चीन के तिब्बती बहुसंख्यक क्षेत्रों में महाकाव्य गेसार संस्कृति का जोरों पर संरक्षण किया जा रहा है । हाल ही में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के पुस्तकालय ने उत्तरी तिब्बत में राजा गेसार से जुड़े कथा वाचकों के 36 ओडियो रिकोर्डिंग तैयार किये हैं जिनकी कुल अवधि 1022 घंटे हैं। हाल में इन रिकोर्डिंगों को राष्ट्र स्तरीय स्वीकृति मिली है।
राजा गेसार विश्व में सबसे लम्बा एतिहासिक महाकाव्य है। वह तिब्बती जाति की लोक संस्कृति और मौखिक कहानी कला का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। राजा गेसार का लम्बा इतिहास, महान ढांचा और प्रचुर विषय है जिसे वीरगाथा की कविता मानी जाती है। महाकाव्य राजा गेसार तिब्बती जाति की प्रथाओं, कविताओं और कहावतों के आधार पर रचित कविता है जो पुरानी तिब्बती जाति की संस्कृति की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि मानी जाती है। वर्ष 2009 में राजा गेसार महाकाव्य विश्व की गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की नामसूची में शामिल की गई है।
महाकाव्य राजा गेसार की संस्कृति पूरे तिब्बती बहुसंख्यक क्षेत्रों में प्रचलित है । उत्तर पश्चमी चीन के छींगहाई प्रांत के गोलोक क्षेत्र में महाकाव्य राजा गेसार की संस्कृति का भी बहुत प्रसार होता है । गोलोक क्षेत्र में गेसार संस्कृति अनुसंधान केंद्र, गेसार संग्रहालय, पुस्तकालय स्थापित होने के सिवा राजा गेसार महाकाव्य गाने वाला दूरवूद गांव भी सुरक्षित है । गांव में हरेक आदमी, चाहे वह बुजुर्ग है या युवक, सब राजा गेसार गा सकता है । गोलोक स्टेट के सांस्कृतिक विभाग के उप प्रधान त्सोगी दोर्जे ने कहा, "हमारे गोलोक क्षेत्र में गेसार संस्कृति का अच्छी तरह संरक्षण किया गया है । क्योंकि हमारे यहां सभी लोग गेसार संस्कृति के संरक्षण में भाग लिया है । महाकाव्य राजा गेसार में अनेक बार अनेमाछीन पर्वत और पीली नदी के जन्म स्थल आदि की चर्चा की जाती है जो सब गोलोक क्षेत्र में स्थित है । इस का मतलब है कि गोलोक क्षेत्र महाकाव्य राजा गेसार का जन्म स्थल है । इसलिए हमारे यहां लोग पीढ़ी दर पीढ़ी गेसार गाते रहते हैं और उन के विचार में गेसार अपना पूर्वज है और उन्हें गेसार की संस्कृति भी पसंद है ।"
विश्व में सबसे लम्बे मौखिक ऐतिहासिक महाकाव्य के रुप में राजा गेसार को विरासत में ग्रहण करते हुए उसका विकास पीढ़ी दर पीढ़ी तिब्बती लोगों की जुबानों से किया जाता है। गायन वाचन कला के रुप में राजा गेसार का इतिहास अब तक एक हज़ार से अधिक वर्ष पुराना है।
मानव जाति के इस मूल्यवान गैर-भौतिक सांस्कृतिक अवशेष के कारगर बचाव के लिए तिब्बत पुस्तकालय ने उत्तर तिब्बती क्षेत्र स्थित नाछ्यु प्रिफेक्चर के 14 कथा वाचकों को आमंत्रित किया। उन्होंने इधर के वर्षों में कुल 1022 घंटे के 36 ओडियो रिकोर्डिंग तैयार किये। बाद में इन रिकोर्डिंग को नागरिकों के लिए सार्वजनिक किया जाएगा।
