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    टी टाइम 170105(अनिल और नीलम)
    2016-12-22 19:45:18 cri

    अनिलः दोस्तो, आजकल हम सभी सोशल नेटवर्किंग साइट्स से जुड़े रहते हैं। फेसबुक पर भी लाखों-करोड़ों लोगों के अकाउंट हैं। ऐसे बहुत कम लोग हैं जिनका फेसबुक पर अकाउंट नहीं है। कर्इ लोग घंटों फेसबुक पर बिताते हैं, लेकिन यदि आप अपना बिजनेस शुरू करना चाहते हैं तो फेसबुक इसे शुरू करने में आपको सपोर्ट भी कर सकता है।

    आप सोच रहे होंगे कि किसी छोटे बिजनेस के लिए फेसबुक आपको सपोर्ट कर सकता है, लेकिन जनाब आप ये सुनकर चौंक जाएंगे कि फेसबुक आपकी 80 हजार डालर (50 लाख रुपए से भी ज्यादा) तक की सहायता कर सकता है। करीब दो साल पहले फेसबुक ने एफबी-स्टार्ट के नाम से प्रोग्राम शुरू किया था। ये प्रोग्राम दुनिया भर के स्टार्ट अप्स को फंडिंग करता है।

    आप ये जानकर चौंक जाएंगे कि फेसबुक भारत के कर्इ स्टार्ट अप्स को सपोर्ट कर चुका है। इसके लिए फेसबुक ने करीब 20 मिलियन डालर (135 करोड़ रुपए) का सपोर्ट किया है।

    फेसबुक ने भारत के र्इ कामर्स प्लेटफार्म काउटलूट को 40 हजार डालर की सहायता दी है। वहीं स्टार्ट अप पार्टिको, फ्लिकसप कटेंट डिस्कवरी सोशल नेटवर्क, मोबाइल एप हीलओ फार्इ, वीडियोवाइब जैसे स्टार्टअप्स को भी सपोर्ट कर चुका है। साथ ही कर्इ स्टार्ट अप्स को फेसबुक ने फ्री टूल्स औैर सर्विसेज भी प्रोवाइड की है।

    फेसबुक का ये स्टार्ट अप प्रोग्राम मोबाइल और वेब स्टार्ट अप्स को ही सपोर्ट करता है। साथ ही इनोवेटिव स्टार्टअप्स को वरीयता देता है।

    फेसबुक से अपने स्टार्ट अप के लिए सपोर्ट चाहते हैं तो अपने स्टार्टअप के बारे में पूरी जानकारी और प्लान के साथfbstartpartners@fb.com आपको एप्लार्इ करना होगा। दो सप्ताह में फेसबुक की टीम आपसे संपर्क करेगी।

    फेसबुक यदि आपके स्टार्ट अप को चुन लेता है तो फिर आपको टूल्स और सर्विसेज का फ्री पैकेज दिया जाता है। ये 80 हजार डॉलर तक हो सकता है।

    दोस्तो, अब एक दूसरी जानकारी से रूबरू करवाते हैं। क्या आपने कभी किताबों की नदी के बारे में सुना है। जी हां, आपको यह जानकर हैरानी ज़रूर हुई होगी। कुछ ऐसी ही हैरानी उन लोगों को भी हुई थी, जिन्होंने अपनी आंखों के सामने सड़क पर किताबों की नदी को बहते देखा था। सड़क पर किताबों की नदी को बहता देख चकित हुए लोगों ने उसकी काफी तस्वीरें भी ली।

    आपको बता दें कि पिछले दिनों अचानक ऐसी नदी टोरंटो के हेंगरमन डाउनटॉउन में बही थी। दरअसल, टोरंटो के हेंगरमन डाउनटॉउन के लोग किताबें पढ़ने का काफी ज्यादा शौक रखते हैं और यहां के लोगों की पढ़ने की तीव्र इच्छा को देखते हुए यहां पर एक आर्ट फेस्टिवल का आयोजन किया गया था। इस आर्ट फेस्टिवल के लोगों ने ही यहां के लोगों के लिए उनकी गलियों में साहित्य की किताबों को इकट्ठा किया तो वो बहती हुई नदी की तरह दिखने लगी थी।

