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    आपका पत्र मिला 2016-11-02
    2017-03-05 15:43:31 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार।

    हैया:सभी श्रोताओं को हैया का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिल:दोस्तो, पहले की तरह आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे।

    चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हमें आया है, पश्चिम बंगाल से मॉनिटर रविशंकर बसु का। उन्होंने लिखा है......

    दिनांक 23 अक्टूबर ,ताज़ा समाचार सुनने के बाद "संडे की मस्ती" प्रोग्राम सुना।

    आज "संडे की मस्ती" कार्यक्रम में मैडम श्याओ थांग जी द्वारा पेश रिपोर्ट में चीनी अल्पसंख्यक जाति ताई जाति का ओपेरा के बारे में जानकारी दी गई, जो मुझे काफी पसंद आयी।रिपोर्ट से पता चला कि ताई ऑपेरा दक्षिण पश्चिमी चीन के युन्नान प्रांत में प्रचलित है। वर्ष 2006 में ताई ओपेरा को पहले चीनी राष्ट्र स्तरीय गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासतों की सूची में शामिल किया गया। ताई ओपेरा का इतिहास करीब 200 साल पुराना है।ताई ओपेरा ताई जाति का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक ब्रांड है। ताई जाति के लोग ताई ओपेरा देखना बहुत पसंद करते हैं। जिन पाओ ताई ओपेरा के उत्तराधिकारी हैं। 17 साल की उम्र में जिन पाओ ताई ओपेरा नृत्य मंडली में शामिल हुए। छह साल के बाद वह अभिनय दल के उप निदेशक बने, और फिर 8 साल बाद दल प्रमुख निदेशक बने। उनके द्वारा प्रस्तुत "अपिंग और सांगलो", "हाई हान"और "नान शीला" जैसे ताई ओपेरा के नाटक ताई लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। "अपिंग और सांगलो" के ओपेरा नाटक में अपिंग और सांगलो की प्रेम कहानी सुनाई जाती है। बताया जाता है कि यह कहानी ताई जाति के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है, जिससे ताई जाति के लोगों में सुखमय जीवन की खोज जाहिर होती है।जिन पाओ का दूसरा ताई ओपेरा नाटक "हाई हान" भी ताई जाति में लोकप्रिय है। इसमें दो पड़ोसी देशों के बीच भूमि विवाद के कारण हुए युद्ध की कहानी बतायी जाती है।ताई जाति के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी ताई ओपेरा का संरक्षण, विस्तार और विकास करने में संलग्न हैं।ताई ओपेरा के बारे में दी गई जानकारी रोचक होने के साथ साथ ज्ञानप्रद भी रही।

    अजीबोगरीब जानकारियों के क्रम में सुना है कि हाल ही में चीन के शंघाई में दुनिया की सबसे बड़ी सोने की अंगूठी प्रदर्शित की गई है। मई महीने में इसे गिनीज वर्ल्ड रिकार्ड्स में शामिल किया गया। इसका वजन 82.2 किलोग्राम और कीमत 29.73 करोड़ रुपए है।वहीं दूसरे विश्व युद्ध की ब्रेकिंग न्यूज देने वाली ब्रिटिश पत्रकार क्लेयर होलिंगवर्थ (Clare Hollingworth) ने पिछले 10 अक्टूबर को हांगकांग में विदेशी पत्रकारों के क्लब में अपना 105वां जन्मदिन मनाया। उन्होंने द डेली टेलीग्राफ में यह खबर दी थी कि जर्मनी के सैकड़ों टैंक पोलैंड की सीमा पर जमा हो गए हैं। वे हमले के लिए तैयार हैं।उन्होंने दो बार शादी की और 1980 के दशक से हांगकांग में रह रही हैं।"Happy Birthday to Clare Hollingworth!"

