Web  hindi.cri.cn
    आपका पत्र मिला 2016-08-24
    2016-09-12 10:49:59 cri

    अनिल:आपका पत्र मिला कार्यक्रम सुनने वाले सभी श्रोताओं को अनिल का नमस्कार।

    हैया:सभी श्रोताओं को हैया का भी प्यार भरा नमस्कार।

    अनिल:दोस्तो, पहले की तरह आज के कार्यक्रम में हम श्रोताओं के ई-मेल और पत्र पढ़ेंगे। इसके बाद एक श्रोता के साथ हुई बातचीत के मुख्य अंश पेश किए जाएंगे।

    चलिए श्रोताओं के पत्र पढ़ने का सिलसिला शुरू करते हैं। पहला पत्र हमें आया है, उड़ीसा से मॉनिटर सुरेश अग्रवाल का। उन्होंने लिखा है......

    केसिंगा दिनांक 5 अगस्त। ताज़ा समाचारों के बाद पेश साप्ताहिक "चीन का तिब्बत" के तहत मशहूर तिब्बती कलाकार निमा-ज्येरेन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर महत्वपूर्ण जानकारी हासिल हुई। यद्यपि, यही जानकारी आप कुछ समय पूर्व भी प्रसारित कर चुके थे, फिर भी इसका दोबारा प्रसारित किया जाना बुरा नहीं लगा। दक्षिण पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत की चैन थांग काउटी के एक किसान परिवार में जन्में निमा-ज्येरेन की चित्रकारी प्रतिभा बचपन से ही साबित हो गयी थी। चौदह साल की उम्र में निमा-ज्येरेन की सछ्वान प्रांतीय चित्रकारी कालेज में सीखने के लिए सिफारिश की गयी। यह निमा-ज्येरेन की प्रथम बाहर यात्रा थी , जिससे उनके लिए चित्रकार बनने का रास्ता प्रशस्त हुआ था।

    कई साल बाद निमा-ज्येरेन ने चित्रकारी कालेज में अपना अध्ययन समाप्त किया और चित्रकारी कला में अपना ध्यान केंद्रित किया। अनेक सालों के प्रयास के बाद निमा-ज्येरेन चीन के चोटी के चित्रकारों की पंक्तियों में शामिल हो गये। सन 1986 में निमा-ज्येरेन को दसवें पंचनलामा की सेवा करने वाले विशेष चित्रकार नियुक्त किये गये , जिसे किसी तिब्बती चित्रकार का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है। पंचनलाना ने निमा-ज्येरेन के प्रति यह उम्मीद ज़ाहिर की थी कि वे तिब्बती जाति की चित्रकारी कला का जोरों पर विकास कर सकेंगे। पंचनलामा के अनुदेश से निमा-ज्येरेन अपनी रचनाओं की नयी शैली खोजने में संलग्न हो गये।

    निमा-ज्येरेन का विचार है कि जातीय संस्कृति का विकास करना उनका अनिवार्य कर्तव्य है और उन्होंने अपनी सभी रचनाओं में परंपरागत संस्कृति का प्रसार करने हर सम्भव प्रयास किया है। निमा-ज्येरेन तिब्बती परंपरागत चित्रकला के वारिस बनने में पूरी कोशिश करेंगे, क्यों कि यह तिब्बती जाति और हमारे युग की मांग है। उन्होंने कहा,"जातीय संस्कृति का विकास करने से ही इसका संरक्षण किया जा सकेगा। इसके लिये सिर्फ कानून निर्धारित करना काफी नहीं है। जातीय संस्कृति को भी समय के साथ-साथ आगे विकसित करने की बड़ी आवश्यकता है और जातीय संस्कृति के विकास से ही पूरे देश की संस्कृति का विकास सम्भव है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।"