    वहां मौजूद लोगों की मानें तो वाकई ऐसा नजारा किताबों की नदी और उसमें आ रही बाढ़ जैसा लग रहा था। किताबों के इस नदी की वजह से टोरंटो की ये जगह प्रदूषण और अशांति से एक दिन के लिए बिल्कुल मुक्त रहीं, क्योंकि यहां पर हर जगह सिर्फ और सिर्फ किताबें ही किताबें थी। किताबों के इस आर्ट फेस्टिवल का आयोजन लुजिंटर्पट्स ग्रुप की ओर से किया गया था और इस आयोजन में आर्मी के लोगों ने एक बड़ी मात्रा में किताबें आयोजनकर्ताओं को दी थी।

    नीलमः उधर आमतौर पर मृत्यु के बाद ही अंतिम संस्कार (क्रियाकर्म) करने की परंपरा है, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि दुनिया में एक जगह ऐसा भी है, जहां लोग अपनी मौत से पहले ही अपने ही अंतिम संस्कार को अपनी आंखों से देख सकते हैं।

    बता दें कि दक्षिण कोरिया में लोगों में अपनी मौत से पहले ही अंतिम संस्कार का चलन है। इसके पीछे अपने जीवन को सकारात्मक ढंग से देखने की धारणा निहित है। बताया जाता है कि सियोल में एक सेंटर है जो इच्छुक व्यक्तियों का नकली अंतिम संस्कार से संबंधित कार्यक्रम करता है। यहां अब तक हजारों लोग इस प्रकार अपना अंतिम संस्कार करवा चुके हैं।

    अंतिम संस्कार के दौरान सबसे पहले उन्हें भाषण के जरिए आध्यात्मिक बातों को समझाया जाता है। इतना ही नहीं, यहां बकायदा वीडियो के जरिये कुछ निर्देश भी दिए जाते हैं। फिर इसके बाद उन्हें एक कमरे में ले जाया जाता है। यहां पर बैठकर वे अपनी वसीयत लिखते हैं। इसके बाद उन्हें ताबूत में शव की तरह सुला दिया जाता है और 10 मिनट के लिए ताबूत को बंद कर दिया जाता है। लोगों का मानना है कि ऐसा करने से उनके मन से मौत का डर समाप्त हो जाता है।

    जानकारों का कहना है कि दरअसल, इसमें शामिल होने वाले कुछ लोग गंभीर बीमारियों से पीडि़त होते हैं। इसके जरिए उनको अपने अंतिम समय के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाता है और ये देखा गया है कि गंभीर बीमारियों के कारण कुछ लोगों में आत्महत्या करने की प्रवृत्ति भी आ जाती है, इसलिए ऐसे लोगों के मन में इसके माध्यम से मन में बदलाव लाया जा सकता है।

    अनिलः चलिए अब दूसरी जानकारी की बात करते हैं। ब्रिटेन की एक निर्माण कंपनी ने एक दिन में बंगला बनाने का तरीका इजाद किया है। विलरबाई इनोवेशन नाम की ये कंपनी एक और दो बेडरूम वाले बंगले बनाती है। इनमें 4 लोगों का परिवार ठाठ से रह सकता है। इन बंगलों को खड़ा करने से पहले इनकी नींव तैयार की जाती है। फिर लकड़ी से तैयार बंगले का ढांचा उस पर फिट किया जाता है। आखिर में ऊपर की छत रखी जाती है।

    जॉनसन कंस्ट्रक्शंस के एमडी एंडी जॉनसन ने कहा कि उसी जगह पर तुरंत घर के निर्माण से फायदा ये होता है कि सारी चीजें एक बार में ही बन जाती हैं। विलरबाई इनोवेशन ने ये बंगले यॉर्कशायर के हल में बनाए हैं। कंपनी ने दो महीने में 33 बंगले बनाए हैं।

    कंपनी बंगला बनाने से पहले उसका ढांचा अपने कारखाने में तैयार करती है। इन ढांचों को घर की हर जरूरत को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जाता है। लकड़ी के इन ढांचों में बिजली के तार, फिटिंग और गैस सप्लाई का पूरा इंतजाम रहता है। मॉड्यूलर किचन और बाथरूम भी पहले से ही बना लिए जाते हैं और उन्हें फिट कर दिया जाता है।