महाकाव्य में यह वर्णित किया गया है कि राजा गेसार ने आदमखोर राक्षसों और दानवों को खत्म किया और लोगों को सुखमय जीवन दिलाया । तिब्बती जाति के लोगों ने राजा गेसार की कहानियों से अनेक सांस्कृतिक अभिनय और नाटक भी बनाये हैं । केंद्र व स्थानीय सरकार ने भी राजा गेसार की संस्कृति का दीर्घकाल तक संरक्षण किया है । त्सोगी दोर्जे ने कहा,"गोलोक क्षेत्र में गेसार संस्कृति का बहुत प्रसार होता है । सन 1980 के दशक में ही सरकार ने गेसार संस्कृति का संरक्षण करने के लिए एक विशेष कार्यालय स्थापित किया था और इसे आज गेसार संस्कृति केंद्र बनाया गया है । हम ने गेसार गाने के दो सौ कलाकारों का प्रशिक्षण किया है । वे सब गेसार संस्कृति के श्रेष्ठ वारिस की नामसूची में शामिल हैं ।"
इन में जामत्सान ने 18 साल की उम्र से ही गेसार की कहानी लिखना शुरू किया । अभी तक उन्हों ने कुल 30 से अधिक पुस्तकें समाप्त की हैं । राष्ट्रीय गैर-भौतिक विरासत का वारिस बनने के बाद जामत्सान अपने अधिक समय को गेसार संस्कृति के प्रसार में डाल सकते हैं । उन्हों ने कहा, "पहले मैं ने दूसरे लोगों की मांग से लिखे थे । आज मैं सरकार की सहायता में पुस्तकों का प्रकाशन कर सकता हूं । राजा गेसार कहानियों की कुल 120 पुस्तकें हैं । मैं उन सब का प्रकाशन करना चाहता हूं । पुस्तक लिखने के सिवा मैं कभी कभी स्कूल में बच्चों को राजा गेसार की कहानियां सुनाने जाता हूं ।"
जामत्सान के घर में उन के 9 वर्षीय पोता भी राजा गेसार की कहानी सुना सकता है । सांस्कृतिक संरक्षण शिक्षा से आधारित है । गोलोक क्षेत्र की सरकार ने सांस्कृतिक विरासत के ग्रहण को जोर देने की नीति अपनाना शुरू किया । इस क्षेत्र के स्कूलों में छात्र गेसार की कहानियां सीखते रहे हैं और विभिन्न सांस्कृतिक मंडलों ने भी अपने प्रदर्शन में राजा गेसार का तत्व शामिल करा दिया है ।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2017 के मार्च में गोलोक स्टेट में गेसार संस्कृति के संरक्षण का विशेष क्षेत्र स्थापित करने की पुष्टि की । त्सोगी दोर्जे ने कहा,"विशेष क्षेत्र स्थापित करने से गेसार संस्कृति का पूर्ण रूप से संरक्षण किया जा रहा है । सांस्कृतिक संरक्षण करने के साथ-साथ इस का विरासत के रूप में ग्रहण करना चाहिये । हम अभी जो कोशिश कर रहे हैं कि बुजुर्ग कलाकारों का अच्छी तरक्ष संरक्षण हो रहा है । सरकार के समर्थन से कलाकारों का प्रशिक्षण किया जाएगा । सांस्कृतिक संरक्षण करने में इस का वातावरण को बनाये रखना चाहिये । इसलिए हमें इसी के संदर्भ में भी अधिक प्रयास करना पड़ेगा ।"
वर्ष 2016 में गोलोक स्टेट के 32 तिब्बती बच्चों से गठित बालक गायक-मंडल ने पेइचिंग के जन बृहत्त भवन में राजा गेसार का गीत सुनाया । गोलोक के प्रथम जातीय प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका वान छून श्यांग ने इस बात की चर्चा करते हुए कहा,"हमारे स्टेट के सांस्कृतिक विभाग ने गेसार संस्कृति के संरक्षण के लिए एक बालक गायक-मंडल भी स्थापित किया है । मंडल में शामिल बच्चों की उम्र 8 से 11 साल तक रही है । हम बच्चों से ही गेसार संस्कृति का प्रसार कर रहे हैं ।"
महाकाव्य राजा गेसार का प्रसार मंगोलिया, रूस, भारत, पाकिस्तान, नेपाल और भूतान आदि देशों में भी किया जाता है । गोलोक स्टेट ने गेसार संस्कृति के जरिये दूसरे देशों के साथ सांस्कृतिक आदान प्रदान करने की योजना बनायी है । स्टेट के प्रसारण विभाग के प्रधान चांग शिन वेन ने कहा, "एक पट्टी एक मार्ग के निर्माण से गेसार संस्कृति का प्रसार दूसरे क्षेत्रों में भी विस्तृत हो जाएगा । क्योंकि इतिहास में गेसार संस्कृति के दूसरे देशों के साथ संबंध बनाये हुए थे । यह गोलोक स्टेटे के लिए सांस्कृतिक विकास करने की बड़ी संभावना होगी ।"
