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    टी टाइम 170316
    2017-03-16 18:22:20 cri

    अनिलःटी-टाइम के नए अंक के साथ हम फिर आ गए हैं, आपका मनोरंजन करने। जी हांआपके साथ चटपटी बातें करेंगे और चाय की चुस्कियों के साथ लेंगे गानों का मजा, 25 मिनट के इस प्रोग्राम में। इसके साथ ही प्रोग्राम में श्रोताओं की प्रतिक्रियाएं भी होंगी शामिल। तो जल्दी से हो जाइए तैयार।

    दोस्तो, दुनिया में कई ऐसी चीजें है जिसके बारे में जानकर कोई भी हैरान हो सकता है और उसपर यकीन करना काफी मुश्किल होता है। लेकिन कई बार यह बिल्कुल सच भी होता है। मेक्सिको की एक दुकान में पिछले 80 सालों से एक राज दफन है। यहां एक दुकान में दुल्हन का एक पुतला बंद है। जिसकी सच्चाई ने लोगों के होश उड़ा दिए हैं।

    इस पुतले का नाम ला पस्क्युएलीटा रखा गया है। सबसे पहले 25 मार्च 1930 को इसे मेक्सिको के इस दुकान में कांच के अंदर लगाया गया था। सफेद रंग की दुल्हन की पोशाक पहने ये पुतला बिल्कुल असली दिखाई देता है।

    पहले लोग इसकी खूबसूरती देखने आते थे। फिर आसपास के लोगों ने नोटिस किया कि इस पुतले का चेहरा दुकान की मालकिन पस्क्युएला एस्पार्जा से मिलती है, जिसकी 25 मार्च 1930 से कुछ ही दिन पहले मौत हुई थी।

    नीलमः दरअसल, पस्क्युएला की शादी होने वाली थी, लेकिन इससे ठीक पहले ही एक जहरीली मकड़ी के काटने से उसकी मौत हो गई थी। लोगों के अनुसार पस्क्युएला की मां अपनी बेटी से बहुत प्यार करती थी। इसलिए उसे पस्क्युएला की डेड बॉडी पर मोम की परत चढ़वा दी और उसे पुतले का रूप दे दिया। इस पुतले की आंखों पर कांच चढ़ाया गया है, जिसके पीछे से किसी इंसान की आंखों की झलक साफ दिखाई देती है। इसकी अंगुलियां गौर से देखेंगे, तो आप भी यकीन करेंगे कि वाकई मोम की परत के नीचे एक महिला की बॉडी मौजूद है।

    हालांकि, पुतले के बारे में लोगों द्वारा कही जा रही बातों को पस्क्युएला की मां ने अफवाह ही करार दिया है, लेकिन उसकी बातों पर किसी ने यकीन नहीं किया।

    इस दुल्हन के लिबास में खड़ी मूर्ति के बाल बिल्कुल असली हैं। कहा जाता है कि जिस दुकान में ये पुतला रखा गया है, ये उसकी मालकिन की बॉडी है। हालांकि, कई एक्सपट्र्स का कहना है कि इतने लंबे समय तक किसी की बॉडी का स्किन टोन प्रिसर्व करना काफी मुश्किल है।

    कई लोग तो ये भी कहते हैं कि रात के समय ये पुतला खुद-ब-खुद हिलता भी है। सिर्फ इस पुतले को देखने के लिए कई टूरिस्ट इस दुकान तक आते हैं।

    अनिलः अब आपको दूसरी जानकारी से रूबरू करवाते हैं। दुनिया में कई अजीबोगरीब प्रयोग होते रहे हैं। रूस के इस शख्स ने ऐसा प्रयोग किया जिसका परिणाम सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे। इस शख्स ने अंडे में ह्यूमन स्पर्म मिलाकर ऐसा अजीब प्रयोग किया, जिसका परिणाम भी कुछ अनोखा आया।

    सुनने में भले ही ऊटपटांग लगे, लेकिन रूस के इस शख्स ने ह्यूमन स्पर्म से अंडे पर ही प्रयोग करना शुरू कर दिया। सबसे इस शख्स ने पहले इंजेक्शन के जरिए अपने स्पर्म को अंडे में डाला और करीब 10 दिन के लिए उसे कंटेनर में रख दिया।

    उसके बाद उसने अंडे को फोड़कर देखने का निर्णय लिया। वह जानना चाहता था कि उसमें से आखिर क्या बाहर आता है। जैसे ही एक कटोरी में उसने अंडे को फोड़ा तो वह खुद ही हैरान रह गया। पहले अंडे से कुछ लिक्विड निकला, उसके बाद जो अजीबो सी चीज दिखाई दी, वो किसी को भी चौंका सकती थी।