    कंपनी बंगले के साथ-साथ बेड, सोफ़ा और आलमारी जैसी जरूरी चीजें भी मुहैया कराती है। अगर कोई शख्स चाहे तो मकान बनने के कुछ ही देर बाद उसमें रहना शुरू कर सकता है। खास बात ये कि ये बंगले जेब पर बहुत बोझ नहीं डालते हैं।दो बेडरूम वाले बंगले की कीमत 50 लाख रुपये और एक बेडरूम वाले बंगले की कीमत 45 लाख रुपये है।

    कंपनी का दावा है कि इन बंगलों की उम्र 60 साल है। कंपनी को उम्मीद है कि ये बंगले सस्ते होने की वजह से लोगों में तेजी से लोकप्रिय होंगे।

    नीलमः ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में लिंग भेद खत्म करने के उद्देश्य से एक अनोखी पहल शुरू की गई है। इसके मुताबिक अब छात्र एक-दूसरे को 'ही' और 'शी' नहीं, बल्कि 'झी' संबोधित करेंगे। इसका मकसद लड़का और लड़की के भेद को खत्म करना है।

    यूनिवर्सिटी के मुताबिक, ऐसा करने से ट्रांसजेंडर छात्र असहज महसूस नहीं करेंगे। गौरतलब है कि 'ऑक्सफोर्ड बिहेवियर कोड' में पहले से ही इस बात का जिक्र है कि कोई भी इंसान ट्रांसजेंडर छात्र के लिए अपमानजनक टिप्पणी का उपयोग नहीं कर सकता। ऐसा ही एक कदम कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भी उठाया गया है। साथ ही पिछले महीने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के सेंट कैथरीन कॉलेज ने लिंगभेद मिटाकर टॉयलेट्स में नए सिंबल भी लगवाए थे।

    इस तरह दुनिया के जाने-माने संस्थान ने अपने छात्रों के लिए नए दिशा निर्देश जारी किया गया है। माना जा रहा है कि इसके नतीजे जल्द ही देखने को मिलेंगे। वहीं, छात्रों को उम्मीद है कि ये पहल आने वाले समय में लेक्चर्स और सेमिनार आदि के दौरान भी देखने को मिलेगा

    अनिलः उधर स्पेन में हर साल सेंट एंथनीज डे पर एक अनोखा त्योहार मनाया जाता है। 16 जनवरी को मनाये जाने वाले इस त्योहार पर घुड़सवार घोड़े पर बैठकर उसे आग पर भगाता है। 500 साल से चली आ रही इस प्रथा को पालतू जानवरों के संरक्षक सेन बार्टोलोम डे पिनारेस के गांव में मनाया जाता है। संकरी तंग गलियों में आग के ऊपर घोड़े दौड़ाने की इस प्रथा के पीछे लोगों का विश्वास है कि ऐसा करने से जानवर पूरे वर्ष तकलीफों से दूर रहते हैं। ऐसा माना जाता है कि आग पर घोड़ा दौड़ाने से घोड़े का स्वास्थ्य ठीक रहेगा। आग और धुंआ उसकी तकलीफें दूर कर देगा। मध्यरात्रि तक चलने वाले इस कार्यक्रम में सब लोग एकत्र होकर सुबह तक जश्न मनाते हैं।

    दोस्तो, कभी सोचा है कि खाने की शुरुआत में सबसे पहले मीठा क्यों नहीं खाना चाहिए? जाहिर है यह एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब सभी लोग जानना चाहेंगे।

    वास्तव में कई लोग ऐसा मानते हैं कि यह सालों से चली आ रही एक परंपरा है, लेकिन आपको बता दें कि इसके पीछे वैज्ञानिक तथ्य है।

    जब आप स्पाइसी फूड खाते हैं, तो आपका शरीर पाचक रस और एसिड जारी करता है, जो पाचन प्रक्रिया को बढ़ाते हैं। स्पाइसी फूड्स खाने से यह भी सुनिश्चित होता है कि आपका पाचन सही तरह हो रहा है। दूसरी ओर मीठी चीजों में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा अधिक होती है, जिससे पाचन धीमा हो सकता है।

