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    आप की पसंद 170107
    2017-01-24 16:10:30 cri

    7 जनवरी आपकी पसंद

    पंकज - नमस्कार मित्रों नववर्ष 2017 में हम आपका स्वागत करते हैं और कामना करते हैं कि आप सभी पहले से अधिक खुशहाल रहें, पहले से ज्यादा समृद्ध रहें, आपके सारे अरमान पूरे हों और आप पहले के मुकाबले एक बेहतर जीवन जियें... इसी के साथ हम शुरु करने जा रहे हैं आज का आपकी पसंद कार्यक्रम, मित्रों पहले की ही तरह आज भी हम आपको देने जा रहे हैं कुछ रोचक आश्चर्यजनक और ज्ञानवर्धक जानकारियां, तो आज के आपकी पसंद कार्यक्रम की शुरुआत करते हैं।

    अंजली – श्रोताओं को अंजली का भी प्यार भरा नमस्कार, श्रोताओं हम आपसे हर सप्ताह मिलते हैं आपसे बातें करते हैं आपको ढेर सारी जानकारियां देते हैं साथ ही हम आपको सुनवाते हैं आपके मन पसंद फिल्मी गाने तो आज का कार्यक्रम शुरु करते हैं और सुनवाते हैं आपको ये गाना जिसके लिये हमें फरमाईश पत्र लिख भेजा है .... ऋषि प्रसाद और इनके सभी परिजनों ने सत श्री आसारामजी आश्रम, वंदे मातरम् मार्ग, नई दिल्ली से आप सभी ने सुनना चाहा है बेताब (1983) फिल्म का गान जिसे गाया है लता मंगेशकर और शब्बीर कुमार ने गीतकार हैं आनंद बख्शी और संगीत दिया है राहुल देव बर्मन ने और गीत के बोल हैं ......

    सांग नंबर 1. बादल यूं गरजता है .....

    पंकज - मित्रों साल के पहले कार्यक्रम में हम आपको बहुत ही दिलचस्प जानकारी देने जा रहे हैं और ये जानकारी हमारे पास आई है भारत के दक्षिणी राज्य केरल से जो कई समाचार पत्रों की सुर्खियां भी बनी है .... ये जानकारी देने से पहले हम आप सभी से ये कहना चाहते हैं कि हमारा उद्देश्य किसी भी समुदाय या क्षेत्र के लोगों का निरादर करना नहीं है और न ही किसी की श्रद्धा को ठेस पहुंचाना है और न ही हम किसी का विरोध करते हैं हम तो महज़ ये जानकारी आपको इसलिये भी दे रहे हैं क्योंकि हमारा प्यारा देश भारत तमाम विविधताओं से भरा हुआ है जहां पर अलग अलग समुदाय, जाति और धर्मों के लोग आपस में प्यार मोहब्बत के साथ रहते हैं और आगे भी हम ऐसे ही रहेंगे।

    कट्टर मुसलमानों का आदर्श गाँव एक 'फ़्लॉप प्रोजेक्ट'

    केरल में आज से 10 साल पहले एक ही तरह की सोच और एक ही विचारधारा के मानने वाले दो दर्जन मुस्लिम परिवारों ने फैसला किया कि वो आबादी से कहीं दूर, जंगल के करीब जाकर अपना एक अलग गाँव बसाएँगे.

    ये कोई रोमानी दुनिया बसाने की कोशिश नहीं थी. उनकी कोशिश थी एक आदर्श इस्लामी समाज बनाने की जहाँ एक मस्जिद हो, एक मदरसा हो और जहाँ शांति से इस्लाम में बताए हुए 'सही'रास्ते पर बिना किसी रुकावट के चला जा सके. ये लोग कट्टरपंथी सुन्नी विचारधारा सलफ़ी इस्लाम के मानने वाले हैं.

    ये वही गाँव है जो पिछले कुछ महीनों से सुर्ख़ियों में है क्योंकि यहाँ के निवासी कट्टर इस्लाम को मानने वाले हैं जो समाज की मुख्यधारा से कट कर गाँव में आबाद हो गए हैं. इस गाँव में मीडिया वालों को अंदर आने से रोका जाता है. बाहर वालों से संपर्क नहीं के बराबर है. लेकिन बीबीसी हिंदी की टीम को वहां के एक परिवार ने काफी संकोच के बाद निमंत्रित किया.

