20 देशों के ग्रुप यानी जी बीस का छठा शिखर सम्मेलन तीन और चार नवम्बर को फ्रांस के कान शहर में आयोजित होगा। चीनी राष्ट्राध्यक्ष हु चिनथाओ सम्मेलन में भाग लेंगे। अन्तरराष्ट्रीय सवाल के बारे में चीनी विशेषज्ञों का कहना है कि वर्तमान दुनिया में विश्वव्यापी अर्थव्यवस्था में दोबारा मंदी आ रही है और यूरोप में कर्ज संकट का विस्तार होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में जी बीस के शिखर सम्मेलन में चीन की भागीदारी का मकसद सम्मेलन में उपस्थित देशों के साथ समग्र आर्थिक नीतियों में समायोजन बढ़ाना, वित्तीय बाजार को स्थिर बनाए रखना और विश्व अर्थव्यवस्था में वृद्धि लाना है। एवं यूरोप को सहायता देने में चीन अपनी शक्ति के अनुसार काम लेगा।
शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्राध्यक्ष हु चिनथाओ शिखर सम्मेलन के पूर्णाधिवेशन, लंच मीटिंग तथा डिनर मीटिंग में हिस्सा लेंगे और विश्व की आर्थिक स्थिति पर विचार विमर्श करेंगे, जिनमें प्रबल, निरंतर व संतुलित वृद्धि के ढांचे, अन्तरराष्ट्रीय मौद्रिक तंत्र का सुधार, प्रमुख चीजों के दाम, विश्वव्यापी प्रबंधन, व्यापार, विकास व बैकिंग निगरानी जैसे सवाल शामिल हैं। राष्ट्राध्यक्ष हु चिनथाओ अन्य कुछ देशों के नेताओं व अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के नेताओंके साथ द्विपक्षीय वार्ता भी करेंगे।
जी बीस ग्रुप विश्व आर्थिक प्रबंधन का अहम निकाय है। उस के कान शिखर सम्मेलन में यूरोप के कर्ज संकट सवाल पर ध्यान दिया जाएगा। इस पर पेइचिंग विश्वविद्यालय के अन्तरराष्ट्रीय संबंध कालेज के उप कुलपति वांग यी चो ने कहाः
शिखर सम्मेलन का ध्यान विश्व अर्थतंत्र में पुनः मंदी आने के सवाल पर लगेगा, खास कर यूरोपीय कर्ज संकट को विश्व की दूसरी जगह पर फैलने से रोकने की कोशिश की जाएगी। विभिन्न देशों व इलाकों से आए शीर्ष प्रतिनिधियों के मौजूदा सम्मेलन में अहम घोषणा पत्र जारी करने की संभावना है, जिससे सारी दुनिया का विश्वास बढ़ जाएगा और विश्व में दुबारी आर्थिक मंदी आने की रोकथाम के लिए अहम कदम उठाए जाएंगे।
अनुमान के मुताबिक यूरोपीय कर्ज संकट के समाधान के लिए फ्रांसीसी राष्ट्रपति साकार्जी तथा जर्मन प्रधान मंत्री मैकर्ल कान सम्मेलन में यूरोपीय वित्तीय स्थिरता कोष की योजना को प्रचारित करते हुए जी बीस सदस्यों, खास कर ब्रिक्स देशों से कोष से अधिक से अधिक बांड खरीदने की उम्मीद करते हैं। इस पर श्री वांग यीचो ने कहा कि यूरोपीय कर्ज संकट कुछ यूरोपीय देशों के अन्दरूनी कारणों से उत्पन्न हुआ है, यूरोप को ऐसी उम्मीद नहीं बांधनी चाहिए कि उस का समाधान दूसरे देशों पर निर्भर हो। जहां तक चीन का ताल्लूक है कि वह केवल अपनी यथाशक्ति से मदद दे सकता है। समर्थन देने का यह अर्थ नहीं है कि दूसरे देश उसे भारी धन राशि प्रदान करेंगे। उन्होंने कहाः
पैसे के अलावा नीतिगत और व्यवस्थागत समर्थन दिया जा सकता है, इन में व्यापार संरक्षणवाद को रोकना, व्यापार में बाधाओं को दूर करना और परस्प आयात निर्यात बढ़ाना आदि शामिल हैं। इन कदमों से यूरोपीय देशों को अपने संकट को हल्का करने में मदद मिलेगी। ऐसी उम्मीद अच्छी नहीं है कि दूसरे देश सहायता के लिए भारी धनराशि निकालें। यूरोपीय देशों में ग्रीस, स्पेन, ब्रिटेन, इटाली व पुर्तगाल जैसे कठिनाइयों से जूझ करने वाले देश हैं, साथ ही स्वीटजरलैंड, जर्मनी और डेनमार्क जैसे प्रबल आर्थिक देश भी हैं। चीन अपनी वस्तुगत शक्ति के मुताबिक सुरक्षित तौर पर पूंजी का निवेश करेगा। अपनी आशा सिर्फ चीन प बांधना व्यवहारिक नहीं है।
चीनी राष्ट्रीय विकास व सुधार आयोग के आर्थिक अनुसंधान संस्थान के उप प्रधान वांग यी मिंग ने भी एक साक्षात्कार में मिलता जुलता मत पेश किया। उन्होंने कहा कि चीन अपनी शक्ति के अनुसार सहायता देगा, और ऐसी सहायता भी होगी जिससे चीन के हितों को नुकसान नहीं पहुंचे। चीन के पास अपनी आर्थिक समस्याएं भी हैं, ऐसे में चीन को आर्थिक वृद्धि के लिए अपनी प्रेरणा शक्ति बढ़ाने की बड़ी जरूरत है, तभी चीन विश्व के आर्थिक विकास में अपना योगदान दे सकेगा। उन्होंने कहाः
चीन आगे आर्थिक प्रोत्साहन नीति की जगह आर्थिक स्व-वृद्धि का तरीका अपनाएगा और विश्वव्यापी आर्थिक मंदी की स्थिति में चीन को अपने देश के बाजार का विस्तार करना चाहिए और अपनी सृजन शक्ति बढ़ानी चाहिए। वर्तमान में चीन के कुछ क्षेत्रों के छोटे मझोले कारोबारों में आर्थिक व वित्तीय लागतों में इजाफा होने की दिक्कतें उभरी हैं, इसलिए दूसरे देशों की तरह चीन को भी अपनी आर्थिक स्थिरता बनाए रखने की कोशिश करनी चाहिए।
कान शिखर सम्मेलन में प्रस्तुत होने वाली कान कार्यवाही योजना के प्रति श्री वांग ने कहा कि विश्व अर्थव्यवस्था को प्रबल, निरंतर व संतुलित बनाने के ढांचे में अनेक ठोस कदम उठाये जा सकते हैं। जैसाकि घाटे में पड़े विकसित देशों को अपने आर्थिक ढांचे का समायोजन करते हुए वित्तीय घाटे को कम करना चाहिए, नवोदित बाजार वाले देशों को अन्दरूनी उपभोक्ता प्रेरित करना तथा मुद्रास्फीति को रोकना चाहिए। यूरोप में कर्ज संकट आने की हालत में यह उम्मीद बहुत अनुकूल है कि अन्तरराष्ट्रीय मौद्रिक व्यवस्था में सुधार लाया जाए।