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    टी टाइम 161229(अनिल और नीलम)
    2016-12-22 19:43:50 cri

    अनिलः स्विटजरलैंड में बनी दुनिया की सबसे लंबी टनल में पिछले दिनों नियमित रेल सेवा शुरू हो गई। रेल के जरिए ज्यूरिख से लुगानो तक यात्रियों को ले जाया गया। इसको बनाने में 17 साल लगे। करीब 80 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। गॉटहार्ड बेस टनल (GBT) 57 किलोमीटर लंबी है और आल्प्स पहाड़ों के 2.3 किलोमीटर नीचे बनी है। - इसी साल जून में GBT का सेरेमोनियल इनॉग्रेशन किया गया था। इस उद्घाटन में जर्मन चांसलर एंजेला मॉर्केल और फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवां ओलांड जैसी हस्तियां मौजूद रही। इसने जापान की 53.9 किलोमीटर लंबी सीकान टनल को पीछे छोड़ दिया है।

    यहां बता दें कि GBT से रोजाना 260 मालगाड़ियां और 65 पैसेंजर ट्रेनें गुजरेंगी। ट्रैक पर ट्रेन 200 किमी/घंटे की स्पीड से दौड़ सकेंगी।

    - यह सुरंग सी लेवल से 550 मीटर ऊपर और स्विट्जरलैंड के सबसे ऊंचे माउंटेन क्रेस्ट से 2300 मीटर नीचे है।

    - यह सुरंग आल्प्स पहाड़ों के 2.3 किमी नीचे बनी है। पहाड़ों के ऊपर का तापमान जीरो डिग्री और सुरंग के अंदर 46 डिग्री रहता है।

    - सुरंग के ट्रैक के स्लैब को बनाने के लिए 125 मजदूरों ने 43800 घंटों तक काम किया।

    - ज्यूरिख से नॉर्थ इटली के मिलान के बीच अब 2 घंटे चालीस मिनट का समय लगेगा। यह पहले के मुकाबले एक घंटे कम होगा।

    - इस सुरंग को 2600 लोगों ने 17 साल तक लगातार काम कर करके बनाया।

    - बता दें कि इस सुरंग की पहली यात्रा के लिए 1,30,000 लोग तैयार थे। लेकिन 500 लोगों को लॉटरी से चुना गया।

    - सेरेमोनियल इनॉग्रेशन में जर्मन चांसलर एंजेले मॉर्केल और फ्रांस के प्रेसिडेंट फ्रैंकोइस हॉलैंड भी शामिल थे।

    वैसे 1947 में सबसे पहले स्विस इंजीनियर कार्ल एडवर्ड ग्रूनर ने इसकी पहली डिजाइन बनाई थी।

    - प्रोजेक्ट की बढ़ती कीमत, प्रॉसेस में देरी और दूसरी परेशानियों की वजह से ये प्रोजेक्ट 1999 तक टलता गया।तब से 17 साल में करीब 80 हजार करोड़ की लागत से यह सुरंग बनी है।

    - इसे बनाने में इंजीनियर्स को करीब 73 तरह के रॉक्स को ब्लास्ट करना पड़ा। इसमें कई हार्ड ग्रेनाइट और कई सॉफ्ट थे। 28 मिलियन टन रॉक्स को टनल के निकाला गया। इसके कन्स्ट्रक्शन के दौरान 9 मज़ूदरों की भी मौत हुई।

