लेखक- रविशंकर बसु
चीन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए "बेल्ट एंड रोड फोरम फॉर इंटरनेशनल कॉरपोरेशन" यानी "एक पट्टी एक मार्ग" अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शिखर सम्मेलन आगामी 14 से 15 मई तक पेइचिंग में आयोजन करेगा। इस साल 17 जनवरी को स्वीटरजर्लैंड के डावॉस में 47वें विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफींग जब "बेल्ट एंड रोड फोरम फॉर इंटरनेशनल कॉरपोरेशन" की घोषणा की थी तब से "बेल्ट एंड रोड फोरम" अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से ज्यादा ध्यान आकर्षित किया है। सर्वसम्मति और अधिक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बेहतर बनाने के लिए यह फोरम सबसे महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सभा होगा जैसा कि इसके थीम से पता चलता है, "आम समृद्धि के लिए सहयोग"("Cooperation for Common Prosperity")। चीन द्वारा प्रस्तुत "एक पट्टी एक मार्ग" की योजना खुलेपन और उभय जीत का मंच है। एक पट्टी एक मार्ग का निर्माण न सिर्फ़ चीन तथा इस क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिये बल्कि विश्व आर्थिक विकास के लिये भी बड़ी भूमिका अदा करेगा।
"एक पट्टी एक मार्ग" पर इस तरह केअंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी के कारण के बारे में 12वां राष्ट्रीय पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के पांचवें सत्र के दौरान 8 मार्च को एक संवाददाता सम्मेलन में चीन के विदेश मंत्री वांग ई ने कहा कि यह फोरम क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक समस्याओं का समाधान करने के लिए तरीकों का पता लगाएगा, एक दूसरे से जुड़े विकास के लिए ताजा ऊर्जा पैदा करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि इस एक पट्टी एक मार्ग में शामिल देशों के लोगों को लाभ पहुंचाए। उन्होंने कहा कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) यानी "एक पट्टी एक मार्ग" योजना सिर्फ चीन की नहीं है बल्कि चीन की इस पहल में सभी संबंधित देश भागीदार बनेंगे। इसे आगे बढ़ाने और सफलता से पूरा करने में सभी देशों को अपनी-अपनी भूमिका निभाने की जरूरत है।
गौरतलब है कि "एक पट्टी एक मार्ग" को अंग्रेजी में One Belt One Road या Belt and Road Initiative कहा जाता है, जिसका पूरा नाम रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी (Silk Road Economic Belt ) और 21वीं सदी समुद्री रेशम मार्ग (the 21st Century Maritime Silk Road) है। चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग ने वर्ष 2013 के सितंबर और अक्तूबर में क्रमशः नए रेशम मार्ग आर्थिक पट्टी और 21वीं सदी समुद्री रेशम मार्ग की रणनीतिक अवधारणा पेश की। और वर्ष 2013 ही में जब चीनी प्रधानमंत्री ली खछ्यांग ने चीन-आशियान मेले में भाग लिया, तब उन्होंने आशियान के लिए समुद्री रेशम मार्ग के निर्माण पर जोर दिया।
कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना में स्थित नजरबायेव विश्वविद्यालय में 7 सितंबर,2013 को "Promote People-to-People Friendship and Create a Better Future" शीर्षक अपने ऐतिहासिक भाषण में चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग ने सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट की अवधारणा पहली बार पेश की थी। 3 अक्तूबर 2013 को चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इंडोनेशिया के संसद में एक महत्वपूर्ण भाषण में समुद्री सहयोग को बढ़ावा देने के लिए 21वीं सदी के समुद्री सिल्क रोड के निर्माण पर स्पष्ट रूप से मार्गदर्शन दिया।
