हमारे संवाददाता ने हाल ही में दक्षिण चीन के फू च्यैन प्रांत के फ़ू तिंग शहर के कई क्स्बों का दौरा किया। वहां उन्हें स्थानीय लोककला एवं संस्कृति के आकर्षण का अहसास हुआ।
फ़ू तिंग शरह का श्वांग ह्वा गांव श अ जाति बहुल है। श अ जाति के लोग सघन रूप से इस गांव में बसे हैं। श अ भाषा में लोकगीत गाना वहां की एक बड़ी विशेषता है। श अ भाषा असल में एक बोली है, जिसका एक भी शब्त नहीं होता है। लेकिन गांववासी चीनी भाषा का श अ बोली में अनुवाद कर सकते हैं। श अ बोली गांववासियों द्वारा इसी तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी जुबान से विरासत के रूप में बनाई रखी गई है। चीनी पंचांग के अनुसार हर साल के दूसरे महीने की दूसरी तारीख को इस गांव में श अ जाति के सब से अहम परंपरागत त्यौहार--- लोकगीत प्रतियोगिता का आयोजन होता है, जो हजारों की संख्या में देश के विभिन्न क्षेत्रों से पर्यटकों को आकर्षित करता है। सूत्रों के अनुसार सवाल-जवाब पर आधारित इस लोकगीत-शैली को पूरी तरह से संरक्षित करने के उद्देश्य से स्थानीय स्कूल ने अपने संगीत-पाठ्यक्रम में इससे जुड़ा ज्ञान शामिल कर लिया है।
इस गांव में और एक अद्भुत कला-प्रदर्शन है। वह है 200 सालों से भी अधिक समय पुराने कठपुतली-प्रदर्शन। हमारे संवाददाता ने देखा कि चाय-कला नामक एक कार्यक्रम में रस्सियों एवं धागों द्वारा नियंत्रित एक कठपुतली असली मानव की तरह चाय बना रही थी और अतिथियों के सामने चाय परोस रही थी। कठपुतली का प्रदर्शन इतना सजीव लगा, जैसे कोई असली व्यक्ति चाय-कला प्रदर्शित कर रही थी। दर्शक यह देखकर वाह-वाह किए बिना नहीं रह सके। हमारे संवाददाता की जिज्ञासा और बढ़ गई। कठपुतली के राज का पता लगाने के लिए वो प्रदर्शन-मंच के पर्दे के पीछे गए। वहां उन्होंने पाया कि एक सरल कठपुतली कम से कम दसेक रस्सियों और धागों से नियंत्रित है। कठपुलती के शरीर के हर अंग यहां तक उंगलियां भी इन रस्सियों एवं धागों के इशारों पर काम करती हैं। हरेक कठपुतली औसत 1 किलोग्राम वज़न की है। गांववासियों ने बताया कि कठपुतली का प्रदर्शन सफल रहे या नहीं, यह उस के हाथों के लचीलेपन और बांहों की ताकत पर निर्भर करता है।
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