    अंडे में से एक ऐसा जीव निकला जिसे शायद ही रियल में पहले किसी ने देखा हो। उस शख्स का कहना था कि इस तरह के जीव फिल्मों में ही दिखने को मिलते हैं, जो ह्यूमन और जानवरों का मिक्स ब्रिड होता है। इस एक्सपेरिमेंट का वीडियो इंटरनेट पर भी काफी वायरल हुआ था।

    नीलमः प्रोग्राम को आगे बढ़ाते हुए सुनते हैं एक और जानकारी। यूपी के बांदा जिले के एक सरकारी स्कूल के छात्र की तस्वीर वायरल हो रही है। क्लास छह का छात्र एक अलग ही अंदाज में स्कूल पहुंचा। उसने शर्ट में बटन की जगह ताला लगाया हुआ था। जब टीचर ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि डांट से बचने के लिए उसने ऐसा किया।

    यह मामला बांदा जिले के मोगरिया गांव के माध्यमिक स्कूल का है। यहां पढऩे वाले शत्रुहन निषाद के पास एक ही ड्रेस है,जो वह रोजाना पहनकर स्कूल जाता है। शत्रुहन के परिजनों ने बताया कि ड्रेस उसे स्कूल की ओर से कई साल पहले मिली थी।

    अब ड्रेस पूरी तरह फट चुकी है। शर्ट के दो बटन भी टूट गए हैं। शत्रुहन को स्कूल जाना था वह स्कूल की छुट्टी नहीं करना चाह रहा था लेकिन शर्ट फटी थी और घर में बटन लगाने को नहीं था। उसने बटन की जगह ताला लगा दिया। उसे लगा कि यह बटन की जगह काम करेगा और टीचर उसे डांटेंगे या पीटेंगे नहीं।

    शर्ट में एक और जगह बटन नहीं थी,वहां उसने तार बांध दिया। टीचर ने इस हालत में पहुंचे बच्चे की तस्वीर ले ली। अब यह तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है।

    अनिलः अब बात करते हैं, दिवंगत स्टार ओम पुरी के बारे में। जिनका कुछ समय पहले निधन हो गया था। उनके बारे में उनके एक दोस्त ने उक्त बातें कहीं हैं।

    उनका बचपन उनका बहुत अभावों में गुजऱा। वे एक साधारण पंजाबी परिवार से आते थे। मां का साया भी उन पर से बहुत जल्दी उठ गया था। पिता सेना में मामूली नौकरी करते थे। अक्सर घर से बाहर रहते थे। अभावों के साथ उनका बचपन बहुत एकाकी था। उनके जीवन ने तब मोड़ लिया जब वे अंबाला से अपने ननिहाल पटियाला पहुंचे और उनकी शिक्षा शुरू हुई।

    प्राइमरी शिक्षा के दौरान उन्होंने पटियाला में कई छोटी-मोटी नौकरियां कीं । वहीं अभिनय के प्रति उनके लगाव ने जन्म लिया। उस समय एनएसडी के पुराने स्नातक दंपती हरपाल टिवाना और नीना टिवाना पटियाला में रंगकर्म करते थे। ओम उनके साथ पूरी शिद़्दत से जुट गए। एन एस डी के दिनों में वे कभी-कभी बताते भी थे कि वहां रगकर्म करते हुए भी उनका शोषण कम नहीं हुआ। वे टिवाना दंपती के यहां लगभग घरेलू नौकर की हैसियत से रह रहे थे। इन सबके बावजूद ओम में गजब का संघर्षशील व्यक्ति हमेशा सक्रिय रहा।

    हम दोनों ने साथ ही 1970 में एनएसडी ज्वॉइन किया था। हम सन 1970 से 1974 तक साथ थे। उन्हें अंग्रेजी बिल्कुल नहीं आती थी। एनएसडी में ज्यादातर पाठ्यक्रम अंग्रेजी में था। छात्रों को जो प्रोजेक्ट सबमिट करने होते थे, वे भी अंग्रेजी में होते थे। हिन्दी का उनका लहजा पंजाबी लिए हुए था। ओम अपना हिन्दी और उर्दू उच्चारण सुधारने में लगे, वहीं अंग्रेजी सीखने की कोशिश भी उनकी रहती थी। वे अपने प्रोजेक्ट्स लिखवाने के लिए मेरे पास आते थे। उनके लगभग सभी प्रोजेक्ट्स लिखने में पूरे तीन साल मैं ही उनकी मदद करता रहा। यहीं से हमारी दोस्ती का आग़ाज भी हुआ, जो जीवन पर्यन्त चली।

