035 बाजा स्वयं बजता

2017-07-04 18:21:11 CRI

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035 बाजा स्वयं बजता

बाघ की विपदा 老虎遭殃

कहानी"बाघ की विपदा"को चीनी भाषा में"लाओ हू ज़ाओ यांग"(lǎo hǔ zāo yāng) कहा जाता है। "लाओ हू"का अर्थ बाघ होता है, जबकि"ज़ाओ यांग"का अर्थ है विपदा आना होता है।

बहुत पहले की बात थी, एक बाघ पहाड़ पर घूम रहा था। तभी अचानक नीचे मैदान की ओर देखते ही उसे छोटा सा एक जानवर दिखाई पड़ा। बाघ दबे पैर पहाड़ से नीचे उतर आया। बाघ देखना चाहता था कि आखिर वह जानवर कौन है।

वह छोटा सा जानवर था हिरन का बच्चा । जंगल के किनारे एक मैदान था, हिरण वहां बड़े आनंद से हरी-हरी मुलायम घास चर रहा था। गर्दन फेरते ही उसे अचानक बाघ को देखा, बाध को देखते ही हिरन का बच्चा डर के मारे कांपने लगा।

बाघ इतने नजदीक आ गया था कि हिरन के बच्चे के पास भागने का भी मौका नहीं था।

हिरन का बच्चा मुसीबत में फंस गया था।

हिरण के बच्चे ने बेफिक्र होने का नाटक करते हुए हंसना शुरू किया। मानो उसे किसी बात का डर न हो।

बाघ हैरान था। इतना सा जानवर, उसे देखकर भी घबराया नहीं और भागा भी नहीं। आखिर मामला क्या है? तो यह कौन सा जानवर है?

बाघ बड़ी चिन्ता में पड़ गया। और उसने धीरे-धीरे आगे बढ़कर पूछा:"अच्छा भाई, यह तो बताओ, तुम्हारे सिर पर पेड़ की डालों की तरह वह क्या है? उससे क्या होता है? "

हिरण ज़रा मुस्करा कर बोला:"तुम्हें यह भी मालूम नहीं है ? बाघ का शिकार करने में ये बड़े काम में आती है। इनसे बाघ का पेट बड़े आराम से फाड़ा जा सकता है? "

"ऐं, तो--तो--तुम्हारे बदन पर ये सफेद छापे कैसे हैं, भैया।"--डरते हुए बाघ ने फिर पूछा।

"ये भी बड़े काम के होते हैं। मैं जब-जब बाघ को मारता हूं, तो मेरे बदन पर ये छापे बन जाते हैं। यह देखो न, एक सौ सात हो चुके हैं। और एक के होते ही---"

ऐसा सुनते ही बाघ वहां से जंगल की ओर भाग गया।

बाघ जंगल की ओर भागते हुए सोच रहा था:"नहीं। इधर आना खतरे से खाली नहीं है। किस्मत से आज जान बच गई।"

तभी एक एक सियार सामने दिखाई दिया। चालाक सियार बाघ को देखते ही समझ गया जरूर कोई गड़बड़ बात है।

वह बोला:"बड़े भैया, दुम दबा कर क्यों भाग रहें हो, जरा बताओ तो बात क्या है? "

"नहीं भाई, उधर अब मत जाना। ओफ़, बाप रे। बहुत खूंखार जानवर है। एक दो नहीं, एक सौ सात बाघों को मार चुका है"---बाघ ने जवाब में कहा।

सियार हैरान था। वह फिर बोला:"बात क्या है ? वह कौन सा जानवर है? आओ देखें तो सही? "

"नहीं , नहीं , अब मुझे उधर नहीं जाना है"--- बाघ ने साफ़ शब्दों में कह दिया

लेकिन सियार ने उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा:"अहा, इतना घबराते क्यों हो? चलो, चल कर देखा ही जाए। तुम से नहीं बना तो मैं हूं ना। मुझसे सभी डरते हैं, यहां तक आदमी भी, देखना चाहते हो? "

कुछ ही दूरी पर पगडंडी से कई आदमी जा रहे थे, सियार बोल उठा:"--- हुंआं हुंआं ---"

लोगों ने आंखें फेर कर देखा:अरे बाप रे, यह तो एक बाघ है।

फिर क्या था, जिससे जहां बना वह वहां भाग गया।

सियार बोला :"देखा न, कितना डरते हैं। सभी मेरे डर से भाग खड़े हुए।"

बाघ ने देखा, बात तो सच है। सो वह सियार के साथ चलने के लिए तैयार हो गया।

सियार बोला:"मुझे अपनी पीठ पर चढ़ा लो, तो तुम्हें किसी बात का डर नहीं रहेगा।"

अंत में दोनों हिरण के पास जा पहुंचे।

दूर से ही उन्हें देखकर हिरण के होश उड़ गए। उसने मन ही मन सोचा, अरे अब तो बचना मुश्किल है, बाघ फिर आ गया है।

फिर पीठ पर सियार को देखकर उसे मामला थोड़ा समझ में आया। वह बड़े जोर से चिल्लाया।

"वाह, वाह, शाबाश भानजे। शाबाश। हां, तुमने अपना वादा पूरा कर ही दिया। सुबह कहा था कि जैसे भी हो एक बाघ पकड़ लाना है। तो अच्छा मोटा ताजा बाघ ले लाए हो। मैं बहुत खुश हुआ हूं। और लाए भी हो नाश्ते के ऐन वक्त पर। अच्छी बात है, अच्छी बात है।"

ऐसा सुनते ही, बाघ के होश उड़ गए, और वहां से फिर भागने लगा, जाते वक्त वह सियार को भी साथ ले गया, लेकिन इस बार उसे पीठ पर नहीं, अपने मुंह से खींचते हुए।

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