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    जिनपिंग के भारत दौरे से चीनियों को मजबूत रिश्ते की उम्मीद
    2014-09-16 14:33:18 cri

    अनिल आजाद पांडेय मंगलवार, 16 सितंबर 2014

    कितने करीब आएंगे दोनों देश?

    चीन बड़ी उत्सुकता से भारत की नरेंद्र मोदी सरकार के कामकाज पर निगाहें गड़ाए हुए है। एक चाय बेचने वाले के देश का प्रधानमंत्री बनने की कहानी चीनी लोगों की जुबान पर है।

    जापान दौरे पर नरेंद्र मोदी और शिंजो अबे के बीच जो घनिष्ठता दिखी, उसे चीनी लोग चुनौती के तौर पर नहीं लेते। उन्हें उम्मीद है कि मोदी और जिनपिंग की मुलाकात दोनों देशों के रिश्ते को और बेहतर बनाएगी।

    1962 के भारत-चीन युद्ध पर चीन में बेहद कम बात होती है। सीमा विवाद में भी लोगों को ज्यादा रुचि नहीं है। इसमें भी पीढ़ियों का अंतर दिखता है। उम्रदराज लोग सीमा विवाद पर चर्चा जरूर कर लेते हैं, मगर युवा पीढ़ी इससे आगे बढ़ते हुए विकास और व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने पर जोर देती है।

    चीनी विश्वविद्यालय की छात्रा श्याओ ली कहती हैं कि भारत और चीन भले ही पड़ोसी हैं, मगर एक-दूसरे के बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। बुधवार को होने वाला राष्ट्रपति शी जिनपिंग का भारत दौरा रिश्तों को प्रगाढ़ बनाने और एक-दूसरे को समझने और जानने का बढ़िया मौका है।

    युवाओं को सीमा विवाद में नहीं है रुचि

    लोग चाहते हैं कि चीन और भारत के बीच व्यापार बढ़े । इसका लाभ दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को होगा। हालांकि श्याओ ली भारत और जापान के बीच बढ़ रही नजदीकियों को चीन के लिए चिंता का सबब बताती हैं।

    वहीं राजनीति में दिलचस्पी नहीं रखने वाली मंग कहती हैं कि किताबों में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद पढ़ा है। उम्मीद करती हूं कि विवाद जल्द से जल्द सुलझे। वह कहती हैं कि मुझे तो बॉलीवुड फिल्में अच्छी लगती हैं, थ्री ईडियट्स भी कई बार देखी है। योग में भी रुचि है। मौका मिला तो वह ताजमहल देखने भारत जरूर जाना चाहेंगी।

    वहीं एक युवा श्वे फंग का मानना है कि चीन को भारत की रेलवे परियोजनाओं में मदद करनी चाहिए। मैंने टीवी पर देखा है कि भारत में ट्रेनों की हालत बहुत खराब है। लोग ट्रेन की छत पर भी सफर करते हैं।

    बुजुर्ग सुंग कहते हैं कि उन्हें 1962 के युद्ध के बारे में पता है। युद्ध से किसी को फायदा नहीं होता। भलाई इसी में है कि भारत और चीन एकजुट होकर काम करें। जिससे दुनिया को एशिया का लोहा मानना पड़ेगा।

    'मोदी में है दम'

    चीनी लोग मोदी को राष्ट्रवादी नेता के तौर पर देखते हैं। उन्हें लगता है कि वह सीमा विवाद को हल करने की दिशा में पहल कर सकते हैं। वे यह भी मानते हैं कि मोदी भारत की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के काबिल हैं।

    यदि भारत आर्थिक दृष्टि से मजबूत हुआ तो चीनी कंपनियों को भी फायदा मिलेगा। मोदी के गुजरात मॉडल से भी चीनी जनता प्रभावित है। भारत के संघीय ढांचे को देखते हुए लोगों को संदेह है कि मोदी गुजरात मॉडल को देश भर में पूरी तरह लागू कर पाएंगे।

    भारी निवेश की संभावना

    चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा दोनों देशों के संबंधों के लिहाज से बहुत अहम होने वाली है। इस दौरे पर चीनी विशेषज्ञों, कॉरपोरेट जगत और मीडिया की भी नजरें टिकी हैं।

    शी जिनपिंग और चीन गुजरात के विकास मॉडल से कितना प्रभावित है, इसकी बानगी मोदी के जन्मदिन पर चीनी राष्ट्रपति के अहमदाबाद जाने से भी मिलती है। विश्व में सबसे अधिक 4 ट्रिलियन डॉलर का फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व रखने वाले चीन की नजर भारत में निवेश बढ़ाने पर है।

    चीनी मीडिया बता रहा व्यापार केंद्रित यात्रा

    विशेषज्ञों के मुताबिक चीन सरकार भारत में रेलवे, ऊर्जा, विनिर्माण, हाईवे, पोर्ट्स, टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में बड़ा निवेश कर सकती है। भारत में मौजूद चीन के विभिन्न राजनयिकों के बयानों से भी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

    भले ही जापान को मुंबई से अहमदाबाद के बीच बुलेट ट्रेन का प्रोजेक्ट मिल गया हो। पर चीन की नजर भारत की दूसरी रेल परियोजनाओं पर है। जिसमें सेमी हाई स्पीड ट्रेनों का निर्माण और संचालन शामिल है।

    चीनी मीडिया सीमा विवाद के बजाय इस यात्रा को व्यापार केंद्रित बता रहा है। चीन भारत में हाई स्पीड ट्रेनों के संचालन और निर्माण के क्षेत्र में निवेश करने का इच्छुक है।

    चीनी मीडिया के अनुसार भारत की पुरानी रेल प्रणाली को आधुनिक बनाने में चीन सहयोग करने को तैयार है। चीन विनिर्माण के साथ-साथ बड़ी मात्रा में वित्तीय मदद भी दे सकता है। इसके साथ ही औद्योगिक पार्कों की स्थापना पर भी चीन सरकार की नजर है। चीनी व्यापारियों को उम्मीद है कि भारत में उनके लिए काम करना पहले से आसान होगा।

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