    ये थे गाँव के निवासी यासिर अमानत सलीम. तीन बच्चों के बाप यासिर पेशे से एक सिविल इंजीनियर हैं.

    उनके अनुसार केरल में आज का मुस्लिम समाज ग़ैर इस्लामी हो गया है. सलफ़ी गाँव को आबाद करने के मक़सद के बारे में वो कहते हैं, "हमारा आइडिया था कि खुद से आबाद किए गए गाँव में हम असली इस्लाम पर अमल कर सकेंगे. हमने कल्पना की थी कि गाँव से गाड़ी से निकलेंगे और गाड़ी से वापस लौटेंगे, रास्ते में किसी से संपर्क नहीं होगा."

    अंजली – श्रोता मित्रों हमारे कार्यक्रम में अगला पत्र लिख भेजा है हमारे पुराने और चिर परिचित श्रोता पारस राम श्रीवास जी ने आपने हमें पत्र लिखा है आदर्श श्रीवास रेडियो श्रोता संघ, ग्राम लहंगाबाथा, पोस्ट बेलगहना, ज़िला बिलासपुर, छत्तीसगढ़ से आपके साथ आपके ढेर सारे मित्रों ने भी हमें पत्र लिख भेजा है और आप सभी ने सुनना चाहा है फिल्म कामचोर (1982) का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने गीतकार हैं इंदेवर और संगीत दिया है राजेश रौशन ने गीत के बोल हैं ------

    सांग नंबर .2 तुझ संग प्रीत लगाई सजना ....

    पंकज- उनका इरादा पैग़म्बर मोहम्मद के ज़माने के इस्लामी समाज की स्थापना का था.

    आदर्श गाँव की स्थापना हुई. एक मस्जिद बनी, मदरसा भी बना. लोगों ने अपने घर बनाए.

    यासिर ने भी एक घर बनाया और घर के सामने एक ख़ुली ज़मीन के मालिक बने जिस पर वो अपनी दो गाड़ियां पार्क करते हैं. बाद में गाँव को ऊंची दीवार से घेर दिया.

    कालीकट शहर से 60 किलोमीटर दूर, एक वीरान इलाक़े में, जंगल के निकट आबाद किए गए इस गाँव को अतिक्कड का नाम दिया गया.

    लेकिन जिस कट्टर विचारधारा ने गाँव में 25 परिवारों को एक साथ जोड़ा था, उसी विचारधारा ने उनमें फूट भी डाल दी. हुआ ये कि मदरसे के मुख्य अध्यापक ने एक बार छोटे बच्चों को अपनी गोद में बैठाया जिस पर गाँव के सलाफियों ने एतराज़ जताया. ये सहमति बनी कि मुख्य अध्यापक को सज़ा मिलनी चाहिए.

    लेकिन सज़ा की मुद्दत पर असहमति पैदा हो गई. गाँव दो गुटों में बंट गया. एक गुट ने कहा कि मुख्य अध्यापक को एक साल के लिए निलंबित कर दिया जाए. जबकि दूसरे गुट की मांग थी कि टीचर को हमेशा के लिए निकाल बाहर किया जाए. इस पर झगड़ा इतना बढ़ा कि अधिक सज़ा की बात करने वालों ने अरब देश यमन के सलफ़ी मुसलमानों से संपर्क किया. यमन में भी एक सलफ़ी गाँव है जहाँ अधिक कट्टर सलफ़ी आबाद हैं जिनमे से कुछ केरल के निवासी हैं. उनके अनुसार इस्लाम के लिए जिहाद लाज़मी है.

    खैर, केरल के सलफ़ी विलेज में फैसला ये हुआ कि मुख्य अध्यापक को एक साल के लिए सस्पेंड किया जाए. इस फ़ैसले के विरोध में अधिक कट्टरवादी गुट ने गाँव छोड़ दिया.

    अब इस गाँव में केवल 10 परिवार रह गए हैं. यासिर अमानत सलीम का परिवार उनमें से एक है. वो खेद के साथ कहते हैं कि आदर्श गाँव बनाने का उनका प्रयोग नाकाम हो गया है, "ये प्रोजेक्ट फ़्लॉप है. हमें अलग-थलग समाज नहीं बनाना चाहिए था. ये हमारी ग़लती थी."

