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    प्राचीन तिब्बत में गू-ग राजवंश और "शुन नृत्य"
    2017-05-21 14:53:57 cri

     

    प्राचीन काल में तिब्बती पठार पर भी अलग अलग राजवंश मौजूद थे । दसवीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी तक तिब्बती पठार के पश्चिम में गू-ग राजवंश स्थित हुआ जिसका तिब्बत के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था । सात सौ का इतिहास प्राप्त गू-ग राजवंश क्यों एकदम लुप्त हुआ था और इस राज्य के एक लाख से अधिक लोग कहां गायब हुए थे ?इससब का जवाब देने के लिए विश्व के सांस्कृतिक विद्वानों ने अथक प्रयास किया ।

    आज तिब्बती पठार के पश्चिम में स्थित नाग्री क्षेत्र में गू-ग राजवंश का अवशेष सुरक्षित हैं । पुरातत्व विशेषज्ञों ने गू-ग राजवंश के अवशेषों में सांस्कृतिक खजाने की खुदाई करना जारी कर दिया है । पर गू-ग राजवंश के कुछ जीवित सांस्कृतिक विरासत आज भी मौजूद है और सरकार ने इस की बहाली के लिए भी भारी शक्ति लगायी है । उनमें से एक है"शुन नृत्य"।

    प्राचीन काल में गू-ग राजवंश के महल में"शुन नृत्य"का बहुत स्वागत किया गया था । लेकिन आज लोग सिर्फ अवशेषों के भित्ति-चित्र पर"शुन नृत्य"देख पाते हैं । नाग्री प्रिफेक्चर के सांस्कृतिक विभाग के प्रधान नान्गा दोर्गी ने कहा कि"शुन नृत्य"के 13 अंक होते है जो इस कला का कोर माना जाता है ।"शुन नृत्य"का हजार साल का इतिहास है । सुनाया जाता है कि प्राचीन काल में राजकुमार का जन्म होते समय ऐसे नृत्य का प्रदर्शन किया जाता था । और दूसरी कहानी है कि तिब्बत के आदिम धर्म"बोन"के साधु जभी प्रार्थना सुनाते थे तभी"शुन नृत्य"का प्रदर्शन किया जाता था ।

    "शुन नृत्य"विशेष परंपरागत नृत्य कला माना जा रहा है ।"शुन नृत्य"में कथा का वर्णन करने, गाना गाने और नृत्य नाचने के कई अंक शिरकत हैं । यह नृत्य आम तौर पर तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के ज़ान्दा काउंटी और मैजूकूंगर काउंटी में चलता रहता है । वर्ष 2008 के जून में चीनी राज्य परिषद ने इसे राष्ट्रीय अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की नामसूची में शामिल करा दिया है । दूसरे जातीय नृत्य कला की तुलना में"शुन नृत्य"की अपनी विशेष शैली सुरक्षित है । गू-ग राजवंश के खंडहर की भित्ति-चित्र पर आज भी दिखता है कि दस नृत्य लड़कियां"शुन नृत्य"का प्रदर्शन कर रही थीं ।

    "शुन नृत्य"में भी कथा, नाचना और गायन के तीन प्रमुख रूप शामिल हैं । इस के विषयों में धर्म, संस्कार, रीति-रिवाज और त्योहार आदि भी हैं । लेकिन गू-ग राजवंश के समय"शुन नृत्य"का प्रदर्शन सिर्फ राजा के महल में किया जाता था ।"शुन नृत्य"में प्रदर्शन में बीस से सौ नर्तकी रहते थे और"शुन नृत्य"नाचते समय बड़े व छोटे ढोल, सींग, तुरही और घड़ियाल आदि उपकरणों का प्रयोग होता था ।

    वर्ष 2008 में सरकार ने"शुन नृत्य"के संरक्षण के लिए इसे राष्ट्रीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत की नामसूची में शामिल कराया और गुरु ज़ूगा आदि कई मास्टरों को राष्ट्रीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत के वारिस नियुक्त किया । गुरु ज़ूगा तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति से पहले भूमिदास के परिवार में जन्म हुई थी । उन्हों ने कहा कि पुराने समय में तिब्बत में आम लोगों को"शुन नृत्य"नाचने का अधिकार नहीं था । आज इस नृत्य कला का विकास करने के लिए गुरु ज़ूगा युवाओं में"शुन नृत्य"का शिक्षण करने का काम कर रही हैं ।

    उन्हों ने कहा कि मुझे बचपन से ही नृत्य और गीत-संगीत सीखना पसंद है । नौजवान लोगों को गाते-नाचते देखकर मुझे बहुत खुशी हुई है ।

