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    आपका पत्र मिला 2016-09-21
    2016-09-23 14:24:10 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार।

    हैया:सभी श्रोताओं को हैया का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिल:दोस्तो, पहले की तरह आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे।

    चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हमें आया है, पश्चिम बंगाल से हमारे मॉनिटर रविशंकर बसु जी का। उन्होंने लिखा है......

    14 सितम्बर को आपका रेडियो प्रोग्राम सुना। आज दुनिया भर के ताज़ा समाचार सुनने के बाद श्याओ यांग जी द्वारा पेश "विश्व का आईना" प्रोग्राम भी सुना।

    इस प्रोग्राम में कुछ दिन पहले ब्रिक्स देशों के नेताओं ने जी-20 हांगचो शिखर सम्मेलन के दौरान अनौपचारिक भेंटवार्ता को लेकर एक रिपोर्ट सुनने को मिली।

    चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा, ब्राजील के राष्ट्रपति मिचेल टेमेर और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इसमें भाग लिया। पाँच देशों के नेताओं ने ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग को गहन करने, एक साथ वर्तमान की चुनौतियों का सामना करने पर विचार-विमर्श किया।

    इस मुलाकात की अध्यक्षता ब्रिक्स देशों के वर्तमान अध्यक्ष देश भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की।बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ब्रिक्स देश अंतरराष्ट्रीय मामलों में महत्वपूर्ण और रचनात्मक भूमिका निभा रहे हैं। भारत ब्रिक्स सहयोग व्यवस्था पर बड़ा ध्यान देता है। ब्रिक्स देशों के बीच सहयोग को मजबूत करने के लिये चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी चिनफिंग ने चार सुझाव पेश किये। पहला, एक साथ वृद्धि के तरीके का सृजन करें। दूसरा, एक साथ वैश्विक आर्थिक शासन में सुधार करें। तीसरा, अंतर्राष्ट्रीय निष्पक्षता की रक्षा करके विकास का शांत और स्थिर वातावरण बनाएं। चौथा, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करके अनवरत विकास के रास्ते पर कायम रहें।

    इस बार के जी-20 शिखर सम्मेलन में हुई ब्रिक्स देशों के नेताओं की अनौपचारिक भेंटवार्ता महत्वपूर्ण है। क्योंकि वह जी-20 के वैश्विक आर्थिक प्रबंधन में पांच देशों के एक ही आवाज में बोलने, संयुक्त वक्तव्य देने, खासतौर पर विकासशील देशों के हितों से संबंधित मुद्दों का समन्वय कर सकता है। ब्रिक्स पांच देशों का नेतृत्व करने वाली नवोदित आर्थिक इकाइयों को हाथ मिलाकर वैश्विक प्रबंधन में भाग लेना चाहिए। वैश्विक प्रबंधन प्रणाली में ब्रिक्स देशों को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है। ब्रिक्स देशों में हालांकि कुछ देशों के बीच मतभेद हैं, यहां तक प्रादेशिक भूमि या सीमा विवाद मौजूद हैं फिर भी वे अनुभवों का आदान प्रदान कर सकते हैं और उनके बीच समान हित भी मौजूद हैं। चीन व भारत का संबंध घनिष्ट विकास साझेदारी है, जबकि चीन-ब्राजील संबंध तमाम रणनीतिक साझेदारी संबंध हैं। इससे पहले स्थापित ब्रिक्स देशों के नये विकास बैंक की स्थापना भी इस विचारधारा के अनुकूल है।