    निमा-ज्येरेन को तिब्बती चित्रकारों का श्रेष्ठ और आधुनिक प्रतिनिधि माना जाता है। उनकी रचनाओं में केवल धार्मिक चित्रकारी नहीं, बल्कि तिब्बती जाति को पूरे देश की विभिन्न जातियों में से एक होने की दृष्टि से वर्णित किया जाता है। निमा-ज्येरेन तिब्बती जनता के रंग-बिरंगे जीवन-चित्रण के जरिये दुनिया को सच और आधुनिक तिब्बत दिखाना चाहते हैं। निमा-ज्येरेन की चित्रकारी रचनाओं में तिब्बती थांगा परंपरा, चीनी परंपरागत कला और आधुनिक पश्चिमी कला के सभी तत्व शामिल हैं। इस तरह उन्हें नया थांगा और नया तिब्बती चित्रकला बताया गया है। निमा-ज्येरेन अपने कौशल को और अधिक छात्रों में प्रसारित करना चाहते हैं। उन्होंने कहा,"परंपरागत संस्कृति का विकास करने के लिए अब बहुत से अध्यापकों ने छात्रों का प्रशिक्षण शुरू किया है। साथ ही सरकार ने परंपरागत चित्रकला का उत्तराधिकार करवाने में कुछ विशेष संस्थाओं को सौंप दिया है और इसमें बहुत उल्लेखनीय प्रगति भी हासिल हुई हैं। दूसरी तरफ सरकार ने भी कुछ विशेष प्रतिभाओं का प्रशिक्षण किया है जो विशेष तौर पर जातीय परंपरागत चित्रकला का अध्ययन कर रहे हैं। आज तिब्बत, सछ्वान और छींगहाई जैसे प्रदेशों में बहुत सी ऐसी प्रतिभा हैं, जिनकी रचनाओं को देश के सर्वोच्च कला-केंद्र में दाखिल कराया गया है। उनमें से कुछ एक को विश्व की चोटी की आर्ट गैलरी में भी प्रदर्शित किया जा रहा हैं। इससे यह साबित होता है कि संस्कृति का विकास करने से ही संस्कृति का संरक्षण किया जा सकता है।

    तिब्बती परंपरागत चित्रकला विकास हेतु केवल पुराना ज्ञान- कौशल सीखना पर्याप्त नहीं है, इसके नवीनीकरण पर भी जोर देना अनिवार्य है। निमा-ज्येरेन परंपरागत चित्रकला के नवीनीकरण पर विशेष ध्यान देते हैं। उन्होंने बचपन से ही तिब्बती चित्रकला का अध्ययन शुरू किया था और परंपरागत तिब्बती चित्रकला के प्रति उनकी गहरी भावना है, तिब्बती चित्रकला के विकास के लिए वह आजीवन प्रयास करते रहने को तैयार हैं।

    उन्होंने कहा,"मैं हमेशा अपनी नयी रचनाओं को विश्व-मंच पर प्रदर्शित करना चाहता हूँ। वर्ष 2015 में मैं ने अपनी रचनाओं के साथ इटली में आयोजित एक प्रदर्शनी में भाग लिया। इससे पहले मैं ने विश्व के अनेक देशों में आयोजित चित्रकला प्रदर्शनियों में भी भाग लिया था। मैं ने अपनी रचनाओं के माध्यम से विश्व को यह बता दिया है कि तिब्बती संस्कृति का सिर्फ अच्छी तरह संरक्षण नहीं, इसे विकास के नये स्तर पर भी पहुंचाया जा चुका है। मेरी रचनाओं को विश्व-प्रदर्शनी में उच्च मूल्यांकन भी प्राप्त है। विदेशी समीक्षकों का मानना है कि इधर के वर्षों में तिब्बत की प्राचीन चित्रकला का पर्याप्त विकास हो पाया है जो मील का पत्थर वाली उपलब्धि है। यह भी हमारे देश की जातीय संस्कृति के विकास के प्रति की गयी प्रशंसा है। मुझे इससे गौरव महसूस होता है। निमा-ज्येरेन की रचनाएं अमेरिका, ब्रिटेन , फ्रांस , भारत और जापान जैसे अनेक देशों में प्रदर्शित हो चुकी हैं और उनकी विशेषताओं ने दूसरे देशों में दर्शकों और विद्वानों का ध्यान आकर्षित किया है। निमा-ज्येरेन की चित्रकला शैली की प्रशंसा हुई है।

