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    एससीओ क्षेत्र में आर्थिक प्रगति का वाहक चीन
    2016-11-08 14:46:02 cri

    लेखक - अखिल पाराशर

    शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) यूरेशिया का राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य संगठन है जिसकी स्थापना 2001 में चीन के शंघाई शहर में चीन, कजकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, तजकिस्तान और उज्बेकिस्तान के नेताओं ने मिलकर की। इन देशों ने नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निबटने और व्यापार और निवेश को बढ़ाने के लिए समझौता किया। इस संगठन के सदस्य देशों का सम्मेलन, इस संगठन के आगामी उपायों व नीतियों की समीक्षा के उद्देश्य से आयोजित होता है और यह आपस में सहयोग के विस्तार के लिए सदस्य देशों के नेताओं के लिए द्विपक्षीय व बहुपक्षीय बातचीत का अवसर समझी जाती है। आज के दौर में यह संगठन क्षेत्रीय सुरक्षा, स्थिरता, समृद्धि और विकास को आगे बढ़ाने का महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन बन गया है। इस साल शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना की 15वीं वर्षगांठ है।

    हाल ही में शांगहाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों की सरकार के मुखियाओं के परिषद का 15वां सम्मेलन किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में हुआ। चीनी प्रधानमंत्री ली खछ्यांग ने इस बैठक में प्रतिभाग किया। इस बीच शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में चीन की ओर से पेश सुझाव, सदस्य देशों के बीच एकता को मज़बूत करने के लिए बहुत अहम समझे गये। इस बैठक के दौरान ली खछ्यांग ने विभिन्न देशों के नेताओं के साथ शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग में प्राप्त प्रगति की स्थिति, ताशकन्द शिखर सम्मेलन की आम सहमतियों का कार्यान्वयन, "एक पट्टी एक मार्ग" जैसे क्षेत्रीय सहयोग के प्रस्तावों के कार्यान्वयन, उत्पादन क्षमता, अर्थतंत्र व्यापार, वित्त, आपसी संपर्क, वैज्ञानिक तकनीकी नवाचार जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सदस्यों से सुरक्षा पर सहयोग एवं समन्वय मजबूत करने और क्षेत्रीय आतंकवाद रोधी संस्थानों एवं तंत्र के निर्माण को बढ़ावा देने का आह्वान भी किया।

    दसअसल, उनका मानना था कि शंघाई सहयोग संगठन के विभिन्न सदस्य देश केवल सहयोग करके ही समान विकास और क्षेत्रीय सुरक्षा के लक्ष्य को साकार कर सकते हैं। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए एससीओ देशों को एकजुट होकर काम करना होगा और, सभी स्तरों पर आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए उसको कतई बर्दाश्त न करने की नीति और व्यापक दृष्टिकोण अपनानी होगी।

    इस संगठन के व्यवहारिक सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए ली खछ्यांग ने 6 प्रस्ताव पेश किए। पहला, स्थिर वातावरण तैयार करें। दूसरा, मिश्रित विकास के ढांचे का निर्माण करें। तीसरा, उत्पादन क्षमता का स्तर उन्नत करें। चौथा, सहयोग के अवसरों का विस्तार करें। पांचवां, क्षेत्रीय वित्तपोषण की व्यवस्था में सुधार करें और छठा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान का आधार मजबूत बनाएं।

    शंघाई सहयोग संगठन के अन्य सदस्य देशों के नेताओं ने एक साल में इस संगठन के विकास में प्राप्त सिलसिलेवार प्रगतियों की पुष्टि की और कहा कि विभिन्न देश समान रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता की गारंटी पेश करेंगे, क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग को आगे बढ़ाएंगे, इस संगठन की जीवंत शक्ति बढाएंगे, ताकि इस क्षेत्र की शांति और विकास के लिए नया योगदान किया जा सके। इस दौरान जारी संयुक्त घोषणापत्र में वित्त, व्यापार, ऊर्जा और बुनियादी ढांचे जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया गया। घोषणापत्र के मुताबिक, "एससीओ में सहयोग से पूरे क्षेत्र के हितों की पूर्ति होगी।" चीन, रूस, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रधानमंत्रियों ने घोषणापत्र में कहा कि सभी सदस्य देशों को 2016 में एससीओ ताशकंद सम्मेलन में हुए समझौतों को क्रियान्वित करना चाहिए।

    इस बैठक में यह बात सामने निकलकर आयी है कि चीन विभिन्न पक्षों के साथ मिलकर क्षेत्रीय व्यापार और पूंजी निवेश के उदारीकरण और सरलीकरण को आगे बढ़ाने को तैयार है, ताकि ऊर्जा क्षमता सहयोग को क्षेत्रीय आर्थिक और व्यापारिक सहयोग का महत्व बनाया जाए। इसमें कोई दोराय नहीं है कि चीन की सशक्‍त अर्थव्‍यवस्‍था और उसका विशाल बाजार एससीओ क्षेत्र में आर्थिक प्रगति का वाहक है। व्यापार, निवेश, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, कृषि, स्वास्थ्य सेवाएं, छोटे और मझौले उद्योग क्षेत्र में चीन की क्षमताएं एससीओ देशों को व्‍यापक आर्थिक लाभ दिला सकती हैं। ली खछ्यांग ने सम्मेलन में उपस्थित नेताओं के साथ संयुक्त विज्ञप्ति संपन्न की और व्यापार, पूंजी, वित्त, कस्टम्स और कृषि आदि क्षेत्रों से जुड़े बहुत से सहयोग दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए।

    (अखिल पाराशर)

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