    "मुस्लिम समाज में फूट और ग़ैर इस्लामी रीति-रिवाज देख हम ने अपना एक अलग समाज बनाया था. लेकिन हमारी ग़लती ये थी कि हमने बाहर की दुनिया से ख़ुद को अलग रखा."

    वो कहते हैं कि वो अब केवल बच्चों की ख़ातिर इस गाँव में रह रहे हैं. उनके तीनों बच्चे इसी गाँव में पैदा हुए हैं।

    अंजली – दोस्तों पंकज आपको जानकारियां दे रहे हैं और मैं बीच बीच में आकर आपको आपकी पसंद का गाना सुना रही हूं, हमें अगला पत्र लिख भेजा है मुबारकपुर, ऊंची तकिया, आज़मगढ़, उत्तर प्रदेश से दिलशाद हुसैन, फातेमा सोगरा, वकार हैदर और हसीना दिलशाद ने आप सभी ने सुनना चाहा है फिल्म कल हो ना हो (2003) का गाना जिसे गाया है सोनू निगम ने गीतकार हैं जावेद अख़्तर संगीत दिया है शंकर एहसान लॉय ने और गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 3. कल हो ना हो .....

    पंकज - यासिर के अनुसार अलग-थलग रहने के कारण गाँव के प्रति लोगों को ग़लतफ़हमियाँ होने लगीं. उन्होंने आगे कहा, "पहले हमारे गाँव को पाकिस्तान कॉलोनी कहा जाने लगा. इसके बाद कहा गया कि यहाँ तो चरमपंथी रहते हैं."

    उनकी कट्टर विचारधारा के कारण आज भी उन्हें चरमपंथी समझ जाता है. मीडिया में ''सलफ़ी विलेज'' के नाम से प्रचलित होने वाला ये गाँव जुलाई में उन 20 मुस्लिम युवाओं के ग़ायब होने के बाद से सुर्ख़ियों में है जिनके बारे में पुलिस को शक है कि वो सीरिया में तथाकथित इस्लामिक स्टेट से जुड़ गए हैं.

    ग़ायब होने वाले युवा भी कट्टरपंथी सुन्नी विचारधारा सलफ़ी इस्लाम के मानने वाले थे. पुलिस ने गाँव वालों के बैकग्राउंड की जांच की. पुलिस टीम में शामिल एक अफ़सर ने अपना नाम ज़ाहिर किये बग़ैर बताया कि सलफ़ी विचारधारा के तीन चरण होते हैं. पहले चरण में शुद्ध इस्लाम को माना जाता है, दूसरे चरण में कट्टरता बढ़ती है और तीसरे चरण में सलफ़ी मुस्लिम कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.

    पुलिस अधिकारी आगे कहते हैं, "इस गाँव के लोग अभी पहले चरण में हैं. हमारी निगाह सभी पर है. वो क़ानून नहीं तोड़ रहे हैं."

    गाँव वाले कहते हैं कि ग़ायब होने वाले युवाओं से उनका कोई संबंध नहीं. हाँ, यासिर के अनुसार एक साल पहले दो-तीन ऐसे परिवार बाहर से आकर किराए पर रहने लगे जो कट्टर इस्लाम की शिक्षा दे रहे थे और ''हमारे युवाओं को भड़काने की कोशिश कर रहे थे." यासिर के अनुसार उन्होंने पुलिस को उनकी गतिविधियों की ख़बर जब से दी है वो गाँव में नज़र नहीं आते.

    क्या वो वही युवा तो नहीं थे जो राज्य से ग़ायब हो गए हैं और जिनके बारे में पुलिस को शक है कि वो सीरिया में तथाकथित इस्लामिक स्टेट से जा मिले हैं? यासिर कहते हैं उन्हें इसका अंदाज़ा नहीं. लेकिन पुलिस को शक है कि उनमें से कुछ लोग इस्लामिक स्टेट से जा मिलने वाले गुट के हो सकते हैं.

    यासिर अब इस गाँव के अलग होने से ऊब चुके हैं. उनका विचार अब बदल चुका है. वो चाहते हैं कि उनके गाँव में हिन्दू भी आकर बसें और ईसाई भी. नास्तिक भी आबाद हों और धार्मिक लोग भी.

