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    20161220 चीन-भारत आवाज़
    2016-12-27 08:41:52 cri

    भारतीय प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी की चीन के साथ मित्रता

    नवंबर 2016 में दूसरी विश्व इंडोलॉजी सभा का आयोजन चीन में हुआ। भारतीय विद्वान शुभ्रा त्रिपाठी और उनके परिजनों ने सभा में उपस्थित लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से आती हैं। विश्व इंडोलॉजी सभा में भाग लेने के लिए वे अपनी बेटी और दो पोतियों को भी साथ में लाई थीं। प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी की बेटी एक पोस्टडॉक्टोरल शोधकर्ता हैं, वे तुलनात्मक साहित्य और संस्कृति पर अध्ययन कर रही हैं। तीन पीढ़ियों के लोग एक साथ चीन में आते हैं, यह दृश्य देखकर लोग सोचते हैं कि वे सभा में उपस्थित ही नहीं, बल्कि चीन भी उन्हें अपने घर के जैसा ही लगता है।

    "इस बार मैं बेटी और पोतियों को लेकर सभा में भाग ले रही हूं। इससे पहले मैं चीन में रहा करती थी। जब चीन से भारत वापस जाती हूं, तब मैं बेटी और पोतियों को चीन में अपने जीवन के बारे में बताती हूं। मेरे द्वारा खींचे गए फ़ोटो देखने के बाद मेरी बेटी की भी चीन में बड़ी रुचि जगने लगी। वह भी चीन में अध्ययन करना चाहती है। हर बार जब मैं चीन आती हूं, तो मेरे पति कहते हैं कि अरे, तुम फिर घर वापस जाओगी।"

    भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) के प्रोफ़ेसर होने के नाते शुभ्रा त्रिपाठी अनुसंधान करने के लिए वर्ष 2010 से 2011 तक दक्षिणी चीन के क्वांगतोंग प्रांत स्थित शनचन विश्वविद्यालय में काम करती थीं। उस समय से उन्होंने चीन के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए।

    "जब मैं पहली बार चीन आई थी, तब मेरे लिए चीन सिर्फ़ एक देश का नाम था। चीन के बारे में मेरी ज़्यादा जानकारी नहीं थी। चीन आने के बस कुछ ही दिनों बाद मैं चीनी लोगों के प्यार और दोस्ताना व्यवहार से प्रभावित हुई। वे मेरी सहायता की भरसक कोशिश करते थे, मुझे महसूस हुआ कि मैं अपने घर में ही हूं। मैं बहुत प्रभावित हूं, तो चीन को मैं बहुत प्यार करती हूं।"

    शनचन विश्वविद्यालय में काम करते समय प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी कक्षा में चीनी छात्रों को भारत के साहित्य और संस्कृति के बारे में बताती थीं। बहुत से चीनी छात्र भारत की शिक्षा व्यवस्था के बारे में जानना चाहते थे, तो प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी ने एक विशेष व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने भारत के विभिन्न तरह के प्राइमरी स्कूल, हाई स्कूल और विश्वविद्यालय की स्थिति चीनी छात्रों को बताईं और उन्हें भारतीय साहित्य से भी परिचित कराया। भारत में हिंदी, बांग्ला और तमिल समेत बहुत सी भाषाएं प्रचलित हैं, हरेक भाषा के साहित्य और इतिहास बहुत समृद्ध हैं। प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी बहुत हैरान हुईं कि भारतीय साहित्य के बारे में चीनी छात्र इतना ज़्यादा जानते हैं।

    "कक्षा के लिए मैंने अलग अलग भाषाओं के साहित्य के परिचय तैयार किए, जैसे कि बांग्ला साहित्य और रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा अनुवादित अंग्रेज़ी उपन्यास। मैं बहुत हैरान हुई कि चीनी छात्र टैगोर के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, उन्होंने टैगोर के उपन्यास का चीनी संस्करण भी पढ़ा है।"

    शनचन विश्वविद्यालय में काम करने के दौरान प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी चीन की संस्कृति में बड़ी रुचि जगने लगी। उन्होंने चार वर्षों में चीन के बुद्धिमान विद्वान लाओ ज़ी द्वारा लिखित मशहूर नैतिकता शास्त्र "ताओ त चिंग" का हिंदी में अनुवाद का काम पूरा किया।

