Web  hindi.cri.cn
    चीन बदलेगा जी-20 की सोच
    2016-09-01 18:17:03 cri

    आर्थिक संकट से लेकर ब्रेग्जिट तक दुनिया की चुनौतियां बदल गई हैं। इसी पृष्ठभूमि में विश्व की 20 प्रमुख आर्थिक शक्तियों का सम्मेलन चार और पांच सितंबर को पूर्वी चीन के हांगचो में हो रहा है। सम्मेलन में सभी प्रमुख देशों के प्रतिनिधि विश्व के सामने मौजूद चिंताओं और चुनौतियों से निपटने के लिए माथापच्ची करेंगे।

    मेजबान होने के नाते चीन के पास यह खुद को एक बड़े मंच पर साबित करने का शानदार अवसर है। वह इसके जरिये विश्व में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने और वैश्विक आर्थिक वृद्धि के स्थिर विकास पर जोर दे रहा है। चीन चाहता है कि आगामी जी-20 सम्मेलन में सिर्फ और सिर्फ आर्थिक चुनौतियों पर ही ध्यान दिया जाए, जिसमें विश्व को मंदी से उबारने का फॉर्मूला भी शामिल है। उसके पास अर्थव्यवस्था को मजबूती से चलाने का अनुभव है, जिसे वह दुनिया को दिखा सकता है। उसने लगभग तीन दशक तक विकास दर को दहाई अंकों में कायम रखा। 2008 की मंदी के बाद भी चीनी अर्थव्यवस्था ठीक-ठाक स्थिति में है।

    जानकार मानते हैं कि चीन आर्थिक चुनौतियों के मुकाबले पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। मगर उसका विभिन्न देशों के साथ समुद्री विवाद जारी है। हाल के समय में दक्षिण चीन सागर का मुद्दा सुर्खियों में रहा। चीन चाहेगा कि जी-20 सम्मेलन में यह मसला हावी न हो। वह इसके लिए 2013 के सेंट पीटर्सबर्ग सम्मेलन के भटकाव का उदाहरण दे रहा है, जिसमें सीरिया-मुद्दा उठाया गया था। इसलिए वह दूसरे मुद्दों को जोर-शोर से उठाकर विश्व का ध्यान अन्य समस्याओं की ओर खींचना चाहता है। इस संबंध में उसने उभरती अर्थव्यवस्थाओं को एकजुट करने की कोशिश की है, ताकि विवादित मुद्दों को ज्यादा तवज्जो न मिले।

    इसी सोच के चलते सम्मेलन के लिए चीन ने नवोन्मेष, एक-दूसरे से संबद्ध और सम्मिलित अर्थव्यवस्था स्थापित करने का प्रस्ताव तैयार किया है। इसके तहत ढांचागत सुधार, आर्थिक संयोजकता, व्यापार और निवेश को बढ़ाकर वैश्विक स्थिति को सुधारा जा सकता है। नवोन्मेष के जरिये चीन विश्व को तकनीक के इस्तेमाल के साथ-साथ नए उत्पादों के निर्माण के लिए प्रेरित करना चाहता है। वह ढांचागत बदलाव को बहुत अहमियत दे रहा है। चीनी नेताओं के मुताबिक, जी-20 के स्वरूप में ढांचागत बदलाव से 2018 तक जी-20 देशों की जीडीपी में कम से कम दो फीसदी का इजाफा हो सकेगा। इसके अलावा 2030 तक अनवरत विकास लक्ष्य हासिल करने के लिए भी चीन की पहल काम आ सकती है। साथ ही, चीन वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी पटरी पर लाने के लिए जी-20 देशों से अग्रणी भूमिका निभाने की अपेक्षा रखता है। फिलहाल, जी-20 देशों की आबादी विश्व की कुल जनसंख्या की दो तिहाई है और आर्थिक उत्पादन वैश्विक उत्पादन का 80 फीसदी।

    चीन जी-20 के माध्यम से विश्व में व्यापार प्रक्रिया को और सरल बनाने का पक्षधर है। साथ ही, एंटी डंपिंग और बढ़ते व्यापार संरक्षणवाद के मुद्दे पर भी वह दुनिया का ध्यान आकृष्ट करना चाहता है। इन समस्याओं पर विकसित देशों के साथ उसके मतभेद किसी से छिपे नहीं हैं। मगर फिलहाल विवादों के इतर चीन वैश्विक स्थिति को बेहतर करने के लिए जी-20 मंच का इस्तेमाल करना चाहता है। वैसे भी, जी-20 की स्थापना का मकसद वैश्विक वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देना है। हालांकि इस तरह के बड़े सम्मेलनों में अन्य ज्वलंत मुद्दे भी उठते रहे हैं। इसलिए इस बार भी ऐसे मामलों को उठाने की कोशिश संबंधित देशों के द्वारा की जा सकती है।

