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    20161206 चीन-भारत आवाज़
    2016-12-11 18:31:21 cri

    विश्व इंडोलॉजी सभा चीन और भारत के बीच आदान-प्रदान बढ़ाती है

    वर्ष 2016 विश्व इंडोलॉजी सभा पिछले महीने दक्षिणी चीन के क्वांगतोंग प्रांत के शनचन शहर में आयोजित हुई। यह नवंबर 2015 में नई दिल्ली में आयोजित सम्मेलन के बाद दूसरी विश्व इंडोलॉजी सभा है। दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से आए विद्वानों ने चीन में भारतीय विद्या की स्थिति, भारतीय साहित्य और व्याकरण, दुनिया में भारतीय वद्या का विकास, बौद्ध धर्म और वैश्विक मामलों के बीच संबंध और भारत विद्या की चीन-भारत सांस्कृतिक आदान-प्रदान में भूमिका समेत कई विषयों पर विचार-विमर्श किया।

    दूसरी विश्व इंडोलॉजी सभा के आयोजक विदेशों के साथ मित्रता के लिए चीनी पीपुल्स एसोसिएशन (सीपीएएफ़एफ़सी) के सांस्कृतिक आवाजाही विभाग के प्रमुख मा श्याओमिंग ने कहा कि चीन और भारत एशिया में दो बड़े देश हैं और वैश्विक संस्कृति के दो केन्द्र भी हैं। चीन में इंडोलॉजी सभा के आयोजन की दोनों संस्कृतियों के बीच संपर्क बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहाः

    "भारत विद्या सभा चीन और भारत दोनों प्राचीन सभ्यताओं के लिए बातचीत और आवाजाही को बढ़ाने का एक बहुत अच्छा मंच है। हम आशा करते हैं कि सभा के आयोजन से चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आवाजाही बढ़ाई जाएगी और दोनों जातियों के बीच समझदारी और मित्रता मज़बूत होगी।"

    मा श्याओमिंग ने कहा कि हाल के वर्षों में सीपीएएफ़एफ़सी ने चीन और दक्षिण एशिया के बीच आवाजाही बढ़ाने में सिलसिलेवार कार्यक्रमों का आयोजन किया, जैसा कि चीन-दक्षिण एशिया सांस्कृतिक मंच और भारत और बांग्लादेश समेत दक्षिण एशियाई देशों में चीनी अक्षर प्रदर्शन आदि। मा श्याओमिंग ने कहा कि अगले साल भारतीय अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय में चीनी कॉलेज की स्थापना की 80वीं वर्षगांठ मनाई जाएगी। भारतीय विद्वान रवीन्द्रनाथ टैगोर और चीनी विद्वान थान युनशान द्वारा स्थापित यह कॉलेज चीन और भारत के बीच मित्रतापूर्ण आदान-प्रदान को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हम इसके अवसर पर भारत के साथ मित्रतापूर्ण आवाजाही और मज़बूत बनाना चाहते हैं।

    चीन स्थित भारतीय राजदूत विजय गोखले भी दूसरी विश्व इंडोलॉजी सभा में उपस्थित थे। उन्होंने सभा की प्रशंसा करते हुए ख़ुशी जताई कि इंडोलॉजी के इतने ज़्यादा विद्वान सभा में भाग लेते हैं और अपनी बुद्धिमत्ता से हमें ज्ञान देते हैं। उन्होंने कहा कि यह सभा चीन और भारत के बीच आदान-प्रदान बढ़ाने और एशिया के सुंदर भविष्य का साझा निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। विजय गोखले ने कहाः

    "मुझे लगता है कि सभ्यता और संस्कृति हमारे दोनों देशों के समान रुचिकर विषय होनी चाहिए, क्योंकि दो हज़ार वर्षों से भी अधिक समय से हम आवाजाही शुरू कर चुके हैं। आवाजाही का इतिहास इतना महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह हमें निर्देश देता है कि भविष्य में कैसे सहयोग करें और एशिया की शांति और विकास को बनाए रखें।"

    चीन स्थित राजदूत बनने से पहले पिछले 80 और 90 के दशक में विजय गोखले ने कई वर्षों तक चीन स्थित भारतीय दूतावास में काम किया था। चीन के इतिहास और संस्कृति में उनकी बड़ी रुचि है। वे चीन के आर्थिक विकास पर भी बड़ा ध्यान देते हैं। चीन में विश्वविद्यालयों के विकास ने उनपर गहरी छाप छोड़ी है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों के बुनियादी संस्थापनों की स्थिति और अध्ययन का स्तर उन्नत करने में चीन सरकार ने बहुत से काम किए। ऐतिहासिक अवशेषों के संरक्षण और संस्कृति के प्रचार में भी चीन सरकार ने व्यापक प्रगति की।