    नीलमः एक अभिनेता के रूप में अपना डिक्शन सुधारने के लिए ओम ने कठिन परिश्रम किया। एनएसडी के रविंद्र भवन में वे अकेले ही रात के 2 बजे तक ओपन थिएटर में रिहर्सल किया करते थे। उनका वो परिश्रम और लगन जल्द ही अलकाजी की नजर में भी आया और उन्होंने ओम के सामने अभिनेता के रूप में एक के बाद एक कई चुनौतियां पेश करना शुरू किया। उसमें सबसे पहली और बड़ी चुनौती थी शिवराम कारंत के निर्देशन में कर्नाटक की यक्षगान शैली में प्रस्तुति। कथकली की तरह ही यक्षगान एक सिक्षन्गंग क्लैसिकल थिएटर फॉर्म है, जिसमें नृत्य और मुद्राएं प्रधान होती हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के युवाओं के लिए इसमें अभिनय करना एक बड़ी चुनौती थी। क्यों कि उनके पास इस अभिनय पद्धति का अनुभव दूर.दूर तक नहीं था। और पंजाब की ठेठ ग्रामीण संस्कृति से आए ओम के पास तो बिल्कुल ही नहीं।

    ओम ने चुनौती स्वीकार की और जल्द ही डाक्टर कारंत का विश्वास जीत लिया और उन्होंने यक्षगान की मुख्य भूमिका के लिए ओम को चुन लिया। यह हम सबके लिए ओम के नये दर्शन थे। उसके अगले ही वर्ष 1992 में जापानी मूल के अमरीकी नाट्य निर्देशक शोजो सातो एनएसडी में जापान की शास्त्रीय नाट्य पद्धति काबुकी शैली में नाट्य प्रस्तुति के लिए आए थे। लोग इस बात पर हैरत करते हैं कि वो ओम जिन्हें अंग्रेजी कम आती थी या आती ही नहीं थी। उन्होंने ब्रिटेन और अमरीका की इतनी ढेर फिल्मों में अंग्रेजी में अभिनय किया तो मुझे ताज्जुब नहीं होता।

    अनिलः अब समय हो गया है हेल्थ संबंधी जानकारी का। एक रिसर्च में खुलासा हुआ है कि जो लोग पक्षियों, झाड़ियों और पेड़ों को ज्यादा देखते हैं या जिनके घर के आस-पास हरियाली और पंछी ज़्यादा होते हैं, उनको डिप्रेशन, तनाव और चिंता जैसी समस्याओं का अनुभव कम होता है। ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एक्सेटर में हुए इस अध्ययन में 100 से अधिक को शामिल किया। रिसर्च के दौरान उन सभी लोगों को लाभ मिला, जिनके घरों के आस-पास पेड़-पौधे, चिड़िया और पक्षी ज्यादा पाए जाते थे। वहीं वो लोग जो शहरी और हरियाली से दूर इलाकों में रहते थे उनमें तनाव, चिंता और डिप्रेशन के लक्षण पाए गए।

    इस शोध में अलग-अलग उम्र, जाति और आय और के 270 लोगों का मानसिक परिक्षण किया गया। शोध से ये रिजल्ट सामने आया कि जिन लोगों ने पिछले हफ्ते के मुकाबले घर से बाहर कम टाइम बिताया, उनमें तनाव, चिंता और डिप्रेशन के ज्यादा लक्षण पाए गए।

    हालांकि, इस रिसर्च में ये तो सामने नहीं आया कि पक्षियों का मेंटल हेल्थ से क्या सम्बन्ध है, लेकिन ये बात ज़रुर सामने आई कि जो लोग अपनी खिड़कियों या पार्क में अपने आस-पास जितनी चिड़िया या पंछी दिखाई देते हैं, उनकी संख्या से ज़रूर को सम्बन्ध है। यह अध्ययन इस बात को ध्यान में रखकर शुरू किया गया था कि हमारी प्रकृति का हमारी मानसिक स्थिति में क्या भूमिका निभाती है।

