हर साल ब्रिक्स देश दो बार नेताओं की भेंटवार्ता करते हैं, यानी एक बार जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान करते हैं और दूसरी बार स्वतंत्र शिखर सम्मेलन । इस बार के जी-20 शिखर सम्मेलन में हुई अनौपचारिक भेंटवार्ता महत्वपूर्ण है। चूंकि वह जी-20 के वैश्विक आर्थिक प्रबंधन में पांच देशों के एक ही आवाज में बोलने, संयुक्त वक्तव्य देने, खासतौर पर विकासशील देशों के हितों से संबंधित मुद्दों का समन्वय कर सकता है।
21वीं सदी में वैश्विक आर्थिक ढांचे में भारी परिवर्तन आया है और वैश्विक प्रबंधन में भी इस का प्रतिबिंब है। 1999 में जी-7 ने स्वेच्छा से जी-20 वित्त मंत्रियों व केंद्रीय बैंकों के गर्वनरों की बैठक बुलाने का सुझाव पेश किया। 2008 में जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन करना शुरू किया गया। यह इसका द्योतक है कि विकसित देशों को पता चल गया कि वे खुद संकट का निपटारा नहीं कर सकते हैं। उन्हें विकासशील देशों की भागीदारी की जरूरत है। लेकिन लम्बे अरसे से वैश्विक प्रबंधन प्रणाली में मुद्दों से विषय की चर्चा तक मुख्य हिस्सा अभी भी विकसित देश ही है। ब्रिक्स देशों को यह समझ में आने लगा है कि वैश्विक प्रबंधन में भाग लेने के लिए हमें न सिर्फ विकसित देशों के स्वैच्छिक निमंत्रण का इंतजार करना चाहिए। इसलिए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का अहम अर्थ है।
2001 में अमेरिकी गोल्डमैन शैक्स के मुख्य अर्थशास्त्री जिम ओनील ने पहली बार ब्रिक्स चार देशों की विचारधारा प्रस्तुत की। उस समय उन्होंने विश्व अर्थव्यवस्था में इन देशों में वाणिज्यक मौकों को देखा, लेकिन ओनील ने वैश्विक आर्थिक प्रबंधन में उन देशों की भूमिका के बारे में नहीं बताया। आज ब्रिक्स देश आशा करते हैं कि वैश्विक अर्थतंत्र में अपने बात करने के अधिकार को उन्नत कर सकेंगे, खास तौर पर किस तरह वैश्विक आर्थिक ढांचे के परिवर्तन समय विकासशील देशों के कल्याण की रक्षा कर सकेंगे।
ब्रिक्स पांच देशों का नेतृत्व करने वाली नवोदित आर्थिक इकाइयों को हाथ मिलाकर वैश्विक प्रबंधन में भाग लेना चाहिए।
ब्रिक्स देशों के सहयोग के भविष्य के बारे में कुछ पश्चिमी देशों ने संदेह जताया। हालिया दुनिया में "ब्रिक्स खत्म हो रहा है" या "ब्रिक का फर्क है।" दो कथनियां प्रचलित हैं। कुछ लोग मानते हैं कि अब रूस, ब्राजील व दक्षिण अफ्रीका में आर्थिक मुसीबतें हैं और विकास की प्रवृत्ति कमजोर हो रही है। अन्य कुछ लोग मानते हैं कि ब्रिक्स देशों में कई द्विपक्षीय अंतरविरोध व मतभेद मौजूद हैं। सहयोग करना मौजूदा स्थिति है, लेकिन लम्बे अरसे के सहयोग की प्रेरणा शक्ति का अभाव है।
ब्रिक्स सहयोग की अहम प्रेरणा शक्ति इन शब्दों में बतायी जा सकती है, यानी कि "बाहर सुधार बढ़ाएं और खुद का विकास करें"। इसके अलावा ब्रिक्स देश वैश्विक प्रबंधन के सुधार को आगे बढ़ाना चाहते हैं। लेकिन वे मुश्किल से विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे द्वितीय युद्ध के बाद स्थापित अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में सच्ची समानता को प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए लोक सुधार की समान अभिलाषा निर्धारित की। वे आशा करते हैं कि विकासशील देशों को और ज्यादा बोलने के अधिकार मिलें, समान रूप से अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भागीदारी हो, अधिकारों, मौकों व नियमों की समानता प्राप्त हो। इसलिए वैश्विक प्रबंधन प्रणाली में ब्रिक्स देशों को एकजुट होकर काम करने की जरूरत है।
ब्रिक्स देशों में हालांकि कुछ देशों के बीच मतभेद हैं, यहां तक प्रादेशिक भूमि या सीमा विवाद मौजूद हैं, फिर भी विकास विकास उनका लक्ष्य है। चूंकि ब्रिक्स देश बराबर विकास के चरण में हैं, ढांचागत सुधार, शहरीकरण एवं गरीबी उन्मूलन का सामना करते हैं और जलवायु परिवर्तन का निपटारा करते समय विकास को बरकरार रखने की समस्या है। फिर भी वे अनुभवों का आदान प्रदान कर सकते हैं और उनके बीच समान हित भी मौजूद हैं। चीन व भारत का संबंध घनिष्ट विकास साझेदारी है, जबकि चीन-ब्राजील संबंध तमाम रणनीतिक साझेदारी संबंध हैं। इससे पहले स्थापित ब्रिक्स देशों के नये विकास बैंक की स्थापना भी इस विचारधारा के अनुकूल है।
(लेखक, जू च्येईचिन चीन के फूतान विश्वविद्यालय में ब्रिक्स देशों के अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता और असिसटेंट प्रोफेसर हैं)