लेखक- अनिल आज़ाद पांडेय
दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश चीन प्रमुख आर्थिक शक्ति बन चुका है। हाल के वर्षों में वैश्विक मंच पर चीन की भागीदारी लगातार मजबूत हुई है। एक पट्टी-एक मार्ग योजना ने चीन की ताकत में और इजाफा किया है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की पहल पर तीन साल पहले शुरू हुई यह योजना दुनिया के तमाम देशों को आपस में जोड़ने में अहम भूमिका निभा सकती है। इस सप्ताह के आखिर में बीजिंग में एक पट्टी एक मार्ग से जुड़े सम्मेलन पर दुनिया की नज़र रहेगी। इस पहल के साकार होने पर न केवल एक पट्टी-एक मार्ग योजना में हिस्सा लेने वाले देशों का आर्थिक विकास होगा। बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के मौके भी मिलेंगे। इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद और तमाम क्षेत्रीय मुद्दों को बेहतर ढंग से हल करने में मदद मिलेगी। निश्चित तौर पर एशिया और बाहर के देशों को एक मंच पर लाने में चीन ने व्यापक पहल की है।
दरअसल चीन की इस पहल का मकसद एशिया ही नहीं बल्कि यूरोप और अफ्रीका में बुनियादी सुविधाओं का निर्माण करना है। इसके अलावा भी इसके व्यापक मायने हैं, क्योंकि इस ऐतिहासिक मार्ग के खुलने और यातायात सुगम हो जाने से आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी बढ़ेगा। इस योजना से चीन को तो लाभ होगा ही, विकास की दौड़ में पिछड़ चुके देशों की स्थिति भी बेहतर होगी। अब तक 40 से अधिक देश इस योजना में बढ़-चढ़ कर भाग लेने के इच्छुक दिखे हैं। उन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर भी किए हैं। जो चीन का मनोबल बढ़ाने के लिए काफी है। आर्थिक मंदी के इस दौर में चीन की यह महत्वाकांक्षी योजना विभिन्न देशों के लिए राहत की ख़बर भी है।
जहां तक भारत की बात है, वह इस योजना को लेकर खास उत्साहित नहीं है। भारत सरकार और संबंधित विभागों को चीन की इस योजना पर संदेह है। साफ जाहिर है कि एशिया की दो प्रमुख ताकतों के बीच आपसी विश्वास की कमी है। जिसे दूर करने के लिए दोनों ओर से कोशिशें होनी चाहिए। क्योंकि भारत के एक पट्टी-एक मार्ग पहल का हिस्सा बने बिना चीन की कोशिश उतनी सफल नहीं हो पाएगी। जबकि भारत भी इस तरह के मंचों से पीछे हटकर खुद के विकास और तरक्की को रोकने की कोशिश कर रहा है। एक पट्टी एक मार्ग अंतर्राष्ट्रीय शिखर मंच 14 से 15 मई को चीन की राजधानी बीजिंग में आयोजित होगा। जो संबंधित देशों और क्षेत्रों के साथ सहयोग आगे बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।सम्मेलन में भारत के लगभग सभी पड़ोसी देश मौजूद होंगे। लेकिन भारत की गैरमौजूदगी चीन के साथ संबंध बेहतर करने में सहायक नहीं होगी।भारत को इससे दूर रहने से कुछ लाभ भी हासिल नहीं होगा। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक तौर पर एक-दूसरे से लंबे समय से जुड़े रहे इन पड़ोसियों को हाथ मिलाना ही होगा। जानकार बार-बार कहते रहे हैं कि भारत और चीन के पास साझा करने के लिए बहुत कुछ है। इसके साथ ही सीखने के लिए भी। चीन हार्डवेयर के क्षेत्र में पावर हाउस है, जबकि भारत ने अपनी पहचान आईटी(सॉफ्टवेयर) के क्षेत्र में बनाई है। इसके अलावा भारत को आधारभूत सुविधाओं की स्थिति सुधारने में चीन जैसे देशों की जरूरत है। जिनके पास बड़ी मात्रा में फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व मौजूद है। इससे भी अधिक, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दोनों देश जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और ज्वलंत मुद्दों पर एक साथ काम कर सकते हैं।
उम्मीद की जानी चाहिए कि चीन और भारत के बीच आने वाले समय में एक पट्टी-एक मार्ग जैसी योजनाओं के जरिए सहयोग बढ़ेगा। जो एशिया की सदी को साकार करने के लिए आवश्यक है।
(अनिल आज़ाद पांडेय)