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    आपका पत्र मिला 2016-11-23
    2017-03-05 15:49:02 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार।

    हैया:सभी श्रोताओं को हैया का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिल:दोस्तो, पहले की तरह आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे।

    चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हमें आया है, ओडिसा से मॉनिटर सुरेश अग्रवाल का। उन्होंने लिखा है......

    केसिंगा दिनांक 13 नवम्बर। प्रतिदिन की तरह आज भी सीआरआई हिन्दी के ताज़ा प्रसारण का रसास्वादन हम सभी परिजनों ने एकसाथ मिलकर शाम ठीक साढ़े छह बजे शॉर्टवेव 9450 किलोहर्ट्ज़ की आवृत्ति पर पूरे मनोयोग से किया और अब मैं रोज़ाना की तरह उस पर हम सभी की मिलीजुली राय लेकर आपके सामने हाज़िर हूँ। उम्मीद है कि हमारा यह प्रयास आपको पसन्द आता होगा। बहरहाल, ताज़ा अन्तराष्ट्रीय समाचारों में देश-दुनिया के हालात का ज़ायज़ा लेने के बाद हमने लज़ीज़ साप्ताहिक "सन्डे की मस्ती" भी ध्यानपूर्वक सुना। विशेष सेगमेण्ट के तहत युन्नान प्रान्त में रहने वाली ताई जाति के वाद्य-यंत्र तथा उसके समृद्ध गीत-संगीत की झलक पाकर दिल बाग़-बाग़ हो उठा। विशेषकर, हुलूसी वाद्य-यन्त्र से निकली 'रेइली' नामक धुन अत्यन्त मधुर और कर्णप्रिय लगी। इसके अलावा ताय हायहान ओपेरा एवं ताय भाषा की फ़िल्म 'मंगलुंग शा' का 'एक सुन्दर जगह' शीर्षक गीत भी बहुत चित्ताकर्षक लगा। संगीतकार वेइनुंग रू द्वारा ताय जाति के गीत-संगीत को विलुप्त होने से बचाने के लिये किये जा रहे प्रयास भी स्तुत्य लगे।

    अज़ीबोग़रीब और चटपटी बातों के खण्ड में चीन में बने ऐसे ख़ास पेपर, जिसे लिखायी के लिये चालीस बार उपयोग में लाया जा सकता है और जो पर्यावरण अनुकूल है, के बारे में दी गई जानकारी सभी के लिये उपयोगी और उत्साहवर्द्धक है। चीन में बने 'लकी नॉट' नामक पुल पर दी गई जानकारी इससे पहले भी सीआरआई के अन्य कार्यक्रमों में प्रसारित हो चुकी थी। इसी प्रकार हुपए प्रान्त में बने अद्भुत एस्केलेटर सम्बन्धी जानकारी भी पूर्वप्रसारित थी। कृपया ऐसी पुनरावृत्ति से बचें, तो अच्छा होगा। कार्यक्रम के बीच बजाया गया पंजाबी गीत 'रांझण दे यार बुलिया.......भी बहुत दिलकश लगा। मनोरंजन समाचारों में इस शुक्रवार रिलीज़ हुई हिन्दी फ़िल्म 'रॉक ऑन 2' की चर्चा के साथ उसका प्रोमो सुनवाया जाना फ़िल्मों के प्रति श्रोताओं में दिलचस्पी पैदा करने के प्रयास जैसा लगा। जब कि आज पेश जोक्स में नम्बर तीन जोक सब से उम्दा लगा। धन्यवाद् फिर एक अच्छी प्रस्तुति के लिये।

    रोज़मर्रा की चीनी-भाषा पाठ्यक्रम में आज का नया पाठ शुरू करने से पूर्व मैडम श्याओ थांग और राकेश वत्सजी द्वारा चीनी में अस्पताल में जाकर डॉक्टर को दिखाने में काम आने वाले वाक्यों का दोहराया जाना अच्छा लगा। धन्यवाद्।