    दोस्तो, अब हम आपको दुनिया की तीन सबसे लंबी टनल कहां हैं, बताते हैं।

    1. स्विटजरलैंड की गॉटहार्ड टनल। लंबाई 57 किमी.।

    2. जापान की सीकान टनल। लंबाई 53.9 किमी.।

    3. इंग्लिश चैनल में बनी चैनल टनल। लंबाई 50.5 किमी.।

    नीलमः वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने जापान का अनूठा तोहफा लेने से इनकार कर दिया है। जापान उन्हें एक मेल डॉगी गिफ्ट करने वाला था। दरअसल, 2012 में जापान सरकार ने पुतिन को एक अकीता नस्ल का फीमेल डॉगी गिफ्ट किया था। इस बार वह उन्हें इसके साथी के रूप में मेल डॉगी देने जा रहा था। पुतिन के इनकार करने के बाद जापान के एक सांसद ने कहा, "हमारी तोहफे में दूल्हा देने की उम्मीद टूट गई।" हालांकि पुतिन ने इनकार की वजह नहीं बताई। जापान के सांसद कोइची हेगिउदा के मुताबिक, पुतिन ने यह नहीं बताया कि उन्होंने यह तोहफा लेने से मना क्यों किया।

    - सांसद हेगिउदा ने अपने ब्लॉग पर लिखा, "बदकिस्मती से हमने रूस के लोगों से सुना और हमारी तोहफे में दूल्हा देने की उम्मीद टूट गई।"उन्होंने कहा, "मंजूर कर लिया जाता तो यह तोहफा अगले हफ्ते रूसी राष्ट्रपति की जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ एक समिट में होने वाली मुलाकात के दौरान दिया जाता।'यहां बता दें कि पुतिन के पास बुफी नाम का बुल्गेरियन शेफर्ड भी है। यह उन्हें बुल्गारिया के पीएम ने 2010 में तोहफे में दिया था। उन्हें लेब्राडोर कोन्नी रूस के मौजूदा डिफेंस मिनिस्टर सरगेई शोयगू ने गिफ्ट किया था। कोन्नी की 2014 में मौत हो चुकी है। बताते हैं कि पुतिन एकबार जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल से मिलने पहुंचे तो कोन्नी को भी साथ ले गए थे। मर्केल को डॉगीज से बहुत डर लगता है। उस वक्त कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया था कि पुतिन ने जान-बूझकर ऐसा किया था। हालांकि, इस साल की शुरुआत में पुतिन ने एक जर्मन अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उन्हें एंगेला के डर के बारे में नहीं पता था। उन्होंने कहा, "जब मुझे पता चला कि वे डॉगी को पसंद नहीं करतीं तो बेशक मैंने उनसे माफी मांग ली थी।

    अनिलः अब आपको जापान में बड़ी तादाद में लोग बढ़ती उम्र के साथ डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) के शिकार हो रहे हैं। इसके चलते वे कभी घर का रास्ता भूल जाते हैं तो कभी घर छोड़कर चले जाते हैं। सरकार ने ऐसे सीनियर सिटीजंस के लिए एक खास क्यूआर कोड स्टीकर बनाया है। ताकि उनको ढूंढने में आसानी हो। बुजुगों के नाखून पर इसके लिए एक क्यूआर कोड स्टीकर चिपकाया जा रहा है। इसे स्मार्टफोन में एप के माध्यम से कहीं से कभी भी स्कैन किया सकता है। यह सेवा बिल्कुल फ्री है। इसके जरिए परिवार और पुलिस को गुम होने वाले बुजुर्गों को खोजने में मदद मिलेगी।

    फिलहाल टोक्यो के नजदीक इरूमा शहर में प्रशासन यह खास क्यूआर कोड सीनियर सिटीजंस के परिवार और रिश्तेदारों को दे रही है। इसे लेने के लिए उन्हें सिर्फ रजिस्ट्रेशन करवाना होता है। इरूमा में कामयाब होने के बाद इस प्रोडेक्ट को पूरे देश में लागू किया जाएगा। ये क्यूआर कोड वाटर प्रूफ हैं। साइज 1 स्क्वेयर सेमी है। हर स्टीकर का एक यूनीक आइडेंटिटी नंबर होता है। इसमें बुजुर्ग का नाम, पता, मोबाइल नंबर और रीजनल एडमिनिस्ट्रेशन का टेलीफोन नंबर दर्ज है। इसके लिए एक एप बनाया गया है। जिसे स्मार्टफोन में डाउनलोड कर क्यूआर कोड के यूनिक नंबर को स्कैन कर लापता शख्स के लोकेशन को पता किया जा सकता है।

