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    20161025 चीन-भारत आवाज़
    2016-10-31 16:28:06 cri

    संस्कृति के माध्यम से दुनिया का नेतृत्व कर रहे हैं चीन और भारत

    भारतीय फ़िल्मों की चर्चा में बहुत से लोगों के दिमाग़ में गाने और नाचने का दृश्य आता है। वास्तव में भारतीय फ़िल्मों का विकास हमारी कल्पना से कहीं आगे हो चुका है। हाल के वर्षों में चाहे भारत से लाई गई फ़िल्में हों, या चीन और भारत द्वारा संयुक्त रूप से बनाई गई फ़िल्में, सब चीनी दर्शकों को अपनी तरफ़ खींचती हैं। पिछले 22 जुलाई को भारतीय फ़िल्म बाहुबली चीन में रिलीज़ हुई, जिसका बॉक्स ऑफ़िस में अच्छा कलेक्शन रहा। कुछ दिनों पहले उत्तर-पश्चिमी चीन के कानसू प्रांत के च्यायूकुआन शहर में आयोजित पांचवें अंतर्राष्ट्रीय लघु फ़िल्म महोत्सव में भी बाहुबली भी दिखाई गई। फ़िल्म उद्योग में चीन और भारत के बीच सहयोग एक नए युग में गुज़र रहा है।

    पांचवें चीन अंतर्राष्ट्रीय लघु फ़िल्म महोत्सव का अतिथि देश होने के नाते भारत ने अधिकारियों, सुप्रसिद्ध वृत्तचित्र फ़िल्म निर्माताओं और निर्देशकों से गठित एक दल भेजा था। चीन और भारत की संस्कृतियां इस अवसर पर एक दूसरे को मिश्रित हुईं।

    फ़िल्म सपनों से भरा व्यवसाय है, जहां सपने बेचे जाते हैं। यह भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय की, फ़िल्म महोत्सव की आयोजन कमेटी की सह निर्देशक इंद्राणी बोस द्वारा दी गई परिभाषा। उन्हें आशा है कि चीनी दर्शक और अच्छी तरह भारतीय फ़िल्मों को समझ सकेंगे।

    "भारत एक विविध संस्कृति वाला देश है। विभिन्न संस्कृतियां, विभिन्न भाषाएं और विभिन्न धर्म यहां इकट्ठा होते हैं। भारतीय फ़िल्में भी समृद्ध हैं। बहुत समय पहले भारतीय फ़िल्में सिर्फ़ देश में ही रिलीज़ होती थीं, लेकिन समय के बदलने और तकनीक के विकास के चलते भारतीय फ़िल्में अब दुनिया भर में भी लोकप्रिय हो चुकी हैं। फ़िल्मों के उत्पादन की दृष्टि से देखा जाएं, तो भारत दुनिया में पहले स्थान पर आता है। भारतीय फ़िल्में सपनों से भरी हुई हैं और बहुत आशावादी हैं।"

    इसपर भारत के सूचना और प्रसारण मंत्रालय के, फ़िल्म महोत्सव की आयोजन कमेटी के सह निर्देशक रिज़वान अहमद ने कहाः

    "भारत में बहुत सी भाषाएं बोली जाती हैं, समाज भी विविध है। विदेशी लोगों में परिचित बॉलीवुड, वह पश्चिमी भारत के बंदरगाह शहर मुंबई में स्थिति है, जहां हिंदी फ़िल्में बनाई जाती हैं। बॉलीवुड के अलावा, भारत में और सात आठ क्षेत्र भी हैं, जहां फ़िल्म बाज़ार मौजूद है, जैसा कि चीन में रिलीज़ हुई फ़िल्म बाहुबली, वह दक्षिण भारत के चेन्नई में बनाई गई है। इन क्षेत्रीय फ़िल्मी बाज़ारों का भी तेज़ी के साथ विकास हो रहा है। कहा जा सकता है कि भारत के फ़िल्म बाज़ार की विशाल संभावनाएं मौजूद हैं।"

    रिज़वान अहमद ने कहा कि वे चीनी फ़िल्में बहुत पसंद करते हैं और अक्सर चीनी डॉक्यूमेंटरी देखते हैं। चीन के प्रसिद्ध फ़िल्म निर्देशक चांग यिमो (Zhang Yimou) और कार्वए वांग (Karwai Wong) की फ़िल्में वे बहुत पसंद करते हैं। रिज़वान ने कहा कि चीनी लोग भारतीय फ़िल्म पसंद करते हैं, वहीं भारतीय लोग भी चीनी फ़िल्में पसंद करते हैं। इस बार के अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में भाग लेने पर वे बहुत गौरव महसूस कर रहे हैं। उन्हें आशा है कि चीनी फ़िल्म निर्माता और निर्देशक भी भारत का दौरा करेंगे।