    ब्रिक्स ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका का संयुक्त मंच है। ब्रिक्स का आइडिया सबसे पहले इनवेस्ट बैंक गोल्डमैन सैक्स (Goldman Sachs) के चेयरमैन जिम ओ नील (Jim O'Neill) ने 2001 में दिया था।16 जून 2009 को पहला ब्रिक्स शिखर सम्मेलन रूस के येकेटरिनबर्ग शहर (Yekaterinburg) में हुआ। दुनिया के कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में इन पाँचों देश की हिस्सेदारी 21 फ़ीसदी के करीब है। बीते 15 सालों में दुनिया भर के जीडीपी में इनकी हिस्सेदारी तीन गुना बढ़ी है। ब्रिक्स देशों में दुनिया भर की करीब 43 फ़ीसदी आबादी रहती है।ब्रिक्स देशों के पास कुल मिलाकर करीब 44 खरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है।ब्रिक्स देशों के बीच आपसी कारोबार लगभग 300 अरब डॉलर तक पहुँच गया है। भारत की अध्यक्षता में 15-16 अक्टूबर 2016 गोवा में आयोजित होने वाले 8वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का ध्‍येय वाक्‍य है - "उत्‍तरदायी, समावेशी तथा सामूहिक समाधान निरूपित करना"। ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना मोदी के लिए महत्वपूर्ण होगा।अन्यथा, भारत और चीन के बीच संबंधों को किसी न किसी तरह नौकायन का सामना करना पड़ेगा (rough sailing)। मुझे विश्वास है कि गोवा शिखर सम्मेलन में व्यावहारिक उपलब्धियां प्राप्त होंगी, ताकि पाँच सदस्य देशों के बीच मित्रता संबंध मजबूत किए जाने के साथ साथ विकासशील देशों और नवोदित बाजारों का प्रभाव उन्नत हो सके।

    इसके बाद दूसरी रिपोर्ट में पूर्व श्रीलंकाई राष्ट्रपति महिंद्रा राजपक्षे का चीनी रसोइया 50 वर्षीय ली फिंग का किस्सा भी सूचनाप्रद लगी। रिपोर्ट में सुना है कि ली फिंग रसोईघर में करीब 30 से ज्यादा साल तक काम कर चुके हैं और वे चीन में सछ्वान व शानतुंग स्टाइल का खाना बना सकते हैं।2010 में ली फिंग श्रीलंका गए और एक चीनी रेस्तरां में कर्मचारी बने। श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे के बेटे को उनका बनाया हुआ खाना बहुत पसंद आया। उन्होंने तीन बार ली फिंग को आमंत्रित किया। इस तरह ली फिंग पूर्व राष्ट्रपति के निजी रसोईये बन गये। ली ने बताया कि राष्ट्रपति राजपक्षे के दो चीनी फूड पसंद हैं यानी कि लॉबस्टर बॉल और दाल तली नूडल्स। करीब आधे साल तक राजपक्षे ने रोज ये दो भोजन किए।राष्ट्रपति के परिवार के सभी लोग ली द्वारा बने गये चाइनीज़ फूड बहुत पसंद करते हैं। ली के अनुसार राष्ट्रपति की पत्नी केवल सी फूड एवं फल खाती हैं। राष्ट्रपति भवन में दो साल तक रसोईये का काम करने के बाद ली फिंग ने कोलंबो के उत्तर में एक छोटे कस्बे नीगांपू में एक चाइनीज़ रेस्तरां खोला है। ली फिंग ने पत्रकार को बताया कि श्रीलंका के हरे केकड़े बहुत स्वादिष्ट होते हैं। केकड़े का मांस मीठा है। इस तरह के केकड़े खाने के बाद और ज्यादा खाने का मन करता है। चीनी रसोइया ली फिंग की कहानी हम तक पहुँचाने के लिए शुक्रिया।