    इसके अलावा मीठे का सेवन एमिनो एसिड ट्रिप्टोफैन के अवशोषण को बढ़ाता है। ट्रिप्टोफैन को सेरोटोनिन लेवल बढ़ाने के लिए जाना जाता है। सेरोटोनिन एक न्यूरोट्रांसमीटर है, जो खुशी की भावना से जुड़ा है यानी मीठा खाने से आपको खुशी होती है। यही कारण है कि आप भोजन करने के बाद मीठा खाते हैं।

    हालांकि व्हाइट शुगर से बनने वाली मीठी चीजों को हेल्दी नहीं माना जाता है। चीनी से तैयार चीजों का लंबे समय तक सेवन करने से आपको मोटापे और अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं का खतरा हो सकता है। इसके बजाय आपको गुड़ या ब्राउन शुगर से तैयार चीजें ही खानी चाहिए। वास्तव में आर्गेनिक गुड़ आपके लिए सबसे बेहतर विकल्प हो सकता है।

    नीलमः

    मानवरहित कारें बिना ड्राइवर कंप्यूटर और अन्य आटोमेटेड डिवाइसेज से चलती हैं। इनको आप दूर से ही रिमोट से कंट्रोल कर सकते हैं बिलकुल जैसे आप इलैक्ट्रोनिक खिलौना कार चलाते हैं। ड्राइवरलैस कार बनाने के लिए दुनिया भर की टाप कंपनियों जैसे गूगल, एपल, के अलावा फोर्ड, जनरल मोटर्स और उबर जैसी कंपनियों ने भी निवेश करना शुरू कर दिया है। ये सभी कंपनियां असल में सेल्फ ड्राइविंग टैक्सी बनाने की फिराक में हैं।

    इधर सिंगापुर की केवल तीन साल पुरानी एक स्टार्टअप कंपनी नुटोनोमी ने हाल ही में दुनिया की पहली सेल्फ ड्राइविंग टैक्सी लांच करके धमाका कर दिया है। कंपनी के मुताबिक उसकी ये टैक्सी लेसर सेंसर, राडार और हार्इ डेफिनेशन कैमरा जैसी लेटेस्ट तकनीक से लैस है।

    इसे मोबाइल एप की मदद से चलाया जा सकता है। हालांकि अभी इसे केवल टैस्ट ही किया जा रहा है। एेसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि भारत में मानवरहित कारें कब तक लाॅन्च होंगी। एक मीडिया समाचार के मुताबिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि चूंकि भारत की सड़कों पर ट्रैफिक बेतरतीब है इसलिए यहां ड्राइवरलैस कारों की कल्पना भी करना अभी मुश्किल है।

    अनिलः वहीं भारतीय सड़कों पर चलते समय कब कहां से जानवर या इंसान आपके सामने आ जाए कुछ कहा नहीं जा सकता। एक इंसान के तौर पर हम इस स्थित को संभाल सकते हैं लेकिन एक कंप्यूटर ये सब सिचुएशन इमेजिन नहीं कर सकता है। मानव रहित कारें यहां तभी संभव हो सकेंगी जब भारत में स्मार्ट सिटी की परिकल्पना साकार हो सके। स्मार्ट सिटी में ट्रैफिक व्यवस्था समेत सभी कार्य मशीन से कंट्रोल होते हैं। लेकिन अगर यहां ऐसा होता भी है तो यकीन मानिए कि रोजाना टैक्सी से अपनी रोजी रोटी चलाने वाले लाखों टैक्सी-ड्राइवर बेरोजगार हो जाएंगे।

    एक्सपर्ट्स का कहना है कि दुनिया भर में पहले कनेक्टेड कारें आएंगी, फिर सेमी आटोनोमस कारें और उसके बाद कहीं जाकर फुली आटोनोमस कारों का नंबर आएगा। उनका अनुमान है कि यह सब होने में अभी 10-15 साल का समय और लगेगा।

    नीलमः उधर दिल्ली में राष्ट्रपति भवन के ठीक पीछे की तरफ जंगल में पुलिस को एक गुफानुमा मजार मिली है। इस गुफा के बारे में पुलिस को इससे पहले कोई जानकारी नहीं थी। दिल्ली पुलिस ने इस मजार से दो संदिग्ध लोगों को गिरफ्तार भी किया, लेकिन गहन पूछताछ के बाद सबकुछ सामान्य मिलने पर दोनों को छोड़ दिया गया।