    केसिंगा दिनांक 14 नवम्बर को ललिताजी द्वारा पेश साप्ताहिक "आर्थिक जगत" के तहत युवा व्यापारी वांग शू ची की कहानी सुनी, काफी दिलचस्प और प्रेरक लगी। कहानी सुन कर पता चला कि बचपन ही से वांग का सपना फ़िल्म निर्देशक बनना था, परन्तु क़िस्मत ने उनका साथ नहीं दिया, उन्होंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी और अपना उद्यम ज़ारी रखा। स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्य में भी हाथ आज़माया, परन्तु बात फिर भी नहीं बनी। वांग वर्त्तमान में पुस्तक प्रकाशन क्षेत्र में सक्रिय हैं, जिसमें उन्हें सफलता भी मिल रही है, परन्तु उनका अन्तिम लक्ष्य तो फ़िल्म निर्देशक बनना ही है। मैं उनके ज़ज़्बे को सलाम करते हुये उनका स्वप्न साकार होने की कामना करता हूँ।

    कार्यक्रम "जीवन के रंग" के अन्तर्गत आज वनिताजी द्वारा यात्रा पर निकलने से पूर्व तैयारी सम्बन्धी विषय पर महत्वपूर्ण टिप्स प्रदान किये गये। इसके अलावा सबसे पुराने फलों में से एक केले की पौष्टिकता पर भी उन्होंने अच्छी जानकारी दी। वास्तव में, केले पर छिलका होना उसे विशिष्ट बनाता है, क्यों कि छिलके का आवरण ही उसे प्राकृतिक तौर पर संक्रमण मुक्त बनाता है। कार्यक्रम के अन्त में सुनवाया गया 'बेजोड़ सुन्दरता' शीर्षक चीनी गीत भी कानों में मिश्री सी घोल गया। धन्यवाद् एक अच्छी प्रस्तुति के लिये।

    साप्ताहिक सीआरआई भ्रमण को विराम देकर लीला भट्ट द्वारा चीनी नीति-कथाएं पेश किया जाना काफी ज्ञानप्रद लगता है। कार्यक्रम "चीनी कहानी" के तहत आज लीलाजी द्वारा पेश 'मैना द्वारा मनुष्य के बोलने को सीखना' (पा क श्वे श्य) तथा 'पौधों को लम्बा खींचना' (या म्याओ च्यु च्यान) शीर्षक दो कहानियां पेश की गयीं, जो कि भारतीय पंचतन्त्र की कहानियों की तरह सन्देशपूर्ण और ज्ञानवर्द्धक लगीं। कृपया उक्त श्रृंखला को ज़ारी रखने का कष्ट करें। धन्यवाद्।

    हैया:आगे सुरेश जी लिखते हैं…

    केसिंगा दिनांक 15 नवम्बर को ताज़ा अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों के बाद हमने साप्ताहिक "चीन-भारत आवाज़" भी पूरे मनोयोग से सुना। जिसके तहत आज ब्रह्मकुमारी संस्थान के सत्यनारायण जी से ली गई भेंटवार्ता सुनवायी गई। यद्यपि, एक पुराना और नियमित श्रोता होने के कारण उनसे ली गई भेंटवार्ता मैं पहले भी सीआरआई पर सुन चुका था, फिर भी यह भेंटवार्ता काफी सन्देशपूर्ण लगी। वास्तव में, ईश्वरीय अनुभूति किसी के कहने पर नहीं, स्वयं महसूस करने की चीज़ है। जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा एवं शुध्द आहार का जीवन में होना कितना ज़रूरी है, इस पर भी उन्होंने बखूबी प्रकाश डाला। धन्यवाद् इस भेंटनुमा भेंटवार्ता के लिये।