    हैया:बसु जी, पत्र भेजने के लिये बहुत धन्यवाद। आगे पेश है उड़ीसा से मॉनिटर सुरेश अग्रवाल जी का पत्र। उन्होंने लिखा है.. केसिंगा दिनांक 16 सितम्बर। समाचारों के बाद साप्ताहिक "चीन का तिब्बत" सुना, जिसमें गत 11 सितम्बर को तिब्बत की राजधानी ल्हासा में उद्घाटित तीसरे एक्सपो पर विस्तृत जानकारी प्रदान की गई। कार्यक्रम में ल्हासा में आयोजित संस्कृति और पर्यटन विषयक प्रदर्शनी पर भी महती जानकारी हासिल हुई। यह भी जाना कि तिब्बत की कुल आय का तीस प्रतिशत पर्यटन से आता है और गत वर्ष तिब्बत आने वाले पर्यटकों का आंकड़ा एक करोड़ सत्तर लाख को पार कर गया है। इसके अलावा चीन द्वारा प्रस्तावित 'एक पट्टी एक मार्ग' योजना को पड़ौसी देशों के साथ लागू करने में तिब्बत का महत्व तथा तिब्बत में प्राकृतिक बोतलबन्द पेयजल उद्योग हेतु प्रचुर संसाधन उपलब्ध होने की बात काफी महत्वपूर्ण लगी। धन्यवाद् इस सूचनाप्रद प्रस्तुति के लिये।

    कार्यक्रम "दक्षिण एशिया फ़ोकस" के अन्तर्गत आज ढाई-तीन महीने पुरानी सामग्री परोसी गयी, जिस पर हम पहले ही अपनी प्रतिक्रिया प्रेषित कर चुके थे। माना कि अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस, योग का नैसर्गिक आधार तथा भारत द्वारा एकसाथ बीस उपग्रह सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किये जाने का महत्व है, फिर भी उसकी चर्चा का समयोचित होना ज़रूरी है। पुराने कार्यक्रमों को बार-बार दोहराये जाने से तो लगता है कि इन दिनों सीआरआई हिंदी में नये कार्यक्रमों का निर्माण नहीं हो रहा। मेरी राय में नाम के अनुरूप 'दक्षिण एशिया फ़ोकस' में क्षेत्र के ज्वलंत मुद्दों पर ही चर्चा की जाये, तो बेहतर होगा। धन्यवाद्।

    रोज़मर्रा की चीनी-भाषा पाठ्यक्रम में नया पाठ शुरू किये जाने से पूर्व आज मैडम श्याओ थांग और राकेश वत्सजी द्वारा 'चीन में मकान स्थानान्तरण में इस्तेमाल' होने वाले वाक्यों का अभ्यास कराया जाना अच्छा लगा। धन्यवाद्।

    अनिल:सुरेश जी, आपकी शिकायत हम संबंधित लोगों तक पहुंचाएंगे। पत्र भेजने के लिये आप का बहुत धन्यवाद। आगे पेश है जमशेदपुर से एसबी शर्मा जी का पत्र। उन्होंने लिखा है.. दक्षिण एशिया फोकस में चर्चा सुनी। दो विषयों पर चर्चा की गयी, पहला विषय योग था और दूसरा विषय इसके द्वारा एक साथ 22 उपग्रहों को प्रक्षेपित कर नई उच्ची को छूना हमेशा की तरह आपकी विश्लेषण काफी सटीक सरल और गुणवत्ता पूर्ण लगा।

    योग भारत में सदियों पुरानी जीवन जीने की कला के रूप में अपनाया गया था। पिछले कुछ वर्षो में बाबा रामदेव ने इसे जन मानस तक पहुंचाया और लोकप्रिय बनाया। सूर्य नमस्कार जैसे योग की विधा तो वाकई जनमानस के अपने उत्तम स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी है।

    वहीं भारत ने एक साथ 20 उपग्रहों को सफलता से अंतरिक्ष के स्थापित कर इतिहास रच दिया। इसरो और इसरो के वैज्ञानिको को बहुत बहुत बधाई। इस सफलता पर भारत को अपनी अंतरिक्ष योजना पर नाज करना चाहिए। क्योंकि भारत ने जो किया वह शायद विकसित देश नहीं कर पाए हैं। भारतीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण विधि बहुत ही सफल और सस्ती है। जैसा कि पंकज जी और उमेश जी ने कहा कि दुनिया विकसित देशों के उपग्रह प्रक्षेपण खर्च का 40 प्रतिशत ही भारत में उपग्रह प्रक्षेपण में खर्च होता है। जो सबसे सस्ता है।यही कारण है कि अमेरिका,जर्मनी और इंडोनेशिया जैसे देश इसका लाभ उठा रहे हैं।

