छींगहाई-तिब्बत रेल मार्ग चीन के भीतरी इलाकों को तिब्बती पठार के साथ जोड़ा गया है और इस रेल मार्ग के तिब्बत के पश्चिम स्थित शिगाज़े शहर तक विस्तृत होने के बाद तिब्बत के लिए दक्षिण एशिया उन्मुख खिड़की खुली हुई है ।
पहले तिब्बत के पश्चिम में केवल राज्य मार्ग चलता था । ल्हासा-शिगाज़े रेल मार्ग के खुलने से इस क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए नव जीवन शक्ति डाली गयी है । हमारे संवाददाता ने हाल में रेल मार्ग से शिगाज़े का दौरा किया और वहां के लोगों के साथ रेल मार्ग की सुविधा पर बातचीत की ।
यात्रियों का कहना है कि पहले वे अक्सर मोटर गाड़ियों से शिगाज़े जाते थे जो लंबा समय लगता था । रेल मार्ग प्रशस्त होने के बाद केवल सुविधा नहीं, यात्रा की सुरक्षात्मक स्थिति का भी सुधार आया है । रेल मार्ग के माध्यम से लोगों को शिगाज़े के बाहर जाने की बड़ी सुविधा मिल गयी है । मिसाल के तौर पर मोटर गाड़ी से ल्हासा से शिगाज़े जाने के लिए आठ घंटे लगता है जबकि रेल मार्ग से केवल तीन घंटे । कोई आश्चर्य नहीं कि अब अधिकांश लोग रेल मार्ग चुनते हैं ।
ल्हासा-शिगाज़े रेल मार्ग की दूरी 253 किलोमीटर है और रास्ते में छूश्वेई काउटी, नीमू काउटी और रेनबू काउटी आदि से गुजरता है । शिगाज़े तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के पश्चम में स्थित बड़ा शहर है । शहर का पाँच सौ साल इतिहास होता है । इतिहास में शिगाज़े तिब्बत में राजनीतिक व सांस्कृतिक केंद्रों में से एक था और सभी पंचन लामाओं का निवास स्थल भी था । विश्व की सबसे ऊंची चोटी यानी जूमूलांगमा चोटी और हिशाबांगमा चोटी, चीलूंग घाटी, थाशलूनबू मंदिर और साक्या मंदिर आदि सब शहर के आसपास स्थित हैं । बहुत से भक्त बौद्ध अनुयायी शिगाजे की तीर्थ यात्रा के रास्ते पर आते रहते हैं ।
संवाददाता ने रेल गाड़ी में दक्षिणी चीन के यूननान प्रांत से आये कुछ बौद्ध विश्वासियों के साथ बातचीत की जो ल्हासा और शिगाज़े की तीर्थ यात्राएं कर रहे थे । उन्हों ने कहा कि ल्हासा और शिगाज़े की तीर्थ यात्रा करना तिब्बती अनुयायियों के लिए अनिवार्य है । जब कामकाज़ में इतना व्यस्त नहीं हैं, तब वे मौका पकड़कर तीर्थ यात्रा करने आये हैं । इन अनुयायियों में एक हैं मास्टर त्साईशी जो राष्ट्रीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत के वारिस माने जाते हैं । उन्हों ने कहा कि उन के गांव में पर्यटन का जोरों से विकास हो रहा है जिससे इस क्षेत्र में पारंपरिक हस्तशिल्प की बहाली को बढ़ावा दिया गया है । त्साईशी ने कहा,"हमारे शांग्रीला काउटी में पर्यटन के विकास के साथ-साथ मिट्टी बरतन भी लोकप्रिय होने लगा है । हमारे यहां मिट्टी बरतन लाजिमी हैं । बहुत से जवानों ने यह सौदा करना शुरू किया है । गांव में सबसे अमीर वाले हैं वे सब मिट्टी बर्तन के व्यापारी हैं । लेकिन पहले ऐसा नहीं था । आज गांव में रहकर काम कर सकते हैं और आय प्राप्त है । यह कितनी अच्छी बात है ।"
शिगाज़े क्षेत्र में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत का समृद्ध भंडार होता है । परिवहन की सुविधा मिलने के साथ यहां पर्यटन का तेज़ी से विकास किया जा रहा है । उत्तरी चीन के गानसू प्रांत से आये ह माओ लीन ने तिब्बत में दस साल काम किया है । उन्हों ने तिब्बत के चप्पे चप्पे को छान मारा था । उन की आंखों में तिब्बत का विकास उल्लेखनीय है । उन्हों ने कहा,"तिब्बत में मेरा काम अच्छी तरह चलता है । यहाँ बहुत तेजी से विकास हो रहा है । पहले जब मैं पहली बार यहां आया था तब शिगाज़े में इमारत कम थीं और सड़कें स्वच्छ भी नहीं । लेकिन आज सबकुछ का परिवर्तन हो गया है ।"
