लेखक- जय प्रकाश पांडे
विकसित देश मंदी के दौर से गुजर रहे हैं, उनके सामने अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने का संकट है। ऐसे में चीन दुनिया के लिए उम्मीद की किरण बना है। खुली अर्थव्यवस्था अपनाने के बाद चीन ने जो कर दिखाया वो किसी करिश्मे से कम नहीं है। यही वजह है कि चीन की तकनीक और सामान दुनिया के बाजार में अपनी पहचान बना चुका है।
अब चीन व्यापार को अधिक प्रभावी बनाने और दुनिया के विकास में अपनी भूमिका अदा करने के लिए खुलकर सामने आया है। इसके लिए चीन ने वन बेल्ट वन रोड (ओबीओआर) को चुना है। इसके माध्यम से चीन पुराने सिल्क रोड को 21 वीं सदी के व्यापार में बदलना चाहता है। इससे 60 अधिक देशों के साथ चीन के संबंध मजबूत होंगे।
व्यापार के साथ ही एक पट्टी-एक मार्ग के माध्यम से चीन का एशिया, अफ्रीका और यूरोपीय देशों के साथ बंदरगाहों,सड़कों, रेलवे और तेल-गैस पाइप लाइनों सहित बुनियादी सुविधाओं में सुधार करने पर भी फोकस है। चीन का मनाना है कि पारस्परिक हित और पारस्परिक लाभ से पूरी दुनिया को फायदा होगा।
चीन के अलावा भारत दुनिया की उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। दोनों देशों के पास बड़ा बाजार और श्रम शक्ति भी है। एक पट्टी-एक मार्ग में शामिल होकर भारत को चीन की तकनीक का फायदा पहुंचेगा साथ ही व्यापार और निवेश में भी भागीदारी बढ़ेगी। क्षेत्रीय परिवहन, ऊर्जा सुरक्षा और नीली अर्थव्यवस्था ओबीओआर के मुख्य एजेंडे में शामिल हैं। यह भारत के लिए भी मददगार साबित हो सकते हैं। इस फोरम के माध्यम से भारत अपने स्पाइस रूट और मौसम परियोजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू कर सकता है। चीन इसमें भारत के साथ काम करने का भी इच्छुक है। मगर भारत वन बेल्ट वन रोड योजना से अभी तक दूरी बनाए हुए है।
भूटान को छोड़कर भारत के सभी पड़ोसी देश चीन की इस योजना में शामिल हैं। पाकिस्तान की बात करें तो चीन -पाकिस्तान आर्थिक कारिडोर के तहत चीन वहां कई परियोजनाओं को बना रहा है। इन परियोजनाओं की लागत करीब 54 अरब डॉलर के करीब है। इनमें पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में गहरे पानी वाले ग्वादर बंदरगाह का विस्तार प्रमुख है। इस बंदरगाह से चीन का शिन्चियांग प्रांत जुड़ जाएगा। तेल और गैस के आयात के लिए यह उपयोगी साबित होगा।
चीन की श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को विकसित करने और इसके नजदीक औद्योगिक आस्थान बनाने की भी योजना है। नेपाल ने भी ओबीओआर में शामिल होने का निर्णय लिया है। नेपाल को चीन से अपने विकास के लिए मदद की खासी उम्मीद है। इसके अलावा साउथ ईस्ट एशिया के देशों में चीन का पहले से प्रभाव है। अफ्रीकी देशों में भी चीन बड़े स्तर पर परियोजनाओं को बना रहा है।
चीन के राष्ट्रपति शी चिंगपिंग ने इस महत्वाकांक्षी विदेश नीति को साल 2013 के अंत में लागू किया। यह आधुनिक इतिहास में सबसे बड़ी विकास योजनाओं में से एक है। 14,15 मई को बीजिंग में होने वाले फोरम में इसे और गति मिलेगी। इसमें 28 देशों के नेता और 100 से ज्यादा देशों ने आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल शामिल हो रहे हैं।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
(जय प्रकाश पांडे)