    साप्ताहिक "नमस्कार चाइना" का आग़ाज़ 'मरते दम तक मैं तुम से प्यार करता रहूँगा' शीर्षक मधुर चीनी गीत से किया जाना रुचिकर लगा। विशेष सेगमेण्ट में सीमा-विवाद के बावज़ूद चीन-भारत द्विपक्षीय सम्बन्धों के निरन्तर परवान चढ़ने सम्बन्धी विस्तृत चर्चा अत्यन्त महत्वपूर्ण लगी, परन्तु जैसा कि आपने स्वयं भी कहा कि -दोनों देशों के बीच बढ़ता व्यापार घाटा निश्चित तौर पर चिन्ता का विषय हैं। इसमें किसी पर दोषारोपण की कोई वज़ह नहीं, परन्तु दोनों देशों के बीच कोताही अवश्य बरती जा रही है, जिससे इस खाई को पाटना मुश्किल हो रहा है। यदि चीन-भारत दोनों ही देशों को दीर्घकालिक व्यापारिक साझेदारी निभानी है, तो संतुलन बैठाना अनिवार्य है। प्रसारण में आगे एकाएक उत्पन्न रिसैप्शन सम्बन्धी गड़बड़ी के कारण कार्यक्रम का शेष हिस्सा नहीं सुना जा सका, जिसका मुझे खेद है। मैं अपनी जानकारी दुरुस्त करने अगली सभा का प्रसारण अवश्य सुनूँगा, परन्तु आज की त्वरित टिप्पणी में आपको इतना ही लिख कर भेज रहा हूँ। कृपया रिसैप्शन की स्थिति पर अवश्य ध्यान दीजियेगा। धन्यवाद्।

    केसिंगा दिनांक 16 नवम्बर को मैडम श्याओ यांग की साप्ताहिक प्रस्तुति "विश्व का आइना" हर बार की तरह आज भी लाज़वाब रही, जिसमें उन्होंने बीते सप्ताहांत चीन तथा विश्व के अन्य देशों में मनाये गये शॉपिंग डे कार्निवल पर महती जानकारी प्रदान की। जहाँ कार्यक्रम सुन कर चीन में सब से बड़े ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के तौर पर उभर रहे अलीबाबा के बारे में पता चला, वही इस शॉपिंग डे के अवसर पर चीन की 16 ई-कॉमर्स कंपनियों के कारोबार सम्बन्धी आंकड़े भी चौंकाने वाले लगे। वास्तव में, चीन अब इस क्षेत्र में अपना कोई सानी नहीं रखता। इस परिप्रेक्ष्य में अलीबाबा एक्सप्रेस समूह सेवाओं की रूस और ब्राजील में मची धूम पर भी अहम् जानकारी हासिल हुई। धन्यवाद इस सूचनाप्रद प्रस्तुति के लिये।

    अनिल:सुरेश जी, पत्र भेजने के लिये बहुत धन्यवाद। आगे पेश है छत्तीसगढ़ से चुन्नीलाल कैवर्त जी का पत्र। उन्होंने लिखा है....

    'चीन की झलक' मेरा प्रिय कार्यक्रम है। पिछले दिनों इस कार्यक्रम में चीनी अल्पसंख्यक जाति – ताई जाति के 200 साल पुराने ओपेरा और ताई ओपेरा के बेहतरीन कलाकार जिन पाओ का परिचय मिला। 20 मई 2006 को ताई ओपेरा चीनी राष्ट्र स्तरीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल हुआ। 17 वर्ष की उम्र में जिन पाओ नृत्य गान मंडली में शामिल हो गया।उसके द्वारा प्रस्तुत"अपिंग और सांगलो", "हाई हान"और"नान शीला"जैसे ताई ओपेरा के नाटक ताई लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।"अपिंग और सांगलो"के ओपेरा नाटक में अपिंग और सांगलो की प्रेम कहानी सुनाई गई है।जिन पाओ का दूसरा ताई ओपेरा नाटक"हाई हान"भी ताई जाति में लोकप्रिय है।ताई ओपेरा हमारी ताई जाति का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक ब्रैंड है। ताई जाति के लोग, चाहे बूढ़े हो, या बच्चे, सब लोगों को यह देखना पसंद है।ताई जाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी इसका संरक्षण, विस्तार और विकास करने में संलग्न हैं।यह बहुत अच्छी बात है कि युन्नान प्रांत के दअहोंग ताई जाति और चिंगपो जाति स्वायत्त प्रिफेक्चर के कुछ प्राइमरी स्कूलों में ताई ओपेरा कक्षा खोली गई हैं।विश्वास है कि इन स्कूलों के माध्यम से छोटे बच्चे से सीखाने के चलते ताई ओपेरा का जरूर और विकास होगा।