    वहीं इरूमा शहर के प्रशासन के प्रवक्ता ने कहा,'जापान में भूलने की बीमारी से पीड़ित सीनियर सिटीजंस के खोने की समस्या बड़ी है।'' ''इरूमा में भी ऐसे लोगों की संख्या काफी है। उन्हें खोजने में हमेशा समस्या होती है।'' ''इरूमा की कुल तादाद करीब 40 हजार है। इसमें करीब 3 हजार लोगों को डिमेंशिया है।''

    जापान में 46 लाख लोग डिमेंशिया (भूलने की बीमारी) से पीड़ित हैं। हर साल बड़ी संख्या में बुजुर्ग गुम होते हैं।देश की बड़ी आबादी बहुत तेजी से उम्रदराज हो रही है। यहां करीब एक तिहाई आबादी की उम्र 65 साल से ज्यादा है। इससे सरकार चिंतित है। इसी तरह चीन की मिनिस्ट्री ऑफ सिविल अफेयर की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में रोजना 1300 उम्रदराज लोग गुम होते हैं। एक साल में 5 लाख लोग गुम हुए हैं। इनमें 80 फीसदी लोग 65 साल से ऊपर के हैं।

    नीलमः वहीं राजस्थान के श्रीगंगानगर स्टेशन के समीप झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाला चार साल का मुन्नू कुछ दिन पहले पहली बार होटल के बाहर पहुंचा तो जाते ही बाहर खड़े दरबान से मासूमियत से पूछा कि अंकल आज हमें कोई मारेगा तो नहीं... जवाब मिला, 'नहीं आज तो आप हमारे मेहमान हैं।' यह सुन मुन्नू के चेहरे पर खुशी दौड़ आई। दरअसल, मुन्नू इस होटल में हमेशा आता, लेकिन बाहर से ही दुत्कार दिया जाता। लेकिन हाल में झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले इन 25 से ज्यादा बच्चों ने पहली बार होटल में जाकर पार्टी की। दरअसल यहां सैलून चलाने वाले दीपक और प्रिया सैन के बेटे अंश का पहला जन्मदिन था। उसकी इच्छा थी कि वह बेटे के जन्मदिन को अलग तरीके से मनाए। इसके पीछे भी सोच यह थी कि बचपन में दीपक व उसके परिवार की पारिवारिक परिस्थितियां ठीक नहीं थी।घर में जब भी खुशी का कोई मौका होता तो वह इसे झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के साथ ही बांटते। इसलिए दीपक ने रविवार को बेटे का पहला जन्मदिन इन्हीं जरूरतमंद बच्चों के साथ मनाने का निर्णय लिया।दीपक ने बताया, रविवार को जब वह इन बच्चों को पार्टी के लिए लेने पहुंचे तो बच्चों ने बड़ी जिज्ञासा से पूछा कि अंकल क्या आप हमें लंगर खिलाने ले जा रहे हो? मैंने कहा लंगर नहीं, पिज्जा और बर्गर खिलाऊंगा तो बच्चे बहुत खुश हुए। होटल की चकाचौंध देखकर पहले तो सब बच्चे डरे सहमे से थे। लेकिन जब होटल के कर्मचारियों ने बच्चों का सत्कार किया तो सब खूब खुश हुए। पहले तो इन्होंने जमकर बर्गर, पिज्जा और केक का आनंद लिया, फिर डीजे पर बजने वाले गानों पर झूमे भी।

    दूसरी क्लास में पढ़ने वाली पिंकी ने बताया कि स्कूल में कभी कभी लड्डू समोसे तो खाने को मिल जाते हैं, लेकिन उसने पिज्जा पहली बार खाया है।चार साल का राजू बोला, बर्गर पिज्जा हमेशा टीवी पर देखता था, लेकिन आज पहली बार उसने बर्गर व पिज्जा खाया।