    अनिल:दोस्तो, हाल ही में भारत में 'चीन पर्यटन वर्ष'के उपलक्ष्य में सीआरआई ने 'मैं और चाइना'शीर्षक लेख प्रतियोगिता का आयोजन किया। कई लोगों ने हमें ईमेल और पत्र भेजे। पिछले सप्ताह की तरह इस बार के आपका पत्र मिला कार्यक्रम के अंत में हम लेख शामिल करेंगे। अगला लेख आया है, पश्चिम बंगाल से विधान चंद्र सान्याल का। उन्होंने लिखा है......

    " मैं और चीन- जैसा मैंने चीन के बारे में सोचा "

    मेरा नाम विधान चंद्र सान्याल है। मैं साल 1981 से अब तक सीआरआई से जुड़ा हूँ। सीआरआई के साथ बिताए गए वक्त और अनुभव के आधार पर चीन के बारे में जाना। यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि मेरी धड़कन भारतीय होने के बावजूद भी मेरा दिल चीनी है। किसी भी देश की संस्कृति और सभ्यता सिर्फ उस देश की राजनीति से ही नहीं बनती, बल्कि वहां की जनता की आशाओं –आकांक्षाओं और रीति-रिवाज से भी बनती है।

    चीनी सभ्यता में शिष्टाचार की बहुत अहमियत रखता है और यही एक वजह है चीन के प्रति मेरे प्यार की। चीन के इतिहास ने मुझे आकर्षित किया। वर्ष 1949 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में चीन लोक गणराज्य की स्थापना हुई। तब चीन पुराने कोमिगंतांग (Kuomintang) सरकार के कुशासन से मुक्त हुआ। इसके साथ ही मैं माओ से तुंग से वर्तमान शी चिनफिंग की विचारधारा, फासीवाद विरोधी युद्ध के दौरान कवि रविंद्रनाथ ठाकुर के लेख, भारत से चीन गये डॉक्टर कोटनिस की कहानी, महात्मा गांधी और नेहरू जी के 'हिन्दी चीनी भाई भाई ' नारे के इतिहास से मैं चीन के बारे मैं काफी प्रभावित हुआ।

    वैसे तो चीन में कई पर्यटन स्थल हैं। चीन के सुंदर प्राकृतिक सौंदर्य विश्व के विभिन्न स्थानों के यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। प्राकृतिक और आर्थिक विकास के तालमेल के कई स्थान हैं, जैसे बीजिंग, शांगहाई, शीआन व अन्य क्षेत्र। लेकिन चीन की महान दीवार, हाईनान और तिब्बत की अनूठी सुंदरता ने मेरे मन में सबसे अधिक छाप छोड़ी।

    केवल प्राकृतिक सौंदर्य ही नहीं, चीन के आर्थिक विकास ने भी मुझे बहुत प्रभावित किया। वर्तमान दुनिया जिस लिहाज से विकास कर रही है, उसके मद्देनजर चीन एक दशक बाद दुनिया की नम्बर एक अर्थव्यवस्था बन जाएगा। चीन की तेज प्रगति सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ। खासकर चीन के शहरों