रेशम मार्ग प्राचीन चीन में शुरू होता था, जो एशिया, अफ्रिका और यूरोप को जोड़ने वाला प्राचीन वाणिज्य व व्यापारिक मार्ग था। परिवहन तरीकों के अनुसार उसे थलीय रेशम मार्ग और समुद्रीय रेशम मार्ग में विभाजित किया गया था। रेशम मार्ग पूर्व और पश्चिम के बीच आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मुख्य रास्ता है।"एक पट्टी एक मार्ग" योजना के सहयोग में पांच विषय हैं, यानी राजनीति, संस्थापन, व्यापार, वित्त और जनता की इच्छा वाले क्षेत्रों में संपर्क मज़बूत किया जाएगा। "एक पट्टी एक मार्ग" का निर्माण वहां स्थित विभिन्न देशों की समृद्धि और क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग मजबूत करने के लिए लाभदायक है। विभिन्न संस्कृतियों के बीच आदान-प्रदान और विश्व शांति व विकास बढ़ाना दुनिया के विभिन्न देशों के लोगों की भलाई करने वाला महान कार्य है। "एक पट्टी एक मार्ग" की योजना चीन की शांतिपूर्ण विकास की बुनियादी नीति पर आधारित है और इससे चीन की यह कूटनीति भी दिखाई देती है कि चीन अपने पडोसियों के साथ मित्रवत व्यवहार करता है और उन्हें अपने साथी मानता है।
18 अप्रैल को पेइचिंग में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में चीनी विदेश मंत्री वांग ई कहा कि "बेल्ट एंड रोड फोरम फॉर इंटरनेशनल कॉरपोरेशन" में 28 राष्ट्रपतियों एवं प्रधानमंत्रियों के भाग लेने की संभावना है। इनके अलावा 110 देशों से आए सरकारी अधिकारियों, विद्वानों, वित्तीय संस्थाओं और मीडिया आदि विभिन्न तबकों के प्रतिनिधियों ने भाग लेने की पुष्टि की।वांग ई के मुताबिक,चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग होने वाले "बेल्ट एंड रोड फोरम फॉर इंटरनेशनल कॉरपोरेशन" के उद्घाटन समारोह में हिस्सा लेंगे और नेताओं के राउंड टेबल शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता भी करेंगे।
यह दुर्भाग्यपूर्ण बात है किभारत ने अभी तक चीन के एक पट्टी एक मार्ग फ्लैगशिप प्रोजेक्ट में भाग लेने की हामी नहीं भरी है और होने वाले "एक पट्टी एक मार्ग" अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने की घोषणा नहीं की है। चीनी विदेश मंत्री वांग ई कहा, "एक पट्टी एक मार्ग अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शिखर मंच में हालांकि भारत का कोई नेता मौजूद नहीं रहेगा। लेकिन भारत चाहे तो अपना रिप्रेजेंटेटिव भेज सकता है।"
चीनी राष्ट्रीय विकास व सुधार कमेटी के प्रमुख ह लीफंग (He Lifeng, chairman of the National Development and Reform Commission) के अनुसार,पिछले तीन वर्षों में एक पट्टी एक मार्ग का आह्वान विश्व के 100 से ज्यादा देशों व अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की प्रतिक्रिया व समर्थन किया गया। चीन ने इस से जुड़े देशों के साथ करीब 50 सरकारी सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए।संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद और एपेक आदि ने भी अपने प्रस्तावों या दस्तावेजों में "एक पट्टी एक मार्ग" शामिल कराया है। पिछले तीन वर्षों में चीन ने "एक पट्टी एक मार्ग" से संबंधित देशों को 50 अरब अमेरिकी डॉलर का पूंजी निवेश किया, कई परियोजनाएं शुरू कीं। इसलिए यह कहा जा सकता है कि "एक पट्टी एक मार्ग" चीन के एक प्रस्ताव के बजाए एक अंतर्राष्ट्रीय कार्यसूची और बहुपक्षीय कार्रवाई भी है।
