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ब्रिक्स देश यूरोपीय वित्तीय संकट के मुकाबले में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का साथ देने पर राजी
2011-09-23 16:49:57

पांच ब्रिक्स देशों के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों का सम्मेलन 22 सितम्बर को वाशिंगटन में हुआ , सम्मेलन की समाप्ति पर जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि यूरोपीय वित्तीय संकट से भूमंडलीय वित्तीय स्थिति व आर्थिक वृद्धि पर पड़ने वाले कुप्रभाव के मद्देनजर ब्रिक्स देशों ने संकट के मुकाबले में यूरोप की मदद देने पर सहमति जतायी है और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का साथ देने को भी कहा है । 

पांच ब्रिक्स देशों यानी ब्राजिल , रुस , चीन , भारत और दक्षिण अफ्रीका के वित्त व मौद्रिक नीति अधिकारियों ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष संगठन और विश्व बैंक के शरतकालीन वार्षिक सम्मेलन की पूर्ववेला में वाशिंगटन में विश्व वर्तमान आर्थिक परिस्थिति और ब्रिक्स देशों के प्रभाव तथा तदनुरूप कदमों पर विचार विमर्श किया । चीनी वित्त मंत्री श्ये शू रन और चीनी जन बैंक के गवर्नर चओ श्याओ छ्वान ने चीनी प्रतिनिधि मंडल को लेकर इस सम्मेलन में भाग लिया ।

मौजूदा सम्मेलन के अध्यक्ष भारतीय वित्त मंत्री मुखर्जी ने कहा कि ब्रिक्स देशों के वित्त मंत्रियों व केंद्रीय बैंकों के गवर्नरों ने समान दिलचस्पी वाले सवालों पर निश्चित मतैक्य प्राप्त कर लिया । 

हम ने जी बीस समूह तंत्र के भीतर विभिन्न देशों के बीच नीतिगत समन्वय व सहयोग के महत्व को दोहराया , साथ ही हम ने कोटे व ढांचे के सुधार की धीमी गति पर चिन्ता भी जताई ।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि हालांकि ब्रिक्स देश 2008 के विश्व वित्तीय संकट से जल्दी से उबर गये हैं , पर मुद्रास्फीति के दबाव तले कुछ सदस्य देशों की वृद्धि भूमंडलीय बाजार के अनिश्चित तत्वों से प्रभावित हो गयी है। विकसित देशों के साँवरेन डेट और मध्यम अवधि के ऋण की समायोजन योजना पर बाजार की चिन्ता से भूमंडलीय आर्थिक वृद्धि का अनिश्चय बढ़ गया है । इस के अलावा कुछ देशों ने अपने देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाने के लिये जो आक्रामक मौद्रिक नीति अपनायी है , उस से नवोदित आर्थिक समुदायों की पूंजी का हद से ज्यादा बहाव हो गया है और तिजारती मालों के दामों में उतार चढाव बढ़ गया है ।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि ब्रिक्स देश आर्थिक वृद्धि , वित्तीय स्थिरता बनाये रखने और मुद्रास्फीति पर नियंत्रण करने के लिये आवश्यक कदम उठा रहे हैं , विश्व अर्थतंत्र में ब्रिक्स देशों का योगदान निरंतर मजबूत होगा । विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष संगठन के 2010 का सुधार रुक गया है , अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष संगठन को कोटे की सुधार योजना को अमल में लाने में तेजी लानी चाहिये ।

ऐसी हालात में , जबकि यूरोपीय कर्ज संकट का दर्जा बढ़ता गया है और इस के समाधान का कोई भी प्रस्ताव नहीं निकल पाया है , ब्रिक्स देशों की मदद ध्यानाकर्षक विषयों में से एक बन गया है ।

मुखर्जी ने कहा कि ब्रिक्स देश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समान प्रयासों का एक हिस्सा होंगे ।  

हमारी सहमति यह है कि यूरोपीय देशों व अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पूंजी बढाने पर संजीदगी के साथ विचार करना चाहिये । ब्रिक्स देश अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का सदस्य होने के नाते जी बीस के अन्य सदस्य देशों तथा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ अपना योगदा देंगे ।

चीनी केंद्रीय बैंक के गवर्नर चओ श्याओ छ्वान ने कहा कि ब्रिक्स देश अपने देश की वास्तविक स्थिति के अनुसार निर्णय लेंगे और ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग को बढावा देंगे , ताकि वे भूमडलीय आर्थिक स्थिरता को बनाये रखने में अपनी शक्ति अर्पित कर देंगे ।

2009 में हुए जी बीस के लंदन शिखर सम्मेलन में विभिन्न देश इस बात पर सहमत हुए हैं कि वित्तीय संकट से गम्भीर प्रभावित देशों को मदद देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष संगठन में धन राशि बढायी जायेगी । मेरा विचार है कि चालू वर्ष के शरतकालीन सम्मेलन में विभिन्न सदस्य देश इसी मुद्दे पर फिर विचार विमर्श कर देंगे ।

भारतीय केंद्रीय बैंक के गवर्नर सुब्बाराव ने कहा कि इस मामले पर ब्रिक्स देशों को घरेलू मांग व बाहर को निर्यातित संसाधनों के संतुलन से अच्छी तरह निबटना चाहिये ।

विज्ञप्ति में कहा गया है कि ब्रिक्स देश अपने अपने देश की राष्ट्रीय स्थिति के मद्देनजर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष संगठन को समर्थन देंगे । पर यह बताना भी जरूरी है कि ब्रिक्स देशों के भीतर संसाधनों की बड़ी मांग होती है । इसलिये भूमंडलीय आर्थिक स्थिति को बनाये रखने के लिये बहुपक्षीय संस्थाओं को धन राशि सहायता देने और घरेलू मांग पूरी करने में कुछ अंतरविरोध मौजूद हैं ।

रुसी उप वित्त मंत्री स्टोर्चाक ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की समान कोशिश इस मामले की कुंजी है ।  

हमें सहायता या हिमायत जैसे शब्द के प्रयोग से बचना चाहिये , हम यूरोपीय देशों के साथ ही नहीं , बल्कि ब्रिक्स देशों के भीतर इस मामले पर समान रुप से सलाह मशविरा करने को तैयार हैं ।

विश्लेशकों का कहना है कि यूरोपीय वित्तीय स्थिति में आयी बिगाड़ ने बड़े नवोदित आर्थिक समुदायों को प्रभावित कर दिया है , पर ब्रिक्स देश कोई राष्ट्रीय गठबंधन नहीं हैं , उन के बीच बड़ा अंतर मौजूद है , सामूहिक रुप से यूरोप को उबारना उन के लिये कोई आसान काम नहीं है ।

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