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बाहरी व अंदरुनी दबाव तले पाक सरकार तालिबान के साथ शांति वार्ता करने की इच्छुक
2011-10-11 16:41:16

दोस्तो , इधर सालों में पाकिस्तानी तालिबान पाकिस्तान में ताबड़तोड़ आतंकवादी हमला करने में संलग्न रहा है और वह पाकिस्तान की अंदरुनी सुरक्षा के लिये सब से बड़ा खतरा रहा है । इसी बीच पाक सरकार ने देश के भीतर तालिबान सशस्त्र शक्तियों पर प्रहार कभी भी बंद नहीं किया। पर दस अक्तूबर को एक पाक अखबार ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि पाक तालिबान ने पाक सरकार के साथ शांति वार्ता करने को कहा है , जबकि पाक सरकार ने इस बात के प्रति सकारात्मक प्रतिक्रिया भी व्यक्त की है ।

गत माह में पाक फौजी व सूचना टुकड़ियों के उच्च स्तरीय अधिकारियों ने एक बहुदलीय सम्मेलन बुलाया , सम्मेलन में उन्होंने यह विचार पेश किया है कि वे देश की अंदरुनी गड़बड़ स्थिति को समाप्त करने के लिये सशस्त्र शक्तियों के साथ सुलह समझौता करने को तैयार हैं । अतः असल में पाक सरकार ने तालिबान के साथ सुलह समझौता करने में पहल किया है । पाक तालिबान के नम्बर दो सरगना रहमान ने मीडिया के सम्मुख यह कहा कि हमारी कमेटी पाक सरकार व सेना के साथ शांति वार्ता करने या न करने और शांति वार्ता का समय निश्चित करने का फैसला करेगी , लेकिन हम चाहते हैं कि सऊदी अरब जैसे हमारे निश्वसनीय अरब देश भी इस वार्ता में भाग लें । पर उन्होंने यह संकेत भी दिया है कि उन्हें अभी तक कोई प्रत्यक्ष शांतिपूर्ण प्रस्ताव नहीं मिला । इस बात को लेकर पाक मीडिया ने प्रधान मंत्री गिरानी का हवाला देते हुए कहा कि सरकार ने शांति वार्ता के लिये तैयारी कर रखी है ।

तालिबान के साथ शांति वार्ता करने का पाक सरकार का विकल्प अपने सामने मौजूद बाहरी व अंदरुनी दुर्दशा से संबंधित है । बाहरी वातावरण की दृष्टि से देखा जाये, गत मई में अमरीकी सेना ने एक तरफा तौर पर कार्यवाही कर अल कायदा के सरगरना बिन लादेन को मार डाला , तब से लेकर अब तक पाकिस्तान व अमरीका का संबंध निम्न स्तर पर गिर गया । अमरीका ने पाकिस्तान से हक्कानी नेटवर्क संगठन पर हमला बोलने की मांग में उस पर लगातार दबाव डाल दिया है , जबकि पाकिस्तान ने अमरीका के आरोप को लेकर यह प्रतिक्रिया व्यक्त की है कि हक्कानी नेटवर्क संगठन के साथ पाकिस्तान का रिश्ता ही नहीं , बल्कि अमरीका समेत पश्चिमी देशों के साथ हक्कानी नेटवर्क संगठन का संबंध भी बरकरार रहा है , अमरीका ने पाकिस्तान पर जो आरोप लगाया है , वह आतंकवाद विरोधी युद्ध के लिये हानिकारक होगा । पाकिस्तान व अमरीका का संबंध हिमांक पर गिर पड़ा , गत सप्ताहांत में अफगान राष्ट्रपति करजाई ने पाकिस्तान पर अफगान तालिबान के साथ घनिष्ट सम्पर्क रखने का आरोप भी लगाया ।

अंदरुनी वातावरण से देखा जाय़े , चालू वर्ष गर्मियों में दक्षिण पाकिस्तान स्थित सिंध प्रांत में बाढ़ आयी , जिस से 80 लाख स्थानीय वासी बाढ़ से प्रभावित हुए , प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान 30 करोड़ अमरीकी डालर से अधिक रहा , जबकि पूर्वी पाकिस्तान स्थित पंजाब प्रांत में फैले डेंगू से 200 से अधिक लोगों की मौत हुई । और तो और वर्तमान में पाकिस्तान बिजली के सख्त अभाव का सामना कर रहा है , कुछ शहरों में प्रदर्शनकारी गतिविधियां भी चलायी गयी हैं । इन अंदरुनी व बाहरी दबावों से मजबर होकर पाक सरकार ने पाक तालिबान के साथ सुलह समझौता करने पर सोच विचार कर लिया है ।

तालिबान के साथ शांति वार्ता करने का पाक सरकार का विकल्प अपनी अंदरुनी व बाहरी दुर्दशा में शैथिल्य लाने के लिये मददगार सिद्ध होगा या नहीं , इस बात की चर्चा में कुछ मीडिया ने कहा कि पाक तालिबान के साथ पाक सरकार की सुलह से अमरीका निश्चय ही क्रोधित हो उठेगा । पर कुछ विश्लेषकों का मानना है कि एक तरफ पाकिस्तान ने अपने अंदरुनी व बाहरी अंतरविरोधों को दूर करने के लिये यह जोखिम भरा विकल्प कर लिया है , बेशक पाकिस्तान अमरीका को क्रोधित करना तो नहीं चाहता , पर अमरीका के दबाव तले अपनी क्षमता दिखाने का उस का इरादा भी है । दूसरी तरफ यदि पाकिस्तान की अंदरुनी स्थिति स्थिर हो गयी है , तो आतंक विरोधी अफगान युद्ध के लिये लाभदायक भी होगा , इस के मद्देनजर यह कहा नहीं जा सकता कि अमरीका पाक तालिबान के साथ शांति वार्ता करने के पाक सरकार के विकल्प को स्वीकृत नहीं करेगा ।

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