जब अधिक से अधिक देशों चीन की महत्वाकांक्षी "एक पट्टी एक मार्ग" परियोजना में शामिल हो रहे हैं,तब इस मेगाप्रोजेक्ट से भारत का दूरी रखने का मनोभाव एक प्रहेलिका (conundrum) है। "एक पट्टी एक मार्ग" चीन के राष्ट्रपति शी चिनफींग का ड्रीम प्रोजेक्ट है। शी चिनफींग ने वर्ष 2013 में "एक पट्टी एक मार्ग" का सुझाव पेश करने के दौरान यह बताया था कि चीन का विकास भी अंतर्राष्ट्रीय समाज के ढ़ांचे में होता रहा है। "एक पट्टी एक मार्ग" का मतलब है कि चीन विश्व के साथ अपने विकास के मौके को साझा करना चाहता है।
भारत खुद कोचीन द्वारा प्रस्तुत "एक पट्टी एक मार्ग" प्रस्ताव की फ्लैगशिप परियोजना से अलग रखना चाहता है तो इससे उसे वैश्विक समुदाय का समर्थन प्राप्त नहीं होगा। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स के एक लेख के अनुसार, नई दिल्ली "एक पट्टी एक मार्ग" प्रोजेक्ट पर खुला दृष्टिकोण अपनाता है तो उसे फायदा हो सकता है।(New Delhi could benefit by adopting open attitude to Belt and Road initiative ) भारत चीनी बुनियादी ढांचा उद्योग को भू-राजनैतिक प्रतिस्पर्धा के रूप में देखता है जो सही नहीं है।
ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित लेख के अनुसार, "एक पट्टी एक मार्ग" न सिर्फ भारत की आबादी, श्रम संसाधन और बाजार बल्कि दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में उसके राजनीतिक प्रभाव के लिहाज से भी अहम है। भारत के रुख का इस क्षेत्र के देशों के फैसले पर असर पड़ेगा। ग्लोबल टाइम्स में कहा गया है कि अगर भारत ऐसे समय में "एक पट्टी एक मार्ग" से खुद को अलग रखना चाहता है, जब वैश्विक समुदाय से इसे समर्थन मिल रहा है तो भारत चीन की अंतरराष्ट्रीय ख्याति को सिर्फ बढ़ते हुए ही देखेगा।
वास्तव में, "एक पट्टी एक मार्ग" परियोजना से भारत की वर्तमान अलगाव एक विरोधाभासी मानसिकता है। दरअसल, भारत चीन द्वारा प्रस्तुत बेल्ट एंड रोड कनेक्टिविटी परियोजना को एशिया, यूरोप और अफ्रीका में अपने प्रभाव को मजबूत करने के लिए लिए चीन के एक हथियार के रूप में देखता है। यह यथार्थ रूप से कहा जा सकता है कि भारत राजनयिक रूप से चिंताग्रस्त है कि "एक पट्टी एक मार्ग" परियोजना के ढांचे के तहत चीन एशिया में भारत के प्रभाव को ढीला कर सकता है। यह वास्तव में हास्यास्पद है कि जब एक तरफ भारत "मेड इन इंडिया" अभियान को बढ़ावा देने के लिए चीन के साथ आर्थिक सहयोग को गहरा करने की उम्मीद करता है, जबकि दूसरी ओर, भारत दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव से उद्विग्न है।
"एक पट्टी एक मार्ग" सभी प्रतिभागियों के साझा विकास का जरिया है। भारत को चीन के "एक पट्टी एक मार्ग" को एक "खुले रवैया" के साथ गले लगाने की जरूरत है क्योंकि अधिकांश एशियाई देशों आर्थिक लाभ के लिए खुलेपन की भावना के साथ "एक पट्टी एक मार्ग" पहल में भाग ले रहे हैं। वर्तमान भू-राजनीति में भारत को इस तथ्य का एहसास होना चाहिए कि विवादित पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर क्षेत्र भारत के लिए बेहतर या खराब नहीं लाएगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि 46 बिलियन डॉलर की लागत वाले चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC project) में पाकिस्तान की भागीदारी के बहाने "एक पट्टी एक मार्ग" के विरोध में कोई वैध औचित्य नहीं है। भारत के अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स के एक हालिया रिपोर्ट में यह टिप्पणी की गई है कि "पाकिस्तान और कश्मीर के प्रति कट्टरपंथी दृष्टिकोण मोदी सरकार के लिए अच्छा घरेलू राजनीति हो सकते हैं, लेकिन वे भारत के भविष्य के लिए जियोपॉलिटिक्स नहीं हैं।"