ल्हासा-शिगाज़े रेल लाइन प्रशस्त होने के बाद पर्यटकों के साथ बहुत से व्यवसायी भी तिब्बत में काम करने या व्यापार करने आये हैं । शानशी प्रांत के व्यावसायी ली शू छंग प्रिंटिंग उपकरण के बिक्री और संस्थापन में काम करते हैं । उन्हों ने तिब्बत का कई बार दौरा किया है । उन्हों ने कहा,"तिब्बत में जो मौसम है वह इतनी सर्दी नहीं है । और यहां का वातावरण पर्यटन के लिए भी सही है ।"
उन्हों ने कहा कि तिब्बत में पर्यटन विकास के लिए समृद्ध संसाधन मौजूद है । पर अभी तक पर्यटन का सुधार करने की बड़ी संभावना है । उन्हों ने सुझाव पेश किया,"जब एक परदेशी प्रथम बार यहां आते हैं तबतो उसे मनोवैज्ञानिक तौर पर कुछ न कुछ विचित्रता लगती है । इसलिए पर्यटकों के लिए अधिक गाइड सुरक्षित होना चाहिए । इस के साथ पर्यटन की सूचनाएं, मैप और सूचक बोर्ड आदि रखे हुए तो अच्छा होगा, क्योंकि पर्यटकों को सूचनाओं की सुविधा चाहिये।"
रेल लाइन के खुलने से न सिर्फ पर्यटन का विकास होने लगा है, व्यक्तियों के साथ-साथ नये विचार भी रेल गाड़ी से आ गये हैं । इस से शिगाज़े के आर्थिक व सामाजिक विकास में नव जीवन शक्ति जन्म होगी ।
शिगाज़े एक सुन्दर, संसाधन समृद्ध और रहस्यमय शहर बताया जा रहा है । ल्हासा-शिगाज़े रेल मार्ग के खुलने से इसे बाहर के साथ जोड़ा गया है । और रेलगाड़ी में माल के अलावा मूल निवासियों और परदेशियों की उम्मीदें, मौका और सपना भी हैं ।
ल्हासा-शिगाज़े रेल लाइन की विस्तृत जानकारियां
253 किलोमीटर लम्बा ल्हासा-शिगाज़े रेल लाइन तिब्बत की राजधानी ल्हासा शहर से प्रदेश के पश्चिम स्थित शिगाज़े तक चलता है । ल्हासा और शिगाज़े के सिवा इस रेल मार्ग के तटस्थ क्षेत्रों में निमू, रेनबू और छूश्वेई समेत और 12 स्टेशन सुरक्षित हैं । ल्हासा-शिगाज़े रेल लाइन छींगहाई-तिब्बत रेल मार्ग की शाखा है । इस रेल लाइन की औसत ऊँचाई चार हजार मीटर होती है और परियोजना की कुल राशि में से करीब आधा भाग पुल और सुरंग की हुई थी । वर्ष 2010 के सितंबर से शुरू परियोजना वर्ष 2014 के अगस्त तक समाप्त की गयी । योजनानुसार वर्ष 2020 तक यह रेल लाइन चीन-नेपाल सीमा पर स्थित चीलूंग बंदरगाह तक विस्तृत किया जाएगा ।
ल्हासा-शिगाज़े रेल मार्ग के निर्माण में प्राकृतिक संरक्षण को विशेष महत्व दिया गया है । रेल लाइन के निर्माण स्थल तिब्बत में जानवर, जल व प्राकृतिक संरक्षण क्षेत्रों से बचकर लिये गये । और निर्माणाधीन स्थल के लिए जो अधिकृत भूमि संसाधन है, वह भी परिसीमित है । निर्माताओं ने अपने निर्माण की समाप्ति पर रेल लाइन के तटस्थ क्षेत्रों में वनस्पतियों की बहाली करने का कदम भी उठाया । रेल स्टेशनों में जियोथर्मल, सौर ऊर्जा और बिजली आदि स्वच्छ ऊर्जा तंत्र कायम किये गये हैं और स्टेशनों में जो कचरे पैदा हुए हैं, उन का एकीकृत उपचार किया जाता है ।
पता चला है कि ल्हासा-शिगाज़े रेल मार्ग की प्रति मीटर लागत पचास हजार युवान रही । साथ ही इस रेल लाइन में बहुत से पुल व सुरंग भी शामिल हैं, उन में सब से बड़ा सुरंग 10.4 किलोमीटर लम्बा होता है जो देश में सबसे अधिक है । जंगली जानवरों के प्रवासन की गारंटी के लिए इस रेल मार्ग के प्रमुख भागों पर बुलंद चैनल का निर्माण किया गया । तकनीक की दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि ल्हासा-शिगाज़े रेल मार्ग का निर्माण स्तर विश्व में सबसे उन्नतिशील है । विशेषज्ञों का कहना है कि ल्हासा-शिगाज़े रेल मार्ग वर्ष 2020 में चीन-नेपाल सीमा के चीलूंग बंदरगाह तक विस्तृत किया जाएगा जो चीन-नेपाल रेल मार्ग के निर्माण के लिए नींव तैयार होगा ।
( हूमिन )