गायक यह गाते रहे हैं, जहां फूल नहीं है, शांग्री-ला फूल ही है । जहां शराब नहीं है, शांग्री-ला हमारा स्वादिष्ट शराब ही है । और जब गीत व कविता भी नहीं है, तो शांग्री-ला हमारे दिल में गीत कविता ही है ।
शांग्री-ला में असाधारण प्राकृतिक दृश्य दिखता रहा है । लेकिन इस नगर में भिन्न भिन्न तिब्बती शैली होटल और आश्रय पर पर्यटकों का अधिक ध्यान आकर्षित किया जा रहा है । वहां के होटलों की वास्तुकला की आधुनिक शैली के बजाये पारंपरिक ही है । होटल के मकानों पर पारंपरिक रंग, धर्म टोटेम और फूल, कीट, पशु और बादल आदि की चित्रों से की सजावट दिखती रही है । इसमें एक मिसाल है नगर के उत्तर में स्थित त्सेतान वांगमू आश्रय । इस होटल के मालिक लारूं ने बताया कि उन्हों ने पर्यटकों को शुद्ध तिब्बती शैली दिखाने के विचार में यह होटल खोला और होटल का नाम उन की बेटी का नाम ही है । उन्हों ने कहा,"हमारे प्रांत के लीच्यांग और ताली आदि शहरों में अनेक जातीय शैली वाले होटलों की स्थापना की गयी है । लेकिन हमारे नगर में ऐसे होटल कम है । अधिकांश होटल की शैली आधुनिक है, इसलिए मैंने एक परंपरागत शैली वाले होटल का संचालन करना चाहा ।"
लारूं के विचार में शांग्री-ला की यात्रा करने वाले पर्यटकों को वहां की तिब्बती शैली संस्कृति की जानकारियां प्राप्त करनी चाहिये । लारूं की अपनी तीन मंजिला इमारत है । उन्हों ने अपनी इमारत को एक होम होटल बनाया । लेकिन उन्हों ने अपने होटल को एक आधुनिक होटल नहीं बनाना चाहा । लारूं ने युननान प्रांत में जो जातीय विशेषता वाले तीर्थस्थल देखा है, उन के मुताबिक अपने होटल की सजावट करने पर सोचा । लेकिन होटल खोलते समय लारूं के पास पूंजी का अभाव पड़ता था । होटल की सुसजावट के लिये डिजाइन करवाने और फर्नीचर खरीदने में बड़ी मात्रा वाली पूंजी चाहिये । ये सब सिरदर्द सवाल रहे । लारूं ने कहा,"उस समय डिजाइनिंग का फीस बहुत महंगा था जो मैं नहीं उठा सकता था । इसलिये मुझे मजदूर के साथ-साथ काम करना पड़ा । हमने खुद डिजाइनिंग का काम किया और हमारे क्षेत्र की सस्ती सामग्रियां खरीदीं । उस समय पूंजी के अभाव ग्रस्त रहे, इसलिए मैं ने बैंक से बीस लाख युवान का ऋण लिया और मेरे रिश्तेदारों व मित्रों से पैसे उधार लिये । लेकिन गत वर्ष के अंत तक मैं ने सभी ऋण का भुगतान समाप्त किया है ।"
लारूं ने बैंक और दोस्तों के समर्थन के जरिये अपने होटल की डिजाइनिंग और सजावट का काम समाप्त किया । लेकिन पर्यटकों को लारूं के होटल की तिब्बती शैली पसंद है । बहुत से पर्यटकों ने उन के होटल में रहने चुने । लारूं को होटल के संचालन में संतोषजनक मुनाफा प्राप्त हुआ । केवल चार पाँच सालों के भीतर उन्हों ने सभी ऋण का भुगतान कर दिया है ।
लारूं के होटल में तिब्बत की सांस्कृतिक शैली वाले थांगका, काले मिट्टी के बर्तन आदि से सजावट दिखती है जो सब देश में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत माने जाते हैं । होटल के कमरे में भी आधुनिक शैली दिखने के बजाये लकड़ी और पत्थर से सजाये गये प्राचीन काल की शैली नजर आती है । ताला और नल आदि सब पुरानी शैली के हैं । और होटल में प्रस्तुत भोजन में भी तिब्बती, हान और आधुनिक तरह तरह के होते हैं । पर्यटक अपनी मर्जी से भोजन मांग सकते हैं । होटल के एक सेवक ने बताया,"हमारे होटल के भोजनालय में मक्खन चाय, जौ का आटा, ब्रेड, आमलेट, दूध , खिचड़ी और फल आदि सब मिलते हैं । चाय में अतिथि अपनी मर्जी से या चीनी, या नमक, या मसाला डाल सकते हैं ।"
आजकल शांग्री-ला में अनेक तिब्बती शैली होटल खोले हुए हैं । और इन होटलों की अपनी अपनी विशेषताएं दिखती रही हैं । इन होटलों की स्थापना से शांग्री-ला शहर का विशेष आकर्षण फैलाया जा रहा है ।
शांग्री-ला शहर का संक्षिप्त परिचय
तिब्बत हमेशा विश्व के पर्यटकों को आकर्षित किया जा रहा है । सन 1933 में ब्रिटेन के लेखक जैम्स हील्टन का उपन्यास लॉस्ट हॉरिज़न प्रकाशित हुआ जो चीन के तिब्बत के पर्वतों में स्थित एक शांत और सुन्दर घाटी शांगरी-ला का वर्णन करता था । इसी उपन्यास में शांगरी-ला में रहने वाले लोग अपने जीवन में शांति, स्वच्छता और दर्शनशास्त्र की खुशियां उठाते रहे । शांगरी-ला इस तरह लाखों हजारों पर्यटकों के दिल में एक पवित्र तीर्थस्थल बना रहा है ।
सन 1995 में चीन के यूननान प्रांत के जूंग-त्यैन काउटी के स्थानीय सरकार ने अपने यहां शांगरी-ला के नाम से पर्यटन उद्योग का खूब विकास किया । वास्तव में शांगरी-ला केवल एक ब्रिटिश साहित्यकार के उपन्यास में वर्णित किया गया स्थल है । लेकिन जूंग-त्यैन काउटी ने अपना नाम भी शांगरी-ला के रूप में बदल किया और इस मशहूर टाइटल से बहुत से देशी विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया ।
वर्ष 2014 तक शांगरी-ला शहर का क्षेत्रफल 11613 वर्ग किलोमीटर विशाल है । उस की जनसंख्या 175,000 होती है । वहां के नागरिकों में तिब्बती, हान, नाशी, ई और पाई आदि दसेक जातियां रहती हैं । प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र को केंद्र सरकार के शासन में रखा गया था । सन 1956 में सरकार ने तीछींग तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर स्थापित किया था तब जूंग-त्यैन काउटी इस स्टेट के केंद्र में रहा था । सन 2001 में केंद्र सरकार ने औपचारिक तौर पर जूंग-त्यैन काउटी का नाम शांगरी-ला के रूप में बदलने की पुष्टि की । और तीन साल बाद इसे एक शहर बनाया गया ।
शांगरी-ला शहर में अनेक सुन्दर नदियां और झीलें प्राप्त हैं । शहर में बर्फ़ीले पहाड़, घाटी, पठार, जंगल और घास मैदान आदि सुंदर प्राकृतिक दृश्यों से भरे हुए हैं । लेकिन सरकार के प्रयासों से यहां लोगों का जीवन भी सुखमय है ।
( हूमिन )