    अनिलः दोस्तो, अब बात करते हैं रूस की। वहां साइबेरिया की कुपोल माइन काम करने के लिए दुनिया की सबसे मुश्किल जगहों में से एक है। यहां टेम्परेचर माइनस 31 डिग्री फारेनहाइट (-35 डिग्री सेल्सियस) से भी नीचे चला जाता है। हालांकि, रूस के चुकोतका में कुपोल माइन में अब रह रहे वर्कर कहीं ज्यादा आरामदेह जिंदगी गुजार रहे हैं। रशियन फोटोग्राफर एलेना चेर्नीशोवा ने इस माइन के वर्कर्स की डेली लाइफ को अपने कैमरे में कैद किया था।

    - 1940 में पहली बार इस इलाके में गोल्ड मिला और स्टालिन के शासन में फोर्स्ड लेबर कैंप सिस्टम के जरिए यहां से सोना निकाला गया।

    - कुपोल माइन ने अपना पहला गोल्ड ओर 2008 में प्रोड्यूस किया था।

    - तब से यहां से गोल्ड और सिल्वर जैसे कीमती मेटल यहां से निकाले जा रहे हैं।

    - इस माइन में करीब 1200 वर्कर्स का स्टाफ है, जो बिना किसी वीकेंड के लगातार 12-12 घंटे काम करता है। काम का ये सिलसिला सिर्फ दो महीने के लिए ही रहता है।

    - इसके बाद उन्हें रेस्ट के लिए दो महीने की छुट्टी मिलती है और फिर उन्हें इसी तरह दो महीने के काम के लिए लौटना होता है।

    भले ही वर्कर्स रिमोट एरिया में माइनस टेम्परेचर में रह रहे हो, लेकिन उनके पास काम के साथ-साथ सभी फैसिलिटीज मौजूद हैं।

    - इस रिमोट साइट पर भी वो रॉक कैफे, फास्ट इंटरनेट कनेक्शन और जिम का मजा ले सकते हैं।

    - इसके अलावा उनके पास एनज्वॉयमेंट के लिए टीवी के साथ ही टेबल टेनिस और बिलियर्ड्स जैसे गेम्स का मजा लेने का भी भरपूर मौका है।

    - ऐसी रिमोट लोकेशन पर 1200 वर्कर्स के लिए खाने का इंतजाम करना एक बड़ा चैलेंज है।

    - इसके लिए काफी पहले ही पूरी प्लानिंग करनी पड़ती है। स्टाफ के लिए दो साल एडवांस में ही फूड स्टॉक मंगा लिया जाता है।

    - ये बर्फीली रोड पर 220 मील दूरी का सफर तय कर यहां तक पहुंचता है।

    - खराब मौसम के चलते ये रास्ता हर साल सिर्फ जनवरी से अप्रैल तक ही इस्तेमाल किया जा सकता है।

    - यही वजह है कि फूड की सप्लाई के लिए एडवांस ऑर्डर किया जाता है।

    - यहां एक हाइड्रोपोनिक ग्रीनहाउस भी है, जिसके जरिए वर्कर्स हेल्दी बैलेंस डाइट का लुत्फ उठा सकते हैं।

    किशमिश में आयरन, पोटैशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम और फाइबर की पर्याप्त मात्रा होती है। इसलिए इसे हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद माना गया है। लेकिन आयुर्वेद के अनुसार रोज सूखी के बजाय भीगी किशमिश खाने से कई गुना ज्यादा फायदा मिल सकता है। किशमिश में काफी मात्रा में शुगर होती है। इसे रातभर भिगोकर रखने से इसका शुगर कंटेट कम हो जाता है और न्यूट्रीशन वैल्यू बढ़ जाती है।

