2 से 4 अगस्त तक आयोजित छठी पेइचिंग अंतर्राष्ट्रीय तिब्बती अनुसंधान संगोष्ठी में उपस्थित विद्वानों का मानना है कि "एक पट्टी एक मार्ग"के निर्माण में तिब्बत की अहम भूमिका साबित होगी।
चीनी राज्य परिषद के विकास अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर य्वे सूंग तुंग ने कहा कि दक्षिण एशिया उन्मुख खुली नीति देश के"एक पट्टी एक मार्ग"निर्माण का महत्वपूर्ण भाग है । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सीमा भारत, नेपाल, भूटान और म्यांमार से जुड़ती है । यह क्षेत्र रेशम मार्ग का एक भाग भी है । तिब्बत को जरूर ही"एक पट्टी एक मार्ग"में शामिल किया जाना चाहिये ।
उन्हों ने कहा,"तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की पड़ोसी देशों के साथ जुड़ने की चार हजार किलोमीटर लम्बी सीमा होती है । हमें जो कोशिश करना चाहिये वह है कि हिमालय पर्वत को पार कर एक महाद्वीपीय पुल का निर्माण किया जाएगा , और इसे 21वीं शताब्दी वाले समुद्रीय रेशम मार्ग के साथ जोड़ दिया जाएगा । इसी दृष्टि से तिब्बत"एक पट्टी एक मार्ग"परियोजना में महत्वपूर्ण भाग है ।"
पेइचिंग प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र और प्रबंधन स्कूल के प्रोफेसर जूंग-गांग ने कहा कि रेल मार्ग का निर्माण तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में सामाजिक और आर्थिक विकास होने के लिए अनिवार्य है । छींगहाई-तिब्बत रेल मार्ग और दूसरे निर्माणाधीन रेलवे के निर्माण से तिब्बत में यातायात की कमजोरी को दूर किया गया है । और"एक पट्टी एक मार्ग"परियोजना से तिब्बत में रेल मार्ग के विकास के लिए नयी दिशा तय की गयी है ।
जूंग-गांग ने कहा,"मेरे ख्याल में"एक पट्टी एक मार्ग"का मतलब है कि समुद्र और महाद्वीप की यातायात को एक साथ जोड़ा जाएगा । इससे तिब्बत में रेलवे के विकास के लिए नया मौका तैयार हो गया है । अब चीन की केंद्र सरकार और तिब्बती स्वाय्त्त प्रदेश की सरकार दोनों रेलवे के नेटवर्क का सुधार करने की कोशिश कर रही हैं । भविष्य में चीन के भीतरी इलाकों और दक्षिण एशिया के रेलवे नेटवर्क को जोड़ा जाएगा । जिसकी सारे क्षेत्र में राजनीतिक व आर्थिक संबंधों की पुनःस्थापना के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा की जाएगी ।"
चीनी सुधार फोरम के सामरिक अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर मा च्या ली ने बयान देते हुए"एक पट्टी एक मार्ग"के सामरिक महत्व का उच्च मूल्यांकन किया । उन का मानना है कि हिमालय पर्वत पार रेलवे का निर्माण करने की रूपरेखा बहुत महत्वपर्ण है । क्योंकि इससे चीन और भारत के बीच संपर्क को और मजबूत किया जा सकेगा ।
मा च्या ली ने कहा,"मेरा विचार है कि हिमालय पर्वत पार रेलवे का निर्माण करने का राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अर्थ प्राप्त है । इससे तिब्बत के माध्यम से दक्षिण एशिया उन्मुख द्वार खोलने का रास्ता प्रशस्त हो जाएगा । और इससे विश्व की दो प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ा जाएगा । अभी तक चीन और भारत के बीच यातायात मुख्य रूप से समुद्रीय परिवहन पर निर्भर रहती है , अगर दोनों के बीच रेलवे की सुविधा मिल पाए तो इन के आर्थिक विकास की संभाविक शक्ति को और उजागर किया जाएगा ।"
चीनी शांघाई इंटरनेशनल अनुसंधानशाले के दक्षिण एशिया विशेषज्ञ डाक्टर ल्यू जूंग ई ने कहा कि"एक पट्टी एक मार्ग"के निर्माण में तिब्बत का अहम स्थान है । तिब्बत का विकास और खुलेपन अनिवार्य और अपरिवर्तनीय है । लेकिन हमें इस बात पर भी ध्यान रखना पड़ेगा कि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश चीन का सांस्कृतिक संरक्षण स्थल और सीमांत सुरक्षा अवरोध भी है । तिब्बत के विकास में अंतर्राष्ट्रीय रणनीति और सुरक्षा की चुनौतियों का सामना भी करना पड़ेगा ।
उन्हों ने कहा,"तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की अपनी विशेष स्थिति होती है । चीन को इस क्षेत्र में अलगाववादियों और आतंकी बलों के साथ संघर्ष करना पड़ेगा । दलाई लामा के पश्चात ऐसा संघर्ष और भीषण बनेगा । पश्चिम भी मानवाधिकार, जनवाद और धार्मिक मामले जैसे बहाने में चीन के अन्दरूनी मामलों में हस्तक्षेप लगाने का प्रयास करेगा । इसलिए दक्षिणी एशिया की ओर जाने वाले चैनल का निर्माण इतना आसान नहीं होगा ।"
संयुक्त राष्ट्र संघ में कार्यरत थाइवानी प्रोफेसर लाई शांग लुंग ने भी कहा कि सांस्कृतिक, कलात्मक और धार्मिक दृष्टि से दक्षिण एशियाई देशों के साथ सहयोगी संबंध कायम करने में तिब्बत की श्रेष्ठता मौजूद है । इसलिए चीन और दक्षिण एशियाई देशों के बीच भरोसा व सामंजस्य वाले संबंधों की स्थापना में तिब्बत अपना प्रभाव डालेगा ।
उन्हों ने कहा,"हमारे देश को तिब्बत के माध्यम से हिमालय क्षेत्र स्थित देशों से पारस्परिक समझ व विश्वास जीतना चाहिये । इन देशों की अलग अलग राजनीतिक और धार्मिक स्थितियां हैं , पर उन के बीच दीर्घालीन सांस्कृतिक आदान प्रदान करने का इतिहास है ताकि"एक पट्टी एक मार्ग"के निर्माण के लिए मजबूत आधार तैयार हो सके ।"
( हूमिन )