    और गांवों में समान रूप से तेज विकास हो रहा है। मेरा मानना है कि चीन ने विकासशील देशों के सामने एक अच्छा उदाहरण पेश किया है। चीन में 1949 की क्रांति के बाद 1 जनवरी 1950 को भारत ने जब उसे मान्यता दी तब कम्युनिस्ट खेमे के बाहर उसे मान्यता देने वाला वह पहला देश था। और सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र संघ में चीन की वैधिक सीट बहाल करने वाले देशों में से एक भी। भारत और चीन के बीच एक-दूसरे को जानने -समझने का यह सिलसिला कोई 100-200 साल पुराना नहीं है। लगभग दो हजार साल से दोनों सभ्यताएं एक -दूसरे को भाषा और साहित्य के माध्यम से जानने -समझने की कोशिश में हैं।

    भारत और चीन के बीच व्यापार तेज़ी से बढ़ रहा है। चीन और भारत की जनसंख्या को मिलाएं तो वह 2.5 अरब से अधिक है। यह विश्व की जनसंख्या का एक तिहाई हिस्सा है। भारत और चीन एक स्वर में कुछ कहेँ, तो पूरी दुनिया उसे सुनेगी। दोनों देश वैश्विक आर्थिक समृद्धि और विवादों के निपटारे में एक दूसरे का साथ दे सकते हैं। भारत -चीन रिश्तों के बारे में विस्तार से कहने बजाय, मैं भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शब्दों में कहूंगा -'भारत -चीन दो शरीर, एक ही भावना हैं। '

    हैयाः चीन एक शांति प्रिय देश है। प्राचीन काल से ही चीन ने इस बात का आह्वान किया है कि शक्तिशाली और धनी बनने के बाद कमजोर और गरीबों पर अत्याचार नहीं किया जाना चाहिए। बड़े देश होने के बाद युद्ध से प्रेम करने वाले बर्बाद हो जाते हैं। शांति प्रिय विचारधारा, अंतर सामंजस्य, युद्ध की स्थिति को शांतिपूर्ण माहौल में बदलने और वसुधैव कुटुंबकम् जैसी विचारधारा पीढ़ी दर पीढ़ी चीन में प्रचलित है। पुराने समय में चीन लम्बे अरसे तक विश्व का शक्तिशाली देश रहा था, लेकिन चीन विदेशों में शांति की विचारधारा का प्रसार करता है और रेशम, चाय, चीनी जैसी वस्तुओं का प्रचुर मात्रा में निर्यात करता है। चीनी राष्ट्र और भारतीय जनता की विचारधारा एक जैसी है। चीन के नेतृत्व में शुरु हुआ एआईआईबी बैँक बस्तुतः अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में चीन की बढ़ती शक्ति का उदाहरण है, जिसमें भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और रूस जैसे देश शामिल हैं। खेल के मैदान, विज्ञान और तकनीक आदि क्षेत्रों में चीन काफी आगे बढ़ रहा है।

    चीन में हुए विकास का क्रांतिकारी बदलाव किसी एक सेक्टर या क्षेत्र में

    नहीं बल्कि सभी जगहों पर देखा जा सकता है। भारत और चीन के बीच मैत्री, शांति और सौहार्द बढ़ाने का सेतु सी आर आई के स्वरूप को और अधिक निखारने के लिए मैंने अल इंडिया सी आर आई लिसनर्स एसोसिएशन का गठन किया था।

    सी आर आई के प्रचार प्रसार के लिए मैंने बहुत सारे काम किए।

    सी आर आई हिन्दी सेवा जब हर महीने श्रेष्ठ पत्र प्रेषकों को चयन करती थी उसमें हर महीने में मेरा नाम शामिल होता। सी आर आई हिन्दी वेब पेज में अभी भी देखे तो देखने का मौका मिलेगा। 2013 में सी आर आई की 70वीँ बर्षगांठ पर बेस्ट क्लब प्रतियोगिता का आयोजन किया और उसमें मेरे क्लब ने सक्रिय रूप में भाग लिया। मैंने चीन प्रेमी के रूप में सी आर आई से जुड़ा हूँ, और जुड़ा रहूंगा।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल और हैया को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

    हैया:गुडबाय।

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