    "चीन के बहुत कम साहित्यिक शास्त्र हिंदी में अनुवादित किए गए हैं। चीनी संस्कृति पर भारतीय लोगों की जानकारी ज़्यादा नहीं है। भारतीय लोग बस चीनी कुंगफ़ू जानते हैं। लाओ ज़ी की पुस्तक 'ताओ त चिंग' का हिंदी में अनुवाद पहले भी किया गया था, लेकिन वह गहरा और श्रेष्ठ नहीं था। अनुवाद के समय मैंने देखा कि लाओ ज़ी की विचारधारा के भारतीय संस्कृति और मौजूदा समस्याओं के साथ कुछ न कुछ संबंध मौजूद हैं। उदाहरण के लिए अब हम सभी लोग ग्लोबल वॉर्मिंग और प्रदूषण पर चिंचित रहते हैं। वास्तव में लाओ ज़ी ने पहले से ही जल के महत्व पर ज़ोर दिया था, लेकिन हमने अब जाकर इस सवाल का एहसास किया।"

    प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी को लगता है कि सिर्फ़ अनुवाद करना काफ़ी नहीं है, इसलिए उन्होंने अपनी किताब के दूसरे भाग में "ताओ त चिंग" की कुछ व्याख्या भी लिखी। वे सोचती थीं कि शायद पाठक चीन के इतिहास और संस्कृति को पूरी तरह नहीं समझते, शायद पाठकों को मालूम नहीं है कि क्यों लाओ ज़ी ऐसा कहते थे, तो प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी ने किताब के तीसरे भाग में चीन के इतिहास और संस्कृति को भी शामिल किया। किताब के विषय के लगातार बढ़ने के कारण अनुवाद का काम चार वर्षों तक चला।

    भविष्य में अपनी अध्ययन योजना की चर्चा में प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी ने कहा कि अब वे मुख्यतः चीन की प्राचीन पुस्तकों का अनसंधान करती हैं, जैसा कि लाओ ज़ी और कन्फ़्यूशियस और उनकी विचारधारा। आने वाले समय में उनका ध्यान चीन की महिला लेखकों और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर केन्द्रित होगा। वे आधुनिक काल में चीन और भारत की महिलाओं के बीच भिन्नता और समानता पर अध्ययन करना चाहती हैं।

    "जब मैं चीन में काम करती थी, तब मैंने देखा कि चीनी महिलाओं को काम करने के साथ साथ परिवार की अच्छी तरह देखभाल भी करना पड़ता है। चीनी महिलाओं के विचार भारतीय महिलाओं के बराबर हैं। माता-पिता, सास और ससुर चीनी महिलाओं का बड़ा समर्थन करते हैं। भारत में भी ऐसा है। मुझे लगता है कि परिवार की दृष्टि से देखा जाए, तो चीन और भारत के बीच बहुत सी समानताएं मौजूद हैं। मैं इस क्षेत्र में ज़्यादा अनुसंधान करना चाहती हूं।"

    प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी ने कहा कि इस समय चीन और भारत पर अध्ययन ज़्यादातर राजनीति या इतिहास के मुद्दों पर केन्द्रीत है, महिलाओं पर अनुसंधान बहुत कम मिलता है। चीन में काम करने के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि क्यों चीनी महिलाएं पूरे मन से काम कर सकती हैं? क्योंकि उनके माता-पिता या सास-ससुर बच्चे की अच्छी तरह देखभाल करते हैं। भारत में भी ऐसी स्थिति है। लेकिन भारत के परिवार में बच्चों की संख्या अधिक है, दादा-दादी या नाना-नानी साथ में इतने ज़्यादा बच्चों की देखभाल नहीं कर सकते। इसलिए बहुत सी भारतीय महिलाओं को अपने बच्चों को डे-केयर सेंटर में भेजना पड़ता है। चीन के परिवार बच्चों की देखभाल में ज़्यादा बड़ी भूमिका निभाते हैं। इस क्षेत्र में भी वे आने वाले समय में अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहती हैं।

    प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी चीनी संस्कृति में बड़ी रुचि रखती हैं। उनके प्रभाव से उनकी बेटी और पोतियां भी साथ में चीन आई हैं। वे प्रोफ़ेसर शुभ्रा त्रिपाठी की तरह चीन के साथ घनिष्ठ संबंध जोड़ेंगी और चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान की दूत बनेंगी।

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