    एक अन्य कार्यक्रम में ताई जाति के ही मशहूर संगीतकार श्री वेई मिंगरू का परिचय मिला। दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के दअहोंग ताई और चिंगफो जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर में ताई बहुल क्षेत्र है। ताई जाति की अपनी भाषा और लिपि ही नहीं, संगीत शैली और खास वाद्ययंत्र भी मौजूद हैं। ताई लोग नाच-गान में निपुण हैं। खेती की जमीन पर और आग का घेराव कर ताई लोग गाते हुए नाचते हैं।वेई मिंगरू द्वारा रचे गए ताई गीतों की धुन में छंगज़ी पहाड़ी गीत, पाज़ी पहाड़ी गीत, मोर धुन और रेइली धुन आदि शामिल हैं, जिनके विषयों में अधिकतर ताई लोगों के सुखमय जीवन, परंपरागत त्योहार, जन्मभूमि का गुणगान है।अधिक श्रोताओं को ताई गीत समझाने और ताई संगीत को विरासत के रूप में ग्रहण करते हुए उसका आगे विकास करने के लिए वेई मिंगरू ने ताई गीतों के बोल को चीनी हान भाषा के शब्दों में डाला।कार्यक्रम के अंत में फिल्म"मंग लोंगशा"का प्रमुख गीत"एक सुन्दर जगह" सुनने को मिला। गीत के बोल कुछ इस प्रकार है:एक सुन्दर जगह है, जहां ताई जाति के लोग रहते हैं। यह गीत मुझे बहुत ही कर्णप्रिय लगा।

    चीनी वाद्ययंत्र हूलूसी के जन्मस्थान—मंङ यांग ने तो मेरे दिल को छू लिया। दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत के दअहोंग ताई और चिंगफो जातीय स्वायत्त प्रिफेक्चर की ल्यांग ह कांउटी का मंङ यांग कस्बा वाद्ययंत्र हूलूसी का जन्म स्थान है, जहां इधर-उधर उगाई गई विभिन्न प्रकार की लौकियां देखी जा सकती हैं। लौकी को चीनी भाषा में हूलू कहा जाता है। हूलूसी लौकी से बनाए गए एक प्रकार का वाद्ययंत्र है, जो हूलू यानी लौकी और बांस से बनाया जाता है।जब तांबे की पत्ती और बांस पाइप की प्रतिध्वनि से आवाज़ निकलती है, तो मधुर धुन सुनाई देती है। अब ताई जाति का वाद्ययंत्र हूलूसी देश भर में ही नहीं, विश्व भर में भी प्रसिद्ध हो गया है। कार्यक्रम में हूलूसी के जन्म के बारे में सुनाई गई लोककथा बड़ी ही दिलचस्प लगी। हूलूसी बजाने वाले अभिनेता और संगीतकार कन त्सोंगक्वो और कन दअछ्वान की जीवन कहानियाँ बहुत ही रोचक और प्रेरणादायक लगीं।

    यहाँ पर मैं बताना चाहूँगा कि हमारे छत्तीसगढ़ में भी लौकियों से निर्मित कई प्रकार के लोक वाद्य पाये जाते हैं। हूलूसी से हीमिलता जुलता वाद्य 'तमूरा' होता है ,जिसकी ध्वनि मधुर होती है।बहरहाल चीन की झलक में बेहतरीन जानकारियाँ देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

    अनिल:दोस्तो, हाल ही में भारत में 'चीन पर्यटन वर्ष'के उपलक्ष्य में सीआरआई ने 'मैं और चाइना'शीर्षक लेख प्रतियोगिता का आयोजन किया। कई लोगों ने हमें ईमेल और पत्र भेजे। पिछले सप्ताह की तरह इस बार के आपका पत्र मिला कार्यक्रम के अंत में हम लेख शामिल करेंगे। अगला लेख है केसिंगा उड़ीसा से सुरेश अग्रवाल का। उन्होंने लिखा है ...