    "भारत में हर वर्ष 150 से 200 छोटे बड़े फ़िल्म उत्सव होते हैं। विश्वविद्याय और थिएटर भी अपना अपना फ़िल्म उत्सव का आयोजन करते हैं। इससे भारतीय फ़िल्में न सिर्फ़ दूरस्थ क्षेत्रों तक पहुंचाई जाती हैं, बल्कि दुनिया में भी लाई जाती हैं। मैं उत्साह के साथ आशा करता हूं कि चीनी फ़िल्म निर्माता और दर्शक भी भारत जाकर फ़िल्म उत्सव में भाग लेंगे। वर्ष 2014 में आयोजित गोवा अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में चीन अतिथि देश बना था, जिसमें बहुत से चीनी निर्देशकों और अभिनेताओं को निमंत्रण भेजा गया था। भारतीय लोग भी चीनी फ़िल्में बहुत पसंद करते हैं।"

    पिछले महीने ब्रिक्स देशों का पहला फ़िल्म उत्सव भारत की राजधानी नई दिल्ली में आयोजित हुआ था। चार चीनी फ़िल्में इसमें दिखाई गईं। वहीं दूसरा फ़िल्म उत्सव अगले वर्ष चीन के छंगतू में आयोजित होगा। इसके बारे में रिज़वान ने कहा कि ब्रिक्स के पांच देश नवोदित व्यवसाय के पूंजी बाज़ार में मिलते जुलते हैं, फ़िल्म के क्षेत्र में भी एक दूसरे से सीख सकते हैं।

    "ब्रिक्स देश फ़िल्म में सहयोग शुरू कर चुके हैं। गोवा फ़िल्म उत्सव का हम पांच देशों ने बड़ा समर्थन किया। उत्सव के बाद पांच देशों के निर्देशकों और अभिनेताओं ने गहन रूप से विचार-विमर्श किया और अपने देश की फ़िल्मों की विशेषता और फ़िल्म योजना को साझा किया।"

    इरम गुफ़रान दिल्ली में काम करने वाली डॉक्यूमेंटरी फ़िल्म निर्माता और कलाकार हैं। इस बार के चीन अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में वे श्याम बेनेगल पर बनाई अपनी फ़िल्म लेकर आई हैं। फ़िल्म में यह लाइंज़ बहुत प्रभावशाली और अविस्मरणीय है, वह हैः "क्यों भारतीय फ़िल्में चीन, यूरोप और अमेरिका के दर्शकों के बीच लोकप्रिय बन सकती हैं, कारण यह है कि वह अपनी विशेषता को कायम रखने के साथ बाहर के अच्छे तत्वों को फिल्मों में इस्तेमाल करने से इन्कार भी नहीं करती, वहीं विदेशी तत्वों का आकर्षण करते समय अपनी श्रेष्ठता नहीं छोड़तीं। इसलिए भारतीय फ़िल्में अद्वितीय हैं।"

    इरम ने कहा कि वे लंबे समय से फ़िल्मों के क्षेत्र में भारत और चीन के बीच सहयोग पर सोचती हैं। वे प्राचीन रेशम मार्ग पर ढेर सारा काम करना चाहती हैं, ताकि भारत और चीन को जोड़ा जा सके।

    "च्यायूकुआन शहर रेशम मार्ग पर एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। इस बार का अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्वस च्यायूकुआन शहर में आयोजित हुआ, जिसमें व्यापक उपलब्धियां हासिल हुई हैं। यहां का इतिहास और संस्कृति सीखने और अध्ययन करने लायक है। चीन भी भारत की ही तरह एक प्राचीन सभ्यता है और यहां पर बहुत सारे विविध विषय हैं, जिनपर फ़िल्में बनाई जा सकती हैं। आशा है कि भविष्य में भारत और चीन को सहयोग करने के और ज़्यादा मौके मिलेंगे।"

    चीन और भारत दोनों प्राचीन सभ्यता वाले देश हैं। फ़िल्म दोनों देशों के लिए संस्कृति दिखाने और मित्रता गहराने का महत्वपूर्ण तरीका है। भारतीय निर्देशक मकरंद ब्रह्मे डॉक्यूमेंटरी के साथ साथ शास्त्रीय संगीत में भी कुशल हैं। उन्हें दोनों प्राचीन देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर बड़ा उत्साह है।

    "भारत और चीन दोनों की समृद्ध संस्कृतियां और प्राचीन इतिहास हैं। इसके साथ साथ दोनों देश अपनी संस्कृति को संरक्षित करने पर बड़ा ध्यान देते हैं। भारत और चीन के बीच संपर्क प्राचीन रेशम मार्ग के दौर से ही शुरू हुआ था। उस सयम से दोनों देश व्यापार का विकास करने में जुटे थे। लेकिन व्यापार के अलावा, हमें अन्य क्षेत्रों में भी प्रयास करना चाहिए, जैसा कि लोगों के बीच आदान-प्रदान। ऐसे में हमारे दोनों देश और घनिष्ठ बनेंगे। मुझे लगता है कि अब यह युग आ चुका है कि भारत, चीन और 'एक पट्टी एक मार्ग' से संबंधित देश अपने इतिहास और संस्कृति के माध्यम से पूरी दुनिया का नेतृत्व करें।"

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