इधर के सालों में अंतर्राष्ट्रीय उच्च शिक्षण संस्थानों में भारतीय विश्वविद्यालयों का स्तर ऊंचा होता जा रहा है। 15 मार्च को जारी एशियाई विश्वविद्यालयों की सूची से जाहिर है कि हालांकि भारतीय विश्वविद्यालयों की सबसे अच्छी श्रेणी 27वें स्थान पर रही, फिर भी कई विश्वविद्यालयों ने इस सूची में जगह बनाई, जिन्होंने लोगों पर गहरी छाप छोड़ी है।
गत वर्ष एशिया के सबसे श्रेष्ठ 200 विश्वविद्यालयों में 16 भारतीय हैं। लेकिन इस साल के एशिया के सब से श्रेष्ठ 300 विश्वविद्यालयों में 33 भारतीय शिक्षण संस्थान हैं। भारत जापान व चीन के बाद इस सूची में सबसे अधिक शामिल होने वाला देश बन चुका है।
अमेरिकी पत्रिका फोर्ब्स की वेबसाइट ने हाल में एक लेख जारी कर कहा कि अगला सुपर शिक्षा देश एशिया में होगा। लेकिन चीन, सिंगापुर, जापान व दक्षिण कोरिया ने पश्चिमी शिक्षा संस्था की जगह लेने की तैयारी नहीं की है। जबकि भारत पश्चिमी शिक्षा संस्था की जगह लेने का सबसे अच्छा देश है।
लेख में कहा गया कि हालांकि एशिया में पहले 20 श्रेष्ठ विश्वविद्यालय सिंगापुर, चीन की मुख्यभूमि, जापान, दक्षिण कोरिया और चीन के हांगकांग में हैं, लेकिन भारत के विश्वविद्यालय इसमें शामिल होने की कोशिश कर रहे हैं।
निसंदेह 1947 भारत में स्वतंत्रता पाने के बाद भारत का अर्थतंत्र मंदी में रहा, लेकिन इधर के सालों में इस स्थिति में भारी बदलाव आया है। पिछले 20 सालों में भारत में औसत आर्थिक वृद्धि दर 7 प्रतिशत रही है और 2014 में वृद्धि दर चीन के भी अधिक थी। भारत का कुल आर्थिक पैमाना विश्व के सातवें स्थान पर रहा। भारत में बड़े पैमाने वाली युवा आबादी भी है। अनुमान है कि दस सालों के बाद भारत विश्व की तीसरी बड़ी आर्थिक इकाई बन सकेगा। 2030 में भारत की आबादी भी चीन के पार कर विश्व के प्रथम स्थान पर पहुंचेगी।
भारत में विश्वविद्यालयों के पुनरुत्थान से भारत को विश्व की सबसे अहम आर्थिक इकाई बनने को मदद दी जा सकेगी।
लेख में यह भी कहा गया कि पहले पश्चिमी डिग्री पाने के लिए कई भारतीय छात्र अमेरिका व ब्रिटेन के विश्वविद्यालय में पढ़ने जाते थे। आंकड़े बताते हैं कि अमेरिका में पढ़ने वाले अंतर्राष्ट्रीय छात्रों में हर सात छात्रों में एक भारतीय छात्र होता है। 2015 से 2016 तक अमेरिकी विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 165918 तक पहुंची,जो दस सालों से पहले की तुलना में दोगुनी से अधिक थी।
और कड़े वीज़ा प्रतिबंधों की वजह से इधर के सालों में ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में पढ़ने गये भारतीय छात्रों की संख्या में कुछ कमी आयी है, फिर भी भारतीय छात्र अभी भी ब्रिटिश उच्च शिक्षालयों में प्रमुख विदेशी छात्रों के स्रोतों में से एक है। भारत में विश्वविद्यालयों की गुणवत्ता की बढ़ने के साथ साथ भारतीय छात्रों पर पश्चिमी देशों के प्रति अधिक आकर्षण नहीं रहेगा।