लेखक - अनिल आज़ाद पांडेय
दक्षिण पश्चिम युन्नान प्रांत में स्थित 'ताली' की सुंदरता के बारे में बहुत सुना था। 20 नवंबर को सीआरआई के अन्य साथियों के साथ ताली एयरपोर्ट पर उतरते ही इससे सीधे रूबरू होने का अवसर भी मिल गया। स्वच्छ और नीला आसमान मानो हमारा स्वागत कर रहा था। बीजिंग में प्रदूषण की समस्या से अक्सर दो-चार होने वालों के लिए यह एक सुखद अहसास था। तीन दिन ताली प्रवास के दौरान हमने न केवल यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को करीब से देखा बल्कि स्थानीय जन-जातियों के रहन-सहन, खान-पान और संस्कृति को भी समझा।
सबसे पहले बात करते हैं, कु छंग यानी ताली के प्राचीन शहर की।जिसका इतिहास सैंकड़ों वर्ष पुराना है, यहां पर स्थानीय 'पाई ' जनजाति के लोगों के प्राचीन शैली के भवन अपनी ओर आकर्षित करते हैं। इस इलाके में तमाम दुकानें और स्टोर हैं, जिनमें विभिन्न तरह के स्थानीय उत्पाद और वस्त्र मिलते हैं। इसके साथ ही यहां आने वाले पर्यटक कई प्रकार के स्नैक्स और ताज़े फ़लों का भी स्वाद लेते हैं। इस पूरे क्षेत्र में प्राचीन इमारतों को अच्छे स्वरूप में देखकर लगता है कि सरकार ने यहां की संस्कृति और इतिहास को सहेजने की पूरी कोशिश की है। एक ओर ताली का प्राचीन इलाका है, तो दूसरी ओर नया और आधुनिक शहर। जहां ऊंची-ऊंची इमारतें और बाज़ार चीन के किसी बड़े शहर का आभास कराते हैं।
यहां बता दें कि ताली एक स्वायत्त प्रिफेक्चर है, जिसकी आबादी लगभग 35 लाख है। वैसे पूरे प्रिफेक्चर में 13 जनजातियां रहती हैं, लेकिन सबसे अधिक और एक-तिहाई 'पाई ' जनजाति के लोग हैं। जिनकी संस्कृति और रीति-रिवाज शहर की हर जगह पर देखने को मिल जाते हैं। ताली पहुंचने वालों के लिए सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र होती है, 'अर हाई' यानी कान के आकार की झील। जिसका पानी बहुत स्वच्छ है। हम भी अर हाई के किनारों पर गए। यहां से कहीं भी नज़र दौड़ाइए, विशाल झील ही नज़र आती है। नीले आसमान में झील को देखकर लगा कि किसी दूसरी दुनिया में आ गए हों।यहां पर हमें कई शादी-शुदा जोड़े शादी के लिबास में फोटो खिंचवाते दिखे। शायद इससे बेहतर जगह उन्हें कहां मिलती। झील की खूबसूरती देखकर हमारा वापस होटल लौटने का मन नहीं कर रहा था।वैसे इस झील की विशालता का अंदाज़ा आप इसी से लगा सकते हैं, यह लगभग 42 किमी. लंबी है और औसतन 9 किमी. चौड़ी। यहां पर बंदरगाह भी बनाए गए हैं, जिनमें जहाज़ों के साथ-साथ मोटर बोट और नावें भी चलाई जाती हैं। रात के वक्त ताली शहर बिजली की रोशनी में डूबा हुआ रहता है। झील के आसपास के भवन रात की रोशनी में और अधिक सुंदर लगते हैं।
विविधताओं से भरे इस स्वायत्त प्रिफेक्चर की स्थापना की 60वीं सालगिरह भी 22 नवंबर को मनायी गयी। इस ऐतिहासिक अवसर पर ताली ओलंपिक स्पोर्ट्स सेंटर के बाहर विशाल मैदान में समारोह का आयोजन भी हुआ।जिसमें हज़ारों की तादाद में पहुंचे लोगों का उत्साह देखने ही बनता था।
इतिहास की बात करें तो 'ताली' ने प्राचीन चीन के भारत सहित अन्य देशों के साथ सांस्कृतिक और आर्थिक संबंध मजबूत करने में भी अहम भूमिका निभाई है। चारों ओर पठारों से घिरे हुए ताली को पठार पर मोती के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में यह बेशकीमती मोती है, जिसे बार-बार देखने का मन करता है। अंत में इतना ही कहूंगा कि यहां से लौटने का मन नहीं कर रहा है। आप को भी मौका मिले तो ताली के सौंदर्य को जरूर यहां आकर देखें।