    निमा-ज्येरेन का यह कहना -कि किसी भी जाति की गुणवत्ता उस जाति की कला से दर्शायी जा सकती है, इसलिए हमें अवश्य ही हमें अपनी जातीय विशेषता पर डटा रहना चाहिये, बिलकुल सही जान पड़ा। जातीय संस्कृति का संरक्षण भी कड़ाई से करना होगा और यह बात उत्साहजनक है कि केंद्रीय सरकार के समर्थन से तिब्बती जातीय संस्कृति का अच्छी तरह संरक्षण हो पाया है। इसके कुछ उदाहरण पेश करते हुये उन्होंने कहा,"तिब्बत में थांगा चित्रकला का 1300 साल पुराना इतिहास है और थांगा संरक्षण एवं संबंधित चित्रकारों का प्रशिक्षण करवाने में केंद्रीय सरकार ने बड़ी मात्रा की पूंजी लगायी है। अब तिब्बत में ऐसे बहुत से लोग हैं जो अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के वारिस के रूप में काम करते हैं। तिब्बत के अनेक तीर्थस्थलों में उनके थांगा बेचते देखे जा सकते हैं। इसके अलावा तिब्बत के अनेक नगरों में गेसार प्लाज़ा भी निर्मित हैं, जहां तिब्बती जाति के महावीर राजा गेसार की मूर्ति खड़ी रहती हैं। एक और उदाहरण है कि छींगहाई प्रांत के वूथून गांव में तिब्बती जातीय लोक-कला का अड्डा स्थापित हुआ है। इससे तिब्बती जातीय संस्कृति के प्रति केंद्र सरकार का महत्व साबित होता है।"

    वास्तव में, निमा-ज्येरेन सिर्फ एक मशहूर चित्र-कलाकार ही नहीं, वह बीस सालों के लिए चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में प्रतिनिधि भी बने रहे हैं। राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में उन्होंने अनेक बार जातीय संस्कृति के संरक्षण के बारे में अपने सुझाव पेश किये हैं। इस पर उन्होंने कहा -"मैं ने बीस सालों के लिए जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन में भाग लिया है। ऐसे सलाहकार सम्मेलनों में भाग लेने से मुझे भी बहुत सी जानकारियां प्राप्त हुई हैं। सम्मेलन में मुझे देश के सबसे श्रेष्ठ कलाकारों के साथ-साथ विचार विनिमय करने का मौका मिल पाया। हम सब देश के सांस्कृतिक विकास की दृष्टि से काम करने और अपने देश को सांस्कृतिक महाशक्ति बनाने के लिए प्रयास करना चाहते हैं। सचमुच, उनका राष्ट्रप्रेम अद्वितीय है। धन्यवाद् एक अच्छी प्रस्तुति के लिये।

    कार्यक्रम "दक्षिण एशिया फ़ोकस" के अन्तर्गत डोपिंग टेस्ट के ज्वलन्त मुद्दे पर पंकज श्रीवास्तव द्वारा वरिष्ठ पत्रकार उमेश चतुर्वेदी साथ की गई परिचर्चा सुन कर महसूस हुआ कि पहलवान नरसिंह यादव के साथ ज़्यादती हुई है और उन्हें फंसाया गया है। वास्तव में, खिलाड़ियों को इस प्रकार धोखे से दवा खिलाकर उनका कॅरियर चौपट करने के पीछे किसी बड़े रैकेट का हाथ होता है और जिसमें बड़े अधिकारी से लेकर राजनेताओं तक का हाथ होता है, अन्यथा ऐसा करना सम्भव नहीं। ऐसे लोगों को बेनक़ाब करना ज़रूरी है। धन्यवाद्।