भारत ने "एक पट्टी एक मार्ग" प्रोजेक्ट पर आपत्तियां जताई हैं क्योंकि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC project) इसका हिस्सा है और यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के गिलगित-बाल्तिस्तान से गुजरता है। 22 फरवरी को पेइचिंग में चीन-भारत रणनीतिक पहली वार्ता में भारतीय विदेश सचिव एस जयशंकर ने सीपीईसी पर भारत की आधिकारिक स्थिति को व्यक्त करते हुए कहा कि चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC project) इस विशेष पहल का हिस्सा है। CPEC project भारतीय संप्रभुता का उल्लंघन करता है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है।
लेकिन सच्चाई यह है कि CPEC project का मकसद आर्थिक सहयोग एवं विकास है। इसका राजनीति और सीमा विवाद से कोई सीधा संबंध नहीं है। जहां तक कश्मीर विवाद की बात है, चीन के रूख में कोई बदलाव नहीं आया है। यह सोचना बेवकूफी है कि चीन भारत की संप्रभुता चिंताओं का सम्मान नहीं करता है। It is unwise to think that China does not respect India's sovereignty concerns. 23 फरवरी, 2017 को ग्लोबल टाइम्स में एक लेख में सीपीईसी पर भारत के रुख पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा गया है कि, " भारत और पाकिस्तान के बीच क्षेत्रीय विवाद में चीन का हस्तक्षेप का कोई इरादा नहीं है। चीन का मानना है कि दोनों पड़ोसियों को वार्ता और परामर्श के माध्यम से अपने विवाद को सुलझाने चाहिए और सीपीईसी का निर्माण मुद्दे पर अपने रुख को प्रभावित नहीं करेगा।" इसलिए, यह आशा की जानी चाहिए कि चीन की "एक पट्टी एक मार्ग" परियोजना का विरोध करने के लिए भारत अपनी "संकीर्ण मानसिकता"("cliché mentality") को त्याग देगा।
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा परियोजना "एक पट्टी एक मार्ग" के निर्माण में एक महत्वपूर्ण पुल है। इसमें कोई दो राय नहीं कि "एक पट्टी एक मार्ग" योजना भारत की पाषाण युग के बुनियादी ढांचे को आधुनिकीकरण का एक अवसर है और तेजी से औद्योगिकीकरण और रोजगार वृद्धि के लिए मार्ग भी प्रशस्त करता है। चीन के साथ साझेदारी करने से, भारत को "एक पट्टी एक मार्ग" से आर्थिक लाभ मिल सकेगा। एक पट्टी एक मार्ग में शामिल होने से न केवल भारत के व्यापार में काफी वृद्धि होगी, इससे एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक (एआईआईबी) और सिल्क रोड फंड के माध्यम से फंड भी मिल पाएगा।
इसके अलावा, यह "एक पट्टी एक मार्ग" प्रोजेक्ट में शामिल होने से मध्य पूर्व के ऊर्जा संसाधन भारत को मिल सकेगा और अन्य देशों के लोगों के साथ आदान-प्रदान कर सकेगा, क्योंकि "एक पट्टी एक मार्ग" का उद्देश्य भूमि और समुद्र के माध्यम से चीन और यूरोप के बीच सड़क, रेलवे लाइन, बिजली परियोजनाओं और 64 देशों में बंदरगाह निर्माण से जोड़ना। सीपीईसी का विरोध करने के बजाय, भारत को उन अवसरों की व्यापक तस्वीर को देखना चाहिए जो यह "एक पट्टी एक मार्ग" प्रदान करता हैं।
चीन और भारत ब्रिक्स देशों के अहम सदस्य हैं और एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट बैंक के संस्थापक देश भी हैं। हाल के वर्षों में चीन-भारत संबंधों की आवाज़ और स्थिर विकास ने साबित कर दिया है कि 'ड्रैगन' और 'हाथी' हाथ मिलकर सहयोग को मजबूत कर सकता है और एशिया से दुनिया तक सभी के लिए बेहतर भविष्य बनाने के लिए "समान लाभ, समान जीत और समान उपभोग" को अपनाना चाहिए।
(रविशंकर बसु)