    भारत में "चीन पर्यटन वर्ष" महोत्सव-2016 के उपलक्ष्य में चाइना रेडियो इन्टरनेशनल द्वारा आयोजित "मैं और चाइना" शीर्षक रचनाओं की प्रतियोगिता में भाग लेते हुये मुझे अपार प्रसन्नता हो रही है। क्योंकि आप मुझे चीन-यात्रा का मौक़ा दे चुके हैं, इसलिये मैं अपनी उसी यात्रा को केन्द्रित कर "मेरी चीन यात्रा" विषय पर अपने अनुभव साझा करते हुये प्रतियोगिता हेतु अपनी प्रविष्टि प्रेषित कर रहा हूँ। धन्यवाद।

    तेरह नवम्बर 2015 की तिथि मेरे जीवन की एक यादगार घटना के तौर पर सदैव के लिये अंकित होकर रह गयी है। जी हाँ, इसी दिन चाइना रेड़ियो इण्टरनेशनल के आमंत्रण पर मुझे चीन जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। चार दशक से लगातार सीआरआई हिन्दी से जुड़ा होने के कारण चीन के बारे में यूँ तो मुझे बहुत सी बातों की जानकारी थी, फिर भी एक नया देश और उसकी आब-ओ-हवा को देखने, जानने की गहन उत्कण्ठा मन में बनी थी। साथ में थीं कुछ भ्रान्तियाँ भी। चीन जाने से पूर्व उसकी जो तस्वीर ज़हन में उभर रही थी और जो मिथक मन में पल रहे थे, वहां पहुँचने के बाद उन सभी का अवसान घटित हो गया।

    जहाँ एक ओर चीन देखने की उत्कट इच्छा थी, तो वहीं दूसरी ओर वहां की भाषा और खान-पान की समस्या मन में अनेक प्रश्न खड़े कर रही थी। अन्ततः साढ़े पांच घण्टे की लम्बी उड़ान के बाद विमान शांगहाई के पुदोंग हवाई अड्डे पहुंचा, जहाँ से उड़ान बदल कर मुझे पेइचिंग जाना था। सुरक्षा जाँच आदि की औपचारिकताएं पूरी होने के बाद स्थानीय समयानुसार दोपहर बाद 2.25 बजे उड़ान में सवार होकर पेइचिंग पहुंचा तो शाम के चार बज चुके थे और काफी सर्दी महसूस होने लगी थी। अब जो बात मैं आपसे साझा करना चाहता हूँ, वह पेइचिंग में कदम रखते ही मेरी चीन यात्रा का ऐसा अनुभव है, जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। नई दिल्ली से उड़ान भरते समय मैं ने लगेज तौर पर जो ट्रॉली-बैग ज़मा कराया था, किसी ग़लतफ़हमी के चलते वह शांगहाई से पेइचिंग हेतु बदली गई उड़ान में नहीं रखा गया और पेइचिंग पहुँचने पर जब मुझे मेरा सामान नहीं मिला, तो मैं कितना हैरान-परेशान था, बयान करना मुश्किल है। मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाये। तभी मन में ख्याल आया कि क्यों न हिन्दी विभाग के किसी सहयोगी को फ़ोन किया जाये। मैंने एयरपोर्ट पर एक सम्भ्रान्त चीनी महिला से एक फ़ोन कॉल मिलाने का आग्रह किया, तो वह तुरन्त सहमत हो गयी और मैंने हिन्दी विभाग के सहयोगी को पूरा माज़रा कह सुनाया। सहयोगी ने बतलाया कि श्याओ थांग जी बाहर आपका इन्तज़ार कर रही हैं, आप तुरन्त उन से मिल लीजिये। प्रश्न उठता है कि यदि वह सम्भ्रान्त चीनी महिला सहयोग न करतीं तो न जाने मुझे और कितना परेशान होना पड़ता ! मैं ने तो उन भद्र महिला का शुक्रिया भर अदा किया और वह मुस्कुरा कर चल दीं। मैंने उनके चेहरे पर अहसान नहीं, संतोष का भाव देखा।

