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    अंतर्वस्त्रों की बेफिक्री और बवाल (दूसरा भाग)
    2016-08-18 13:50:41 cri

    कुछ ऐसा ही सलोनी लिखती हैं "जिंदगी ब्रा की तरह है..... और औरतों को अपनी सेक्सुएलिटी को लेकर और खुला रवैया अपनाने की ज़रूरत है, जिसने भी यह तय किया है कि लड़के बॉक्सर में शर्टलेस आराम से घूम सकते हैं लेकिन लड़कियां ब्रा तक में नहीं दिख सकतीं, उसने वाकई समाज को बहुत नुकसान पहुंचाया है। क्या आपको पता है कि आज भी ऐसे लोग हैं जिन्हें लड़कियों के ब्रा का स्ट्रैप दिखने से दिक्कत है। स्ट्रैप???? ऐसे लोग भी हैं जिन्हें टॉप के बाहर से आपकी ब्रा की शेप दिख जाने से दिक्कत है। समाज में कुछ ऐसे दिमागी बीमार लोग भी हैं जो आपकी "ब्रा स्ट्रैप" देखकर ही उत्तेजित हो जाते हैं।

    उन्होंने यह भी लिखा कि "मुझे सच में नहीं पता कि ब्रा के साथ समस्या क्या है? हां, मैं इन्हें पहनती हूँ, यह कपड़े का एक टुकड़ा है जो मेरी ब्रेस्ट ढकता है जैसे कि मेरी स्कर्ट जो मेरे पैर ढकती है या फिर स्लीव्स जो मेरे कंधे ढकती है। तो लॉन्जरी के साथ इतनी बड़ी समस्या क्यों है? 'ब्रेस्ट' शब्द की वजह से? क्या ये एक लड़की के स्तन हैं जो पूरी दुनिया को असहज कर देते हैं? क्या पुरुष इतने कमजोर हैं? यकीन कीजिये, ऐसा कुछ नहीं है कि हमारे स्तन कोई पवित्र चीज़ हैं, ये हमारे शरीर का हिस्सा भर हैं। उन्होंने आखिर में लिखा है कि इनकी वजह से औरतों को असहज महसूस करवाना बंद कीजिये। पुरुष अपना सीना दिखाते हैं जबकि लड़कियां सरेआम अपने हाथ में एक ब्रा नहीं पकड़ सकतीं। लॉन्जरी कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि जिसे छिपाया जाए। मैं यह सब देखकर थक चुकी हूं कि औरतों को हर चीज़ के लिए शर्मिंदा होना पड़ता है। पैड, टंपौन, लॉन्जरी, हमारा शरीर, हमारी इच्छाएँ, सेक्स। हमें ये सब यहीं खत्म करना होगा। दिमाग को इन सबसे आज़ाद करना होगा।

    सलोनी चोपड़ा की ये तमाम बातें सभी लड़कियां अपनी जीती-जागती ज़िंदगी में हर दिन महसूस करती भले ही सामने से कहे या नहीं। इतने पर भी कुछ लोगों ने ये भी कहा कि सलोनी चोपड़ा ने ये सब लोकप्रियता पाने कि एवज़ में किया है। अगर इस लोकप्रियता वाली बात को भी सही मान लिया जाए, तो भी कम से कम मुद्दा तो ऐसा उठाया है जो आधी आबादी कही जाने वाली महिलाओं के दिलों दिमाग में घर किए हुए है।

    वैसे अब बात उठी है तो दूर तलक जाएगी। जी हां, हम अब इस अंतर्वस्त्रों के मुद्दे को भारत से लेकर चीन तक जाएंगे। वैसे भी चीन हमारा पड़ोसी देश है और कहते हैं ना पड़ोसी से अच्छी बातें सीखने में कोई गुरेज़ नहीं होना चाहिए। हमने अपने स्रोतों के जरिये ये जानने की कोशिश की कि आखिरकार चीन जो एक बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है साथ ही आए दिन विकास के नए पैमानों को छू रहा है वहाँ अंतर्वस्त्रों के बारे में लोगों का क्या नजरिया है और लड़कियां कितनी सहज हैं इन सब मुद्दों को लेकर।

     अंतर्वस्त्रों की खरीद बेच की अगर बात करें, तो इसमें भारत-चीन तकरीबन एक जैसे ही हैं अर्थात् लॉन्जरी के लिए कहीं भी अलग से आऊटलेट्स पाये जाते हैं, साथ ही बेचने वालों में सामान्य तौर पर महिलाएं ही रखी जाती हैं।