    हैया:आगे सुरेश जी लिखते हैं.....8 अगस्त, को "सीआरआई भ्रमण" के तहत चीन में पर्यटन से जुड़े महत्वपूर्ण समाचारों से अवगत कराया गया, जिनमें चीन के उद्योग और वाणिज्य बैंक द्वारा पर्यटन को वरीयता सूची में सब से ऊपर रखते हुये उसके लिये तीन खरब युआन के वित्त-पोषण का प्रावधान; पर्यटन सम्बन्धी विवादों का निपटारा करने क्वॉलिन शहर में नये पर्यटन सर्किट की स्थापना; सछ्वान पर्यटन ब्यूरो के समाचार काफी सूचनाप्रद लगे। पर्यटन फ़ोकस में बतलाया गया कि यूरोपीय संघ से ब्रिटेन के अलग हो जाने के बावज़ूद चीन-ब्रिटेन सम्बन्धों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं; अलग होने के बाद पाउण्ड की घटती क़ीमत का लाभ पर्यटकों को मिलेगा तथा ब्रिटेन द्वारा चीन के पेइचिंग और क्वांगचो शहरों में दो नये वीज़ा केन्द्र खोले गये। जब कि संवाददाता के पदचिह्न के अन्तर्गत एक हज़ार साल से अधिक पुराने तिब्बत की राजधानी ल्हासा स्थित पोताला महल की मज़बूती के साथ उसके चार प्रमुख रहस्यों पर से पर्दा उठाया जाना काफी महत्वपूर्ण लगा। एक सौ सत्तर मीटर ऊंचे दुर्गनुमा पोताला महल के एक हज़ार कमरों के अलावा उसमें पड़े कचरे और महल के नीचे एक और भूमिगत महल होने की अफ़वाह पर सटीक जानकारी देने का शुक्रिया।

    कार्यक्रम "आर्थिक जगत" के अन्तर्गत कॉफी-प्रेमी थाईको एवं उनके आईडील कॉफी अनुभव केन्द्र पर काफी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गई। मुझे थाईको साहब का चीनी मुहावरा 'दुःख के बाद सुख आता है' काफी सकारात्मक लगा। उनका यह मुहावरा किसी भी इन्सान को विपरीत परिस्थितियों में डटे रहने की प्रेरणा देता है।

    साप्ताहिक "जीवन के रंग" के तहत दक्षिण-पश्चिमी चीन के क्वांगशी स्वायत प्रदेश में रहने वाली अल्पसंख्यक तिन जनजाति सहित वहां की अन्य जनजातियों पर पड़ते पश्चिमी प्रभाव पर महती जानकारी प्रदान की गई। धन्यवाद् एक अच्छी जानकारी के लिये।

    चीनी-भाषा पाठ्यक्रम के तहत आज मैडम श्याओ थांग एवं राकेश वत्सजी द्वारा पिछले पाठ में सिखाये गये -'डाकघर जाने के लिये इस्तेमाल किये जाने वाले चीनी वाक्यों' का फिर से अभ्यास कराया जाना अच्छा लगा। धन्यवाद्।

    अनिल:सुरेश अग्रवाल जी, पत्र भेजने के लिये आपका धन्यवाद। चलिए, आगे पेश है पश्चिम बंगाल से मनीषा चक्रवर्ती जी का एक लेख। इस लेख का शीर्षक सी आर आई हिंदी सेवा के माध्यम से चीन से मेरा रिश्ता है और उन्होंने लिखा है......

    मैं मनीषा चक्रवर्ती, वर्ष 2010 से सीआरआई हिंदी सेवा की नियमित श्रोता हूं। मैं रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय में अंग्रेजी भाषा में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हूं। लगभग 6 साल पहले मैं अंग्रेजी का ट्यूशन लेने के लिए न्यू हराइजन रेडियो लिस्नर्स क्लब के संपादक रविशंकर बसु जी के पास गयी। उन्होंने सीआरआई हिंदी के साथ मेरा परिचय करवाया। उनका घर मेरे गांव से करीब 20 किमी. दूर है। सीआरआई और चीन के प्रति उनका गहरा प्यार देखकर मैं बहुत प्रभावित हुई। 2010 में मैं स्कूल में पढ़ रही थी। तभी से मैं सीआरई के साथ जुड़ी हुई है। सीआरआई चीन के साथ मेरा गहरा रिश्ता बनाने में अहम भूमिका निभा रहा है।