    यासिर भारत में मज़हबी आज़ादी के बहुत बड़े प्रशंसक हैं. उनका विश्वास है कि देश में हर मज़हब के लोग मिल जुल कर रहें.

    लेकिन सलफ़ी विलेज में यासिर की तरह वहां आबाद दूसरे सलाफ़ियों की विचारधारा नहीं बदली है. लंबी दाढ़ी वाले दो अलग-अलग शख्सों ने हमें न केवल इंटरव्यू देने से इंकार कर दिया बल्कि उनकी तस्वीर लेने से भी रोक दिया.

    यासिर कहते हैं कि गाँव के अंदर रह रहे सलफ़ी मुस्लिम फिर भी ठीक हैं. वो इस बात से चिंतित हैं कि यमनी सलफ़ी इस्लाम के मानने वाले गांव के बाहर राज्य भर में जगह-जगह आबाद हैं. उन्हें समाज में वापस लाना ज़रूरी है।

    अंजली – पंकज आज आपको बहुत गंभीर जानकारी दे रहे हैं, हालांकि मुझे हल्की फुल्की रोचक और मनोरंजक जानकारियां अधिक पसंद आती हैं ... लेकिन कार्यक्रम में थोड़ा बहुत फेरबदल होना भी ज़रूरी है, कभी हल्की फुल्की तो कभी थोड़ी भारी जानकारी मिलती रहनी चाहिए .... मित्रों हमारे अगले श्रोता हैं हरिपुरा झज्जर हरियाणा से प्रदीप वधवा, गीतेश वधवा, आशा वधवा, मोक्ष वधवा, निखिल वधवा और समस्त वधवा परिवार आप लोगों ने सुनना चाहा है हम (1991) फिल्म का गाना जिसे गाया है अमित कुमार और कविता कृष्णामूर्ति ने गीतकार हैं आनंद बख्शी और संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने गीत के बोल हैं .....

    सांग नंबर 4. सनम मेरे सनम .....

    पंकज - मित्रों वर्षों पहले जब मैं जामिला मिल्लिया इस्लामिया में विद्यार्थी था तो मेरे एक प्रोफेसर श्री रिज़वान कैसर साहब ने एक शब्दावली का इस्तेमाल किया था और वो थी backward looking ideology …. यानी अतीत से अभिभूत होकर अतीत में देखने वाली नीति। प्रोफेसर साहब ने हमें इतिहास पढ़ाते समय कई देशों में समय समय पर हुए कुछ ऐसे ही वाकयों से रू ब रू कराया था। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि ऐसे सभी समाज का अंत अतीत के गर्त में समा गया और वो अपने मकसद में कभी सफल नहीं हो पाए। समय हमेशा आगे बढ़ता जाता है अगर आप समय के साथ तरक्की करना चाहते हैं तो आपको भी समय का साथ पकड़ना होगा क्योंकि समय कभी रुकता नहीं है जो पीछे रह जाते हैं समय उन्हें छोड़कर आगे निकल जाता है तो बुद्धिमानी इसी बात में है कि हम भी समय के साथ कदमताल करते हुए आगे निकलें नहीं तो हम भी पीछे रह जाएंगे। वैज्ञानिक हमेशा समय से आगे की बात को दिमाग में रखते हैं इसीलिये वो ऐसे ऐसे आविष्कार कर जाते हैं जो पूरी मानव जाति के लिये फायदेमंद रहते हैं, अगर वैज्ञानिकों ने भी पीछे की तरफ़ देखा होता तो आज हमारे पास न तो हवाई जहाज़ होते, न ही अंतरिक्ष यान, न मोबाइल फोन, न टीवी, रेलगाड़ी, पानी पर चलने वाले बड़े बड़े जहाज़ और न ही होता इतना विकसित औषधि विज्ञान जिसके बल पर आज हमारी औसत जिंदगी के बरस बढ़ गए हैं।

    पंकज - एक आलू जलाएगा 40 दिन तक आपका बल्ब

    क्या बल्ब जलाने और घरों को रोशन करने के लिए बिजली की जगह आलू का इस्तेमाल संभव है ?

    शोधकर्ता राबिनोविच और उनके सहयोगी पिछले कुछ सालों से लोगों को यही करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं.