    चीन के शिन्च्यांग प्रांत के काशगर शहर में 71 साल के एक दूल्हे का 114 साल की दुल्हन से विवाह किया जाना सच में आश्चर्य की बात है।बाकायदा इस प्रेम-विवाह से यह जाहिर है कि सच्चा प्यार हमको जिन्दगी में कभी भी हो सकता है, इसके लिए कोई उम्र नहीं होती है।प्रेरक कहानी सेगमेंट में 22 वर्षीय युवती प्रियंका योशिकावा की मिस जापान बनने की कहानी वास्तव में मेरे दिल जीत लिया।यह पहला मौका है जब किसी भारतीय मूल की युवती ने यह खिताब हासिल किया है। प्रोग्राम के अंत में '31 अक्टूबर' फिल्म का ट्रेलर सुनवाया जाना भी अच्छा लगा। धन्यवाद।

    हैया:आगे बसु जी लिखते हैं…

    दिनांक - बुधवार 26 अक्टूबर को समाचार सुनने के बाद मैडम श्याओ यांग जी द्वारा पेश "विश्व का आईना" प्रोग्राम और उसके बाद अनिल पांडेय जी और हैया जी द्वारा पेश साप्ताहिक "आपका पत्र मिला " प्रोग्राम सुना।

    आज "विश्व का आईना" कार्यक्रम में मैडम श्याओ यांग जी ने हमारे दैनिक जीवन में नोबेल पुरस्कार के आविष्कारों के महत्व के बारे में एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट पेश की। वास्तव में नोबेल पुरस्कार हमारे जीवन से दूर नहीं हैं। वे हमारे पास ही हैं। विज्ञान जीवन को बदल सकता है। स्कॉटलैंड के रसायनशास्त्री सर विलियम रामसे ने 1898 में निष्क्रिय गैसों का पता लगाया। ये गैसें हवा में मौजूद होती हैं लेकिन किसी से रिएक्ट नहीं करती। इनमें गुब्बारे उड़ाने वाली हीलियम भी शामिल है और नियॉन भी। इस आविष्कार के साथ ही उन्होंने प्रकाश लैंप की दुनिया को खोला। इस महान गैसों की खोज के लिए उन्होंने 1904 में रसायन विज्ञान में नोबेल पुरस्कार जीता। इतालवी वैज्ञानिक मार्कोनी को 1909 में वायरलेस टेलीग्राफी के लिए नोबेल पुरस्कार मिला। संचार की दुनिया में रेडियो का आविष्कार सबसे बड़ी सफलता है। आज इसके आविष्कार के बाद ही टेलीविजन और मोबाइल क्रांति संभव हो पाई है। 1956 में अमेरिकी वैज्ञानिक विलियम शॉकली, जॉन बारडीन और वाल्टर ब्राटेन ने सेमी कंडक्टर का अनुसंधान करने के बाद ट्रांजिस्टर का आविष्कार कर एक साथ भौतिकी में नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया था।आज का सूचना क्रांति वाला समाज और इंटरनेट युग उनके आविष्कारों से ही शुरू हुआ था।दशकों पहले कई बीमारियों के इलाज के लिए कोई कारगर दवा नहीं थी। वर्ष 1928 में स्कॉटलैंड के चिकित्सक एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पहली एंटीबायोटिक दवा पेनिसिलिन का आविष्कार किया था। 1945 में उनको चिकित्सा का नोबल पुरस्कार मिला। आधुनिक चिकित्सा के बढ़ते कदमों में एंटीबायोटिक की खोज निःसन्देह एक लंबी छलांग है। आज भी एंटीबायोटिक सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली दवा है, और अक्सर लोगों की जान बचाने के काम आती है। रासायनिक तत्व डीडीटी कीड़ों को मारता है, लेकिन स्तनपायी प्राणियों के लिए जहरीला नहीं है। 1948 में स्विस वैज्ञानिक पॉल हरमन मुलर ने इसका पता किया और फिजियोलॉजी या चिकित्सा में पुरस्कार जीता था। उसके बाद डीडीटी दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला कीटनाशक बन गया। आजकल उसका इस्तेमाल सिर्फ मलेरिया के मच्छरों को मारने के लिए होता है। विज्ञान ने हमारे जीवन को इतना सुलभ कर दिया है। इन नोबेल पुरस्कार विजेताओं के आविष्कारों से हमारा जीवन और सुंदर बना है।

    इसके बाद दूसरी रिपोर्ट में नोबेल पुरस्कार पाने वाले व्यक्तियो की औसत आयु से जुड़े कुछ रोचक तथ्य हमें जानने को मिले। यह जानना सचमुच दिलचस्प लगा कि साल 2016 के भौतिक विज्ञान, चिकित्सा और रसायन शास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार विजेता सभी पुरूष हैं और कम से कम 65 साल और अधिकांश 72 साल के हैं। सभी पुरस्कार श्रेणियों में वर्ष 1901 से 2014 के बीच नोबेल पुरस्कार विजेताओं की औसत उम्र 59 वर्ष है।रिपोर्ट में सुना कि वर्नर हाइजेनबर्ग और पॉल डिराक केवल 31 साल के थे जब वे 1930 के दशक में भौतिक विज्ञान में नोबेल पुरस्कार विजेता बने थे। दोनों को क्वांटम यांत्रिकी पर काम करने के लिए नोबेल मिला था। नोबेल संग्रहालय के एक वरिष्ठ क्यूरेटर गुस्ताव कालस्ट्रेंड के मुताबिक