    तनाव के इन क्षणों में एयरपोर्ट पर मुझे जो सहयोग मिला, उसे भी शब्दों में व्यक्त करना मेरे लिये सम्भव नहीं और चीन के प्रति मन में समायी पहली भ्रान्ति यहीं टूट गयी। मैं प्रशंसा करना चाहूँगा एयरपोर्ट कर्मचारियों और अधिकारियों की, जो कि भाषा कठिनाई के बावज़ूद मेरी बात पर पूरा ध्यान दे रहे थे और जिन्होंने मेरी शिकायत पर तुरन्त शांगहाई एयरपोर्ट से सम्पर्क स्थापित कर मेरा सामान वहां सुरक्षित होने की पुष्टि की। यहाँ मैं इतना स्पष्ट ज़रूर करना चाहूँगा कि यदि इस काम में चाइना रेड़ियो की ओर से मुझे एयरपोर्ट लेने पहुंचीं मैडम श्याओ थांग जी मदद न करतीं, तो शायद ही मुझे मेरा खोया सामान मिल पाता ! एयरपोर्ट अधिकारी पूरा सहयोग कर रहे थे, परन्तु चीनी भाषा न आने के कारण मैं उन्हें अपनी बात सही ढ़ंग से नहीं समझा पा रहा था, इसलिये बात आगे नहीं बढ़ पा रही थी। श्याओ थांग जी ने पूरी बात समझायी, तो समस्या सुलझ गयी और मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ अपने होटल की ओर चल दिया। यहाँ पहुँच कर मैंने यह भी अनुभव किया कि चीन में केवल अंग्रेज़ी भाषा से काम नहीं चलाया जा सकता और चीनी लोग अपनी भाषा से बहुत प्यार करते हैं।

    हैया:आगे सुरेश जी लिखते हैं....

    इसी तरह एक अन्य वाकये ने भी मुझे बहुत प्रभावित किया। होटल पहुँचने के बाद रात को सीआरआई हिन्दी विभाग के दो साथी मुझ से मिलने वहां आये। हम होटल के लाउंज में कहीं एक जगह बैठ कर इत्मीनान से बातचीत करना चाहते थे। मैंने देखा कि तीन लोगों के बैठने के एक सोफ़े पर एक बुजुर्ग महिला बैठी हैं और बाकी सोफ़े दो लोगों के बैठने के लिये उपयुक्त हैं। हम बैठने के लिये इधर-उधर उपयुक्त स्थान की तलाश कर रहे थे, कि बुजुर्ग चीनी महिला हमारी बात समझ गयीं और उन्होंने हमारे लिये वह सोफ़ा छोड़ दिया। शिष्टाचार की ऐसी मिसाल शायद ही कहीं और देखने को मिले !

    चीन जाने से पूर्व मेरे मन में एक भ्रम यह था कि वहां विदेशियों को घूर-घूर कर देखा जाता होगा, मेरी यह धारणा भी मिथ्या साबित हुई। वास्तव में, चीनी लोग विदेशियों के साथ अधिक मित्रवत होते हैं। यदि आप किसी राह चलते व्यक्ति से भी कुछ पूछना चाहते हैं, तो वह न केवल आपकी बात सुनता है, अपितु उसके समाधान की कोशिश भी करता है। स्वच्छ्ता तो जैसे उनके स्वाभाव में समायी है।

    चीन एक बहुत ही सुन्दर देश है और प्रकृति की सभी छटाएं वहां विद्यमान हैं और वहां के लोग भी अतिथि परायण हैं। अपनी चीन यात्रा के दौरान मुझे एक ही चीज़ की कुछ परेशानी महसूस हुई, वह थी खानपान की। विशुद्ध शाकाहारी होने के कारण मुझे हर चीज़ पूछ कर खानी होती थी। मेरी राय में यदि चीन के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर शुद्ध शाकाहारी भोजन की सहज सुलभता हो, तो भारतीय पर्यटक यूरोप और अमेरिका से ज़्यादा चीन जाना पसन्द करेंगे। धन्यवाद।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल और हैया को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

    हैया:गुडबाय।

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