    नीलमः वहीं जीवन के विभिन्न पहलुओं पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों को बड़ी उपलब्धि हासिल होने का दावा किया जा रहा है। वैज्ञानिक लैब में बिना शुक्राणुओं या अंडाणुओं के स्टेम सेल से चूहे का भ्रूण तैयार करने में सफल रहे हैं। विशेषज्ञ इसे दुनिया का पहला कृत्रिम भ्रूण होने का दावा कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज के शोधार्थियों का दावा है कि इससे गर्भपात और बांझपन के कारण पर शोध में मदद मिलेगी। अब उनका इरादा इसी तकनीक से अगले एक वर्ष में मानव भ्रूण तैयार करने का है।

    इस तकनीक की मदद से ऐसे तमाम शोधकर्ताओं की जरूरतों को भी पूरा किया जा सकता है, जिन्हें अपने शोध के लिए भ्रूण की आवश्यकता होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अभी उन्हें मानव भ्रूण के लिए आईवीएफ क्लीनिक में दान किए गए शुक्राणु व अंडाणुओं का इस्तेमाल करना पड़ता है, जिनकी आपूर्ति कम होती है।

    हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यूं तो यह एक बड़ी उपलब्धि है, क्योंकि इससे पहले शोधकर्ता इस अवस्था तक भी नहीं पहुंच पाए थे। मगर अभी इसमें और अध्ययन की जरूरत है। जैसे कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि लैब में निर्मित यह भ्रूण स्वस्थ भ्रूण के रूप में विकसित नहीं होंगे, क्योंकि ऐसा होने के लिए एक तीसरे और अंतिम प्रकार के स्टेम सेल की जरूरत होगी।

    अनिलः प्रोग्राम में जानकारी देने का सिलसिला यहीं संपन्न होता है। अब समय हो गया है, श्रोताओं की टिप्पणी का।

    प्रोग्राम में पहला पत्र भेजा है, केसिंगा उड़ीसा से मॉनिटर सुरेश अग्रवाल ने। लिखते हैं, प्रोग्राम की शुरुआत अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर शुभकामनाओं के साथ किया जाना अच्छा लगा। यह जान कर भी अच्छा लगा कि कई देशों में इस मौके पर महिलाओं को एक दिन की छुट्टी दी जाती है।भारत की पहली महिला हॉकर अरीना खान ऊर्फ़ पारो के बारे में दी गई जानकारी काफी प्रेरक और अनुकरणीय लगी। सचमुच उन्होंने वह कर दिखाया, जो कि ऐसे आड़े वक़्त में शायद कोई लड़का भी नहीं करता। अरीना खान के ज़ज़्बे को सलाम। कार्यक्रम में आगे बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास में मनाये गये विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर चीन के पेकिंग विश्वविद्लाय में हिंदी के प्रोफ़ेसर द्वय के.एन.तिवारी एवं च्यांग चिंग खवेई के साथ की गयी बातचीत के मुख्य अंश सुने, काफी अच्छे लगे। दुनिया की सबसे वज़नी महिला इमान अहमद का महीने भर पहले मुम्बई में इलाज शुरू होने के बाद उनके वज़न में लगातार कमी आना भी अच्छी ख़बर है। जबकि राजस्थान के रहने वाले इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष के छात्र खुशहाल सैनी के बचपन में खिलौनों से खेलने, तोडऩे और उन्हें फिर से जोड़ने के शौक ने कैसे उन्हें एक इनोवेटर बना दिया, यह जानकारी भी काफी प्रेरणादायक लगी। उनका कक्षा आठवीं में पढ़ते समय रोबोट बनाना, 11 वीं में दो बाइक को जोड़कर कार और अब एक ऐसा कंट्रोलर ईज़ाद किया जाना कि जिससे 13 डिवाइसेज एक साथ नियंत्रित की जा सकती हैं, के बारे में जान कर हैरानी होती है।

    पढ़ना-लिखना हमारी सेहत के लिए भी अच्छा होता है और पढ़ने से व्यक्ति उदार हृदय होता है, यह स्टडी वास्तव में काफी महत्वपूर्ण लगी। कार्यक्रम में आगे बीजिंग स्थित विदेशी भाषा अध्ययन विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ा रहे डॉ. बलवीर सिंह के साथ की गयी बातचीत भी काफी महत्वपूर्ण लगी। कार्यक्रम में मेरे ज़ोक्स को भी स्थान देने एवं फिर एक बेहतरीन प्रस्तुति के लिये धन्यवाद्।