    नोबेल पुरस्कार जीतने में कई साल लग जाते हैं। 100 साल पहले की तुलना में आज शांति के लिए काम करने वाले हजारों अधिक लेखक, अर्थशास्त्री और लोग भी हैं। भौतिकी का नोबेल प्राप्त करने वाले चिकित्सा के क्षेत्र के अपने नोबेल विजेता साथियों की तुलना में तेजी से बूढ़े हो रहे है। गुस्ताव कहते हैं कि तेजी से बढ़ती वैज्ञानिकों की जनसंख्या पुरस्कार के लिए विजेताओं को सालों का इंतजार कराएगी। इसका ये भी मतलब है कि मौजूदा समय में पुरूषों की तुलना में महिलाओं का असंतुलित अनुपात ये दिखाता है दशकों पहले दुनिया कैसी दिखती थी। मैरी क्यूरी एकमात्र महिला हैं जिन्हें दो बार नोबेल पुरस्कार मिला, 1903 में रेडियोएक्टिविटी समझने के लिए फिजिक्स में और 1911 में पोलोनियम और रेडियम की खोज करने के लिए केमिस्ट्री में। जब 1903 में मैरी क्यूरी को नोबेल पुरस्कार के लिए नामित नहीं किया गया तो उनके पति और विकिरण में संयुक्त शोधकर्ता ने इसका विरोध किया और पुरस्कार स्वीकार करने से मना कर दिया। बाद में पैनल ने उनका नाम देर से जमा किया 1902 का सबमिशन स्वीकार किया और वह नोबेल पुरस्कार जीतने वाली पहली महिला बन गई। आज के प्रोग्राम में नोबेल की दुनिया के कुछ रोमांचक तथ्य हमें देने के लिए सी आर आई हिंदी सेवा को बहुत बहुत धन्यवाद।

    अनिल:बसु जी, पत्र भेजने के लिये बहुत धन्यवाद। आगे पेश है ओडिसा से सुरेश अग्रवाल का पत्र। उन्होंने लिखा है..

    केसिंगा दिनांक 31 अक्तूबर को अन्तर्राष्ट्रीय समाचारों के बाद आज हमें वह सुनने को मिला, जिसे सुनने का हमें काफी इन्तज़ार था। जी हाँ, सीआरआई द्वारा आयोजित 'मैं और चाइना' शीर्षक प्रतियोगिता के विजेताओं के नाम घोषित किये जाने का शुक्रिया। मैं तमाम विजेताओं के साथ- साथ उन सभी श्रोताओं को भी बधाई देना चाहता हूँ, जिन्होंने बढ़-चढ़ कर प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और उसे सफल बनाया। धन्यवाद् एकबार फिर प्रतियोगिता परिणाम घोषित किये जाने का।

    साप्ताहिक "सीआरआई भ्रमण" के तहत चीन में उच्च शिक्षित और अधिक आय वाले युवाओं के बीच विदेशों में जाकर महंगी शादियाँ रचाने के बढ़ते चलन पर महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई। यह जान कर हैरत हुई कि एक चीनी जोड़े द्वारा थाइलैण्ड के फूकेट नामक पर्यटन स्थल पर रचाई गयी इसी तरह की एक रोमेण्टिक शादी पर अस्सी लाख युआन ख़र्च किये गये, जिसे सुन सहसा कानों पर यक़ीन करना मुश्किल था। कृपया स्पष्ट करें कि -"क्या शादी पर हुये ख़र्च का यह आंकड़ा सही है ? वैसे यह जानकारी महत्वपूर्ण थी कि चीन के क्वांगचो में टूटू और थांग छुंग नामक कम्पनियाँ इस तरह की पर्यटन शादी, पर्यटन फ़ोटोग्राफ़ी और पर्यटन हनीमून गतिविधियों का आयोजन करती हैं। धन्यवाद् एक सूचनाप्रद प्रस्तुति हेतु।