वास्तव में गेसार संस्कृति जातीयों के बीच सांस्कृतिक आवाजाही का प्रतीक होता है । सांस्कृतिक संरक्षण तथा विरासत के रूप में ग्रहण करने के जरिये राजा गेसार की संस्कृति को गोलोक और दूसरे क्षेत्रों में आदान प्रदान करने का मंच बनाया गया है ।
महाकाव्य राजा गेसार
चीन के तिब्बत क्षेत्र में राजा गेसार का महाकाव्य सुनाना एक विशेष कलात्मक प्रदर्शन है ।
यूरोप के प्राचीन काल में जन्म होमर महाकाव्य (Homeric epics) विश्व प्रसिद्ध माना जाता है । यूनानी कवि होमर ने इस महाकाव्य का लेखन किया था और विश्व साहित्य का यह रत्न प्राचीन काल से आज तक फैल गया । चीन के तिब्बत क्षेत्र में भी एक ऐसा महाकाव्य है जिस का नाम है राजा गेसार (King Gesar)। राजा गेसार होमर महाकाव्य से भी लम्बा है, राजा गेसार सुनाने वाले कलाकार कभी कभी कई दिनों के लिए इस का गाना गा सकते हैं ।
प्राचीन काल में अनेक देशों में काव्य गाने का व्यवसाय होता था । यूरोप में ट्रोबादूर (troubadour) रहता था, भारत में आज भी हाथ में खुरदल (Khurtal) नामक संगीत उपकरण लिए रामलीला गाते हुए मांगरिया दिखते है ।
राजा गेसार की कहानी हमेशा तिब्बती भाषा में सुनायी जाती है , और आम लोगों के लिए महाकाव्य के गाने का अर्थ समझने में मुश्किल नहीं है । जब राजा गेसार 13 साल के थे, तब उन्हें पड़ोसी देश के दबाव से पहाड़ों में रहने जाना पड़ा था। इसके बाद भगवान ने उन्हें पड़ोसी देश के घोड़ प्रतियोगिता में भाग लेने दिया और राजा गेसार ने इसमें अपना सिंहासन जीता ।
सुनाया जाता है कि राजा गेसार 11वीं शताब्दी में आये एक महादेव थे । अपनी महान चरित्र से राजा गेसार को जनता का प्यार प्राप्त था । महाकाव्य राजा गेसार उन की पूरी आपबीती का वर्णन करने की एक रचना है । महाकाव्य राजा गेसार दो करोड़ शब्दों से गठित है जो विश्व का सबसे लम्बा महाकाव्य है । महाकाव्य राजा गेसार तिब्बती जातीय संस्कृति का जीवित जीवाश्म माना जाता है । वर्ष 2009 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने महाकाव्य राजा गेसार को मानव की सांस्कृतिक विरासत की सूची में शामिल कराया ।
महाकाव्य राजा गेसार में तिब्बती जाति के इतिहास, कविता, मिथक, नीतिवचन और दंत कथा इत्यादि सब शामिल हैं । वास्तव में महाकाव्य राजा गेसार तिब्बती संस्कृति का विश्वकोश बताया जा सकता है । लेकिन महाकाव्य सिखाने का तरीका आम तौर पर ऐसा होता था यानी एक प्रशिक्षु अपने मास्टर से सीखता रहा था । आज महाकाव्य सीखने के प्रशिक्षु कम हो गये हैं । सन 1980 के दशक से ही तिब्बती स्वायत्त प्रदेश की सरकार ने महाकाव्य राजा गेसार को बचाने के लिए भारी शक्ति डाली । विशेषज्ञों ने लेखन और वीडियो के जरिये इस महाकाव्य का अभिलेख कर दिया । साथ ही सरकार जवानों को महाकाव्य राजा गेसार सीखने और इस कलात्मक काम में लगने के लिए प्रोत्साहित करती है ।
वर्ष 2014 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के नाग्छू प्रिफेक्चर में महाकाव्य राजा गेसार कलात्मक अड्डा स्थापित हुआ । नाग्छू प्रिफेक्चर के तहत सभी काउटियों में प्रति वर्ष घोड़ दौड़ उत्सव का आयोजन किया जा रहा है । उत्सव में राजा गेसार सुनाने वाला प्रदर्शन लोकप्रिय हैं । राजा गेसार की कहानी हमेशा से प्रचलित रहेगी ।
( हूमिन )