    भविष्य में चीन और भारत के बीच आदान-प्रदान की चर्चा में विजय गोखले ने कहाः

    "भविष्य में और ज़्यादा आवाजाही की ज़रुरत है। छात्रों और विद्वानों के बीच आवाजाही के साथ साथ आम लोगों के बीच संपर्क भी मज़बूत करना चाहिए। हमें पर्यटन को बढ़ावा देना चाहिए। चाहे भारतीय पर्यटक हों या चीनी यात्री, हमें उन्हें उनके देश की ही पुरानी और रंगारंग सभ्यता दिखानी चाहिए। हमारी सभ्यता की विशेषता और विविधता क्षेत्रीय सांस्कृतिक विकास के लिए भी लाभदायक है।"

    पेइचिंग विश्वविद्यालय के विदेशी भाषा कॉलेज के प्रोफ़ेसर ल्यू शुश्योंग ने कहा कि अब भारत विद्या पर हमारी समझदारी और व्यापक हो गई है। और अधिक विद्वान इसपर अध्ययन में जुटे हैं।

    "मुझे लगता है कि आज के इंडोलॉजी को इंडिया स्टडीज़ या साउथ एशिया स्टडीज़ कहा जाना चाहिए। जब इंडोलॉजी पैदा हुआ, उस समय का भारत आज के भारत के बराबर नहीं था। मैं दक्षिण एशिया पर अनुसंधान को भी इंडोलॉजी में शामिल कराना चाहता हूं। हम इतिहास का अध्ययन करते हैं, फ़िलॉसफ़ी पर अध्ययन करते हैं, साहित्य पर अध्ययन करते हैं, हम आज के भारत को अन्य दक्षिण एशियाई देशों से अलग कर नहीं देख सकते।"

    क्वांगचो स्थित भारतीय जनरल कौंसुलर सेलास थंगल ने विश्व इंडोलॉजी सभा में कहा कि वे बहुत ख़ुश हैं कि भारत, चीन और अन्य देशों से आए इतने ज़्यादा विशेषज्ञ शनचन में इकट्ठा होकर इंडोलॉजी पर विचार-विमर्श कर रहे हैं।

    "मुझे लगता है कि विश्व इंडोलॉजी सभा चीन और भारत, यहां तक कि पूरे एशियाई देशों की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों के अनुसंधान के लिए व्यापक सूचनाएं देती है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि अपने देश के इतिहास और संस्कृति को गहन रूप से समझने के बाद ही हम सफलता प्राप्त कर सकेंगे। व्यक्ति की सफलता समुदाय और देश की सफलता को बढ़ावा देगी, ऐसे में दुनिया और बेहतर बनेगी।"

    सेलास थंगल ने कहा कि इस बार की इंडोलॉजी सभा एक सांस्कृतिक समारोह है, जिसमें चीन और भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासतों की चर्चा की गई है। हालांकि यह विषय बहुत लोकप्रिय नहीं है, लेकिन इसका बड़ा महत्व है।

    "भारत और चीन की सभ्यता दुनिया में सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है। दोनों सभ्यताओं के बीच संपर्क और एक दूसरे पर प्रभाव कई सदियों में सक्रिय बना रहता है। हमारे इतिहास और संस्कृति को युवा पीढ़ी तक पहुंचाया जाना चाहिए।"

    सेलास थंगल ने कहा कि मैंने सुप्रसिद्ध विद्वानों, पर्यटकों और भिक्षुओं द्वारा लिखित भारत और चीन के बीच सांस्कृतिक आवाजाही के बारे में बहुत से लेख पढ़े हैं। चीन की संस्कृति और जीवन के तरीके पर भारत की संस्कृति का बड़ा प्रभाव पड़ा है, जैसा कि बौद्ध धर्म। लेकिन यह प्रभाव एकतरफ़ा नहीं है। भारत की संस्कृति और जीवन तरीके पर चीन का प्रभाव भी हुआ है। हमें इस तरह के सक्रिय प्रभाव को बनाए रखना चाहिए और आपस में समझदारी और समर्थन मज़बूत बनाना चाहिए, ताकि चीन-भारत मित्रतापूर्ण सहयोग और एशिया के शानदार भविष्य में अपना योगदान किया जा सके।

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