    कार्यक्रम "आर्थिक जगत" के अन्तर्गत अमरीका की विंटेज़ फ़ैशन संस्कृति का चीन में प्रसार करने वाले चीनी लड़के वेई सिन, जिसका जन्म थाइवान में हुआ, की कहानी काफी प्रेरक लगी। कार्यक्रम सुन पता चला कि वह पेइचिंग में पले-बढ़े और अमेरिका गए और वहां विंटेज़ से इतने प्रभावित हुये कि उसका विस्तार चीन में करने की ठान ली। वेई सिन पेइचिंग की पहली विंटेज फ़ैशन दुकान रैडीयेंस एंड ब्लू के संस्थापक हैं। पता चला कि स्कूली दिनों में वेई सिन को जींस पहनना बहुत पसंद था, जिसके चलते अमेरिका के विंटेज फ़ैशन में उनकी रुचि बढ़ने लगी। इसके बाद अमेरिका में रहने के दौरान उन्होंने बहुत से विंटेज सिलेक्ट शॉप का दौरा किया और बहुत कुछ सीखा। वेई सिन अमेरिकी विंटेज फ़ैशन प्रेमी और उपभोक्ता की हैसियत को बदलकर सिलेक्ट शॉप के स्टाफ़ और शोधकर्ता बन गए। वर्ष 2013 में वेई सिन ने चीन वापस लौट कर रैडीयेंस एंड ब्लू स्थापित किया। परंपरागत विंटेज फ़ैशन का सम्मान करने के साथ-साथ वे अपने नए और विशेष विचारों को भी इस दुकान में डालते हैं। ऐसे में वे न सिर्फ़ अमेरिकी विंटेज संस्कृति को फैलाने का काम करते हैं, बल्कि अपनी रुचि को अपना भविष्य भी बनाते हैं।

    उन्हें लगता है कि उनकी तरह के लोग, जो विंटेज संस्कृति को पसंद करते हैं, संस्मरण की भावना होने के बजाए शिल्प और सामग्रियों की दृष्टि से और तर्कसंगत ढ़ंग से प्राचीन वस्तुओं को देखते हैं। पहले की ही तरह कपड़े पहनने वाले लोग, वे गंभीर विंटेज फ़ैशन प्रेमी हैं। ये लोग इसमें लगे रहते हैं कि अमेरिका की वस्तु अमेरिका की ही वस्तु है, गत 40 के दशक की वस्तु उसी युग की ही वस्तु है। उन्हें लगता है कि, वास्तव में जो कपड़े वह पहनते हैं, वे पुराने फ़ैशन से थोड़ा अलग हैं। वह विंटेज फ़ैशन के बारे में अपने विचार और समझदारी को कपड़ों में डालते हैं। वैसे भी इस तरह की नई सोच रखने वाले युवाओं की कमी नहीं है, जो कि पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित हैं। धन्यवाद् इस विशेष प्रस्तुति के लिये।

    कार्यक्रम "जीवन के रंग" के तहत पढ़ा गया श्री महेशचन्द्र का लेख 'दीपावली ला दार्शनिक पक्ष' काफी अर्थपूर्ण लगा। वैसे उच्चारण सम्बन्धी कठिनाई के चलते समझने में कुछ मुश्किल अवश्य पेश आयी, परन्तु लेख का निहित अर्थ काफी अहम् था। धन्यवाद्।

    हैया:आगे सुरेश जी लिखते हैं…केसिंगा दिनांक 30 अक्तूबर को भारत में प्रकाश-पर्व दीपावली मनाया जा रहा है। इस अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं !

