02 पंच देवी पहाड़ की कहानी

ब्रह्मांड के निर्माता फान कु की कहानी 盘古开天
"ब्रह्मांड के निर्माता फान कु"नाम की पौराणिक कहानी को चीनी भाषा में"फान कु खाई थ्यान"(pán gǔ kāi tiān) कहा जाता है। इसमें"फान कु"व्यक्ति का नाम है, जबकि"खाई थ्यान"का अर्थ है ब्रहमांड का निर्माण करना।
कहा जाता है कि विश्व के संपन्न होने से पूर्व ब्रह्मांड में न जमीन थी, न ही आसमान था। ब्रह्मांड एक विशाल अंडे की भांति गोलाकार था, जिसके भीतर गाढ़ा धुंधलापन और अंधकार था। ऊपर नीचे और दाये, बाये का अन्तर नहीं होता था और न ही उत्तर-दक्षिण व पूर्व-पश्चिम का अंतर। लेकिन इस गोलाकार धुंध में एक महान वीर का जन्म हुआ था, जिसका नाम था फान कु।
इस विशाल धुंधले अंडे के अन्दर फान कु 18 हजार वर्ष पले बढ़े। वे अंत में गहन निद्रा से जागे, उनकी आंखें खुलीं तो चारों ओर अंधकार छाया हुआ था, शरीर इतना गर्म और तपता रहा था कि उसे सहना भी मुश्किल था और सांस भी ठीक से नहीं चल रही थी। वह उठना चाहते थे, पर अंडे का घोल उनके शरीर को जकड़ा हुआ था, जिससे हाथ-पांव हिलाना भी मुश्किल था। इस पर उन्हें बहुत क्रोध आया, अपने साथ लाई हुई एक विशाल कुल्हाड़ी से पूरी शक्ति से वार किया, भारी गड़गड़ाहट की आवाज के साथ वह विशाल अंडा फट पड़ा, जिसमें से हल्का द्रव्य ऊपर को जाने लगा, आहिस्ता आहिस्ता वह आसमान बन गया, और उसमें से भारी द्रव्य नीचे की ओर उतरता रहा और उसने जमीन का रूप ले लिया।
फान कु को बड़ी खुशी हुई कि उसके परिश्रम से जमीन और आसमान अलग बने। लेकिन इस डर से कि जमीन और आसमान पुनः मिल कर जुड़ न जाए। फान कु ने अपने सिर से आसमान को टेक दिया और अपने पांव को जमीन पर दबाया, अपनी दिव्य शक्ति से उनका शरीर दिन में नौ बार परिवर्तित हुआ करता था, रोज उनका शरीर एक जांग (चीन की पुरानी नाप, जो साढे तीन मीटर के बराबर) बढ़ जाता था, इसके साथ आसमान भी एक जांग ऊंचा हो गया और जमीन एक जांग मोटी हो गयी।
इस प्रकार 18 हजार वर्ष गुजरे, फान कु जमीन और आसमान के बीच एक अनंत असीम विशाल मानव बन गया। उनका शरीर नब्बे हजार मील से भी लम्बा था। इसके बाद पता नहीं कि फिर कितने वर्ष बीते, अखिरकार जमीन और आसमान अपनी अपनी जगह पर मजबूती के साथ जड़ित हो गए और पुनः मिलकर जुड़ने की संभावना भी न रही। फान कु ने राहत की सांस ली, लेकिन तब संसार का निर्माण करने वाला यह महान वीर भी पूरी तरह थक गया था, अपने को खड़ा रखने के लिए उसकी जरा भी ताकत नहीं रह गई कि उसका भीम काय धड़धड़ कर ढह गया।
फान कु के स्वर्गवास के बाद उसके शरीर में बड़ा परिवर्तन आया, उसकी बाईं आंख लाल लाल सूर्य बनी, दाईं आंख रूपहली चांद हो गई, उसकी अंतिम श्वास हवा और बादल के रूप में बदली, अंतिम आवाज बिजली का गर्जन बन गयी। उसके बाल और दाढ़ी जगमगाते हुए तार बने, सिर और पांव जमीन के चार भवन और पर्वत हो गए, रक्त नदी और झील के रूप में आया, मांसपेशी ऊपजाऊ भूमि बनी, नाड़ी मार्ग हो गई। जबकि त्वचा और रोंएं पेड़ पौधे और पुष्प बने, दांत और खोपड़ी ने सोना चांदी, लोहा, तांबा तथा जेड रत्न का रूप लिया और उसका पसीना वर्षा और पानी में बदल गया। इसी प्रकार से विश्व का निर्माण हुआ।