    ये सस्ती धातु की प्लेट्स, तारों और एलईडी बल्ब को जोड़कर किया जाता है और उनका दावा है कि ये तकनीक दुनियाभर के छोटे कस्बों और गांवों को रोशन कर देगी.

    येरुशलम की हिब्रू यूनिवर्सिटी के राबिनोविच का दावा है, "एक आलू चालीस दिनों तक एलईडी बल्ब को जला सकता है."

    राबिनोविच इसके लिए कोई नया सिद्धांत नहीं दे रहे हैं. ये सिद्धांत हाईस्कूल की किताबों में पढ़ाया जाता है और बैटरी इसी पर काम करती है. इसके लिए ज़रूरत होती है दो धातुओं की- पहला एनोड, जो निगेटिव इलेक्ट्रोड है, जैसे कि ज़िंक, और दूसरा कैथोड - जो पॉज़ीटिव इलेक्ट्रोड है, जैसे कॉपर यानी तांबा.

    आलू के भीतर मौजूद एसिड ज़िंक और तांबे के साथ रासायनिक क्रिया करता है और जब इलेक्ट्रॉन एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ की तरफ जाते हैं तो ऊर्जा पैदा होती है.

    इसकी खोज वर्ष 1780 में लुइगी गेल्वनी ने की थी जब उन्होंने मेंढ़क की मांसपेशियों को झटके से खींचने के लिए दो धातुओं को मेंढ़क के पैरों में बांधा था.

    लेकिन आप इसी प्रभाव को पाने के लिए इन दो इलेक्ट्रोड्स के बीच कई पदार्थ रख सकते हैं.

    एलेक्जेंडर वोल्टा ने नमक के पानी में भीगे हुए कागज का इस्तेमाल किया था. अन्य शोधों में धातु की दो प्लेट्स और मिट्टी के एक ढेर या पानी की बाल्टी से 'अर्थ बैटरियां' बनाई गईं थीं.

    वर्ष 2010 में, राबिनोविच ने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के एलेक्स गोल्डबर्ग और बोरिस रुबिंस्की के साथ इस दिशा में एक और कोशिश करने की ठानी.

    गोल्डबर्ग बताते हैं, "हमने 20 अलग-अलग तरह के आलू देखे और उनके आतंरिक प्रतिरोध की जांच की. इससे हमें यह समझने में मदद मिली कि गरम होने से कितनी ऊर्जा नष्ट हुई."

     आलू को आठ मिनट उबालने से आलू के अंदर कार्बनिक ऊतक टूटने लगे, प्रतिरोध कम हुआ और इलेक्ट्रॉन्स ज़्यादा मूवमेंट करने लगे- इससे अधिक ऊर्जा बनी.

     आलू को चार-पाँच टुकड़ों में काटकर इन्हें तांबे और ज़िंक की प्लेट के बीच रखा गया. इससे ऊर्जा 10 गुना बढ़ गई यानी बिजली बनाने की लागत में कमी आई.

     राबिनोविच कहते हैं, "इसकी वोल्टेज़ कम है, लेकिन ऐसी बैटरी बनाई जा सकती है जो मोबाइल या लैपटॉप को चार्ज कर सके."

     एक आलू उबालने से पैदा हुई बिजली की लागत 9 डॉलर प्रति किलोवाट घंटा आई, जो डी-सेल बैटरी से लगभग 50 गुना सस्ती थी.

     विकासशील देशों में जहां केरोसिन (मिट्टी के तेल) का इस्तेमाल अधिक होता है, वहां भी यह छह गुना सस्ती थी.

     अंजली - कार्यक्रम में हमारे अगले श्रोता हैं ग्राम महेशपुर खेम, जिला मुरादाबाद उत्तर प्रदेश से तौफीक अहमद सिद्दीकी, अतीक अहमद सिद्दीकी, मोहम्मद दानिश सिद्दीकी और इनके सभी मित्रों ने आप सभी ने सुनना चाहा है बर्फी (2012) फिल्म का गाना जिसे गाया है मोहित चौहान ने गीतकार हैं स्वानंद किरकिरे और संगीत दिया है प्रीतम ने और गीत के बोल हैं ------

     सांग नंबर 5. आला बर्फ़ी ......

    पंकज - भारतीय नेता आलू बैटरी से बेख़बर?