    साप्ताहिक "सन्डे की मस्ती" ठीक दीपावली के दिन होने के कारण आज त्यौहार का मज़ा दुगुना हो गया। 'द दीपावली स्पेशल' के तहत अखिल एवं सपनाजी द्वारा दीपावली मनाये जाने पर अहम् जानकारियां प्रदान की गयीं। वास्तव में, दीपावली एक धार्मिक पर्व ही नहीं, इसका सरोकार व्यापार और वाणिज्य से भी जुड़ा हुआ है। भगवान राम, लक्ष्मण और सीता चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या लौटे तो नगरवासियों द्वारा दीप जला कर ख़ुशी मनायी गयी। इसके साथ ही वैश्य समुदाय के लोग इस दिन धन की देवी लक्ष्मी की भी आराधना करते है, ताकि उनके कारोबार में उत्तरोत्तर वृध्दि हो। कार्यक्रम में शेष बातों के अलावा आप द्वारा घरौंदा बनाये जाने की परम्परा पर दी गई जानकारी काफी सूचनाप्रद लगी। इसके अलावा कार्यक्रम में भारतीय श्रोताओं के अलावा चीन में रहने वाले दो भारतीय चांदनी और उमा गौर द्वारा दीवाली कैसे मनाई गयी, पर उनकी आवाज़ें सुनवाया जाना रुचिकर लगा। इस शुक्रवार रिलीज़ हुई फ़िल्म 'ऐ दिल है मुश्किल' तथा 'शिवाय' की चर्चा के साथ उनका प्रोमो सुनावा कर भी आपने सिने-प्रेमियों पर उपकार किया है। धन्यवाद फिर एक अच्छी प्रस्तुति के लिये।

    अनिल:दोस्तो, हाल ही में भारत में 'चीन पर्यटन वर्ष'के उपलक्ष्य में सीआरआई ने 'मैं और चाइना'शीर्षक लेख प्रतियोगिता का आयोजन किया। कई लोगों ने हमें ईमेल और पत्र भेजे। पिछले सप्ताह की तरह इस बार के आपका पत्र मिला कार्यक्रम के अंत में हम लेख शामिल करेंगे। अगला लेख है दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. संजय सिंह बघेल का । उन्होंने लिखा है..

    मेरी चीन यात्रा -"चीन में मेरा अनुभव"

    "खट्टे-मीठे अनुभवों से भरपूर मेरी चीन यात्रा"

    जन्म से ही "हिंदी-चीनी भाई-भाई" का स्लोगन सुनते आ रहे व्यक्ति को जब सचमुच बिछड़े हुए भाई के समान एक-दूसरे से मिलने का मौका मिलता है। तब उत्साह दुगना हो जाता है। कुछ ऐसा ही हुआ हमारे साथ। मेरा कोई सगा भाई तो वहा नहीं था। लेकिन कई रिश्ते खून से अलग होकर भी ऐसे बन जाते हैं। जो खून के रिश्ते से भी बढ़कर होते हैं। ऐसा ही रिश्ता हमारा बना चीन में रहने वाली हमारी उन दो बहनों से। जो बहन न होकर भी। बहन से बढ़कर हैं। दूर रहकर भी जिस रिश्ते की याद बार-बार आती रहे, वही तो असली रिश्ता होता है। बीजिंग विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर वी ली। मिंग और चाइना रेडियो इंटरनेशनल में काम करने वाली थांग युआन गुई के साथ हमारा ऐसा ही रिश्ता तब बना था, जब वो 1995-1997 के दौरान भारत के दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने के लिए आई थी। मेरी इन दोनों से मुलाकात दिल्ली में पढाई के दौरान ही हुई थी। लेकिन ए रिश्ता आजीवन के लिए होगा मुझे भी नहीं पता था।

    खैर वक्त बीतता गया और हम एक दूसरे के संपर्क में किसी न किसी बहाने बने रहे। ऐसे में एक दिन अचानक मुछे वी ली मिंग का मेल मिला की आपका चयन बीजिंग विश्वविद्यालय में होने वाले पहले इंटरनेशनल ईस्टर्न स्टडी वर्कशाप में हो गया है, और आपको चीन आना है। इतना पढ़ते ही मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। और मै सोते-जागते चीन जाने की तैयारी करने लगा। और सचमुच एक दिन चीन के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर था।

    डर तो किसी बात का था नहीं क्योंकि "हिंदी-चीनी, भाई-भाई" का स्लोगन बचपन से जो सुनता अ रहा था। और जब दो हमारी बहने वहां मेरा इंतजार कर रही हो तब घबराहट की कोई बात ही नहीं थी। मै सीधे हवाई अड्डे से निकल कर टैक्सी स्टैंड की तरफ गया। चूँकि मेरी यह पहली चीन यात्रा थी तो मुछे बहुत कुछ पता नहीं था। जैसे ही मै हवाई अड्डे से बाहर निकला एक चीनी भाई मेरे पास आकर बोला। "वेयर यू विल गो" और दूसरी बात बोली "ओह, यू आर फ्राम इंडिया- हिंदी चीनी, भाई-भाई"। मैंने मुस्कुराकर पूंछा "हाउ मच फार पीकिंग यूनिवर्सिटी" एवं उसको अपने पास रखे उस पते को दिखाया, जहाँ मुछे जाना था। उसने बोला। "500 युआन" ये राशि मुछे कुछ ज्यादा लगी। मैंने तुरंत अपना फोन वी ली मिंग को लगाया। उसने कुछ चाइनीज में उससे बात की। फिर टैक्सी वाले भाई ने मुछे फोन वापस पकड़ा दिया। मुछे लगा मेरी मित्र और बहन ने टैक्सी वाले को कुछ समझा दिया होगा। और मै उसके साथ हवाई अड्डे से निकल पड़ा।

