23 दिसंबर 2016 को भारत स्थित चीनी राजदूत ल्वो चाओह्वेई और उनकी पत्नी ने भारत के दिल्ली यूनिवर्सिटी का दौरा किया। लेकिन यह एक सामान्य दौरा नहीं था। क्योंकि 26 साल पहले राजदूत दंपति ने इस जगह से संपर्क रखा है।
दिल्ली यूनिवर्सिटी की स्थापना वर्ष 1922 में हुई। चीनी लोगों के विचार में वह चीन के पेइचिंग विश्वविद्यालय की तरह है, जो भारत में सबसे महत्वपूर्ण व प्रभावशाली विश्वविद्यालयों में से एक है। दिल्ली यूनिवर्सिटी व चीन के शिक्षा विभाग के बीच लंबे समय में मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान संबंध रहे हैं। 5वें दशक से चीनी छात्र यहां आकर पढ़ते थे। दूतावास की काउंसलर च्यांग ईली उनमें से एक थी।
राजदूत की पत्नी होने के साथ-साथ च्यांग ईली एक प्रसिद्ध विद्वान व राजनयिक भी हैं। वे चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी में दक्षिण एशिया मामलों के अध्ययन की विशेषज्ञ थीं। उन्होंने कई पुस्तकें लिखकर प्रकाशित कीं। उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक《विश्व द्वितीय युद्ध के बाद दक्षिण एशियाई देशों के विदेशी संबंधों का अध्ययन》इस क्षेत्र में एक पाठ्यपुस्तक है। उनकी पुस्तकें《गंगा की आत्मा---हिन्दू धर्म की चर्चा》और《शेर वीर---सिख धर्म का इतिहास》चीन में बहुत प्रभावशाली हैं। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की आत्मकथा《पूर्व की बेटी》का अनुवाद भी किया। काउंसलर च्यांग ईली और राजदूत ल्वो चाओह्वेई द्वारा एक साथ लिखित पुस्तक《पूर्वी बौद्ध धर्म की संस्कृति》और अनुवादित पुस्तक《जुंग मनोविज्ञान व तिब्बती बौद्ध धर्म》को व्यापक स्वागत मिला। वर्ष 1990 के आरंभ से 1993 के अंत तक च्यांग ईली ने दिल्ली यूनिवर्सिटी में धर्म व दर्शन का अध्ययन किया। उनकी पीएचडी थीसिस《हिन्दू धर्म व बौद्ध धर्म का तुलना अध्ययन》 का अंग्रेज़ी संस्करण सिंगापुर में प्रकाशित हुआ। ध्यान देने वाली बात यह है कि वह भारत में पीएचडी करने वाली पहले चीनी व्यक्ति हैं। इस बार उन्होंने फिर एक बार दिल्ली यूनिवर्सिटी का दौरा किया, तो उन्हें बहुत अच्छा महसूस हुआ।
हालांकि मौसम बहुत ठंडा है, लेकिन दिल्ली यूनिवर्सिटी के चारो ओर हरियाली है, जो कि जीवंत लगती है। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्वी एशिया अध्ययन विभाग के कार्यालय में विभागाध्यक्ष अनीता शर्मा ने राजदूत दंपति का स्वागत किया। अनीता व उनके पति ने चीन में एक साथ चीनी भाषा सीखी थी। वे दोनों अच्छी तरह से चीनी में बातचीत कर सकते हैं। और वे अकसर निमंत्रण पर चीन में भाषण देते हैं। उन्होंने चीनी दूतावास के मेहमानों को हाल ही में विभाग के विकास व शिक्षा में प्राप्त अनुभवों का परिचय दिया। बाद में राजदूत दंपति ने यूनिवर्सिटी के स्थाई मामलों पर जिम्मेदार कुलपति योगेश त्यागी से भेंट की, और चीन-भारत के बीच अकादमिक आदान-प्रदान, व्यक्तियों के प्रशिक्षण, अध्ययन के सहयोग आदि पक्षों में विचार-विमर्श किया।
वर्ष 1993 से भारत से रवाना होने के बाद च्यांग ईली दिल्ली यूनिवर्सिटी में फिर वापस नहीं लौटी। इसलिये डीयू को इस बार देखकर उन्हें बहुत स्नेह और अपनापन लगा। हालांकि बहुत इमारतें बदल गयी हैं, लेकिन च्यांग उनकी पुरानी बनावट को पहचान सकती हैं। काउंसलर च्यांग ईली ने कहा कि 26 साल पहले मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी में मेहनत से पढ़ती थी, और भारत में पीएचडी प्राप्त करने वाली पहली चीनी व्यक्ति थी। मैं बहुत गौरव महसूस करती हूं। मैं डीयू के अध्यापकों व डीयू के शिक्षा संसाधन के लिये धन्यवाद देती हूं। मेरे ख्याल से चीन व भारत के बीच शिक्षा के सहयोग और मानवीय आदान-प्रदान बहुत महत्वपूर्ण है। इस बार मैंने फिर डीयू का दौरा किया, मुझे बहुत स्नेह लगता है। साथ ही डीयू के विकास पर मुझे बहुत खुशी हुई। मैं चीन-भारत के शिक्षा सहयोग की बड़ी प्रतीक्षा में हूं।
कुलपति योगेश जी ने राजदूत दंपति के दौरे पर बड़ा महत्व दिया। उन्होंने विशेष तौर पर फूल लेकर मेहमानों का स्वागत किया, और दोपहर का भोजन भी तैयार किया। उन्होंने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी चीन के यूनिवर्सिटियों के सहयोग पर बड़ा ध्यान देती है, और चीन के साथ और विस्तृत अध्ययन, शिक्षा के सहयोग व मानवीय आदान-प्रदान करना चाहती हैं। कुलपति योगेश को आशा है कि भारत व चीन विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग से दोनों जीत और समान विकास प्राप्त कर सकेंगे।
इसके बाद राजदूत दंपति ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के गांधी केंद्र और छात्रावास का दौरा किया। काउंसलर च्यांग ईली ने उस समय के छात्रावास को भी देखा। वहां उन्होंने छात्रावास के प्रबंधक के साथ फोटो खींचा।