चीन के क्वांगसी ज्वांग जातीय स्वायत्त प्रदेश में ज्वांग , हान , यो , म्याओ और त्वोंग आदि 12 जातियों के लोग आबाद हैं । विभिन्न जातियों के अपने अपने बेशुमार सांस्कृतिक अवशेष सुरक्षित हैं , साकार सांस्कृतिक धरोहरों के अलावा निराकार सांस्कृतिक अवशेष भी बड़ी तादाद में मिलते हैं , जिन में पौराणिक कथाएं , लोक गीत , संगीत , नृत्य , आपेरा , चित्रकला , मूर्ति कला तथा बुनाई कढाई आदि शिल्प कलाएं , कला कौशल और विविध कर्म अनुष्ठान , उत्सव पर्व , जातीय खेल शामिल हैं । लेकिन आधुनिक और पाश्चात संस्कृति से प्रभावित हो कर चीन की सांस्कृतिक परम्परा में भी भारी तब्दील हुआ , जिस के कारण विभिन्न जातियों की परम्परागत संस्कृति के अस्तित्व के लिए माहौल लगातार बिगड़ता जा रहा है। बहुत से ऐतिहासिक व सांस्कृतिक महत्व रखने वाले सांस्कृतिक संसाधनों को कुछ न कुछ क्षति पहुंची है । पेइचिंग की एक विदेशी कंपनी में कार्यरत श्री लु शिछाओ ज्वांग जाति के मूल निवासी हैं । मौजूदा सांस्कृतिक स्थिति की चर्चा करते हुए उन्हों ने कहा कि बालावस्था में मैं भी लोक गीत गाना पसंद करता था , हमारे क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग जातीय लोक गीत गाने के शौकिन हैं । आम तौर पर नौजवान लोग पहाड़ों , खेतों में श्रम करने तथा गाय बकरी चराने के समय लोक गीत गाना पसंद करते हैं । खुली हवा में वे मुक्त कंठ से गाना गा सकते हैं । लेकिन आधुनिक सभ्यता के प्रभाव से अब जातीय लोक गीत गाने के उत्सुक लोगों की संख्या लगातार घटती गई । परम्परागत लोक गीत गाने वालों में ज्यादातर बुढ़े लोग हैं , जबकि युवा लोग ज्यादा पॉप गीत संगीत पसंद करते हैं ।
इधर के सालों में चीनी समाज में अल्पसंख्यक जातियों की परम्परागत संस्कृति के सामने आए इस प्रकार के संकट पर चिंता निरंतर बढ़ती गई है और अल्पसंख्यक जातियों की लोक संस्कृति के संरक्षण कार्य पर देश के विभिन्न वर्गों में अधिकाधिक ध्यान दिया जाने लगा । इस संरक्षण कार्य में क्वांगसी ज्वांग जातीय स्वायत्त प्रदेश अग्रणीय है । स्वायत्त प्रदेश के संस्कृति विभाग की उप प्रधान सुश्री छन यांग होंग ने कहा कि अल्प संख्यक जातियों की लोक संस्कृति सजीव संस्कृति होती है , अर्थात वह मानव से अलग नहीं हो सकती है । उस की परम्परा बढ़ाने के लिए उत्तराधिकारियों की आवश्यकता है । जातीय लोक संस्कृति की रक्षा के लिए उसे विरासत में ले कर आगे विकसित करना चाहिए । सुश्री छन ने कहा कि संस्कृति की विरासत पाने के लिए उत्तराधिकारी चुनना चाहिए। हमारे एक सर्वे जांच से पता चला है कि कुछ लोक सांस्कृतिक परम्पराएं दसेक पीढियों से बरकरार हो कर आयी हैं और कुछ उत्तराधिकारी बहुत जवान हैं , उन की उम्र दस बीस साल के बीच है । इस पहलु में आगे काम नहीं किये जाने से कुछ परम्पराएं बीच ही में टूट कर लुप्त हो सकती है । बहुत से जातीय लोक गीत ऐसी स्थिति में पड़ गए हैं । चीन की अल्प संख्यक जाति योलाओ और चिंग आदि में लोक गीतों की परम्परा ज्यादा बनी रही है । किन्तु अन्य कुछ अल्पसंख्यक जातियों में लोक गीतों की परम्परा कम बरकरार रही और लोक गीत जानने वाले लोगों की संख्या कम है । जैसा कि चीन की यो जाति का लोक गीत चिनश्यो पहले बहुत मशहूर था , लेकिन वर्तमान में उसे जानने वाले युवा लोगों की संख्या बहुत कम है । ऐसी अल्पसंख्यक जातियों की इस समस्या का समाधान होना जरूरी है और उन की परम्परागत संस्कृति के संरक्षण पर जोर दिया जाना चाहिए , वरना वो परम्परा खत्म हो सकेगी ।
