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    फ़ा श्यान
    2014-09-10 15:19:59 cri

    बाद में फ़ा श्यान एक व्यापारिक पानी जहाज से श्रीलंका पहुंचा। वहां वह दो वर्ष रहा और उसने अनेक अनेक बौद्ध सूत्रों की प्रतिलिपियां तैयार कीं। वहां उसने चीन में निर्मित एक सफेद रेशम का पंखा देखा, जिसे किसी व्यापारी ने एक बौद्ध विशर को भेंट किया था। इससे सिद्ध हो गया कि उस समय चीन और श्रीलंका के बीच समुद्रमार्ग से व्यापार होता था।

    जावा के रास्ते चीन लौटने के बाद फ़ा श्यान ने उन ग्रंथों का अनुवाद शुरु किया, जिन्हें वह अपने साथ लाया था। एक भारतीय भिक्षु की मदद से महा संधिक विनय का अनुवाद किया। इस ग्रंथ में चैत्यानु शासन के नियमों के अलावा, पर्याप्त साहित्यिक मूल्यवाले अनेक आख्यान भी दिये गए थे।

    फ़ा श्यान की पुस्तक के अन्त में एक अन्य भिक्षु ने एक पश्चलेख लिखा है। जिस में कहा गया है कि जह कभी फ़ा श्यान अपनी यात्रा के जोखिमों को याद करता था, तो उस के रोंगटे खड़े हो जाते थे। ये सभी जोखिम वह इसलिए उसा सवा था, क्योंकि वह अपने इरादे का पक्का था।

    उस भिक्षु ने यह भी लिखा है कि फ़ा श्यान एक निरभिमानी , शालीन औऱ सच्चा व्यक्ति था। फैलादी संकल्प और अप्रतिम निष्ठा, फ़ा श्यान के चरित्र की दो प्रमुख विशेषताएं थीं। इस के बिना वह इतने मूल्यवान और तथ्यपूर्ण ग्रंथ की रचना नहीं कर सकता था।

    फ़ा श्यान का नाम चीन भारत और चीन श्रीलंका मैत्री के इतिहास के साथ हमेशा जुड़ा रहेगा।


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