    वर्ष 2010 में दुनिया में 32.4 करोड़ टन आलू का उत्पादन हुआ. यह दुनिया के 130 देशों में उगाया जाता है और स्टार्च का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है.

    आलू सस्ते हैं, इन्हें आसानी से स्टोर किया जा सकता है और लंबे समय तक रखा जा सकता है.

    दुनिया में 120 करोड़ लोग बिजली से वंचित हैं और एक आलू उनका घर रोशन कर सकता है.

    राबिनोविच कहते हैं, "हमने सोचा था कि संगठन इसमें दिलचस्पी दिखाएंगे. हमने सोचा था कि भारत के राजनेता हमें हाथों-हाथ लेंगे."

    फिर ऐसा क्या हुआ कि तीन साल पहले हुए इस शोध की तरफ दुनियाभर की सरकारों, कंपनियों या संगठनों का ध्यान नहीं गया.

    राबिनोविच कहते हैं, "सीधा सा जवाब है, वे शायद इसके बारे में जानते ही नहीं हैं."

    लेकिन वजह शायद इतनी सीधी नहीं है, मामला कुछ जटिल है.

    पहली वजह है यह मुद्दा 'बिजली के लिए खाद्यान्न' से जुड़ा है. संयुक्त राष्ट्र के कृषि और खाद्य संगठन का कहना है कि गन्ने या जैव ईंधन से ऊर्जा बनाने से बचना चाहिए.

    पहली आवश्यकता इस बात को देखने की है कि क्या खाने के लिए पर्याप्त आलू हैं?

    कीनिया जैसे देश में लोगों के लिए मक्का के बाद आलू सबसे प्रमुख भोजन है. वहाँ छोटे किसानों ने इस साल एक करोड़ टन आलू उगाए।

    विशेषज्ञों के अनुसार इनमें से 10-20 प्रतिशत स्टोर न किए जाने या अन्य वजहों से नष्ट हुए और वो तो ज़रूर ऊर्जा पैदा करने के काम में लगाए जा सकते थे।

    केले के छिलके

    शायद यही वजह है कि श्रीलंका की केलानिया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने केले के तने से यह प्रयोग करने की ठानी है. भौतिक विज्ञानी केडी जयसूर्या और उनकी टीम का कहना है कि केले के तने के हिस्सों को उबालने से एक एलईडी 500 घंटे तक चल सकता है।

    हालाँकि ऊर्जा का असली स्रोत आलू या केले का तना नहीं है।

    ऊर्जा तो ज़िंक के घिसने से पैदा होती है. इसका मतलब कुछ देर बाद ज़िंक दोबारा लगाना होगा।

    लेकिन ज़िंक सस्ता है और ज़िक इलेक्ट्रोड लगभग पांच महीने तक चलता है और इसकी कीमत एक लीटर केरोसीन के बराबर आती है।

    कम से कम श्रीलंका में तो एक लीटर केरोसीन एक परिवार दो रात में ही इस्तेमाल कर लेता है।

    अगर ज़िंक उपलब्ध नहीं है तो मैग्नीशियम और लोहे को भी विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    अंजली – इस कार्यक्रम में हमें अगला पत्र लिख कर भेजा है हमारे पुराने श्रोता ने इन्होंने हमें पत्र लिखा है मालवा रेडियो श्रोता संघ, प्रमिलागंज, आलोट, महाराष्ट्र से बलवंत कुमार वर्मा, राजुबाई माया वर्मा, शोभा वर्मा, राहुल, ज्योति, अतुल और इनके साथियों ने आप सभी ने सुनना चाहा है मस्ताना (1970) फिल्म का गाना जिसे गाया है किशोर कुमार ने संगीत दिया है लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने और गीत के बोल हैं ----

    सांग नंबर 6. सुई जा तारा .... .

    पंकज – तो मित्रों इसी के साथ हमें आज का कार्यक्रम समाप्त करने की आज्ञा दीजिये अगले सप्ताह आज ही के दिन और समय पर हम एक बार फिर आपके सामने लेकर आएंगे कुछ नई और रोचक जानकारियां साथ में आपको सुनवाएँगे आपकी पसंद के फिल्मी गीत तबतक के लिये नमस्कार।

    अंजली - नमस्कार।

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