    अगर चीन के बारे में मेरी जानकारी की बात करूं तो, पहली बार मैंने स्कूल के दिनों में चीन के बारे में सुना। मेरा पहला परिचय, कम्युनिस्ट चीन और चीन की विदेशी ताकतों से संघर्ष के बारे में था। स्कूल की किताब में चीनी तीर्थयात्रियों की भारत यात्रा पर एक पाठ था। प्राचीन समय में चीनी यात्री किस तरह भारत पहुंचने के लिए पहाड़ों और नदियों का सामना करते थे, इन बातों को पढ़कर मैं आश्चर्यचकित हो गयी। जबकि बाद में आपके कार्यक्रम के माध्यम से भारत और चीन के बीच आदान-प्रदान के बारे में तमाम जानकारी मिलती रही है। भारत और चीन मित्र और पड़ोसी देश हैं और उनकी संस्कृति भी विविध है। इन दो प्राचीन देशों के बीच सांस्कृतिक आवाजाही हज़ारों वर्ष पुरानी है। प्राचीन समय में भारत आने वाले चीनी तीर्थयात्रियों में फ़ाहियान (Faxian/ Fahien) पहले चीनी भिक्षु थे। उन्होंने 399 ईसवीं से लेकर 412 ईसवीं तक भारत, श्रीलंका और आधुनिक नेपाल में स्थित गौतम बुद्ध के जन्मस्थल कपिलवस्तु की यात्रा की। उनकी यात्रा के समय भारत में गुप्त राजवंश के चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का काल था और चीन में पूर्वी छिन का दौर चल रहा था। इतना ही नहीं चीन के थांग राजवंश के समय आचार्य ह्वेन त्सांग (Hsüan-tsang) बौद्ध धर्म के अध्ययन के लिए पैदल भारत आये थे और 657 भारतीय बौद्ध ग्रंथों के साथ चीन वापस लौटे। उन्होंने चीन के प्रसिद्ध पौराणिक उपन्यास "पश्चिम की तीर्थ यात्रा" लिखी। चीन और भारत के बीच सांस्कृतिक आवाजाही की यह एक आदर्श मिसाल मानी जाती है। यह पुस्तक भारत के इतिहास के संदर्भ में एक मूल्यवान मानी जाती है। आज भी प्राचीन भारत के अध्ययन के लिए, इस रचना का सहारा लेना पड़ता है।

    मैंने स्कूल में, चीनी नेता माओ त्से तुंग ,चीनी लाल सेना,लांग मार्च आदि के बारे में पढ़ा था। लांग मार्च के दौरान चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व वाली लाल सेना ने पूरे दो वर्षों तक (1934 से 1936) चीन के 14 प्रांतों से गुज़र के 12000 किलोमीटर का अभियान पूरा किया। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भारतीय डॉक्टर द्वारकानाथ कोटनिस चीन जाकर अपने जीवन को फ़ासिस्ट विरोधी संघर्ष के लिए न्योछावर किया। उन्होंने भारत व चीन दोनों देशों के मैत्रीपूर्ण संबंधों के लिए उल्लेखनीय योगदान दिया है।