     यदि लॉन्जरी के पहनने की बात करें तो उसमें चीन भारत से कुछ अधिक उदार प्रवृत्ति लिए हुए है। जैसे कि लड़कियों के कार्य के मुताबिक जैसी ज़रूरत होगी वो वैसे अंतर्वस्त्र या वस्त्रों को पहन सकती है। उदाहरणतः जिम में लड़कियां आसानी से स्पोर्ट्स ब्रा और टाइट्स पहने नज़र आएंगी, योगा के लिए योगा पैंट और टी-शर्ट तो स्विमिंग पूल में स्विमिंग कॉस्ट्यूम में। बैले डांस में क्रॉप टॉप, ब्लाउज़ या बैले डांस पैंट। जबकि भारत में खुले सार्वजनिक स्थलों पर लड़कियों के ऐसे कपड़े पहनने पर उन्हें असहज महसूस कराया जाता है।

     शाहरुख की बेटी सुहाना के बिकनी पहनने जैसी बात चीन में आम है और बीच आदि पर इसके पहनने से कोई विवाद भी नहीं। चीन में स्विमिंग पूल, बीच आदि पर लड़कियां अक्सर बिकनी या शॉर्ट स्विमिंग ड्रैस में ही नज़र आती हैं। यहां तक कि पूल पार्टियों में भी। साथ ही वहां ऐसी लड़कियों को फटी आँखों से घूरा भी नहीं जाता। इसके अलावा ये बात स्वीकारी गई है कि ऐसी जगहों पर ऐसे कपड़े ही अनुकूल और आरामदायक भी होते हैं।

     सलोनी चोपड़ा ने ब्रा या ब्रा के स्ट्रैप दिखने वाली जो बात उठाई वो चीन में एक स्वीकार्य मुद्दा है या विवाद का विषय है ही नहीं। चीन में लड़कियों को अपने कपड़े और अंतर्वस्त्रों को चुनने या पहनने की ये आज़ादी है कि वे अपनी सजी हुई स्ट्रैप वाली ब्रा को विश्वास के साथ ऐसे टी-शर्ट में पहन सकती है जिसमें स्ट्रैप और ब्रा का डिज़ाइन पूरी तरह नज़र आता हो। आमतौर पर लड़कियां ऐसे झीने कपड़ों में ही देखने को मिलती हैं।

     हाँ, लेकिन एक मुद्दे की झिझक अब तक दोनों देश में बरकरार है और वो है अपने पति के अलावा अन्य किसी पुरुष सदस्य के साथ अपनी लॉन्जरी न खरीद पाना। चीन में भी ऐसा देखने को नहीं मिला कि कोई लड़की भाई या पिता के साथ लॉन्जरी की खरीददारी करती हो। साथ ही लॉन्जरी को लाने या ले जाने में थोड़ा छुपाने वाली प्रवृति भी अभी बरकरार है। लेकिन हाँ, चीन में लड़कों को इतनी आज़ादी नहीं कि वे लॉन्जरी को लेकर लड़कियों का मखौल बनाएं या भद्दी टिप्पणियां या फब्तियां कसें। इतने पर लड़कियां पूरे सहज ढंग से बिना सकुचाये खरीददारी कर पायें ऐसा माहौल हमेशा ही रहता है।

    सार रूप में, अगर हम कहें तो एक हद के भीतर चीन में भारत की अपेक्षा अंतर्वस्त्रों को लेकर ज़्यादा उदार रवैया और माहौल है। साथ ही महिलाओं को सुरक्षात्मक ढंग से अपनी आज़ादी को जीने का अधिकार है। साथ ही साथ समाज भी महिलाओं को सहज महसूस कराने का भरसक प्रयत्न करता है। शायद ये एक ऐसा बिन्दु है जिस पर भारतीय समाज को अपने पड़ोसियों से इस उदारता को अपने में समाहित करना चाहिए।

    आखिर कब तक हम ऐसे मुद्दों पर अपनी ऊर्जा, समय और संसाधन बर्बाद करते रहेंगे जो असल में कोई मुद्दा है ही नहीं। बस सारा किस्सा हमारी सोच और नज़रिये का है। आखिर कब इस आधी आबादी को अपनी आज़ादी से जीने का एहसास मिलेगा।

    इस रिपोर्ट की लेखिका हैं स्वतंत्र पत्रकार पूजा नागर।

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