    सुरेश जी, पत्र भेजने के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया।

    नीलमः अगला पत्र भेजा है, पश्चिम बंगाल से मॉनिटर रविशंकर बसु ने। वह लिखते हैं कि 9 मार्च को साप्ताहिक "टी टाइम" प्रोग्राम बहुत पसंद आया। आपने महिला दिवस के मौके पर भारत की पहली महिला हॉकर राजस्थान ,जयपुर की रहने वाली अरीना खान के बारे में बताया। टाईफॉएड होने के कारण अरीना खान के पिता सलीम खान की मौत हो गयी। उसके बाद से वह अपने परिवार की जिम्मेदारी उठाते हुए महज़ नौ साल की उम्र से ही यह काम करने लगी। साहसिक कहानी वाकई बड़ी उत्साहजनक लगी।किसी देश की आत्मा उसकी भाषा होती है। हिंदी हिन्दुस्तान का हृदय है। मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि पेइचिंग स्थित भारतीय दूतावास में हाल ही में विश्व हिंदी दिवस मनाया गया। इस दौरान आज के प्रोग्राम में पेइचिंग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के भारतीय अध्यापक के.एन. तिवारी के साथ अनिल पांडेय जी, साथ ही प्रोफ़ेसर च्यांग चिंग ख्वेई और बीजिंग फ़ॉरेन स्टडीज़ यूनिवर्सिटी के डां. बलवीर सिंह के साथ पंकज श्रीवास्तव जी की बातचीत के मुख्य अंश सुनवाने हेतु हार्दिक धन्यवाद ।

    जबकि मिस्र से इलाज कराने मुंबई आई दुनिया की सबसे वजनी महिला इमाम अहमद के बारे में जानकर भी खुशी हुई। जबकि राजस्थान के इंजीनियरिंग फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट खुशहाल सैनी का इनोवेशन संबंधित समाचार काफी दिलचस्प लगा। धन्यवाद।

    अनिलः वहीं अगला ख़त भेजा है, दरभंगा बिहार से शंकर प्रसाद शंभू ने। उन्होंने लिखा है कि हमारे क्लब के सदस्य, लाल किशोर मुखिया, अमित कुमार, दीपू कुमार मुखिया, सुभाष कुमार गुप्ता, अनिल कुमार, गुप्ता, दीपक कुमार साहू, रविन्द्र कुमार गुप्ता और नरेश कुमार गुप्ता सभी टी टाइम सुनते हैं। नौ मार्च के प्रोग्राम में आपने भारत की पहली महिला हॉकर जयपुर की रहने वाली अरीना खान के बारे में बताया, जो कि अखबार बेचती हैं। उस युवती को हमारा सलाम। वहीं पेकिंग विश्वविद्लाय में हिंदी के प्रोफ़ेसरों के साथ हुई बातचीत भी बेहद अच्छी लगी। इसके साथ प्रोग्राम में पेश जोक्स बेहद अच्छे लगे। धन्यवाद शानदार प्रोग्राम प्रस्तुत करने के लिए।

    श्रोताओं की टिप्पणी यहीं संपन्न होती है। अब समय हो गया है जोक्स यानी हंसगुल्लों का। इसमें सुरेश अग्रवाल जी ने भी जोक्स भेजे हैं, हम उन्हें शामिल कर रहे हैं।

    पहला जोक....

    पत्नी: तुम्हें जरा भी तमीज नही कि मै

    घंटों से बके जा रही हूं,तुम उबासी

    ले रहे हो

    पति (गुस्से में)

    मै उबासी नही ले रहा

    बोलने की कोशिश कर रहा हूं।

    दूसरा जोक..

    एक बच्चा अपने पापा की

    शादी की CD देख रहा था।

    बच्चा- हम भी अपनी शादी में

    ऐसे ही आइटम गर्ल नचवायेंगे।

    पिता- हरामखोर, ये आइटम गर्ल नहीं..

    तेरी बुआ और मौसी है।

    तीसरा और अंतिम जोक...

    संता - ये है वो लड़की जिससे मेरी शादी होने वाली है।

    बंता - अरे इसे तो मैं जानता हूँ।

    संता - कमीने तू इसे कैसे जानता है ?

    बंता - ये और मैं एक साथ सोते हुए पकडे गए थे।

    संता - क्या ?? कब ?

    बंता - अरे ये मेरी क्लास में पढ़ती थी।

    तो मैथ्स टीचर की क्लास में हम दोनों बेंच पर सोते पकड़े गए थे।

    ......

    दोस्तों, जोक्स यहीं संपन्न होते हैं।

    अनिलः टी-टाइम में आज के लिए इतना ही, अगले हफ्ते फिर मिलेंगे चाय के वक्त, तब तक के लिए नमस्ते, बाय-बाय, शब्बा खैर, चाय च्यान।

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