पहली सितंबर को तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा में सालाना आयोजित शोतन त्योहार का उद्घाटन हुआ । ल्हासा में स्थित डेपुंग मठ के सामने के पहाड़ पर बुद्ध की एक बहुत विशाल चित्रित प्रतिमा की प्रदर्शनी से हजारों अनुयायियों और देसी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित किया गया ।
सुबह आठ बजे भोर के प्रथम किरण में डेपुंग मठ के सामने पहाड़ पर रंग बिरंगे सिल्क से बनाये गये एक विशाल थांगका का बुद्ध प्रतिमा लोगों के सामने खोला गया । हजारों अनुयायियों और पर्यटकों ने हर्षोल्लास के साथ इस समारोह में शिरकत की ।
तिब्बती महिला छूचेन ने कहा,"मुझे बहुत प्रेरित है । इसी क्षण के लिए मैं ने बहुत लम्बे समय से इंतजार किया है । आशा है कि लोग बुद्धा की शुभकामना में खुशी रहेंगे ।"
पेइचिंग शहर से गयी पर्यटक वांग श्याओ ईंग ने अपनी प्रथम तिब्बत यात्रा में ही शोतन त्योहार में भाग लिया है । डेपुंग मठ में प्रदर्शित बुद्ध प्रतिमा की प्रदर्शनी ने उनपर गहरी छाप छोड़ी है । उन्होंने कहा,"बुद्ध प्रतिमा की प्रदर्शनी देखकर मैं बहुत प्रेरित हुई । इसके बाद मैं तिब्बती व्यंजन, तिब्बती पोशाक व मास्क आदि खरीदना चाहती हूं और मैं तिब्बती ओपेरा भी देखने जाऊंगी ।"
तिब्बती ओपेरा संयुक्त राष्ट्र संघ की गैर-भौतिक सांस्कृतिक विरासत की नामसूची में शामिल किया गया है । शोतन त्योहार में तिब्बती ओपेरा का प्रदर्शन जरूर देखा जाता है । तिब्बती बुजुर्ग ताशी सेरिंग ने कहा, "तिब्बती ओपेरा का प्रदर्शन देख कर ऐतिहासिक कहानियों को याद किया जाता हैं । तिब्बती ओपेरा का संरक्षण अच्छी तरह से हुआ है, हमें बहुत प्रसन्नता है । शोतन त्योहार के सात दिनों में मैं रोज़ तिब्बती ओपेरा देखने जाता हूं ।"
शोतन त्योहार में कुल सात तिब्बती ओपेरा दलों ने प्रदर्शन किया है और उन्होंने कुल चौदह तिब्बती नाटकों का प्रदर्शन किया है । तिब्बती ओपेरा को शोतन त्योहार के दौरान सबसे ज्यादा लोकप्रिय माना जाता है । ल्हासा शहर के सांस्कृतिक ब्यूरो के प्रधान लोसांग ने कहा,"लोगों को तिब्बती ओपेरा देखना अत्यंत पसंद है । लोगों की मांग को पूरा करने के लिए हमने प्रदर्शन का आयोजन किया है । सरकार ने भी परंपरागत कला के संरक्षण के लिए तिब्बती ओपेरा के प्रदर्शन के लिए मंच तैयार किया है । तिब्बत में अनेक ओपेरा दल भी हैं, सभी को यहां प्रदर्शन दिखाने का अवसर मिलने की उम्मीद है ।"
तिब्बती भाषा में "शोतन" का मतलब है दही । इस त्योहार का जन्म ग्यारहवीं शताब्दी में हुआ था । सुना गया है कि अनुयायी उस दिन साधुओं को दही का दान करते थे । आज शोतन त्योहार आम लोगों के लिए महोत्सव जैसा बन गया है जिसमें बुद्ध प्रतिमा की प्रदर्शनी, तिब्बती ओपेरा प्रदर्शन और आम मनोरंजन आदि सब शामिल हैं ।
( हूमिन )