    यह पहला मौका है, जब चीन इतने महत्वपूर्ण सम्मलेन का मेजबान देश बना है। इसमें कोई दोराय नहीं कि 1999 में जी-20 की स्थापना और 2001 में विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने के बाद वह एक बड़ी ताकत के रूप में उभरा है। 2008 के बीजिंग ओलंपिक के शानदार आयोजन के बाद चीन इस सम्मेलन को लेकर बेहद गंभीर है। वह इस सम्मेलन के माध्यम से न केवल अपने मित्र देशों से दोस्ती बढ़ा रहा है, बल्कि भारत जैसे पड़ोसी देशों को भी अपने साथ लाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है। सम्मेलन से पहले चीनी नेताओं ने भारत और अन्य देशों के दौरे किए व बैठकें आयोजित कीं। इससे चीन की गंभीरता का अंदाजा लगाया जा सकता है।

    चीन की इन पहल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहना भी मिली है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून कहते हैं कि चीन ने अनवरत विकास को बढ़ावा देने के लिए जिस तरह का प्रयास किया है, वह काबिलेतारीफ है। बकौल मून, यह जी-20 के इतिहास में पहली बार है कि चीनी नेता अनवरत विकास लक्ष्य हासिल करने और पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते को लागू करने की दिशा में इतनी तत्परता दिखा रहे हैं।

    वैसे आर्थिक संकट के दौर में विश्व को चीन से सीखने की आवश्यकता है। चीनी वाणिज्य मंत्रालय के एक अधिकारी के अनुसार, विश्व को चीन से वह नजरिया सीखना चाहिए, जिसके बल पर वह अपनी आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाए रख सका है। साथ ही, अन्य देशों को यह भी देखना चाहिए कि चीन जी-20 में अधिक से अधिक देशों की भागीदारी सुनिश्चित कर रहा है, ताकि उनकी आवाज बड़े मंच पर सुनाई दे।

    यह सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब विश्व के सामने तमाम चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं। ऐसे वक्त में भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं ने जो उम्मीद जगाई है, उससे जी-20 में उनकी भूमिका और बढ़ गई है। वहीं, चीन ने जिस तरह की सक्रिय भूमिका जी-20 सम्मेलन को सफल बनाने में निभाई है, वह भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए एक उदाहरण है। चीन ने भारत को साथ लाने का पूरा प्रयास किया है। वह भारत को यह बताने की कोशिश कर रहा है कि दोनों देशों के हित मतभेदों से ज्यादा हैं।

    ध्यान रहे कि अक्तूबर के मध्य में भारत ब्रिक्स बैठक की मेजबानी करेगा, तब उसे चीन की मदद की जरूरत होगी। चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने भारत का दौरा करके इन दो सम्मेलनों के बारे में भारत के साथ चर्चा की। भविष्य में भी एशिया के दोनों प्रमुख पड़ोसी देशों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद और जलवायु-परिवर्तन आदि क्षेत्रों में अधिक सहयोग करना होगा। अगर चीन जी-20 सदस्यों को एकजुट करके सम्मेलन को सफल बना सका, तो निश्चित तौर पर वैश्विक मंच पर उसकी धाक बढ़ेगी। यह भारत जैसे दूसरे विकासशील देशों के भी हित में होगा। इस तरह एशियाई देशों का अंतरराष्ट्रीय मामलों में दखल बढ़ेगा। मगर देखना यह भी होगा कि जी-20 के सदस्य देश इन प्रस्तावों को कितनी गंभीरता से लेते हैं। सम्मेलन के दौरान यह भी स्पष्ट हो जाएगा कि जी-20 सिर्फ आर्थिक मुद्दों पर केंद्रित रहता है या फिर इसमें भू-राजनतिक मुद्दे हावी होंगे।

    (अनिल आजाद पांडेय का यह लेख हिंदुस्तान अख़बार में प्रकाशित हुआ है)

    © China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
    16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040