    ह्वेन त्सांग, फ़ाहियान और कोटनिस के अलावा रवीन्द्रनाथ टैगोर आधुनिक भारत -चीन मैत्री के प्रतीक माने जाते हैं। जब चीन सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहा था , तब टैगोर ने चीन के प्रति समर्थन व्यक्त किया। 7 जुलाई,1937 को जापानी हमलावरों ने पेइचिंग के दक्षिण-पश्चिमी उपनगर के मार्को पोलो पुल के निकट तैनात चीनी सेना पर हमला किया और इसी के साथ चीन में जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध शुरू हुआ था। टैगोर ने विश्वयुद्ध से उत्पन्न त्रासदी को महसूस किया। टैगोर ने चीनी जनता के पक्ष में खड़े होकर अपनी कविताओं व रचनाओं से जापानी साम्राज्यवाद की कड़ी निंदा की और चीन के न्यायपूर्ण संघर्ष के प्रति समर्थन व्यक्त किया। उन्होने अपने चीनी दोस्तों से कहा कि "मुझे विश्वास है कि आप जरूर विजयी होंगे। जब आप जीत हासिल करेंग,मैं फिर एक बार चीन की यात्रा करूंगा।" 1924 में अपनी चीन यात्रा के माध्यम से वह आधुनिक युग में हमारे दोनों देशों के बीच एक नई समझ और दोस्ती का बीज रोपा गया था। चीन से भारत लौटने के बाद उन्होंने चीनी कॉलेज स्थापित किया, जिसका चीनी संस्कृति के प्रचार प्रसार में बड़ा योगदान है।

    मैं अच्छी तरह जानती हूं कि चीन को प्रकृति से बहुत उपहार मिला है ; चीन में दुनिया की बेमिसाल कुछ खास ऐसी जगहें हैं जिसे देखकर हम हैरान हो जाते हैं और चीन की सुंदरता में खो जाते हैं। सीआरआई हिंदी विभाग के "चीन का भ्रमण " कार्यक्रम के जरिये हम लोग घर में बैठकर ही पूरे चीन का दौरा कर सकते हैं। मैंने आपकी वेबसाइट पर पेइचिंग के मशहूर दर्शनीय स्थलों, जैसे फॉरबिडन सिटी,समर पैलेस, स्वर्ग मंदिर,लंबी दीवार,बर्ड्स नेस्ट और वाटर क्यूब के बारे में काफी जानकारी हासिल की है।अगर मुझे कभी मौका मिला तो मैं ग्रेट वाल ऑफ चाइना को अपनी आंखों से देखना चाहूंगी। रेडियो प्रोग्राम के माध्यम से पृथ्वी का स्वर्ग कहलाने वाले च्यु चाइ काउ पर्यटन क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन सुनकर मैं मोहित हो गई। मुझे आपकी वेबसाइट पर दक्षिण पश्चिमी चीन के सछ्वान प्रांत के दुर्लभ जानवर पांडा से जुड़े विश्वविख्यात छंगतु पंडा प्रजनन अनुसंधान केंद्र की कुछ तस्वीरें देखने का मौका भी मिला। सछ्वान प्रांत प्यारे पांडा की जन्मभूमि है। पश्चिम बंगाल के एक छोटे से गांव में रहकर मैं इस दुर्लभ पांडा के बारे में आपकी बदौलत अपडेट हो जाती हूं।

    यह हमारे लिए बहुत ही गर्व की बात है कि हमसे हज़ारों मील दूर बैठकर चाइना रेडियो इंटरनेशनल हमारी राष्ट्र भाषा हिंदी में रेडियो कार्यक्रम प्रसारण करता है, जो चीनी जनता और भारतीय जनता की पारस्परिक मैत्री का आधार बन चुका है। मैं सीआरआई को इसलिए धन्यवाद देना चाहती हूं, क्योंकि सीआरआई ने हिंदी को एक अंतराष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठित करने में बड़ी भूमिका निभाई है। यह एक महत्वपूर्ण बात है कि चीन के ह्रदय स्थल पेइचिंग से सीआरआई हिंदी विभाग के जरिए हमारी भाषा में चीन की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक गतिविधियों के बारे में रिपोर्ट प्रतिदिन भारत के लाखों घर तक पहुंच रही हैं, साथ ही भारत के साथ एक सेतु का निर्माण भी करती हैं। सीआरआई हिंदी विभाग की वेबसाईट हमलोगों को बड़ी प्यार से चीन के साथ जुड़ती है। हिंदी विभाग के कार्यक्रमों की ज़रिये हम लोग प्राचीन सभ्यता वाले देश चीन की रंग-बिरंगी संस्कृति ,चीन की विविध खानपान शैली और रीति-रिवाज के बारे में बहुत जानकारी हासिल करते हैं।