    ज़ूगा ने कहा कि प्राचीन काल में केवल मंदिर में बलिदान करते समय"शुन नृत्य"का प्रदर्शन किया जाता था । पहले भूमिदास के मालिकों ने भू-दास के परिवारों से लड़की चुनकर बन्द किया था और इसे जबरदस्त"शुन नृत्य"सिखाने दिया था । आज समय बदल गया है और"शुन नृत्य"का अच्छा संरक्षण किया जा रहा है ।

    नाग्री प्रिफेक्चर के सांस्कृतिक विभाग के प्रधान नान्गा दोर्गी ने कहा कि ज़ूगा जैसे बुजुर्ग कलाकारों की उम्र अधिक है और उन की शारीरिक हालत भी खराब है । इसलिए हमें युवा कलाकारों के प्रशिक्षण को जोर लगाना चाहिये ।

    वर्ष 2008 में"शुन नृत्य"को राष्ट्रीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत में शामिल कराने के बाद"शुन नृत्य"को विलुप्त होने के कगार से बचाया गया है । वर्ष 2011 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की ज़ान्दा काउंटी में देश का एक मात्र ही "शुन नृत्य" मंडल यानी ज़ान्दा लोक कला मंडल स्थापित किया गया जो विशेष तौर पर हजार वर्ष पुराने"शुन नृत्य"का विरासत के रूप में ग्रहण करता है । मंडल में 28 सदस्यों की भर्ती हुई थी पर आज सिर्फ आठ व्यक्ति सुरक्षित हुए हैं । लड़के च्यांग-छ्वो ने सन 2012 में जान्दा लोक कला मंडल में शामिल किया । उन्हों ने कहा कि"शुन नृत्य"तिब्बती जाति का खजाना है, हमें इस कला का विरासत के रूप में ग्रहण करना ही पड़ेगा ।

    मंडल की प्रधान केल्सांग डोलमा ने पहले मिडिल स्कूल में अध्यापिका का काम करती थी । पर कला मंडल की स्थापना से उन्हों ने इस मंडल का नेतृत्व करना शुरू किया । उन्हों ने कहा कि लोक कला मंडल की स्थिति काफी अच्छी नहीं है, नर्तकियों का तनख्वा केवल डेढ़ हजार युवान है । पर वे सब मेहनती से काम कर रहे हैं । उन्हों ने कहा कि"शुन नृत्य"के कलाकारों का प्रशिक्षण करना कोई आसान काम नहीं है । गुरु और नर्तकी दोनों को जीजान से काम करना ही पड़ेगा । पर अभी मंडल की स्थिति काफी संतोषजनक नहीं है । नर्तकियों की संख्या कम होने के कारण प्रदर्शन के समय दूसरे मंडल की तरफ से अभिनेता उधार लेना ही पड़ता है ।

    मंडल की प्रधान केल्सांग डोलमा की आशा है कि युवा नर्तकियों को जल्द ही"शुन नृत्य"का प्रदर्शन करने में समर्थ हो जाएगा ताकि अधिक लोगों को इस नृत्य कला का आन्द उठा सकें । पर मंडल के निर्माण के प्रति फिर भी चिन्ता मौजूद है । उन्हों ने कहा कि अब मंडल में अध्यापक और नर्तकी सब दूसरे इकाइयों से उधार लिया गया है । मंडल में स्थायी सदस्य सुरक्षित किया जाएगा ।

    "शुन नृत्य"का विकास केल्सांग डोलमा के जैसे लोगों के योगदान पर निर्भर है । साथ ही सरकारी विभाग भी"शुन नृत्य"के संरक्षण के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं । पता चला है कि नाग्री प्रिफेक्चर के संबंधित विभाग "शुन नृत्य"की सामग्रियों का ग्रहण कर रहे हैं ताकि इस मूल्यवान कला का संरक्षण किया जा सके । नाग्री प्रिफेक्चर के सांस्कृतिक विभाग के प्रधान नान्गा दोर्गी ने कहा कि हम ने"शुन नृत्य"की मौलिक सामग्रियों का संग्रह करने का वीडियो बनाया है जिस के अनुसार इस कला का आगे विकास किया जाएगा । और साथ ही हम"शुन नृत्य"की सामग्रियों की खोजने, फिनिशिंग व फाइलिंग करने तथा वारिस के प्रशिक्षण व अधिक निवेश लगाने का काम कर रहे हैं ।

    केल्सांग डोलमा ने कहा कि मेरी आशा है कि"शुन नृत्य"कला का निरंतर विकास किया जाएगा और भविष्य में लोग सिर्फ भीत्ति चित्र से नहीं, मंच पर भी"शुन नृत्य"का प्रदर्शन देख सकेंगे ।"शुन नृत्य"का विकास करने का काम काफी मुश्किल है, पर हम इसे सुरक्षित करने और आगे विकास करने का अथक प्रयास करेंगे ।

    ( हूमिन )

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