क्वांगसी ज्वांग जातीय स्वायत्त प्रदेश के कला संस्कृति अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष ल्यो मिंगच्यन क्वांगसी की विभिन्न जातियों की लोक संस्कृति के संरक्षण पर हमेशा ध्यान देते हैं । उन का कहना है कि जातीय लोक संस्कृति किसी जाति की जड़ है और किसी एक जाति के दूसरी जातियों से अलग होने की पहचान है । उन्हों ने एक कहानी बतायी कि एक बार वे क्वांगसी के गचाओ क्षेत्र गए , और वहां के मशहूर कसीदा शिल्पकार जु चुश्यान से मिले , जु चुस्यान बड़ा अच्छा जातीय लोक गीत गा सकती हैं , लेकिन उन्हों ने अपनी बेटी को केवल अपना कसीदा कौशल सिखाया , लोक गीतों का गायन नहीं , उन का तर्क है कि लोक गीत गाने से पैसा नहीं कमा सकता । इस हालत को लेकर श्री ल्यो ने कहा कि किसी जाति के लिए अस्तित्व व विकास महज भौतिक पहलु में नहीं देखा जाता है , उस का मानसिक पहलु भी होता है । यदि सरकार इन अल्पसंख्यक जातियों को जातीय संस्कृति के मूल्य को समझने में मदद करे , तो आर्थिक लाभ नहीं मिलने पर भी जातीय मान प्रतिष्ठा बढ़ाने में सहायक होगी । और उन की सांस्कृतिक परम्पराएं भी आगे बरकरार रहेंगी ।
श्री ल्यो का कहना है कि जातीय सांस्कृतिक संसाधा एक बार नष्ट हो गया , तो उसे फिर से जीवित करना मुश्किल है । जातीय सांस्कृतिक पर्यटन उद्योग को अनवरत व निरंतर बनाने के लिए जातीय संस्कृति व उस के वातावरण की रक्षा करने पर बल दिया जाना चाहिए । संरक्षण के आधार पर इन संसाधनों का प्रयोग व विकास किया जाना चाहिए । विकास के जरिए लोग जातीय संस्कृति के मूल्य समझ सकते हैं और उन में जातीय संस्कृति का संरक्षण करने की अवधारणा बढ़ जाएगी ।
पिछली शताब्दी के अस्सी वाले दशक से क्वांगसी सरकार ने स्वायत्त प्रदेश भर में विभिन्न जातियों की परम्परागत संस्कृति की रक्षा करने के सिलसिलेवार कदम उठाए , जिन में जातीय सांसकृतिक संसाधनों का सर्वेक्षण करना , जातीय संस्कृति की संरक्षण योजना बनाना , परम्परागत जातीय उत्सव पर्व आयोजित करना , अल्पसंख्यक जातियों की प्राचीन पुस्तकों का संकलन करना , लोक कथाओं , लोक गीतों , आपेराओं , नृत्यों और कथा वाचनों का संकलन और प्रकाशन आदि शामिल है । जातीय लोक गीतों के संरक्षण के उद्देश्य से ही क्वांगसी सरकार ने स्थानीय लोक गीत बादशाह चुनने की गतिविधियां कीं । इन के अलावा विभिन्न जातियों की लोक संस्कृति के अध्ययन की उच्च स्तरीय कक्षाएं खोली गईं , नाननिन अन्तरराष्ट्रीय लोक गीत उत्सव तथा हेछी कांस्य ढोल के वादन के साथ लोक गीत प्रतियोगिता जैसे बड़े आकार वाले सांस्कृतिक आयोजन किए गए । ज्वांग जाति के निवासी लु शिछाओ ने सरकार के इन संगठन व आयोजन से जातीय लोक संस्कृति के संरक्षण के महत्व की प्रशंसा की । उन्हों ने कहा कि इन गतिविधियों के आयोजन से बड़ा काम आ सकता है , जिस से युवा पीढी के लोग अपनी जाती की संस्कृति के महत्व को और अच्छी तरह समझ सकते हैं और उन में धीरे धीरे रूचि पैदा होती है । जातीय संस्कृति निराकार लोक संस्कृति है , उसे विरासत में ग्रहण कर विकसित करने का बड़ा महत्व होता है । सरकार की कोशिश सराहनीय है।
वर्ष 2006 की पहली जनवरी से क्वांगसी ज्वांग जातीय स्वायत्त प्रदेश ने जातीय लोक संस्कृति संरक्षण नियमावली जारी की , जिस में स्थानीय जातीय संस्कृति की विशेषता के संरक्षण , व्यवहारिक काम और विरासत के काम पर प्राथमिकता दी गई । क्वांगसी के जातीय कला संस्कृति अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष ल्यो मिंग च्वन ने कहा कि नयी नियमावली ने क्वांगसी के जातीय संस्कृति संरक्षण कार्य को कानून के तहत रख दिया है । कानून के मुताबिक क्वांगसी के जातीय परम्परागत संस्कृति संरक्षण काम को बेहतर बनाने का खासा बड़ा महत्व होता है।