प्रिय दोस्तो, हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जिनेवा में पर्यावरण व बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी दो रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के अनुसार ख़राब पर्यावरण की वजह से हर साल विश्व के 17 लाख पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत हुई है। रिपोर्ट में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से एक साथ कार्रवाई करके बच्चों के लिये एक अनवरत विकास वाली दुनिया बनाने की अपील की गयी।
उक्त दो रिपोर्टों में एक का शीर्षक है अनवरत विकास वाली दुनिया बनाना: बच्चों का स्वास्थ्य व पर्यावरण। जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्ष 2030 के अनवरत विकास लक्ष्य और बच्चों के स्वास्थ्य के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित हुआ है। दूसरी रिपोर्ट का शीर्षक है हमारे भविष्य को प्रदूषित मत करो: बच्चों के स्वास्थ्य पर पर्यावरण का असर। जिसमें व्यापक रूप से बच्चों के स्वास्थ्य पर पर्यावरण की भूमिका को बताया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के सार्वजनिक स्वास्थ्य व पर्यावरण विभाग की प्रमुख डाक्टर मारिया नेरा ने कहा कि लोगों को मानव के स्वास्थ्य पर पर्यावरण के असर पर ध्यान देते समय खास तौर पर बच्चों के स्वास्थ्य पर पर्यावरण के असर पर ध्यान देना चाहिये।
उन्होंने कहा, आज हमें बच्चों पर ध्यान देना चाहिये। इसलिये हमने इस बार के मुद्दे को हमारे भविष्य को प्रदूषित मत करो निश्चित किया है। क्योंकि प्रदूषित पर्यावरण से हमें यह भारी कीमत चुकानी होगी कि हर साल 17 लाख बच्चे इस वजह से मारे जाते हैं। अगर यह रुझान जारी रहेगा, तो स्थिति लगातार गंभीर होती रहेगी, तो मृतकों की संख्या तेजी से बढ़ जाएगी।
रिपोर्ट में पेश किये गये पर्यावरण जोखिमों में रूम में व बाहर के वायु प्रदूषण, सेकंड हैंड धुएं, असुरक्षित पेय जल, स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव और गंदा वातावरण आदि शामिल हुए हैं। रिपोर्ट में कुछ नये पर्यावरण जोखिम भी पेश किये गये। उदाहरण के लिये बिजली उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक कचरे का पुनर्चक्रण अच्छी तरह से नहीं किया गया। अगर बच्चे ऐसे हानिकारक पर्यावरण में रहते हैं, तो उनकी बुद्धि कमज़ोर हो सकती है। उनके अलावा जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी के तापमान और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। इसी कारण से पराग आसानी से पैदा होगा। जिससे दमा से ग्रस्त बच्चों की संख्या बढ़ जाएगी। उन के अलावा सामान्य जीवन में बच्चे ज्यादा से ज्यादा रासायनिक वस्तुओं से संपर्क रखते हैं, जैसे:भोजन, जल, खिलौना, कपड़ा व फर्नीचर आदि।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की महानिदेशक डॉक्टर मागरेट छन ने कहा कि प्रदूषित पर्यावरण घातक है, खास तौर पर बच्चों के प्रति। क्योंकि वे शारीरिक विकास के चरणों में हैं। अशुद्ध हवा व पानी आसानी से उन पर नुकसान पहुंचाते हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि एक महीने से पांच वर्ष तक के बच्चों की मौत का कारण आम तौर पर डायरिया, मलेरिया और निमोनिया है। लेकिन हम कदम उठाकर उन रोगियों की रोकथाम कर सकते हैं।
मरिया नेरा ने कहा, सकारात्मक दृष्टि से देखा जाए, तो पर्यावरण के अधिकतर जोखिम बदले जा सकते हैं। इसलिये हमने इसमें पूंजी लगाने की अपील की। ताकि सभी पर्यावरण जोखिम को हटाकर लोगों के स्वास्थ्य को लाभ मिले।
रिपोर्ट में यह सुझाव पेश किया गया कि सरकारी विभाग सहयोग करके पर्यावरण की स्थिति का सुधार कर सकेंगे। उदाहरण के लिये सार्वजनिक यातायात को बढ़ाना, शहरी निर्माण की योजना में ज्यादा हरित क्षेत्र तैयार करना, पैदल व साइकिल के लिये सुरक्षित सड़क की स्थापना करना, कृषि में खतरनाक कीटनाशकों के प्रयोग को कम करना, उद्योग में रासायनिक वस्तुओं का प्रयोग कम करना, और खतरनाक कचरे के हैंडलिंग अच्छी तरह से करना आदि।
साथ ही डॉक्टर मरिया नेरा ने इस पर बल दिया कि जनता भी इसमें अपनी भूमिका अदा कर सकेगी। उन्होंने कहा, जनता को जीवन बिताने में एक अनवरत तरीके का इस्तेमाल करना चाहिये। जैसे:निजी कारों का प्रयोग कम करना, और ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक यातायात, साइकिल या पैदल चलना चाहिए। घर में कारगर रूप से ऊर्जा का प्रयोग करना। उदाहरण के लिये सर्दी के दिनों में हीटिंग उपकरण का प्रयोग, और गर्मी के दिनों में ए.सी. का प्रयोग, तथा घरेलू कचरे का निपटारा आदि। जनता पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के लिये बहुत काम कर सकती हैं।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा निश्चित वर्ष 2030 अनवरत विकास लक्ष्य के आधार पर अब विभिन्न देश बच्चों के प्रति एक स्वस्थ पर्यावरण को सुनिश्चित करने के लिये कदम उठा रहे हैं।