    मैं इस अवसर पर सीआरआई हिंदी विभाग अपने गहरे रिश्ते के बारे में बताना चाहती हूं। वर्ष 2011 में जब हमारे न्यू हराइज़न रेडियो लिस्नर्स क्लब ने सीआरआई हिंदी विभाग के प्रचार-प्रसार के लिए पहली बार रक्तदान शिविर का आयोजन किया। तब मैंने सोचा भी नहीं था कि सीआरआई मेरे जैसी एक आम श्रोता का इंटरव्यू लेगा। 16 अप्रैल,2011 को जब हिंदी विभाग के पूर्व उद्घोषक विकास जी ने मुझे फ़ोन किया, तब मेरा दिल मयूर की तरह नाचने लगा। और मुझे यह भी मालूम हुआ कि हिंदी विभाग सभी श्रोताओं को उपयुक्त सम्मान देता है। बाद में हिंदी विभाग के विशेषज्ञ अनिल पांडेय जी ने भी मेरा साक्षात्कार लिया। मैं हमेशा सीआरआई हिंदी विभाग के साथ जुड़े रहना चाहती हूं। पिछले छह सालों में सीआरआई हिंदी के जरिए चीन के साथ मेरा गहरा संबंध कायम हुआ है। यह सच है कि चीन से हजारों मील दूर बैठकर भी सीआरआई रेडियो तरंगों और वेबसाइट के माध्यम से मैं आपके संपर्क में रहती हूं। मुझे विश्वास है कि यह संबंध आगे भी जारी रहेगा और हमारी दोस्ती और प्रगाढ़ होगी। मैं आशा करती हूं कि मुझे एक दिन सपनों के देश चीन का दौरा करने का अवसर दिया जाएगा।

    चीन-भारत दोस्ती की डोर यूं ही मजबूत होती रहे.......इसी उम्मीद में,

    हैया:मनीषा चक्रवर्ती जी, पत्र भेजने के लिये आपका धन्यवाद। आपने अपने लेख में जो चीजें लिखी हैं, मैं उससे बहुत प्रभावित हुआ। हम उम्मीद करते हैं कि मनीषा जैसी दूसरी युवतियां भी हमारे प्रोग्राम सुनेंगी। चलिए, आगे पेश है उत्तर प्रदेश से सादिक आज़मी जी का पत्र। उन्होंने लिखा है......

    विगत दिनों चीन प्राकृतिक आपदा की समस्या से लगातार जूझता रहा। शैलाब और तूफानी हवाओं से जनजीवन अस्त-व्यस्त है, लेकिन प्रशंसा करनी होगी,चीनी जनता की जो पूरे हौसले से इस कठिन समय का सामना कर रहे हैं।

    आपके कार्यकाल और वेबसाइट के माध्यम से पल पल की स्थिति से अवगत होने का अवसर मिल रहा है। हम चीनी भाईयों की इस मुश्किल घड़ी में साथ हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वह अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखे और सीघ्र वहां जन जीवन सामान्य पटरी पर लौट आए।

    हैया:अब सुनिए हमारे श्रोता दोस्त बिमलेंदु विकल के साथ हुई बातचीत।

    अनिल:दोस्तो, इसी के साथ आपका पत्र मिला प्रोग्राम यही संपन्न होता है। अगर आपके पास कोई सुझाव या टिप्पणी हो तो हमें जरूर भेजें, हमें आपके खतों का इंतजार रहेगा। इसी उम्मीद के साथ कि अगले हफ्ते इसी दिन इसी वक्त आपसे फिर मुलाकात होगी। तब तक के लिए अनिल और हैया को आज्ञा दीजिए, नमस्कार।

    हैया:गुडबाय।

    © China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
    16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040