    पुलिस की पेट्रोलिंग वैन शनिवार शाम को राष्ट्रपति भवन के पीछे के रोड से गुजर रही थी। उसी दौरान जंगल की दीवार फांदते हुए एक युवक दिखा। मामला चूंकि राष्ट्रपति भवन से जुड़ा हुआ था। पुलिस ने तुरंत जंगल में तलाशी अभियान चलाया। तलाशी के दौरान ही पुलिस की टीम की नजर इस गुफानुमा मजार पर पड़ी।

    पुलिस को मजार के पास 70 वर्षीय गाजी नुरूल हसन और उनका बेटा मोहम्मद नूर मिले, जिन्हें पुलिस ने हिरासत में ले लिया। पूछताछ की तो नुरूल ने बताया कि वह पिछले 42 साल से इस मजार पर रह रहा है।

    उसने अपना मतदाता पहचान पत्र सहित कई और दस्तावजे भी दिखाए। हालांकि नुरूल हसन को आस-पास के लोग नहीं जानते। उसने बताया कि वह जड़ी-बूटी की तलाश में यहां आया था। इस दौरान उसे यह मजार मिली और फिर वो वहीं रहने लगा। नुरूल हसन ने यह भी बताया कि वह पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के लिए धार्मिक उपदेश देता था।

    अनिलः आजकल भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग हमेशा तनाव से घिरे रहते हैं। ऐसे में वो अपने सेहत को लेकर कभी - कभी ज्यादा सोचने लगते हैं। साथ इसको लेकर बहुत चिंता करने लग जाते हैं। और उनकी सेहत के प्रति चिंतित होना दिल की बीमारियों को दावत देता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसा मानना है डॉक्टरों और वैज्ञानिकों का।

    दरअसल, कई वैज्ञानिक शोधों में यह साबित हो चुका है कि तनाव और सेहत के बारे में बहुत अधिक चिंता करना दिल की बीमारियों को बढ़ावा देते हैं। चूंकि कुछ लोग अपनी सेहत के बारे में लगातार चिंता करते रहते हैं। ये सोचते रहते हैं कि कहीं उन्हें बीमारी तो नहीं। विज्ञान की भाषा में इसे रोगभ्रम या हाइपोकॉन्ड्रिया कहा जाता है।

    नार्वे में हुए एक ताजा शोध में इसको लेकर सात हजार लोगों से उनकी जीवनशैली, शिक्षा और सेहत को लेकर सवाल पूछे गए। इस दौरान शोधकर्ताओं की रोगभ्रम को दूर करने के लिए सभी लोगों का हेल्थ डाटा निकाला गया। इस दौरान शोधकर्ताओं को उम्मीद थी कि जो लोग सेहत के बारे में फिक्रमंद होते हैं, उन्हें कम खतरा होता होगा। लेकिन जो परिणाम आए वो बेहद हैरान करने वाले रहे। शोध के मुख्य शोधकर्ता डॉक्टर लाइन इडेन बेर्गे के मुताबिक, जिन्हें सेहत की चिंता थी, उनमें खून की सप्लाई संबंधी दिल की बीमारी होने का खतरा 70 फीसदी ज्यादा था।

    अब समय हो गया है, जोक्स यानी हंसगुल्लों का।

    पहला जोक।

    पप्पू खाली पेपर को बार-बार चूम रहा था।

    दोस्त ने पूछा- ये क्या है?

    पप्पू- लव लेटर है।

    दोस्त- मगर ये तो खाली है।

    पप्पू- आज कल बोलचाल बंद है।

    दूसरा जोक...

    पति: तुम्हारी रोज-रोज की नई फरमाइशों से परेशान होकर मैं आत्महत्या कर लूंगा।

    पत्नी: आप भी न रुला के ही मानोगे।चलो एक अच्छी सी सफेद साड़ी दिला दो बस..तेरहवीं पर पहनूंगी।।

    तीसरा और अंतिम जोक....

    जज- तुमने पुलिस ऑफिसर की जेब में माचिस की जलती हुई तीली क्यूं रखी?

    पप्पू- उसने ही कहा था, जमानत करवानी है तो पहले जेब गर्म करो!

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