    नीलमः अब बात स्वास्थ्य और खाने की करते हैं।

    किशमिश में बड़ी मात्रा में फाइबर पाया जाता है, भिगोकर खाने से डाइजेशन बेहतर होता है। जबकि किशमिश में मौजूद ओलीनोलिक एसिड मुंह से बैक्टीरिया को खत्म करता है। लगातार भीगी हुई किशमिश खाने से मुंह की समस्याएं दूर होती हैं। वहीं किशिमिश में बोरोन नामक माइक्रो न्यूट्रियंट्स पाये जाते हैं। जो हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं किशमिश में मैगनीशियम और पोटेशियम की पर्याप्त मात्रा होती है, जो कि शरीर का एसिड लेवल नियंत्रित करते हैं। इससे एसिडिटी की परेशानी दूर होती है। जबकि किशमिश में पर्याप्त मात्रा में आयरन होता है, लगातार भीगी किशमिश खाने से खून की कमी दूर होती है।

    अनिलः दोस्तो, आयुर्वेद में कहा गया है कि आयुर्वेद के मुताबिक हर फूड की अपनी प्रकृति होती है और उन्हें उसी हिसाब से खाया जाना चाहिए। कुछ फूड को सुबह खाली पेट खाने से बॉडी में एसिड बनता है जिससे एसिडिटी जैसी प्रॉब्लम हो सकती है। इसी तरह कुछ फूड रात में खाना नुकसानदायक होता है

    सेब को सुबह के वक्त खाना चाहिए, सेब के छिलके में फाइबर होता है, जिससे वह पाचन में मदद करता है। लेकिन सेब को रात के वक्त नहीं खाना चाहिए, इससे शरीर में एसिड बनता है और पाचन खराब होता है।

    हां जहां तक दूध की बात है तो इसे रात के वक्त पीना बेहतर होता है, दूध में अमीनो एसिड्स होते हैं, जो अच्छी नींद के लिए ज़रूरी होते हैं। हालांकि दूध को सुबह के वक्त भी पिया जा सकता है।

    वहीं दही को दिन के वक्त खाना बेहतर होता है, इससे पाचन बेहतर होता है। हां इस बात का ध्यान रखें, अगर सर्दी-खांसी हो तो रात के वक्त दही न खाएं।

    वैसे कुछ लोगों को कॉफी पीने की आदत भी होती है, उन्हें कॉफी सुबह या दिन के वक्त पीनी चाहिए। इससे ऊर्जा मिलती है। रात में कॉफी पीने से अच्छी नींद नहीं आती है। हां, ज्यादा कॉफी पीने से शरीर में पानी की कमी भी हो जाती है।

    नीलमः जबकि अंडों को खाने का वक्त सुबह का होता है। क्योंकि अंडे प्रोटीन से भरपूर होते हैं, जिनसे दिनभर ऊर्जा मिलती है। लेकिन रात के समय अंडे खाने से प्रोटीन पूरी तरह डाइजेस्ट नहीं होता है और पेट खराब होने की संभावना रहती है। जबकि केले को दिन के वक्त खाना बेहतर होता है, इसमें फाइबर होते हैं, साथ ही ऊर्जा भी मिलती है। रात के समय खाने से कुछ लोगों को सर्दी-जुकाम भी हो सकता है। इसलिए ध्यान रखें।

    ...

    अनिलः अब समय हो गया है जोक्स यानी हंसगुल्लों का......

    एक बार एक ताऊ ने एक ताई छेड़ दी....ताई ताऊ को गाली देने लगी..

    पास से एक लड़का गुजर रहा था बोला क्या बात हो गयी ताऊजी।

    ताऊ- कुछ न बेटा, पुरान ट्रांसफार्मर है... चरड चरड कर रहा है।

    दूसरा जोक..

    पत्नी : शर्ट अच्छी लग रही है आप पर।

    पति :चाहे जितनी चापलूसी कर लो नई साड़ी नहीं मिलेंगी

    पत्नी : सिर्फ शर्ट अच्छी लग रही

    है… मुंह वैसा ही है, कुत्ते जैसा।

    तीसरा और अंतिम जोक...

    अध्यापिका- कक्षा में लड़ाई क्यों नही करनी चाहिए...!

    छात्र- क्योंकि पता नही परीक्षा में कब किसके पीछे बैठना पड़ जाये...!

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