरक्षण करने का समय आ गया है, नहीं तो कुछ लोकप्रिय लोक नृत्य नाट्य और बुनावट के उत्तराधिकारी बूढे होकर धीरे-धीरे इस दुनिया में नहीं रहते, इसलिये अब हमें उन से अच्छी तरह लोक कलाएं सीखना चाहिये । अब हम ने इसी क्षेत्र में कुछ सफल काम किये हैं , आगे और जबरदस्ती से इसी काम को बखूबी अंजाम देने की पूरी कोशिश करेंगे। राज्य जातीय सांस्कृतिक विरासत के संग्रहण को बड़ा महत्व देता है, जबकि हम जैसे बुनियादी सरकारी संस्थाओं में कार्यरत कर्मचारियों के लिये इसी काम को मूर्त रुप देना भी आवश्यक है, साथ ही हम अपनी श्रेष्ठ जातीय सांस्कृतिक विरासतों को समूचे देश में लोकप्रिय बनाने को संकल्पबद्ध भी हैं ।"

पर्यटन कार्य के विकास के चलते लोपा जातीय परम्परागत दस्तकारी भी प्रदर्शित हो गयी है । 2007 से हर साल के वसंत में लिनची क्षेत्र में लोपा जातीय लोक रिवाज व सांस्कृतिक पर्यटन उत्सव मनाया जाता है , मौके पर घुड़ दौड़ , तीरंदाजी प्रतियोगिताएं , लोपा जातीय रहन सहन ,जातीय त्रेस शौ और विशेष स्थानीय कृषि उपजों की प्रदर्शनी आदि गतिविधियां चलायी जाती हैं , कुछ बुजुर्ग दस्तकार मौके का फायदा उठाकर अपने कौशल दिखाते हुए आधुनिक जीवन में आने वाली वस्तुएं तैयार करते हैं , फिर ये कलात्मक कृतियां हाथोंहाथ बिक जाती हैं ।

पायमागात्सो का विचार है कि जातीय परम्पराओं का संरक्षण कठिन अवश्य ही है, पर इस संरक्षण पर कायम रहना अत्यावश्यक है।

"पर्यटन कार्य को बढावा देने के लिये हम लोपा जातीय पोषाकों को प्रदर्शित करने के लिये एक केंद्र स्थापित करने को तैयार हैं। पर हमारे सामने यह चुनौति खड़ी हुई है कि अब आम लोग अपने जातीय पोषाक बनाने में काफी कुशल हैं, उन्हें सूक्ष्म बुनावट सीखाने के लिये उस्दात बुनकरों को आमंत्रित करना जरुरी है, ताकि वे लोपा जातीय विशेष हस्तशिल्पियां, कलात्मक कृतियां और अन्य दुर्लभ यादगार वस्तुएं बनाने में दक्ष हो सके। इसी बीच हम विशेषज्ञों के साथ कुछ कौशलों को सुधारकर पर्यटन कार्य को संस्कृति के साथ जोड़ देने में लगे हुए हैं।"

अच्छा दोस्तो, अभी आपने सीआरआई देशी विदेशी पत्रकारों की तिब्बत-यात्रा वृत्तांत के संदर्भ में एक रिपोर्ट सुनी, शीर्षक है《यालुचांगबू नदी की विशेष तटीय नृत्यकला》। अब श्याओ थांग को आज्ञा दें, नमस्कार।

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