कहा जाता है कि दो हज़ार से ज़्यादा साल पहले, वसंत शरत काल में जिन राज्य के राजकुमार छोंग अर निर्वासित किए गए। निर्वासित जीवन में उसे अनेकों ठोकरें खानी पड़ी। कठिन समय पर भूख मिटाने के लिए उन के परिचर च्येई ज़थ्वेई ने अपने पैर से मांस का एक टुकड़ा काट कर खिलाया। बाद में छोंग अर जिन राज्य वापस लौटा और गद्दी पर बैठा ( वह था जिन राज्य का राजा जिन वन कुंग, वसंत शरत काल के पांच प्रभुत्व युक्त राजाओं में से एक)। उसने अपने साथ निर्वासित हुए सहायकों व परिचरों को बड़ी बड़ी इनायत दी और ऊंचे औहदों पर बिठाया, लेकिन च्येई ज़थ्वेई ने इनाम लेने से इंकार कर दिया। उस ने अपनी माता जी के साथ म्येन शान पर्वत में छिप कर शरण ले लिया था।
राजा जिन वन कुंग को कुछ उपाय सूझ नहीं पाने पर उसे विवश होकर पर्वत पर आग जलाने की आज्ञा दी। उसने सोचा था कि च्येई ज़थ्वेई मातृ भक्त था और वह अवश्य ही अपनी माता को लेकर बाहर निकलेगा। लेकिन क्या जाना था कि च्येई ज़थ्वेई और उस की माता जी ने विलो के एक आग से जले बड़े पेड़ को लपेट कर अपनी जान दे दी थी। जिन वन कुंग ने च्येई ज़थ्वेई और उन की माता के शव को उस झुलसे पेड़ के नीचे दफ़नाये। च्येई ज़थ्वेई की स्मृति में जिन वन कुंग ने म्येन शान पर्वत के नाम को"च्येई शान पर्वत"में बदला। उसने पर्वत के शिखर पर एक मंदिर बनवाया और जिस दिन उसने पर्वत में आग लगाने का आदेश दिया था, उसी दिन को हान शी उत्सव के रूप में तय किया था। उस की आज्ञा पर सारे देश में हर साल के इसी दिन आग जलाने की मनाही थी और लोग केवल ठंडा व्यंजन खा सकते थे।
दूसरे साल, जिन वन कुंग ने सफ़ेद वस्त्र पहनकर अपने पदाधिकारियों के साथ पर्वत पर चढ़कर श्रद्धांजलि अर्पित की। जब वे समाधि के सामने पहुंचे, तो देखा था कि वह विलो का मृत पेड़ पुनः जीवित हो गया। पेड़ पर हज़ारों हरी हरी टहनियां हवा में लहर रही हैं। इस पुनर्जीवित पुराने पेड़ को देखते ही जिन वन कुंग ने मानो च्येई ज़थ्वेई को देखा हो। उसने बहुत सावधानी से पेड़ की एक टहनी तोड़ी और उस का एक छल्ला बनाकर अपने सिर पर पहन दिया। श्रद्धांजलि के बाद जिन वन कुंग ने इस पुराने पेड़ को"छिंग मींग ल्यो"( साफ सुथरा व चमकदार पेड़) का नाम दिया और उसी दिन को छिंग मींग उत्सव घोषित किया था।
इस के बाद जिन राज्य की जनता अमनचैन से जीवन बिताती थी। लोग अपने योगदान पर दंभ नहीं रहने तथा धन वैभव से लोभित नहीं होने वाले च्येई ज़थ्वेई की बड़ी याद करते थे। उस की बरसी के दिन, लोग आग पर पाबंदी लगाने से उस की याद करते थे। और तो और, लोग आटे व बेर के पेस्ट को गूंथकर अबाबील की आकृति में केक बनाते थे और केकों को विलो के पेड़ की टहनी पर पिरोकर द्वार पर लगा करके च्येई ज़थ्वेई की आत्मा बुलाते थे। यह"ज़ थ्वेई येन"( च्येई ज़ थ्वेई अबाबील) कहलाता था। इस के बाद हान शी व छिंग मींग पूरे देश की जनता का भव्य त्योहार बन गया। हान शी उत्सव में लोग आग जलाकर खाना नहीं पकाते थे और केवल ठंडा खाना खाते थे। उत्तरी चीन में लोग केवल पूर्व तैयारशुदा बेर के केक या जौ के केक आदि ठंडे व्यंजन खाते थे। जबकि दक्षिण चीन में लोग अधिकतर चेपदार चावल से बनाये गये डाम्पलिंग और कमल जड़ के साथ चेपदार चावल से बना मिष्टान्न खाते हैं। च्येई ज़थ्वेई की स्मृति में हर छिंग मींग उत्सव में लोग विलो की टहनी का छल्ला बनाकर सिर पर लगाते थे या मकान के सामने या पीछे विलो की टहनी लगाते थे।