    जब मै पीकिंग यूनिवर्सिटी के कैम्पस में पहुंचा तो वहा पर अतिथियों के स्वागत के लिए जो खूबसूरत कन्यायें बैठी थी। मैंने उनसे कहा कि "क्या आप मेरे डालर के बदले मुझे 500 युआन दे सकती है। उन्होंने ऐसा ही किया।" फिर उन्होंने मुझसे पूछा। "आपने उसे कितना दिया था, मैंने कहा "500 युआन" उन्होंने कहा हवाई अड्डे से यहाँ तक का मुश्किल से 100-125 युआन ही लगते है। आपको टैक्सी वाले ने चीट किया है। लेकिन अब तो टैक्सी वाला निकल चुका था। मै मन-ही-मन मुस्कुराया और बोला। सच में "हिंदी-चीनी, भाई –भाई"हैं। क्योंकि भारत में भी ऐसे कई टैक्सी वाले हैं। जो आसानी से किसी भी पर्यटक को मूर्ख बना देते हैं।

    टैक्सी वाले भाई के अनुभव से अलग जब मैं शाम को पीकिंग यूनिवर्सिटी घूमने गया तो वहां की सुविधाएं और वातावरण देखकर मुझे अपने यहां के दिल्ली-विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की याद आ गई। लेकिन पीकिंग यूनिवर्सिटी मुझे अपने यहाँ के दोनों प्रमुख विश्वविद्यालयों से सुविधा के मामले में एक कदम आगे लगी।

    समय बीतता गया, मैं ग्रेट वाल आफ चाइना, फारबिडेन सिटी, थ्येन यान चौक घूमने गया। सब जगह बहुत खूबसूरत लगे। खासकर थ्येन आन चौक में फूलों से सजी क्यारियां, काले पत्थर से निर्मित ग्रेट वाल आफ चाइना का दृश्य देखकर लगा। मनुष्य यदि चाहे तो दुनिया की सबसे खूबसूरत कृति बना सकता है। जिसके ये दोनों अद्भुत नज़ारे है। फारबिडेन सिटी में रास्ता बताने और चाय पिलाने के नाम पर फिर इस बार दो महिला दोस्तों ने लूटा। मेनू में मूल्य कुछ और, और मुझसे पैसा कुछ और लिया गया। मै अपने से लगने वाले देश में फिर लुटा। लेकिन कुछ कर नहीं सकता था।

    इस बीच मैंने कई ऐसे दोस्त भी बनाए, जो हमारे लिए अमूल्य रहे। जिसमें निऊ वी थोंग, योंग होन्ग, जेंग कियोंग, त्सेंग चीन यिन आदि। ये हमारे लिए येसे अनमोल रतन हैं। जो दो देश क्या, दो जहान क्या, दो येसी जान बन गए। जो आजीवन हमारे लिए एक धरोहर की तरह है।

    छोटी-मोटी घटनाएँ तो हर जगह होती रहती हैं। ये संसार का नियम है। मजा तो इस बात में है कि इन घटनाओं के बीच में से आप और हम ऐसे कितने रिश्ते ढूंढ पाते हैं। जो हमारे जीवनभर के लिए एक अनमोल याद बन जाय। कुल मिलाकर मेरी पहली चीन यात्रा में मैंने खोया सिर्फ न के बराबर और पाया बहुत ज्यादा। जो हमारे "हिंदी-चीनी, भाई-भाई" के रिश्तों को मजबूत बनाता है। और ये रिश्ता प्रगाढ़ तब और बन सकता है जब दोनों देशो के बीच आवागवन निरंतर चलता रहे। और हम एक दूसरे को बराबर समझते रहे। नहीं तो कहते है न। रिश्तों में गर्माहट न हो तो उसमे भी जंग लग जाती है।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल और हैया को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

    हैया:गुडबाय।

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